अब तो यह तय हो चुका है कि पीएससी की परीक्षा में छत्तीसगढिय़ों को किनारे करने की साजिश हुई है और इस खेल में सत्ता में बैठे धुरंधरो से लेकर संघ के लोग भी शामिल है। ऐसी परीक्षाएं रद्द हो जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ में सालों बाद हुए पीएससी की परीक्षा को लेकर रोज नये खुलासे हो रहे है और सरकार में बैठे लोग केवल तमाशा देख रहे है यह डॉ. रमन सिंह का कौन सा सुराज है,किस तरह की राजनीति है या किस तरह से सत्ता का संचालन है यह तो वही जाने लेकिन यह स्थिति ठीक नहीं है। और इस मामले में तत्काल निर्णय लिए जाने की जरुरत है।
हम पहले ही यहां लिख चुके है कि छत्तीसगढ़ राज की मांग का आधार सिर्फ भौगोलिक बंटवारा या राज्य का विकास ही नहीं था। छत्तीसगढिय़ों की घोर उपेक्षा के चलते राज की मांग उठी थी। बिजली हमारी लेकिन कटौति का सामना हमें करना पड़ता था। नौकरी में शेष मध्यप्रेदश को प्राथमिकता दी जाती थी और आम छत्तीसगढिय़ों के उपेक्षा के कारण ही राज की मांग हुई। लेकन राज बनने के बाद भी यहां बैठी सरकार छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा करते रही तो इसे कब तक बर्दास्त किया जा सकता है।
हम फिर कह रहे हैं कि हम राज ठाकरे जैसे आंदोलनों के समर्थक नहीं है और न ही हिंसा में ही हमारा विश्वास है इसलिए हम चाहते है कि चुनी हुई सरकारे इस बात का ध्यान रखे की उनसे ऐसी कोई गलती न हो जिससे राज ठाकरे के समर्थन करने वालों को मौका मिले।
यह ठीक है कि भारतीय जनता पार्टी को लोगों ने सत्ता में बिठाया है और उन्हें अपने हिसाब से सरकार चलाने का अधिकार भी है लेकिन इस अधिकार का गलत इस्तेमाल कर इस शंात प्रदेश में आग लगाने का काम न करे। लगातार उपेक्षा से इस तरह से लोगों को सर उठाने का मौका मिलेगा जो छत्तीसगढ़ के लिए ठीक नहीं है। सरकार को तो उसी दिन पीएससी अध्यक्ष से सवाल जवाब करना था जब वे संघ के दफ्तर में पहुंच गए थे लेकिन विधानसभा में यह कहकर पल्ले झाड़ लिया गया कि कोई कहीं भी आ जा सकता है और लोगों की दुविधा बनी रही। इस तरह के जवाब के कारण ही उन लोगों का साहस बढ़ा, और आज स्थिति सबके सामने है कि किस तरह के अपने खास लोगों को परीक्षा में पास कराने के लिए एक प्रदेश विशेष के ऐसे सवाल पुछे गये जिनका वहीं के लोगों का वास्ता है।
कोयले की कालिख में पूति सरकार एलेक्स मेनन को लेकर अभी कटघरे में है ऐसे में पीएससी परीक्षा को लेकर उठे विवाद का शीघ्र निपटारा नहीं हुआ तो स्थिति बिगड़ सकती है।
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