सोमवार, 15 मार्च 2010

वादे से सरकार मुकरी,किसानों ने दी घुड़की

प्रदेशभर के अन्नदाता 18 मार्च को न केवल राजधानी आएंगे बल्कि सरकार के वादा खिलाफ के खिलाफ विधानसभा घेरेंगे। वहीं आंदोलन को कुचलने सरकारी स्तर पर भी षड़यंत्र की चर्चा है।
छत्तीसगढ क़े किसान इन दिनों सरकार के रवैये से त्रस्त हैं। उद्योगों और भवनों के लिए कृषि जमीन छीनी जा रही है तो दूसरी तरफ बोनस के नाम पर किसानों को छला जा रहा है। ज्ञात हो कि भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव से पहले किसानों को 270 रुपए बोनस देने की घोषणा की थी लेकिन सत्ता में आते ही वह अपने संकल्प को भूल गई। किसानों ने पिछली बार आंदोलन किया तो 50 रुपए बोनस देने की घोषणा की लेकिन बजट में 270 रुपए बोनस का कोई प्रावधान नहीं रखा।
इसी से आक्रोशित प्रदेशभर के किसानों ने 18 मार्च को विधानसभा घेरने की धमकी दी है। इसके अलावा उसने हड़ताल करने की धमकी तक दे दी है। यानी खेती किसानी नहीं करने की धमकी देश के इतिहास का अपने तरह का अनोखा निर्णय होगा। प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकारवार्ता में वीरेन्द्र पाण्डे, जागेश्वर साहू, पारसनाथ साहू, दिनदयाल वर्मा जैसे दिग्गज किसान नेताओं ने सरकार के खिलाफ जमकर विषवमन किया उन्होंने तो ठाकुर को ही ललकार दिया कि छत्तीसगढ में तो नाउ ठाकुर तक अपने वचन से नहीं मुकरते पता नहीं ये कैसे ठाकुर हैं। दरअसल किसानों के गुस्से की वजह सरकार की नीति है जिसके चलते किसानों की माली हालत दिनों दिन बदतर होते जा रही है और इसी का फायदा उठाते हुए 270 रुपए क्विटंल बोनस देने के लुभावने नारे के साथ भाजपा चुनाव में उतरी थी। किसानों ने कहा कि यदि सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए तो ईंट से ईंट बजा देंगे और सरकार को चैन से काम करने नहीं देंगे।
छत्तीसगढ में जोत का रकबा कम होता जा रहा है शहरों के आसपास की जमीनों को अधिग्रहित किया जा रहा है नई राजधानी के नाम पर खेती की जमीनें छीनी जा रही है। तो कालोनी बनाने जमीन छीनी जा रही है। उद्योगों के नाम पर भी हजारों एकड़ जमीन बर्बाद किया जा रहा है ऐसे मे किसानों की माली हालत पर गौर नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। इधर किसान नेताओं ने खुलकर कहा कि विधानसभा घेरने की चेतावनी पर भी सरकार नहीं मानी तो वे खेती किसानी बंद करने तक का निर्णय ले सकते हैं। इधर आंदोलन को कुचलने की रणनीति भी बनाए जाने की चर्चा है कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन को कुचलने कई तरह के कार्यक्रमों के अलावा ट्रांसपोर्टरों पर भी दबाव डाला जा रहा है कि वे अपनी वाहन किराए से न दे जबकि राजधानी की घेराबंदी भी जोरदार ढंग से की जा रही है।

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