अहिंसा का रास्ता और आदिवासियों का दिशोम गुरु शिबू सोरेन
कितने ही क़िस्सों के बीच आदिवासियों के दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने जब इस दुनिया को अलविदा कहा तो सहसा विश्वास करना मुश्किल था , जीवन भर अहिंसा के इस राही ने आदिवासियों के लिये जो कुछ किया उसे भुला पाना मुश्किल है…
1953 का साल। छोटा सा गाँव नेमरा, जहां एक 9 साल का बच्चा, शिबू, अपनी पालतू कोयल के साथ खेलता था। एक दिन गलती से कोयल मर गई। उस मासूम का अपनी कोयल से भावनात्मक लगाव इतना जुड़ चुका था कि उसने चिड़िया का दाह-संस्कार किया और कसम खाई,
“मैं अब किसी जीव को चोट नहीं पहुंचाऊंगा।”
उस दिन से वह अहिंसा के रास्ते पर चल पड़ा था।
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ब्रिटिश एम्पायर ने देश छोड़ते छोड़ते जो आदिवासी थे उनकी जमीनों को जमींदारों और महाजनों के हवाले सौंपने का पत्ता फेंक दिया था। हालात यह थे कि अपनी ही जमीन पर खेती करने के लिए बेचारे आदिवासी महाजनों के दिए कर्ज पर निर्भर रहते थे। बदले में महाजन उनकी जमीनों को कर्ज के ब्याज तले दबाकर हथिया लिया करते थे। आप इसका जमीनी क्रियान्वयन मुंशी प्रेमचंद की गोदान में पढ़ सकते है।
तब सोबान सोरेन नाम आदमी जो कि शिबू के पिता थे वो अपने आदिवासी वर्ग के हितों की रक्षा के लिए महाजनों से जंग लड़ रहे थे। लोहा ले रहे थे।
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27 नवंबर 1957 ....
शिबू के पिता सोबान सोरेन की हत्या कर दी गई। महज 15 साल का शिबू उस रात चुपचाप बैठा रहा। दिल में एक आग जल रही थी जो मानो उसके पिता द्वारा जलाए रखने की दी गई जिम्मेदारी हो।
शिबू उस आग में फूंक मारता रहा।
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साल 1959...
“फसल हमारी, जमीन हमारी, अब कोई नहीं ले जाएगा।”
शिबू ने पिता की छोड़ी गई आंदोलन की विरासत को अपनाते हुए ये हुंकार भरी।
" उतर जाओ खेतों में, काट लो अपनी फसलें, ये तीर कमान जब तक हमारे हाथों में है हम देखते है कौन महाजन तुम्हें तुम्हारी मेहनत की कमाई लेने से रोक पाता है।"
महिलाएं हसिया लेकर खेत में उतर गईं। पुरुष तीर-कमान लेकर पहरेदारी करने लगे।
रातभर धान कटता रहा। सुबह जब महाजन आए, तीर आसमान में गूंजने। शिबू की दी गई साहस आदिवासियों के पुनर्जागरण में क्रांतिकारी भूमिका अदा करने लगी। धान काटो आंदोलन ने शिबू सोरेन को "दिशोम गुरु" (जंगल/भूमि का रक्षक) बना दिया।
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शिबू सोरेन ने अपने जीवन काल में तीन बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लिया मगर एक भी बार वो पूर्ण कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इसके पीछे काफी हद आदिवासी हितों को लेकर उनकी कठोर नीतियां थी जो उनके सहयोगी गठबंधन दलों के क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठ पाती थी और तख्त पलट जाता था। उसके बाद उन्होंने अपनी राजनीति का उत्तराधिकार अपने वंश हेमंत सोरेन को सौंप दिया।
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4 अगस्त 2025 को शिबू सोरेन ने इस दुनिया में अंतिम सांस ली। आदिवासियों का दिशोम गुरु आज इस दुनिया को अलविदा कह गया।