प्रायमरी स्कूल की एक किताब में बाबा भारती की मशहूर कहानी है जिसमें गरीब बनकर उनके घोड़े को छीना जाता है तब बाबा भारती ने उस डकैत से कहा था कि बेटा! तुम घोड़े ले जा तो रहे हो लेकिन किसी से यह मत कहना कि गरीब बनकर तुमने लूटपाट की है वरना कोई गरीबों पर भरोसा नहीं करेगा। अंदर तक झिंझोर देने वाली यह कहानी इन दिनों साधु और समाजसेवी दोहरा रहे हैं। कहीं साधु सेक्स कांड में फंस रहे हैं तो कहीं समाजसेवा की आड़ में बच्चे तक बेचे जा रहे हैं।
राजधानी में भी शासकीय नौकरी के नियमित पगार से असंतुष्ट नारायण राव ने आश्रम खोल लिया और बच्चे बेचने का काम करने लगा। आश्रम की आड़ में वह और भी क्या कुछ करता रहा है यह तो वही जाने लेकिन समाजसेवा और धर्म सेवा की आड़ में क्या कुछ हो रहा है वह अंधेरगर्दी से कम नहीं है।
नारायण राव एक न्यूज चैनल सहारा के स्ट्रींग आपरेशन में धरा गया। खबर को सिर्फ इतनी ही मान लेने वालों के लिए हमें कुछ नहीं कहना है लेकिन उसे आश्रम के लिए जमीन देने वाली सरकार और नारायण राव से संबंध रखने वाले मंत्री उसके इस पाप से बच नहीं सकते। दो-तीन सालों से प्रदेश में एनजीओ के रुप में नए-नए समाज सेवक पैदा हुए हैं जो सरकारी धन लेकर समाजसेवा का ढोंग रचते हैं और आधे से ज्यादा रकम अपनी तनख्वाह और आफिस खर्च पर हजम कर जाते है लेकिन सरकार ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। यह सरकारी अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
छत्तीसगढ़ में तो समाजसेवा के नाम पर एनजीओ ने लूट मचा रखी है यहां के अफसरों से लेकर मंत्रियों तक का एनजीओ को न केवल संरक्षण है बल्कि कई अधिकारियों के रिश्तेदार तक एनजीओ के नाम पर सरकार का खजाना लूट रहे हैं। एनजीओ को पैसा देने के बाद सरकार ने कभी पैसे के सदुपयोग की जांच नहीं कराई। रमन सरकार के दाल-भात केन्द्र हो या फिर निर्मल ग्राम योजना, स्कूलों को दी जाने वाली मध्यान्ह भोजन हो या फिर शहरों के यातायात के लिए हर क्षेत्र में एनजीओ ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और सरकारी धनों का जी भर कर दुरुपयोग किया। ये पैसे कहां खर्च कर रहे हैं कोई पूछने वाला नहीं है।
सरकार के इसी रवैये के कारण ही सरकारी जमीनों को कौड़ी के मोल दी गई जहां नारायण राव जैसे लोगों का जन्म हुआ है या फिर सरकारी जमीनों पर बिजनेस काम्प्लेक्स बनाए गए। अखबारों के नाम पर दी गई जमीनों पर दुकानें बनाना या आवश्यक सेवा के नाम पर बैकों से किराया लेना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। नारायण राव तो सिर्फ एक उदाहरण है कि समाजसेवा की आड़ में यहां क्या कुछ हो रहा है ऐसे कितने ही नारायण राव हैं जो सरकार के संरक्षण में आम लोगों के पेट में लात मार रहे हैं और सरकारी खजानों का नीजि उपभोग कर रहे हैं।
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