सोमवार, 19 अप्रैल 2021

जन की बात-3

 

राम इस देश की मिट्टी, हवा, पानी कण-कण में बसे हैं, इससे किसे इंकार है लेकिन हम राम को मानने का ढकोसला करते हैं, आडंबर करते हैं, चिख-चिख कर जय श्री राम का नारा लगाते हैं लेकिन राम के मार्ग पर चलने से हिचकते हैं, दूर भागते है, राम के नाम पर लूट का जो परिदृश्य इस देश ने देखा है वैसा शायद किसी भी देश ने अपने देवता, गॉड या अल्लाह के नाम पर लूट नहीं देखा होगा।

इस कोरोना काल में भी सत्ता का चरित्र हिंसक है, संवेदना शून्य है। ऐसे में जो लोग प्रभु राम को पढ़े हैं उन्हें याद दिला दूं कि जब ताड़का वध के लिए गुरु विश्वामित्र ने राम को मांगा तो राजा दशरथ की स्थिति खराब हो गई वे वचन भंग करने तक तैयार हो गये लेकिन राजपुरोहित वशिष्ट ने विश्वामित्र को राम सौंप दिया। राम के साथ लक्ष्मण भी चले आए थे राह में गुरु विश्वामित्र ने दशरथ की स्थिति को वर्णित करते हुए और राक्षसी प्रवृत्ति के विस्तार को लेकर कहा कि जब कभी बुद्धि विलासी हो जाती है तो सत्ताधीस, डरपोक, कायर और कमजोर हो जाता है तब वह अपना पाप छुपाने का उपक्रम करता है, जनकल्याण से दूर हो जाता है, और वे ऐसे फैसले लेने लगते है जिससे आम आदमी की तकलीफे बढ़ जाए।

क्या राम के नाम पर ढकोसला करने वाली सत्ता ने इसे नहीं पढ़ा? या उसके लिए राम सिर्फ सत्ता प्राप्त करने का साधन मात्र है? प्रधानमंत्री वह होता है जिसके लिए प्रजा की ईच्छा सर्वोपरि हो लेकिन क्या ऐसा हो रहा है। वह तो अपने लिए सुख, विलास, सम्पन्नता और अधिकार को ही महत्वपूर्ण समझता है। तब अन्याय को बल मिलता है। क्या यह समय इसी तरह का नहीं हो चला है। पहले मध्यप्रदेश में सत्ता बनाने का मोह और अब बंगाल, असम में सत्ता हासिल करने का मोह क्या कोरोना से गिरती लाशों के लिए जिम्मेदार नहीं है? हर विरोध को देशद्रोह, या हिन्दू विरोधी कहकर हम किस तरह का देश बनाना चाहते हैं?

इतिहास इसलिए पढ़ाया जाता है ताकि हम अच्छी बातें सीखें और बुरी बातों से सबक लें। जिन लोगों ने भी मानवीय समानता और सबके प्रति न्याय की अनदेखी कर अपनी जाति और धर्म को श्रेष्ठ माना उसने इस संसार को, अपने देश को मुसिबत में डाला है। बीते सालों में इस देश को क्या मिला? हमने इतिहास से सबक लेने की बजाय इतिहास को कुरेदकर गलत व्याख्या की। जो काम अंग्रेजी सत्ता ने अपने राज्य लंबे समय तक चलाने के उपक्रम में फूट डालो राज करो का खेल खेला, आजादी के आंदोलन के प्रभाव को रोकने हिन्दू-मुस्लिम का आयोजन किया, क्या यह सत्ता के लिए अब भी जारी नहीं है।

याद कीजिए ताड़कावन में राक्षसों के प्रभाव को लेकर जब आर्य राजाओं ने चुप्पी साध ली तब विश्वामित्र ही ऐसे थे जो भविष्य को लेकर चिंतित थे, तब प्रभु राम ने गुरु विश्वामित्र से पूछा था कि आर्य राजाओं ने ताड़कावन क्षेत्र में राक्षसों का अधिकार स्वीकार कैसी कर लिया। राम के इस प्रश्न पर लक्ष्मण ने बड़े ही भोलेपन से कहा था जैसे रघुकुल पर कैकेयी का अधिकार सम्राट दशरथ ने स्वीकार कर लिया है न, गुरुवर?

लेकिन लक्ष्मण की कटुता पर हंसते हुए गुरु विश्वामित्र ने कहा था कि आर्य राजाओं ने न केवल राक्षसों का अधिकार स्वीकार कर लिया था बल्कि राजाओं ने यह कहकर भी समर्थन किया कि अत्यंत प्राचीन काल में पहले भी यहां राक्षसों की बस्ती थी। गुरु कहते जा रहे थे- यदि प्राचीन इतिहास के आधार पर ही राज्यों की सत्ता का निर्णय होगा, तो एक समय रावण ने अनरण्य की हत्या कर अयोध्या भी जीत ली थी तो क्या दशरथ अयोध्या भी रावण को दे देंगे?

क्या यह उन लोगों के लिए सबक लेने की बात नहीं है जो इतिहास के आधार पर सत्ता का निर्णय चाहते हैं, तब क्या हम वापस उसी राह पर चले जायें जहां जंगल राज था, सभ्यता नहीं था, यह देश सैकड़ों राज में खंडो में बंटा था। जो लोग अंग्रेजों के फूट डालो राज करो के परिणामस्वरुप पाकिस्तान बनने के परिदृश्य को भी नहीं देख पा रहे हैं वे कोरोना के लिए मोदी सत्ता की जिम्मेदारी कैसे तय कर पायेंगे? (जारी...)

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