बुधवार, 19 जून 2024

बड़े बेआबरू होकर...

 बड़े बेआबरू होकर...


भले ही मोहन सेठ ने मूंछ पर ताव नहीं मारा हो, या मोदी की तरह छाती ठोंक कर  गारंटी नहीं दी थी कि, वे ६ माह मंत्री पद नहीं छोड़ेंगे लेकिन एक निजी चैनल को दिये इन्टखयू में उन्होंने मंशा  जता ही दी थी कि वे भले ही विधायकी छोड़ दें लेकिन मंत्री पद पर ६ माह रह सकते हैं। और इसलिए वे जब इस्तीफा देने निकले थे तो केवल विधायक पद से ही इस्तीफ़ा दिया था।

कांग्रेस को पटखनी देने में माहिर मोहन सेठ को तब कहां मालूम था कि उन्हें मंत्री पद पर रंगा-बिल्ला एक दिन भी देखना नहीं चाहते और न ही उन्हें यह भी मालूम था कि वे कांग्रेसियों को साधने के चक्कर में पार्टी के भीतर उन्होंने विरोधियों की फौज खड़ी कर रखी है, और इसी फ़ौज ने उन्हें पहले विधायकी से निपटाया फिर मंत्री पद से । लोग तो इस फ़ौज में डॉ. रमन सिंह, से लेकर राजेश मूणत, सहित कई नाम गिना रहे हैं जिसमें ताजा नाम अरुण साव का भी शामिल हो गया है, वैसे तो बिलासपुर जिले के कई नेताओं के नाम शामिल है खासकर अफसरी से राजनीति में आये ओपी चौधरी का नाम भी तो इस फौज में है।

और शायद यही वजह है विधायक पद से इस्तीफ़ा देने के बाद मोहन सेठ इस कदर निश्चिंत थे कि उन्होंने विभाग की बैठने तक ले ली, लेकिन वे अपनी फाइलें रोकने की घटना को नजर अंदाज करते रहे।

आड‌वानी-जोशी को किनारे लगाने वालों के लिए यह कोई मायने नहीं रखता कि मोहन सेठ रायपुर दक्षिण के अपराजेय योद्धा है. और शायद चर्चा इसलिए इस बात की है कि उन्हें कैबिनेट की भरी बैठक में इस्तीफ़ा देने कहा गया1 यानी घोर बे….!

तब मोहन सेठ का इस्तीफ़ा देते समय आंसू निकलना स्वाभाविक है, और लोगों का क्या ?  विरोधी कह रहे हैं कि उन्हें तो विधायकी के साथ ही मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए था, कम से कम ये स्थिति तो नहीं बनती तो समर्थक अब  रंगा-बिल्ला के साथ प्रदेश में पनप आये नये कॉकस को गरिया रहे हैं।


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