शनिवार, 14 अप्रैल 2012

अंधेरगर्दी पर जीत...


विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने जिन कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था वे लोग इस अन्याय के खिलाफ कानूनी लड़ाई जीत गये। हाईकोट ने विधानसभा अध्यक्ष श्री कौशिक के इस निर्णय को निरस्त कर इन कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि बर्र्खास्तगी किसी कर्मचारी के विरूद्ध कड़ी सजा है और वे लोग काम पर लौट आए थे तब उन्हें बर्खास्त करना उचित नहीं है।  न्यायालय के इस फैसले ने राज्य सरकार के लिए एक लाईन खींच दी है कि वे किसी के साथ इतना अन्याय न करे कि उसे कानून की सहायता लेनी पड़े। दरसल 29 अप्रैल 2011 में विधानसभा के कर्मचारियों ने विधानसभा के सचिव देवेन्द्र वर्मा के नादिरशाही और अपनी मांगो को लेकर हड़ताल पर चले गए थे। यह किसी से नहीं छिपा है कि देवेन्द्र वर्मा किस तरह से सचिव बने है। मध्यप्र्रदेश आबंटन के बाद भी वे छत्तीसगढ़ में किस तरह से जमे हुए है और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपो की भी कमी नहीं  है। सरकार का उन्हें पूरी तरह संरक्षण प्राप्त है और इसी के चलते देवेन्द्र वर्मा की दादागिरी चरम पर है। उनके कृत्यों से न केवल विपक्ष बल्कि सत्ता पक्ष के विधायक भी परेशान है और कर्मचारियों को अपनी जूती की नोंक पर रखने का दावा शहर की चौराहों में चर्चा का विषय है। सहनशक्ति बर्दास्त के बाहर होने की वजह से ही यहां के कर्मचारियों ने आंदोलन शुरू किया लेकिन इस आंदोलन को कूचल दिया गया। सरकार ने इस आंदोलन को कूचलने एस्मा कानून का सहारा लिया जबकि तब न तो विधानसभा का सत्र चल रहा था और न ही कोई विपदा आ पड़ी थी। लेकिन देवेन्द्र वर्मा के करतूतो को उजागर करते इस आंदोलन को समाप्त करने एस्मा लगाया गया।  एस्मा के खौफ के आगे कर्मचारी नतमस्तक होकर काम पर लौंट गए चूंकि इन कर्मचारियों ने देवेन्द्र वर्मा से पंगा लिया इसलिए काम पर लौटने के बावजूद भी इन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। इस अन्याय को लेकर कर्मचारी ने विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष के मंत्री, मुख्यमंत्री तक गए लेकिन उनकी इसलिए नहीं सुनी गई क्योंकि इन लोगों ने देवेन्द्र वर्मा के खिलाफ मोर्चा खोला था। और कम कहीं सुनवाई नहीं हुई तब न्याय मंदिर का दरवाजा खटखटाया गया जहां देर ही सहीं अंधेर नहीं है और कर्मचारियों के पक्ष पर फैसला आया।  अब देखना यह है कि इस फैसले पर देवेन्द्र वर्मा की क्या प्रतिक्रिया होती है। क्या अन्याय के खिलाफ लडऩे वालों को कूचलने का कोई और रास्ता अख्तियार किया जाता  है।
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें