छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र 9 दिन पहले समाप्त हो गया। 9 दिन पहले समाप्त क्यों हुआ। यह कोई नहीं जानता? और किसी को जानने का अधिकार भी नहीं है। और वैसे देखा जाये तो यह ठीक भी हुआ। जब इस पवित्र मंदिर में बैठकर कुछ होना ही नहीं है। छल-प्रपंच ही करना है और सिर्फ राजनीति ही करनी है तब पैसों की बर्बादी क्यूं?
वैसे भी यह बजट सत्र था। और बजट पास हो जाने के बाद इसे चलाये रखने का कोई मतलब भी नहीं निकलता। आखिर कब यहां जनता से वास्ता रखने वाले मुद्दे उठाये जाते है। कब दोषियों को सजा दी जाती है और ऐसा जब कुछ नहीं होने वाला है तब इसे लंबा क्यूं खिंचा जाना चाहिए। हालांकि हम तो हर माह के आखरी सप्ताह में विधानसभा के सत्र लगाये जाने के पक्षधर हैं लेकिन तब जब यहां सारगर्भित चर्चा हो, छल प्रपंच न हो और भ्रष्टाचारियों को सजा मिले।
छत्तीसगढ़ में राजनैतिक सुचिता की दुहाई देने वाली भाजपा सरकार उसी मुददे पर चर्चा करने को तैयार नहीं है जिस सीएजी के मुद्दे पर उनका राष्ट्रीय नेतृत्व लोकसभा ठप्प कर देता है। रोगदा बांध जैसे कांड पर जांच पूरी नहीं हो पाने पर सवाल नहीं उठते। वनमंत्री के परिवार जंगल काट रहे हैं लेकिन यह भी मुद्दा नहीं है। लापरवाह प्रशासन तंत्र के चलते आम लोगों की जान जोखिम में है और चौतरफा लूट खसोट के चलते आम आदमी का जीना दूभर होता चला जा रहा है इस पर भी सत्ता पक्ष चर्चा तक को तैयार नहीं है। बेशर्मी इतनी कि अपने पार्टी व परिवार के लोगों को करोड़ों की जमीनें कौडिय़ों में दी जा रही है। और प्रदेश के मुखिया के विभाग की लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते छत्तीसगढ़ को हजारों करोड़ों का घाटा हो रहा है। इस पर सरकार चर्चा नहीं करना चाहती तब इनसे कार्रवाई की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
विधानसभा के इस बजट सत्र के 9 दिन पहले समाप्त करने के निर्णय पर विस अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने यह कहकर खुशी जाहिर की कि सदस्यों ने संसदीय परंपरा का मान रखा। लेकिन जनता से पूछिए? उसकी प्रतिक्रिया सुननी पड़ेगी। आज नहीं तो चुनाव में जनता एक-एक सवाल का जवाब न केवल सरकार से पूछेगी बल्कि कांग्रेस से भी पूछेगी कि वह उन मुद्दों पर कैसे चुप रह गई। रविन्द्र चौबे को रमन सरकार का 14 वां मंत्री क्यों कहा जाता है? और जब सेटिंग ही करनी है तो अलग-अलग चुनाव चिंह को लेकर जनता को गुमराह क्यों किया जा रहा है। जब मुुद्दे बाकी थे तब 9 दिन पहले विधानसभा समाप्त करने के निर्णय पर सहमति क्यों दी गई? और यदि यह विधानसभा या सरकार का फैसला है तो सड़क में लड़ाई क्यों नहीं की गई।
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