यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना अपने करतूत पर परदा डालने की कोशिश में लगे पीएससी यानि लोक सेवा आयोग के पदाधिकारी मीडिया पर दोषारोपण नहीं करते। संघ से सूची जारी करने का प्रयास ये कर रहे है, मुरली मनोहर जोशी से रिश्तेदारी ये निभा रहे है, उत्तरप्रदेश के सवाल ये कर रहे है गलत मॉडल उत्तर ये जारी कर रहे है और मीडिया पर आरोप लगा रहे है कि ये लोग नकारात्मक खबर छाप रहे है जिससे पीएससी की छवि धूमिल हो रही है।
पीएससी अपने किये पर परदा डालने जिस तरह से मीडिया पर दोषारोपण कर रही है वह कहीं उचित नहीं है।
छत्तीसगढ़ में आयोजित पीएससी की परीक्षा एक बार फिर विवाद में है। विवाद की वजह यहां बैठे लोग है जो शायद कसम खा चुके है कि वे अपनी मनमानी करेंगे? पीएससी के अध्यक्ष डॉ. जोशी तो पहले से ही विवाद में है और मामला यहां तक जा पहुंचा है कि पीएससी की सूची इस बार संघ तय करेगी। कल के प्रश्नपत्र के बाद तो यह तय ही हो चुका है कि छत्तीसगढ़ की लोगों की उपेक्षा राज बनने के बाद भी जारी है। शासन-प्रशासन में बैठे लोग नहीं चाहते है कि यहां के युवाओं को नौकरी मिले और यहां के युवाओं की षडयंत्रपूर्वक उपेक्षा की जा रही है।
हमें ये नहीं लगता कि इन गलतियों को सुधारा जाना चाहिए जिस तरह की गलतियां हुई है इसके बाद तो परीक्षा रद्द कर दोषियों कर कड़़ी करवाई की जरूरत है।
इस सरकार में तो अधिकारियों की करतूत किसी से भी छिपा नहीं है । चोरी और सीना जोरी के तर्ज पर आंख दिखाने से कभी गुरेज नहीं किया। ऐसे कई मामले है जब भ्रष्टाचार के आरोपियों को सरकार ने संरक्षण देकर अपनी गोद में बिठाया है।
पीएससी के मामले में हमारा मानना है कि छत्तीसगढ़ के युवाओं के साथ जिस तरह से षडयंत्र हुआ है इसकी न केवल उच्चस्तरीय जांच की जरूरत है बल्कि जिम्मेदारी तय कर कड़ी सजा देने की भी जरूरत है। आखिर छत्तीसगढ़ के युवाओं को अपने ही प्रदेश में साजिशपूर्वक नकारा गया तो वे कहां जायेंगे।
राज हमारा, फिर नौकरी दूसरों के लिए तय हो यह उचित नहीं है। हमने कल इसी जगह पर साफ कहा था कि छत्तीसगढ़ के युवाओं के उपेक्षा ऐसे ही होती रही तो राज-ठाकरे जैसे लोगों को सर उठाने का मौका मिलेगा जो सरकार के लिए भी ठीक नहीं है। इसलिए अब भी समय है सरकार को पूरी परीक्षा रद्द कर नये सिरे से परीक्षा आयोजित करवाना चाहिए ।
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