ऊपर से शांत दिख रही भाजपा में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। पहले ही बगावत का झंडा उठा चुके आदिवासी नेता रामविचार नेताम ने आदिवासी एक्सप्रेस चलाना शुरु कर दिया है तो डॉ. रमन सिंह राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने दुश्मनों को भेजने होशियारी दिखा रहे है। प्रदेश अध्यक्ष पद पर मुरारी सिंह का नाम आदिवासी एक्सप्रेस के तोड़ के रुप में देखा जा रहा है तो राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह पर दबाव बनाए रखने गणितबाजी में उलझे हुए हैं।
छत्तीसगढ़ के भाजपाई राजनीति में उथल-पुथल की सुगबगाहट शुरु हो गई और कहा जा रहा है कि आदिवासी सांसदों, आदिवासी मंत्रियों सहित दर्जनभर विधायक मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से बेहद खफा है और वे कभी भी डॉ. रमन सिंह के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल सकते हैं। वैसे डॉ. रमन सिंह के खिलाफ असंतोष की खबरें नई नहीं है। राज्यसभा सदस्य नंदकुमार साय तो गाहे-बगाहे मौके की तलाश में रहते हैं जबकि रामविचार नेताम, ननकीराम कंवर और सोहन पोटाई का भी नाम सत्ता परिवर्तन में रुचि रखने वालों में शुमार है।
पिछले दिनों राजधानी में 32 प्रतिशत आरक्षण को लेकर हुई रैली में भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेताओं की मौजूदगी में डॉ. रमन सिंह के खिलाफ हुई नारेबाजी को भी इसी रूप में देखा जा रहा है। इस रैली में रामविचार नेताम की सक्रियता को लेकर भी कई तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं। दूसरी तरफ पिछड़े वर्ग में भी जबरदस्त आक्रोश है लेकिन रायपुर के सांसद रमेश बैस की चुप्पी की वजह से पिछड़ा वर्ग खामोश है और उन्हें नेतृत्व की तलाश है। हालांकि चन्द्रशेखर साहू की भूमिका को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं और सूत्रों का कहना है कि रायपुर में दशक पहले राज्य की मांग उठाकर अपना हाथ जला चुके चंपू साहू फिलहाल मौन है और दूध का जला... वाली कहावत पर चल रहे हैं।
इधर डा. रमन सिंह ने ब्राम्हण और बनिया से निपटने नई रणनीति बना ली है और कहा जा रहा है कि एक तीर से दो शिकार की तर्ज पर वे सरगुजा के आदिवासी सांसद मुरारी सिंह को प्रदेशाध्यक्ष बनवाकर जहां आदिवासी एक्सप्रेस की हवा निकालने में लगे हैं वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपने दुश्मनों को भेजने की रणनीति पर चल रहे हैं। कहा जाता है कि लगातार विवादों में रहने वाले राजधानी के विधायक बृजमोहन अग्रवाल को वे एक बार फिर महत्व देने लगे हैं ताकि विरोधियों को ताकत न मिले।
बताया जाता है कि डॉ. रमन सिंह की असली चिंता आदिवासी नेताओं की एकजुटता है और वे इस एकजुटता को तोड़ने मंत्रियों को जिम्मेदारी दे रखे हैं। इसके तहत अलग-अलग मंत्री दो तीन आदिवासी विधायकों को संभालने का काम कर रहे हैं। बहरहाल भाजपा में चल रहे इस अंदरूनी उठापटक की दबी जुबान पर चर्चा होने लगी है और कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा के बाद स्थिति साफ होगी।
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