छत्तीसगढ़ सरकार में अनियमितता इस कदर बढ़ गई है कि पता ही नहीं चल रहा है कि यहां सरकार नाम की भी कोई चीज है। सीएजी की रिपोर्ट ने तो साबित ही कर दिया है कि इस सरकार की वजह से छत्तीसगढ़ को भारी घाटा हुआ है। अकेले मुख्यमंत्री के विभाग के कारनामों की वजह से छत्तीसगढ़ को हजार करोड़ से ऊपर का घाटा हो गया है। हालत यह है कि वित्तीय प्रबंधन के क्षेत्र में सरकार तो असफल रही है कानून व्यवस्था भी पूरी तरह चरमरा गई है। संवेदनहीनता चरम पर है और अफसरों ने चंडाल चौकड़ी खड़ी कर रखी है। बेईमान महत्वपूर्ण पदों पर बैठ गए हैं और ईमानदार प्रताडि़त हो रहे है।
आईपीएस राहुल शर्मा की मौत की कालिख अभी सरकार के माथे से छुटी भी नहीं है कि एक अन्य आईपीएस बीएस मरावी की मृत्यु ने सरकार के काम काज पर सवाल खड़ा किया है।
पहला सवाल तो यही है कि जिस व्यक्ति के सिर में गोली लगी हो और पिछले दो-तीन सालों से बीमार जैसी स्थिति में हो उसके प्रति संवेदनहीनता क्यों? दूसरा सवाल तो यह खड़ा होता है कि जब मरावी ने अपनी तबियत को लेकर बिलासपुर जाने से मना कर दिया था तब एक बीमार व्यक्ति को इतनी तनावग्रस्त इलाके में क्यों भेजा गया जहां जाकर अच्छा भला आदमी राहुल शर्मा को मौत को गले लगाना पड़ा।
क्या बिलासपुर संभाग पूरी तरह माफियाओं का गढ़ बन चुका है यहां सरकार माफियाओं को संरक्षण दे रही है जिसके चलते ईमानदार आदमी को काम करना मुश्किल हो गया है।
बिलासपुर से जिस तरह की खबरें आ रही है वैसा छत्तीसगढ़ में कभी नहीं हुआ कोल माफिया, लोहा माफिया शराब और जमीन माफिया का पूरी तरह पुलिस पर यहां कब्जा हो चुका है। वे जो चाहते हैं वहीं होता है। फिर सरकार कहां है। क्या उद्योगों को जमीन नहीं देने वाले शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों को लाठी मारने और उन्हें जेल में ठूंस देने से कानून व्यवस्था सुधर जाती है। सरकार में बैठे एक-एक लोगों के संरक्षण ने बिलासपुर की हालत काबू से बाहर करने में कोई कसर बाकी नहीं रखा है।
ऐसी स्थिति में क्या वहां ऐसे अधिकारियों को भेज कर छूट देने की जरूरत नहीं है कि वे माफियाओं पर नकेल कसे। लेकिन जब माफियाओं के साथ मुखिया का नाम भी सामने हो तो हालात काबू में कैसे हो सकता है।
राजधानी में ही मंत्रियों व अधिकारियों को उन लोगों के साथ गलबहिंया करते देखा जा सकता है जिन पर हत्या या अपने लठैतों से हत्या करवाने जैसे आरोप हैं। क्या मुख्यमंत्री को इन परिस्थितियों को नहीं समझना चाहिए की उनके गृहमंत्री शराब ठेकेदारों के हाथों थाने बिकने की बात क्यों कह रहे हैं। उनके गृहमंत्री कैसे कलेक्टर को दलाल और एसपी को निकम्मा कह रहे हैं क्या इस पर जांच नहीं होगी चाहिए। क्या गरीबों की आंखे फोडऩे वालों की सूचना तक नहीं देने वालों को बर्र्खाश्त नहीं कर देना चाहिए।
ये सारे सवाल बता रहे हैं कि हालात काबू से बाहर है और यही हाल रहा तो आज सिर्फ नाच देखकर रुपये लुटाये जा रहे हैं कल इस प्रदेश का भी वहीं हाल कर दिया जायेगा।
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