यह तो कोइ करे भरे कोई की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना थानेदार की करतूतों पर न लोग न्यायालय जाते और न्यायालय से पुलिस अधिकारियों को नोटिस का सामना करना पड़ता।
छत्तीसगढ़ में थानेदारों की करतूतों के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं और उनकी करतूतों को नजर अंदाज करना भारी पड़ रहा है। थानेदारों की करतूतों से न केवल अपराध बढ़ रहे हैं बल्कि अपराधियों के हौसले भी इतनी बुलंदी पर है कि वे पुलिस वालों पर हमला करने से भी नहीं चूकते। 19 जनवरी की रात मौदहापारा के पुराने हिस्ट्रीशीटर को पकडऩे गए दो-दो थानेदारों की पिटाई हो गई। पुलिस को जैसे-तैसे जान बचाकर भागना पड़ा। यह अलग बात है कि घंटे भर के भीतर ही पूरे मौदहापारा को छावनी बनाकर आरोपियों को पकड़ लिया गया।
वास्तव में इसकी वजह पुलिस की अपनी करतूत है। अपराधियों को मंत्री अपनी गोद में बिठा रहे हों और पुलिस वाले गलबहियां डाल रहे हों तो अपराधी किसी से डरेगा ही क्यों?
अब्दुल अजीम भोंदू जैसे व्यक्ति को भारतीय जनता पार्टी अपनी गोद में बिठाती है तो इससे पार्टी के चरित्र को आसानी से समझा जा सकता है। पूरे प्रदेश में यही हाल है। सत्ताधारियों ने अपराधियों को संरक्षण दे रखा है। उन्हे जनता की प्रतिक्रिया की भी फि़क्र नहीं है। तभी तो एक तरफ़ डॉ रमन सिंह शराब के खिलाफ़ विष वमन करते हैं और दूसरी तरफ़ शराब ठेकेदार के साथ सार्वजनिक रुप से गलबहियां करते नजर आते हैं तब भला थाने के बिकने की चर्चा नहीं होगी तो क्या होगा?
यह सच है कि राजनैतिक दबाव की वजह से अपराधी छुट्टे घूम रहे हैं लेकिन यह भी इतना ही बड़ा सच है कि पैसा देकर थाना हासिल करने वाले थानेदार अपराधियों से ही इसकी भरपाई करते हैं और इन अपराधियों की शिकायत करने वालों पर ही अत्याचार करते हैं। तभी तो थानेदार की मनमानी पर एस पी व गृह सचिव तक चुप रहते हैं। भले ही न्यायालय से उन्हे कितनी भी फ़टकार मिले।
अभनपुर थानेदार की ऐसी ही करतूत की वजह से हाईकोर्ट को गृह सचिव, रायपुर आई जी व एस पी को नोटिस देना पड़ा। थानेदार पर शिकायत कर्ता हेमचंद यादव ने गंभीर आरोप लगाए हैं उनके आरोपों के अनुसार बिरोदा में एक स्टाप डेम की को तोडऩे की शिकायत सीईओ से की गई थी। शिकायत सही पाई गई। सरपंच को इसके लिए दोषी ठहराया गया। सरपंच ने शिकायत कर्ताओं को जान से मारने की धमकी दी तो हेमचंद साहु व अन्य शिकायत कर्ताओं ने थाने में पहुंच कर इसकी जानकारी थानेदार को दी। थानेदार ने हेमचंद की शिकायत पर कार्यवाही करने की बजाए सरपंच को बुलवा लिया और हेमचंद साहु व उनके साथियों के खिलाफ़ ही शांति भंग करने का आरोप लगा कर धारा 107/116 व 151 के तहत गिरफ़्तार कर लिया। यही नहीं जमानत लेने के दौरान अभी पुलिस ने उन्हे अपराधिक प्रवृत्ति का बताते हुए नहीं छोडऩे कहा। इसकी वजह से हेमचंद को तीन दिन जेल में काटने पड़े और जमानत पर रिहा होने के बाद हेमचंद ने अपने साथ हुए अन्याय की जानकारी हाईकोर्ट को दी, जहां हाईकोर्ट ने थानेदार सहित पुलिस अधिकारियों एवं गृह सचिव को नोटिस भेजा है।
यानी पुलिसिया करतूत थमने का नाम नहीं ले रही और अब जब अपराधी पुलिस पर सीधे ही हमला करने की हिम्मत कर रहे हैं। तब बवाल मचा हुआ है।
चलते-चलते
राÓय मे प्रमोटी आईपीएस और सीधे आईपीएस में मनभेद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। पीएचक्यु से लेकर मैदान में पोस्टिंग तक में प्रमोटी आईपीएस की महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के पहले यह अहसास जरुर दिला दिया जाता है कि तुम्हारी औकात क्या है।
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