क्या अब भी भाजपा हाईकमान को नहीं दिखता कि छत्तीसगढ़ भाजपा में सत्ता के अन्यायपूर्ण निर्णय से निष्ठावान भाजपाई सहमें हुए है। वे खुश नही हैं। अनुशासन के डंडे से आखिर कब तक हकाला जायेगा और सत्ता के लिए संगठन को सबको लेकर चलना होगा।
कोयला कि कालिख के बीच दो दिन चली भाजपाई चिंतन के बाद यही निष्कर्ष निकलकर बाहर आया कि सत्ता की दमदारी और हाईकमान के संरक्षण ने प्रदेश भाजपा की एकता को तार -तार कर दिया हैं। दो दिन की बैठक को लेकर किसी में उत्साह ही नही था और इस बार भी उसी की चली जिसकी वजह से पर्चा फेंके जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने बैैठक को लेकर खुद स्वीकार किया कि बैठक में मौजुद 40 फीसदी लोग आपस में बाते कर रहे हैं। 30 फीसदी सो रहे हैं और 10-15 फीसदी को मतलब ही नही हैं यानी 10-15 फीसदी वे लोग हैं जो सरकार के मलाईदार पदों पर बैठे हैं या जिन्हें सत्ता से सुख की प्राप्ती हो रही हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. सिंह के इस कथनी के बाद तो प्रदेश भााजपा की स्थिति खुद ब खुद स्पष्ट हो गई हैं। कांगे्रस की बढ़ती सक्रियता और भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरी सरकार की बेचैनी जैसे-तैसे इस संकट से निपटने की हैं। यही वजह है की बैठक में उन लोगों को बोलने तक नहीं दिया गया जिनसे थोड़ा भी खतरा था। पार्टी मंच से बात रखने की वकालत करने वालों ने भी रमेश बैस, करूणा शुक्ला ,दिलीप सिंह जुदेव से जहमत नही उठाई
इस दो दिन की बैठक औचित्य क्या था यह जुदेव के इस बयान से पता चलता है कि वे सो रहे थे। सबकुछ अपनी मर्जी से चलानी हैं तो फिर यह नौटंकी किसके लिए? यह एक ऐसा सवाल है जो भाजपा में फिर से तूफान खड़ा कर सकता हैं।
केवल कमल मुख्यमंत्री या कांग्रेसियों से दूरी बनाकर चलने की कहानी से अब कार्यकर्ता उत्साहित नही होने वाले हैं। क्योकि आम कार्यकर्ता यह समझ चुका हैं पर्चे की एक-एक बात सच हैं और सत्ता में ईमानदारों की भागीदारी इस कॉकस के रहते नही होने वाली हैं।
रमेश बैस की पट्टा वाली टिप्पणी और दिलीप सिंह के बैठक में सोने की गुंज के बाद भी हाईकमान को लगता है कि छत्तीसगढ़ में सरकार ठीक ठाक चल रही है तो हमें कुछ नही कहना हैं।
क्या अब भी भाजपा हाईकमान को नहीं दिखता कि छत्तीसगढ़ भाजपा में सत्ता के अन्यायपूर्ण निर्णय से निष्ठावान भाजपाई सहमें हुए है। वे खुश नही हैं। अनुशासन के डंडे से आखिर कब तक हकाला जायेगा और सत्ता के लिए संगठन को सबको लेकर चलना होगा।
कोयला कि कालिख के बीच दो दिन चली भाजपाई चिंतन के बाद यही निष्कर्ष निकलकर बाहर आया कि सत्ता की दमदारी और हाईकमान के संरक्षण ने प्रदेश भाजपा की एकता को तार -तार कर दिया हैं। दो दिन की बैठक को लेकर किसी में उत्साह ही नही था और इस बार भी उसी की चली जिसकी वजह से पर्चा फेंके जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने बैैठक को लेकर खुद स्वीकार किया कि बैठक में मौजुद 40 फीसदी लोग आपस में बाते कर रहे हैं। 30 फीसदी सो रहे हैं और 10-15 फीसदी को मतलब ही नही हैं यानी 10-15 फीसदी वे लोग हैं जो सरकार के मलाईदार पदों पर बैठे हैं या जिन्हें सत्ता से सुख की प्राप्ती हो रही हैं।
मुख्यमंत्री डॉ. सिंह के इस कथनी के बाद तो प्रदेश भााजपा की स्थिति खुद ब खुद स्पष्ट हो गई हैं। कांगे्रस की बढ़ती सक्रियता और भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरी सरकार की बेचैनी जैसे-तैसे इस संकट से निपटने की हैं। यही वजह है की बैठक में उन लोगों को बोलने तक नहीं दिया गया जिनसे थोड़ा भी खतरा था। पार्टी मंच से बात रखने की वकालत करने वालों ने भी रमेश बैस, करूणा शुक्ला ,दिलीप सिंह जुदेव से जहमत नही उठाई
...का दमन!
इस दो दिन की बैठक औचित्य क्या था यह जुदेव के इस बयान से पता चलता है कि वे सो रहे थे। सबकुछ अपनी मर्जी से चलानी हैं तो फिर यह नौटंकी किसके लिए? यह एक ऐसा सवाल है जो भाजपा में फिर से तूफान खड़ा कर सकता हैं।
केवल कमल मुख्यमंत्री या कांग्रेसियों से दूरी बनाकर चलने की कहानी से अब कार्यकर्ता उत्साहित नही होने वाले हैं। क्योकि आम कार्यकर्ता यह समझ चुका हैं पर्चे की एक-एक बात सच हैं और सत्ता में ईमानदारों की भागीदारी इस कॉकस के रहते नही होने वाली हैं।
रमेश बैस की पट्टा वाली टिप्पणी और दिलीप सिंह के बैठक में सोने की गुंज के बाद भी हाईकमान को लगता है कि छत्तीसगढ़ में सरकार ठीक ठाक चल रही है तो हमें कुछ नही कहना हैं।
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