बाबूलाल और मिश्रा में कैसा अंतर
छत्तीसगढ़ में नैतिकता और ईमानदारी की छवि बनाकर किस तरह से सरकारी माल उड़ाने का खेल चल रहा है यह आईएएस डीएस मिश्रा को देखकर समझा जा सकता है। मिश्राजी के मंहगी सराकरी गाड़ी के मोह से बीज निगम के अधिकारियों को न केवल परेशानी हुई बल्कि नवनियुक्त अध्यक्ष श्याम बैस के लिए नई गाड़ी की जुगाड़ के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
वैसे तो सरकारी गाड़ी का उपयोग जिस बेशर्मी से नेता या अधिकारियों के परिवार वाले करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन यदि कोई अफसर ही इसका दुरुपयोग करे तो क्या कहना। छत्तीसगढ़ सरकार में अपनी ईमानदारी के लिए चर्चित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और राय में सचिव डीएस मिश्रा की कहानी भी कुछ अलग ही है। बीज निगम के प्रमुख रहते उनके कारनामें अब बाहर आने लगे हैं। ऐसे ही कारनामों में 13 लाख की करोला कार कार का मामला है। ऐम्बेसडर की बजाय बीज निगम के अधिकारियों ने प्रमुख की फरमाईश पर करोला कार दे दी। 13-14 लाख की यह कार निगम के पैसे से कैसे खरीदी गई इसकी कई कहानी है लेकिन कहा जाता है कि इस कार के प्रति मिश्रा साहब का मोह कुछ यादा ही बढ़ गया।
बताया जाता है कि जब तक वे बीज निगम में रहे इस कार का उपयोग करते रहे और जब वहां से हट गए तो अपने साथ कार को भी ले गए। अब बीज निगम में ऐसा कोई दमदार आदमी तो है नहीं जो इस कार को वापस मांग सके। इसलिए ईमानदारी के लिए विख्यात डीएस मिश्रा जी ही इस कार में इन दिनों सफर करते हैं। दुखद आश्चर्य की बात तो यह है कि श्याम बैस के अध्यक्ष बनने के बाद इस कार कार को वापस मंगाये जाने की बजाय उनके लिए नए कार खरीदे जाने की योजना बन रही है।
बहरहाल बीज निगम में डीएस मिश्रा की ईमानदारी की चर्चा जोर-शोर से होने लगी है जबकि बाहर की पार्टी को 20 करोड़ के सप्लाई का मामला खुलने की उम्मीद है।
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