इन दिनों पूरे देश में विभिन्न राजनैतिक दल आगामी चुनाव को ध्यान में रखकर काम रही हैं। कांग्रेस-भाजपा की हर चाल एक दूसरे को निपटाने के हिसाब से हो रहा हैं। एक तरह यूपीए सरकार अपने मंत्रियों की करतूतो पर मुंह छिपा रही हैं। तो भाजपा शासित राज्यों में भाजपाईयों की यही स्थिति हैं। विकास का भौंडा प्रदर्शन हो रहा है और हालात दिनों दिन बिगड़ते जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में तो हालात बदतर हो गई हैं। आगामी चुनाव के हिसाब से सरकार की कोशिश हैट्रिक की है और वह इसी को ध्यान में रखकर ही फैसले ले रहे हैं। भाजपा सरकार ग्राम सुराज चला रही है तो कांग्रेस वादा निभाओं। इसके बीच आम जनता के सामने यह दिक्कत खड़ी हो गई है कि वे किसे चुनें।
इन दिनों सब तरफ कलेक्टर एपी मेनन की रिहाई को लेकर हल्ला है,अपने अपने तरीके से लोग इस पर बहस कर रहे है तो कोई नक्सलियों को गरिया रहे है तो,कुछ प्रार्थना भी कर रहे हैं। पिछले तीन दिनों से इसी बात की चर्चा है कि कभी शांति का टापू कहलाने वाले इस राज्य की हालात कैसे बिगड़ गया। डॉ.रमन सिंह की साफ सुथरी छवि पर कालिख के छींटे कैसे पडऩे लग गये हैं। केन्द्र सरकार की करतूतों का फायदा भाजपा की निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ में जरुर मिलता लेकिन बिगड़ते हालात ने भाजपाईयों के चेहरों से हंसी लगभग गायब ही कर दी हैं।
कोल ब्लाक आबंटन सहित कानून व्यवस्था को लेकर करघरे में घिरी सरकार के लिए कलेक्टर का अपहरण ताबूत में कील की तरह काम काम करने लगा हैं। नक्सली हिंसा पर सरकार की आलोचना को राजनीति की बात कहने वालों के मुंह भी अब सील गए हैं। क्योंकि हालात सचमुच काबू से बाहर हैं।
इन दिनों पूरा छत्तीसगढ़ में हालात ठीक नहीं हैं। नक्सल प्रभावित जिलों में विकास पूरी तरह से ढप पड़ गया है और इससे निपटने में जब राज्य सरकार असफल हो चुकी है तब वह इससे बचने का उपाय ढँूढ रही हैं। भाजपा अब नक्सली समस्या को राज्य की बजाय केन्द्र की झोली में डालने आमदा हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए है राज्यों के मुख्यमंत्रीयों की बैठक मेें जिसमें तमाम गैर कांग्रेसी केन्द्र के हस्तक्षेप को लेकर राज्यों की स्वतंत्रता बनाये रखने एक कानून का विरोध करते नजर आये थे।
हमारा शुरू से ये मानना है कि केन्द्र और राज्य दो अलग-अलग इकाई है और इनमें सामंजस्य जरुरी हैं। नक्सली समस्या से जब राज्य अलग हो चुकी है तब उसे नक्सल प्रभावित जिलों को बेहिचक केन्द्र के हवाले कर देना चाहिए। लेकिन यहां तो हालात दूसरे जिलों में भी खराब हैं। उद्योगपतियों की दादागिरी और माफियाओं के बोलबोला ने कानून व्यवस्था की स्थिति खड़ी कर दी हैं। व सरकार के भ्रष्टाचार से आम आदमी डरी है ऐसे मेंं लोकतंत्र को जिंदा रखने नये सिरे से बुध्दिजीवियों की बैठक लेकर अच्छे सुझावों पर अमल करना चाहिए। अन्यथा जनता पीसती रहेगी। और राजनीति के लिए राजनीति करने वाले अपना खेल जारी रखेंगे।
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