गुरुवार, 23 सितंबर 2010

मोहन से भरोसा टूटा अन्य मंत्री भी लगे प्रचार में

भटगांव उपचुनाव

भाजपा की मुसिबत बढ़ी, चावल-दारू भारी पड़ा
 भटगांव उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की मुसीबत बढ़ते ही जा रही है। चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग और गांव-गांव में बिकते अवैध शराब से महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है। वहीं प्रभारी बनाए गए पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की छवि ने भी भाजपा को सकते में ला दिया है। एन वक्त पर प्रभारी हटाने से विरित असर पडने की संभावना के चलते अब भाजपा ने दूसरे मंत्रियों को भी यहां जिम्मेदारी दे दी है।
छत्तीससगढ़ के भटगांव विधानसभा के लिए हो रहे उपचुनाव को लेकर जबरदस्त होड़ है। भाजपा ने जहां सरकार की पूरी ताकत को झोंक दिया है वहीं कांग्रेस भी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती। भाजपा के लिए यह उपचुनाव तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। वर्तमान में भाजपा के सिर्फ 47 विधायक है जो बहुमत से एक-दो सीट ही अधिक है ऐसे में यह चुनाव हारने पर डॉ. रमन सिंह की मुसीबत बढ सकती है। वैसे रमन सिंह ने यह चुनाव जीतने के लिए यहां से श्रीमती रजनी त्रिपाठी को उतारकर सहानुभूति वोट ही नहीं बल्कि पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को प्रभारी बनाकर तिकड़म से वोट बटोरने का संकेत दिया है।
बताया जाता है कि भाजपा ने यह नहीं सोचा था कि हाय हलो की छवि वाले बृजमोहन अग्रवाल पर लगे आरोप भी यहां मुद्दे बन जाएंगे। बताया जाता है कि घटिया सड़क निर्माण से लेकर पर्यटन विभाग में हुए घोटाले ने तो बृजमोहन अग्रवाल को परेशान किया ही है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी भी यहां मुद्दा बनता जा रहा है। चूंकि बृजमोहन अग्रवाल के पास शिक्षा विभाग भी है ऐसे में स्कूलों में शिक्षकों की कमी यहां प्रमुख मुद्दा बन सकता है।
बताया जाता है कि बृजमोहन अग्रवाल को लेकर चल रही चर्चा ने क्षेत्र के भाजपाईयों के होश उड़ा दिए हैं और इसकी खबर जब संगठन व सरकार को हुई तो आनन-फानन में अन्य मंत्रियों को भी जिम्मेदारी दे दी गई है ताकि इसका प्रभाव कम किया जा सके। बताया जाता है कि पूर्व अध्यक्ष शिवप्रताप की खामोशी ने तो भाजपा को बेचैन किया ही है चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग को प्रभावित करने नई रणनीति बनाई जा रही है। बताया जाता है कि दो रुपया किलो चावल योजना ने मध्यम वर्ग को सर्वाधिक हलाकान किया है। न घर के लिए और न ही खेती के लिए ही मजदूर मिल रहे हैं कई लोग तो महंगाई को ही इसकी वजह बता रहे हैं।
वहीं गांव-गांव में बिकते अवैध शराब से भी महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है जबकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी के दौरे में आदिवासियों की उपेक्षा भी आदिवासी क्षेत्रों में मुद्दा बनता जा रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी यू.एस. सिंहदेव को मिल रहे व्यापक समर्थन और कांग्रेसियों की एकता ने भी भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनाने मजबूर कर दिया है। बहरहाल यह कहा जा रहा है कि यदि कांग्रेसियों ने यह सीट जीत ली तो डॉ. रमन सिंह की मुसीबत बढ सकती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें