शनिवार, 21 अप्रैल 2012

कालाधन और कोयला...


अखबारों की सुर्खिया रही कि रामदेव बाबा विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने छत्तीसगढ़ से आन्दोलन करेंगे तो दूसरी खबर कानून को ताक में रखकर कोयला खदाने चलानी की हैं। एक दूसरे के पूरक इन खबरों को लेकर बेचैनी बढऩी स्वभाविक हैं। पहले ही कोयले की कालिख पूती सरकार के लिए ये दोनों खबरे क्या मायने रखती हैं। ये हमें नही मालूम लेकिन जिस तरह से यहां होने वाले चुनाव को लेकर राजनैतिक दलों की तैयारियां चल रही हैं उस लिहाज  से कालाधन और कोयला महत्वपूर्ण मुद्दा बनने जा रहा हैं।
रामदेव बाबा लाख कहे कि उनका भाजपा से कोई लगाव नहीं हैं लेकिन यह साबित हो चुका है कि आर एस एस उनके पीछे हैं। बाबा के लिए कालाधन मुद्दा हो सकता है और कंाग्रेस के लिए कोयला मुद्दा बन सकता हैं। लेकिन आम आदमी के लिए आज भी रोटी कपड़ा और मकान ही मुद्दा है जिसे देने में सरकार असफल रही हैं। कालाधन हो या कोयला दोनों का मतलब ही भ्रष्टाचार  से हैं। ऐसे में बाबा के लिए छत्तीसगढ़ में आन्दोलन तब और भी मुसिकल हो जाता हैं जब यहंा की सरकार कोयले की कालिख को पोछ नहीं पाई हैं। हजार करोड़ से ऊपर के इस घपलेबाजी में जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी से लेकर मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के शामिल होने का अंदेशा हो तब छत्तीसगढ़ के लिए कालाधन से महत्वपूर्ण कोयला इसलिए भी है क्योंकि यहां विकास अब भी गावों से कोसों दूर हैं। उद्योगपतियों की सरकार के आरोपों से घिरे छत्तीसगढ़ सरकार पर बाबा का क्या रूख होगा?क्या वे इतने ही बेबाकी से कोयले पर बोल पायेंगे जितनी बेबाकी वे काला धन पर बोल पाते हैं। अन्ना हजारे के आन्दोलन के बाद जब सारी राजनितिक पार्टियों का सुर एक हो, एक जैसे दिख रहे हो तब बाबा के लिए छत्तीसगढ़ में आन्दोलन आसान नहीं हैं। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है डॉ. रमन सिंह के राज में ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां के भष्टाचार के किस्से आम लोगों की जुबान पर नहीं चढ़े हो। खेती की जमीनों की बरबादी से लेकर सरकारी जमीनों को बंदरबार का मामला हों या खदान बेचने से लेकर जंगल काटने तक में सरकार घिरी हुई हैं। निजी अस्पतालों और निजी स्कूलों को फायदा पहुंचाने सरकारी अस्पताल व सरकारी स्कूलों की दशा किसी से छिपी नहीं हैं। बिजली-पानी के लिए तरसते लोगों की बात हो या उनके दूसरे मौलिक अधिकारों की हनन की बात हो सरकार चौतरफा घेरे में हैं। ऐसे में बाबा सिर्फ काला धन पर बोलकर सरकार को खुश रख सकती है आम आदमी पर उनकी छवि क्या होगा यह कहना कठिन हैं।
                                                       

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