कभी लोकसभा में अपने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि सरकार के खिलाफ अविश्वास पेश करते समय विकल्प भी दिए जाने चाहिए। पूरा देश इन दिनों महंगाई की भीषण त्रासदी से गुजर रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली सिर्फ गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों के लिए बना दी गई। अपने हित के लिए राजनैतिक दलों ने गरीबों तक को गरीबी रेखा के नीचे और ऊपर बांट दिया। 16 रुपए 50 पैसे का पेट्रोल 53 रुपए में बेची जा रही है। इसमें भी तीन रुपया एक्स्ट्रा वसूला जा रहा है। पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतें बढ़ते ही प्रमुख विपक्षी दल भाजपा, कम्युनिस्ट सहित अन्य ने बांह चढ़ा ली। 1 जुलाई को जगह-जगह धरना दिया गया और 5 जुलाई को भारत बंद किया गया।
महंगाई के खिलाफ लड़ाई की बजाय राजनैतिक फायदे की सोच से आम आदमी हतप्रभ है कि आखिर भाजपा के राज में क्या कीमतें नहीं बढ़ाई गई थी तब कांग्रेसी महंगाई को लेकर मातम करते रहे। आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा। हमारे से कमजोर पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल तक में पेट्रोल के कीमत 40 रुपए से कम है तब 16 रुपए 50 पैसे में सरकार को मिलने वाला पेट्रोल 53 रुपए में जनता को क्यों दिया जा रहा है।
जवाब आपके सामने है सेन्ट्रल टेक्स के रुप में 11.80 रुपए, एक्साईज डयूटी 9.75 रुपए, राय कर 8 रुपए और वेट टैक्स 4 रुपए यानी साढ़े 21 रुपए केन्द्र सरकार और 12 रुपए राय सरकार वसूलती है और इसमें से एक बड़ा हिस्सा किस तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और नेताओं की जेब में चला जाता है यह किसी से छिपा नहीं है।
पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि पर सर्वाधिक भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टी हल्ला कर रहे हैं लेकिन इन पार्टियों की राय सरकारों खासकर भाजपा के राय सरकार को अपने राय में टैक्स कम कर लडाई में उतरना चाहिए। यदि सरकार गिराने के प्रस्ताव में विकल्प जरूरी है तब अन्य मामले के विरोध में भी विकल्प जरूरी होना चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि क्या हुई ट्रांसपोर्टरों से लेकर इससे सीधा जुड़े लोगों ने 15 से 40 फीसदी कीमत बढ़ा दी। जब पेट्रोलियम की मूल्य वृध्दि 4 से 8 फीसदी हुआ है तब किसी चीज की कीमत 40 फीसदी तक कैसे बढ़ाई जा सकती है। क्या राय सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से बच सकती है? इसलिए महंगाई पर राजनीति करके राजनैतिक पार्टियां लोगों को भ्रम में डाल रही है और सरकार किसी की भी बने उदारीकरण के दरवाजे खोले जाएंगे कोई अपनी जेबें न भरे इसके लिए जनता को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी।
..........कोई अपनी जेबें न भरे इसके लिए जनता को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी।
जवाब देंहटाएंअपने अपना आलेख पूरा करने के बाद उक्त कडवी सच्चाई लिख ही दी। जनता को स्वयं को ही सब कुछ करना है, अपनी लडाई स्वयं ही लडनी है तो विचारणीय सवाल यह भी है कि जनता से राजस्व एकत्रित करके जनता की सेवा के नाम पर नियुक्त जनता के इन नौकरों अर्थात् पब्लिक सर्वेण्ट्स (जो स्वयं को लोक सेवक नहीं अफसर कहलवाना पसन्द करते हैं) का क्या काम है। पिछले २५-३० वर्ष में आईएएस लॉबी इतनी सक्रिय हुई है कि हर जगह पर सिर्फ आईएएस ही चाहिये। जिनका वेतन, सुख, सुविधा और एश-ओ-आराम के साधन जुटाने के लिये जनता से टैक्स तो वसूला ही जायेगा और वसूले जाने वाले टैक्स की कोई सीमा नहीं है। एक रुपये की वस्तु पर २० प्रतिशत तक टैक्स तो झेला जा सकता है, लेकिन यहाँ तो तिगना-चौगुना टैक्स वसूला जा रहा है। इसे कोई कैसे लोकतन्त्र कह सकता है? ऐसा तो गुलामों के साथ ही किया जा सकता है! यह सही है कि जनता को स्वयं ही अपनी लडाई लडनी होगी। नक्सलवाद को क्या आप ऐसी लडाई नहीं मानते हैं? सच तो यह है कि सरकार एवं अफसरशाही ने हमें इस प्रकार से विभाजित करके आपस में लडाने का सामान एकत्रित कर रखा है कि हम अपनी लडाई चाहकर भी नहीं लड सकते। कोई सवर्ण, कोई शूद्र, कोई आरक्षित, कोई अनारक्षित, कोई शिक्षित, कोई अशिक्षित, कोई गरीबी रेखा से नीचे है तो कोई ऊपर है। संधिधान में जिन्हें लोक सेवक कहा गया है, मुलाजिमों में भी चार वर्ग हैं। प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी। हर स्थान पर विभेद, बल्कि कुटिल विभेद है। फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है।
आपका
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश
सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३६४ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
सच कहते हो कौशल भाई । जनता को जागना चाहिए ।
जवाब देंहटाएं