गुरुवार, 3 मई 2012

अलोकतांत्रिक रवैया...


यह सच है कि लोकतंत्र में लाख बुराई हो लेकिन इससे अच्छी व्यवस्था भी कोई दूसरी नहीं है यह बात मैं यहंा इसलिए याद दिला रहा हूं कि लगातार बढ़ते अन्याय और भ्रष्टाचार से आम आदमी त्रस्त होकर अपना आपा खो रहे हैं और आग में घी डालने का काम अन्ना-बाबा और उनकी पूरी टीम कर रही है।
यह सच है कि हमारी संसदीय प्रणालियों के चलते कुछ गलत लोग संविधान की सभा तक पहुंच जाते है इसका कतई मतलब नहीं है कि हम सभी पार्टियों और चुने हुए सभी जनप्रतिनिधियों को गरियाते घुमें। जो मन में आया बक दें। वास्तविकता पर ध्यान देने की जरुरत है हमें सांसदों या पार्टियों को गरियाने की बजाय यह देखना होगा कि ऐसे लोगों को संसद या विधायक बनने ही न दें। आखिर इन्हें हम ही जीताकर तो भेज रहे हैं।
इस देश में लोकतंत्र का सर्वाधिक फायदा यही है कि हम अपनी बातें रख सकते हैं। शायद लोकतंत्र व्यवस्था के कारण ही अन्ना-बाबा इतना बोल पा रहे हैं अन्यथा दुसरी व्यवस्था में तो ऐसे बोलने वाले को तो जेल में डाल दिया जाता है।
गाली देकर भीड़ जुटाना आसान है, इस देश में तमाशाबीन की कमी नहीं है किसी भी चौक चौराहो पर खड़े होकर गालियां बकना शुरु कर दो दस  लोग सुनने खड़े हो जायेंगे। सभी लोग यह बात जानते है कि लोकपाल विधेयक से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा लेकिन हम भी महसूस करते हैंं कि एक सशक्त लोकपाल की जरूरत इस देश को है। जिस तरह से कांग्रेस और भाजपा के नेता गले तक भ्रष्टाचार से लबरेज है उसके बाद मजबूत लोकपाल बिल तभी आ सकता है जब हम गांधीवादी तरीके से आन्दोलन चलायें। लेकिन अन्ना-बाबा को अपनी भाषा सयमित करनी होगी गाली सुनने भीड़ तो इकट्ठी हो सकती है लेकिन इस तरह के गाली गलौज को हर कोई बर्दाश्त नहीं करता है। इसलिए जल्दबाजी में आपा खोने की बजाय या एक पार्टी को निशाना बनाने के बजाय सतत लंबे आन्दोलन की जरुरत है।
एक बात सभी जान ले कि जो लोग आज अन्ना-बाबा की पीठ में बैठकर राजनैतिक रोटी सेंकने में आमदा है वो भी इस आग में झुलस जायेंगे। क्योंकि इस के देश कानून की पहले   प्राथमिकता हर हाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाये रखना है।
जो लोग अन्ना-बाबा के  पीठ पर सवार होकर सत्ता का सफर करना चाहते हैं उनकी करतुतें भी कम नहीं है। छत्तीसगढ़ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जहंा विकास के नाम पर केवल लूट मची है। आज भी छत्तीसगढ़ के बहुत बड़ी आबादी शिक्षा-स्वास्थ्य  और पानी जैसी मूलभूत जरुरतों से वंचित है। उद्योगपतियों व बड़े लोगों के लिए कानून के पैमाने बदल जाते है। खदानों जमीनों की बंदरबांट हो रही है और आम आदमी नारकीय जीवन जीने मजबूर है।
राजनैतिक पार्टियों को यह सोचना होगा कि उनकी करतूतों से आम आदमी का सब्र टुटता जा रहा है इसलिए वे व्यवस्था को सुधार संतुलित विकास में ध्यान दे। और लोकतंत्र की मर्यादा भंग करने वालों को सख्त सजा दे।
                                           

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