छत्तीसगढ़ में शासन प्रशासन में इन दिनों कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। प्रदेश के मुखिया भले ही सर्वे रिपोर्ट के आधार पर स्वयं को असरदार समझते रहे लेकिन प्रशासनिक हल्कों में अंधेरगर्दी बढ़ते ही जा रही है। रमन सिंह के हाथ से शासन-प्रशासन बेकाबू हो चला है। प्रशासनिक अफसर तो 'ढीट' हो गए हैं और स्वेच्छाचारिता चरम पर है।
सर्वाधिक दिक्कत उन मंत्रियों को हो रही है जो आरक्षण कोटे से चुनाव जीतकर मंत्री बने है चूंकि प्रशासनिक कामकाज में 6 साल भी कसावट नहीं आ पाया है। परिणाम स्वरुप सब कुछ उल्टा पुल्टा होने लगा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बायोडीजल और मुफ्त चावल योजना का फ्लॉप शो है। सरकार ने जनहित में योजनाएं तो बनाई लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। प्रशासनिक भ्रष्टाचार का यह आलम है कि दर्जनभर से अधिक सचिव सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने में लगे है और अब तो वे इतना पैसा कमा चुके हैं कि नौकरी छोड़ने तक की धमकी देने लगे है। हर कोई अपने को मुख्यमंत्री का करीबी बताकर मनमानी करने पर उतारू है।
इन दिनों आदिवासी मंत्री रामविचार नेताम विवाद में है। उन पर प्रशासनिक अधिकारी को थप्पड़ मारने का आरोप है। अधिकारियों ने जब उन पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाया तो मंत्रीजी भी कहां चुप रहने वाले थे उन्होंने भी मोर्चा खोल दिया। जो सरकार के मुखिया आयकर छापे के बाद बाबूलाल अग्रवाल पर कार्रवाई करने में हफ्ता गुजार दिया हो उनसे इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की उम्मीद बेमानी भी है यही वजह है कि दोनों ही पक्ष राजनैतिक रोटी सेकेने लगे है और सड़क पर उतर आए हैं। यह तो सरकारी अंधेरगर्दी का नमूना है जब दोनों पक्ष एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए हैं। आदिवासी एक्सप्रेस चलाने के लिए बदनाम हो चुके रामविचार नेताम वैसे भी मुख्यमंत्री के आंख की किरकिरी बने हुए हैं और मुखिया को मौके की तलाश भी रही है ऐसे में पूरे घटनाक्रम से स्वयं को अलग रखने की मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की कोशिश भी बेकार होने लगी है जबकि प्रशासनिक संबंधों की वजह से यह मामला दूसरा भी रूप ले सकता है।
कांग्रेस ने भी इस मामले को तूल देना शुरु कर दिया है और वे मंत्री को हटाने दबाव बना रहे हैं ऐसे में निरकुंश व भ्रष्ट प्रशासन के चलते हुई इस घटना में मुख्यमंत्री भले ही अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर ले लेकिन आदिवासी मंत्रियों ने जिस तरह से समय-समय पर अफसरशाही की शिकायत की है यह उसके दुष्परिणाम का नतीजा है।
बने कहे ह्स कौशल भाई,
जवाब देंहटाएंमंत्री मन घोड़ा ला चलाए नही सकत हे त
कोंडरा मा पीटत हे।
जरा ब्लाग के कलर ला बदल ले त बने हो जाही
आंखर मन दिखत नइ ए।
हनुमान जयंती के गाड़ा गाड़ा बधई
आपके ब्लाग के चर्चा ईंहा हवय