मंगलवार, 9 मार्च 2010

जिद् करो...अखबार बदलो

जिद करो और दुनिया बदलों का स्लोगन लिए देशभर में अपने साम्राय स्थापित करने की होड़ में अपने घर को ही नहीं बचा पाने की चर्चा इन दिनों मीडिया जगत में छाई हुई है तो इसकी वजह इस अखबार की वह करतूत है जो आंख बंद कर तेज दौड़ने वालों के साथ अक्सर होती है।
जी हां! यहां हम अग्रवाल परिवार के दैनिक भास्कर की बा कर रहे हैं। इन दिनों दैनिक भास्कर में जो कुछ हो रहा है उसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता। जिस तेजी से अखबार ने अपने पैर पसारे थे आज वह उतनी ही तेजी से बिखरने लगा है। ताम-झाम में माहिर इस अखबार को राजधानी रायपुर में मिल रहे लगातार झटके से इसके प्रसार संख्या में भी गिरावट की खब है और इसके पीछे प्रबंधन तंत्र की लापरवाही को बताया जा रहा है। वैसे तो राज एक्सप्रेस, नईदुनिया, राजस्थान पत्रिका जैसे बड़े अखबारों के अलावा नेशनल लुक जैसे अखबारों के द्वारा भी भास्कर से दुश्मनी की चर्चा है। नईदुनिया ने तो भा्कर में तोड़फोड़ की ही नेशनल लुक ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखा और अब राज एक्सप्रेस और राजस्थान पत्रिका पर तो कील ढोकने की कोशिश के आरोप लगने गे हैं।
यहीं नहीं भास्कर के 14 माले का शापिंग माल का सपना भी तोड़ने कई लोग आमदा है। सरकार द्वारा कौड़ी के मोल मिले स्वयं की जमीन होते हुए भी किराये के भवन में जाने को लेकर भी यहां चर्चा गरम है। ऐसे में घटती प्रसार संख्या का तोहमत वह कैसे दूर करेगी यह ता वही जाने लेकिन कहा जा रहा है कि अंदरूनी हालात के चलते मनीष दवे को बिलासपुर भेज दिया गया है। जबकि बाहर से आए वे लोग सीटी संभालने लगे हैं जिन्हें न राजधानी का ज्ञान है और न ही यहां की गलियों से ही परिचित है।
और अंत में
अखबारों में प्रतिस्पर्धा नई नहीं है प्रसार संख्या बढ़ाने बड़े अखबारों में क्या कुछ नहीं होता लेकिन इन दिनों भास्कर की प्रसार संख्या घटाने एक मंत्री की रूचि चर्चा का विषय है। अपने लुक में पैसा लगाने वाले इस मंत्री के द्वारा इस काम में अपने मुखिया से भी सहमति लेने की चर्चा अब तो चौक चौराहों पर भी होने लगी है।

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