छत्तीसगढ़ में अफसरों का राज है, छत्तीसगढ़ में उद्योगपतियों का राज है, छत्तीसगढ़ में व्यापारियों का राज है, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का राज है, छत्तीसगढ़ में माफियाओं का राज है और छत्तीसगढ़ में भाजपा का राज हैं। मीडिया और जनता के बीच इस तय शुदा राज मेें आम आदमी अपने को ठगा महसुस करने लगा हैं। राजा को इससे मतलब नहीं है कि किसका राज हैं। उन्हें मालूम है वे अपनी चला ही लेंगे, उनके सुख सुविधा में कोई कमी नहीं होगी। वे जब चाहे जैसा चाहे कर सकते है इसलिए उन्हें कोई फर्र्क नहीं पड़ता कि राज किसका हैं। छत्तीसगढ़ की इस स्थिति को लेकर राज का सपना देखने वाले हैरान हैं कि आखिर छत्तीसगढ़ में ये सब हो क्या रहा हैं। लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांगे रखने वालों का दमन किया जाता है और कानून को ताक पर रखने वालों की सब मांगे पूरी कर दी जाती हैं। जब आई बी से लेकर तमाम गुप्तचर संस्थानो ने नक्सलियों की संभावित करतुत पर सरकार को सचेत रहने कह दिया गया था। तब सरकार ने बगैर सुरक्षा व्यवस्था के सुराज दल को किसके सहारे भेज दिया था। राजा से आज ये सवाल पूछने चाहिए कि वे तो जेड श्रेणी की सुुरक्षा के बीच उडऩखटोला से जहां नहीं वहां पहुंच जाते हैं। वे सुरक्षित है तो क्या जनता भी सुरक्षित हैं। उन्होंने आईबी की रिपोर्ट की अनदेखी क्यों की। क्या उनकी जिद इसी तरह से चलते रहेगी और लोग मारे जा रहे हैं उनका क्या कसुर हैं। अरे भई नक्सली तो निर्दयी हैं,उनका काम ही हत्या करना है ,आम लोगों मेंंं भय पैदा करना है, लेकिन सरकार तो ऐसी नहीं होती, अपनी जिद पूरी करने के लिए क्या किसी के जान को दांव पर लगाना उचित हैं। बचपन से सुनते आ रहें है कि लोकतंत्र में हम जी रहें हैं लेकिन कहां है लोकतंत्र और कहां है लोकतांत्रिक सरकार। स्वयं के फायदे और राज कायम रखने सिर्फ हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा हैं। वरना विरोध को कुचलने की तमाम कोशिश हो रही हैं। उद्योगों की जमीन देने की जनसुनवाई का मामला हो या फिर खदानें देने का मामला हो। राजा की मर्जी का विरोध करने वालों की खैर नहीं हैं। विधानसभा में सचिव जैसे पदों पर किसी को भी बिठा दिया जाता है और विरोध करने वालों को नौकरी से निकालने का फरमान जारी हो जाता हैं। आम आदमी को भीख दी जाती है ताकि वे इसी के भुलावे में रहे और पानी, बिजली, स्वास्थ्य से वंचित रखा जाता है। ताकि उन्हें विकास से कोसो दूर रखा जा सके। सड़के इस लिए बनाई जा रही है कि ताकि लूटेरे आसानी से गांव तक पहुंच चुके। स्कूल भवन बनवा दो, गुरूजी मत रखो, अस्पताल खुलवा दो लेकिन डॉक्टर न रखो ये सोच क्या लोकतांत्रिक है? सुुकमा के कलेक्टर का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया है अब इसे निदंनिय, कायरता बताते रहे। नक्सलियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब उन्हें गांव वालों को कत्ले आम मचाते समय फर्क नहीं पड़ता तब उनके लिए अपहरण से क्या फर्क पड़ेगा। आखिर सरकार इससे अलग क्या कर रही है। जरा भाजपा के लोग सोचे की क्या इस तरह के राज्य की कल्पना की गई थी। सोचना कांग्रेस ही नहीं आम लोगों को भी है। कि ऐसी सरकारों को आखिर किस तरह से कितने दिन बर्दास्त किया जाना चाहिए। डॉ रमन सिंह के हिम्मत की दाद दी जानी चाहिए कि नक्सलियों के कत्लेआम के बाद भी वे इस बात पर अडिग है कि ग्राम सुराज की नौटंकी जारी रहेगी।
http://midiaparmidiaa.blogspot.in/
रविवार, 22 अप्रैल 2012
किस किस को गरियायें...
छत्तीसगढ़ में अफसरों का राज है, छत्तीसगढ़ में उद्योगपतियों का राज है, छत्तीसगढ़ में व्यापारियों का राज है, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का राज है, छत्तीसगढ़ में माफियाओं का राज है और छत्तीसगढ़ में भाजपा का राज हैं। मीडिया और जनता के बीच इस तय शुदा राज मेें आम आदमी अपने को ठगा महसुस करने लगा हैं। राजा को इससे मतलब नहीं है कि किसका राज हैं। उन्हें मालूम है वे अपनी चला ही लेंगे, उनके सुख सुविधा में कोई कमी नहीं होगी। वे जब चाहे जैसा चाहे कर सकते है इसलिए उन्हें कोई फर्र्क नहीं पड़ता कि राज किसका हैं। छत्तीसगढ़ की इस स्थिति को लेकर राज का सपना देखने वाले हैरान हैं कि आखिर छत्तीसगढ़ में ये सब हो क्या रहा हैं। लोकतांत्रिक तरीके से अपनी मांगे रखने वालों का दमन किया जाता है और कानून को ताक पर रखने वालों की सब मांगे पूरी कर दी जाती हैं। जब आई बी से लेकर तमाम गुप्तचर संस्थानो ने नक्सलियों की संभावित करतुत पर सरकार को सचेत रहने कह दिया गया था। तब सरकार ने बगैर सुरक्षा व्यवस्था के सुराज दल को किसके सहारे भेज दिया था। राजा से आज ये सवाल पूछने चाहिए कि वे तो जेड श्रेणी की सुुरक्षा के बीच उडऩखटोला से जहां नहीं वहां पहुंच जाते हैं। वे सुरक्षित है तो क्या जनता भी सुरक्षित हैं। उन्होंने आईबी की रिपोर्ट की अनदेखी क्यों की। क्या उनकी जिद इसी तरह से चलते रहेगी और लोग मारे जा रहे हैं उनका क्या कसुर हैं। अरे भई नक्सली तो निर्दयी हैं,उनका काम ही हत्या करना है ,आम लोगों मेंंं भय पैदा करना है, लेकिन सरकार तो ऐसी नहीं होती, अपनी जिद पूरी करने के लिए क्या किसी के जान को दांव पर लगाना उचित हैं। बचपन से सुनते आ रहें है कि लोकतंत्र में हम जी रहें हैं लेकिन कहां है लोकतंत्र और कहां है लोकतांत्रिक सरकार। स्वयं के फायदे और राज कायम रखने सिर्फ हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा हैं। वरना विरोध को कुचलने की तमाम कोशिश हो रही हैं। उद्योगों की जमीन देने की जनसुनवाई का मामला हो या फिर खदानें देने का मामला हो। राजा की मर्जी का विरोध करने वालों की खैर नहीं हैं। विधानसभा में सचिव जैसे पदों पर किसी को भी बिठा दिया जाता है और विरोध करने वालों को नौकरी से निकालने का फरमान जारी हो जाता हैं। आम आदमी को भीख दी जाती है ताकि वे इसी के भुलावे में रहे और पानी, बिजली, स्वास्थ्य से वंचित रखा जाता है। ताकि उन्हें विकास से कोसो दूर रखा जा सके। सड़के इस लिए बनाई जा रही है कि ताकि लूटेरे आसानी से गांव तक पहुंच चुके। स्कूल भवन बनवा दो, गुरूजी मत रखो, अस्पताल खुलवा दो लेकिन डॉक्टर न रखो ये सोच क्या लोकतांत्रिक है? सुुकमा के कलेक्टर का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया है अब इसे निदंनिय, कायरता बताते रहे। नक्सलियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब उन्हें गांव वालों को कत्ले आम मचाते समय फर्क नहीं पड़ता तब उनके लिए अपहरण से क्या फर्क पड़ेगा। आखिर सरकार इससे अलग क्या कर रही है। जरा भाजपा के लोग सोचे की क्या इस तरह के राज्य की कल्पना की गई थी। सोचना कांग्रेस ही नहीं आम लोगों को भी है। कि ऐसी सरकारों को आखिर किस तरह से कितने दिन बर्दास्त किया जाना चाहिए। डॉ रमन सिंह के हिम्मत की दाद दी जानी चाहिए कि नक्सलियों के कत्लेआम के बाद भी वे इस बात पर अडिग है कि ग्राम सुराज की नौटंकी जारी रहेगी।
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