अपनी साफ़ सुथरी छवि और कांग्रेस की आपसी गुटबाजी की वजह से दूसरी बार सत्ता में आई रमन सरकार इन दिनों चौतरफ़ा विरोध के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। एक तरफ़ कोयले की कालिख का कलंक धुलने का नाम नही ले रहा है तो दूसरी तरफ़ उद्योगों के लिए खेती की जमीन बांध और सरकारी जमीन देने से लोगों में बेहद आक्रोश है।
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा को पहला झटका तो तभी लग गया था जब मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह पर राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गड़करी के करीबी माने जाने वाले संचेती बंधुओं को पानी के मोल भटगाँव कोल ब्लॉक ही नहीं दिया बल्कि 49 फ़ीसदी शेयर होने के बाद भी उन्हे एम डी बना दिया गया। कैग ने इस कोल ब्लॉक के आबंटन पर न केवल कड़ी आपत्ति की बल्कि 1052 करोड़ क नुकसान भी गिना दिया।
एक तरफ़ जब पूरी भाजपा भाजपा कोल ब्लॉक आबंटन को लेकर मनमोहन सरकार को घेर रही थी, वहीं दूसरी तरफ़ रमन सरकार की वजह से उन्हे बैकफ़ुट पर आना पड़ा। कोयले की इस कालिख पर छत्तीसगढ के अन्य भाजपा नेता रमेश बैस करुणा शुक्ला ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया लेकिन हाईकमान के दबाव पर विरोध के स्वर दबा दिए गए।
हांलाकि सरकार पर रोगदा बांध बेचने से लेकर उद्योगों के लिए खेती की जमीन बरबाद करने का आरोप भी है। उद्योगों को फ़ायदा पहुंचाने फर्ज़ी जनसुनवाई से लेकर बाल्को चिमनी कांड को लेकर भी रमन सरकार कटघरे में खड़ी दिखाई दी लेकिन बहुमत के दम पर मामले को दबा तो दिया गया लेकिन लोगों में अब भी आक्रोश है और यही हाल नई राजधानी और कमल विहार योजना से प्रभावितों का है।
रमन सरकार के लिए आदिवासी व सतनामी समाज का गुस्सा भी मुसीबत भरा है। सतनामी समाज के गुस्से के आगे तो सरकार घुटने टेकते नजर आ रही है। कुतुब मिनार ऊंचा जैतखंभ का उद्घाटन भी नहीं हो पा रहा है। जबकि सर्व आदिवासी समाज अपने उपर हुए पुलिस लाठी चार्ज से नाराज है। ऐसे में कांकेर आदिवासी आश्रम में हुए दुष्कर्म ने आग में घी का काम किया है।
समाज ही नहीं शिक्षाकर्मियों ने तो रमन सरकार से आर-पार की लड़ाई शुरु कर दी है। चुनावी घोषणा पत्र को संकल्प का नाम देकर शिक्षा कर्मियों के संविलियन को नकारने से भाजपा की ही मुसिबत बढी है और ऐसे में मिशन 201& मे हैट्रिक बनना तो दूर अस्तित्व पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
मिशन 1& में जुटी भाजपा के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह सत्ता के लिए राम को छोडऩे का आरोप पोंछ नहीं पा रही है। और अब भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात का आरोप लगने लगा है। संस्कृति की दुहाई देने वाले लाल बत्तीधारी कभी मैनपाट कार्निवल में विदेशी बालाओं के अश्लील डांस पर तालियाँ बजाते दिख रहे हैं तो कभी बिहार की संस्कृति की दुहाई देकर अश्लील डांस में ठुमके लगाते दिखते हैं। राÓयोत्सव में करीना कपूर को बुलाने को लेकर भी भाजपा निशाने पर है।
इन दिनों प्रदेश में रमन सरकार के इस चौतरफ़े विरोध में मंत्रियों की दबी जुबान भी चर्चा में है। कोइ इसे सत्ता का दंभ कह रहा है तो कोई इसे बौखलाहट बता रहा है। लेकिन एक बात तो तय है कि मंत्रियों की बेलगाम होती जुबान ने भी भाजपा की किरकिरी करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। रामविचार नेताम जैसे मंत्री जहां विरोध पर कुत्ते कहते हैं तो सांसद रमेश बैस को बड़े लोगों से बलात्कार समझ के लायक है। राजेश मूणत तो गुस्से में आपा खो कर गाली गलौज पर करने लगते हैं तो गृहमंत्री को ग्रह नक्षत्र का दोष दिखता है।
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। अब तो बढते चौतरफ़ा विरोध के चलते सीएम रमन सिंह की सभा में काले कपड़े पहनकर जाने पर ही अघोषित प्रतिबंध लगा दिया गया है। 14 जनवरी को राजनांदगाँव में मुख्यमंत्री के कार्यक्रम तो काले कपड़े पहनकर आने वालों न केवल रोका गया बल्कि मोजे, टाई, स्वेटर, काले कोट तक उतरवाए गए।इमरजेंसी का विरोध करने व मीसाबंदियों को पेंशन देने वाली सरकार की क्या यह अघोषित इमरजेंसी नहीं है।
बहरहाल मिशन 1& में हैट्रिक का सपना संजोए रमन सरकार के4 खिलाफ़ चौतरफ़ा विरोध का जो माहौल तैयार हुआ है वह बना रहा तो भाजपाईयों के लिए मुश्किल हो जाएगी।
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