कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन की रिहाई की खबर जितनी राहत भरी है उससे भी कहीं ज्यादा राहत की बात है सरकारी और नक्सली वार्ताकारों के बीच का अनुबंध। रिहाई होते ही सरकार अपना काम शुरु कर देगी लेकिन इस अनुबंध में दोनों की पक्ष शांति पर दस्तखत नहीं कर पाये। यही इस समझौते का दुखद पहलू है।
नक्सली अब भी मार-काट मचाये हुए है और अब भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र दहशत में है। सिर्फ कलेक्टर की रिहाई ही सरकार की जिम्मेदारी नहीं है सरकार इस बात के लिए नक्सलियों को क्यों नहीं तैयार कर पाई कि जब हम आपकी शर्ते मान रहे तब तो मार-काट बंद कर दो?
वैसे तो सवाल इस बात का है कि बगैर बंदियों की रिहाई के नक्सलियों ने कलेक्टर को छोडऩे कैसे राजी हुए। लेकिन हम अभी इस पर चर्चा करना नहीं चाहते क्योंकि ये मौका बातचीत के रास्ते खुलने का है और कोई भी नहीं चाहेगा कि ऐसे मौके पर कुछ ऐसे बातें हो जो आगे के बातचीत का रास्ता बंद कर दे।
नक्सली व सरकार के इस ऐतीहासिक अनुबंध में शांतिर की बाते जोड़ी जा सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका तो इसकी वजह भी जरूर होगी? अनुबंध के मायने तभी है जब कलेक्टर की रिहाई के बाद सरकार अपनी जिम्मेदारी से पीछे न हटे। नक्सलियों के असली मांग क्या है? इन सवालों का खुलासा नहीं हो पा रहा है कि आखिर वे लोकतंत्र पर भरोसा सरकार के किस कदम के बाद करेंगे? या मार-काट और पैसे वसूली का खेल चलता रहेगा। बस्तर जलता रहेगा और विकास की सोच रखने वाले दहशतजदा होंगे। बाबा रामदेव ने कल भिलाई में काला धन को लेकर चला रहे अपने आन्दोलन में नक्सलियों को साथ आने का आव्हन किया है। खबर सिर्फ इतनी नहीं है उन्होंने खनिज संपदा को लुटेरों से बचाने की अपील भी की है? आखिर ये लुटेरे कौन है? उद्योगपति और सरकार की संाठ-गंाठ ने ही नक्सलवाद को जन्म दिया है। छत्तीसगढ़ में यह सांठ-गांठ कुछ ज्यादा ही है यहां कानून भी सिर्फ गरीबों के लिए है वरना नक्सलियों को पैसा पहुंचाने में शमिल एस्सार के खिलाफ कार्रवाई जरूर होती। जमीन अधिग्रहण में सरकार और पूरा-पूरा प्रशासन जिन्दल व नीको के साथ खड़ा दिखता है। आदिवासियों को इस राज में सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ा है जिनकी जमीने हड़पी जा रही है और जल, जंगल, जमीन के अधिकार की मांग को अनसुनी कर दी जाती है। विकास के नाम पर केवल भवन व सड़के बनाई जाती है और सुविधा के नाम पर मुफ्त खोरी सिखाई जाती है ।
सरकार के पास यह अच्छा मौका है वह नक्ललियों के साथ दूरगामी चर्चा करे वरना सिर्फ कलेक्टर की रिहाई का ड्रामा या 2013 की तैयारी का भांडा देर-सबेर फूट ही जायेगा।
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