रविवार, 30 जून 2024

घर को आग लगी अपने ही चिराग से...

घर को आग लगी अपने ही चिराग से...


यह तो घर को आग लगी अपने ही चिराग से की कहावत को ही चरितार्थ करता है वर्ना, कांग्रेस के इस वरिष्ठ नेता ताम्रध्वज साहू की इतनी बुरी स्थिति कभी नहीं आई कि उन्हें अब अपने ही लोग गरियाने लगे, और उनके बैठने के लिए कुर्सी तक नही छोड़ी जाए।

विधायकी से लेकर संसद तक का सफर तय करने वाले ताम्रजध्वज  साहू को लेकर एक समय तो ऐसा भी आया था कि उनके मुख्यमंत्री बनने की खबर मात्र से फटाखे तक फोड़ दिये गये थे, और कहा जाता है कि • इसी फटाखे की वजह से उनके हाथ से मुख्यमंत्री का पद फिसल गया और गृह मंत्री से संतोष करना पड़ा ।

इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में तो उन्हें हार का मुंह देखना तो पड़ा ही महासमुंद से लोकसमा चुनाव में भी बुरी तरह से हार की बेइज्जती भी झेलनी पड़ी। 

कहा जाता है कि दुर्ग छोड़कर महासमुंद का सुझाव भले ही भूपेश ने सुझाया हो लेकिन इस पर मुहर तो छोटे ने ही लगाई थी।

लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाने से लेकर सांसद का चुनाव हारने की जो वजह सामने आ रही है वह भी कम पीड़ादायक नहीं है।

हालाँकि समीक्षा बैठक में केवल सत्ता का अहंकार का मामला चर्चा  तक सिमट कर रह  गया लेकिन ताम्रध्वज साहू की इस स्थिति के लिए असली वजह पर कितनी बात हुई कहना मुश्किल है। आख़िर किसी के बेटों को लेकर कौन चर्चा करता है।

लेकिन ताम्रजध्वज साहू के मामले में तो बोला जा सकता था कि पूरे पाँच साल किस तरह से विभाग चलाया गया। और इस स्थिति के लिये उनका अपना ही जिम्मदार है यह बात कोई नहीं बोल पाया क्योंकि मंत्रालय छोटा वाला चला रहा था या बड़ा वाला, यह सबको मालूम है। यानी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन? सब जानने लगे हैं ।

विजय की नासमझी…

 विजय की नासमझी...


दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से लगातार दूसरी बार सांसद बनने वाले विजय बघेल को उम्मीद थी कि मोदी मंत्रिमंडल में और नहीं तो राज्यमंत्री बनने का मौक़ा तो मिल ही जायोगा, और इस उम्मीद की वजह पार्टी के निर्देश पर चाचा भूपेश बघेल के खिलाफ विधानसमा चुनाव लड़‌ना है। लेकिन मोदी मंत्रिमंडल में जगह तो दूर प्रदेश सरकार में भी अब उनकी पूछ परख कम हो गई है। संतोष पांडे के निवास में हुई भोज कार्यक्रम में कोई उनसे ठीक से बात करने वाला नहीं था।

लेकिन विजय बघेल ने उम्मीद नहीं छोड़ी है तो इसकी वजह कुर्मी वाद की वह राजनीति है जो उन्हें दुर्ग जिले में मजबूत नेता की छवि के रूप प्रस्तुत करता है। 

लेकिन शायद वे यह भूल गए है कि उनका भाजपा से नाता तो विद्याचरण शुक्ल की वजह से हुआ है और जब पार्टी में मोहन सेठ जैसे संघी - भाजपाईयों की कद्र नहीं है तो किर दूसरी पार्टी से आने वालों का क्या उपयोग करना है यह मोही शाह से बेहतर कौन जान सकता है। और वैसे भी मोदी-शाह को यह गाना खूब पसंद है कि - मतलब निकल गया है तो, पहचानते नहीं…

लोगों का तो यहां तक कहना है कि विजय बघेल ने तो मोदी- शाह उन्हें कभी मंत्री नहीं बनाने वाले हैं और हसका ईशारा तो उन्होंने विधानसभा चुनाव में ही तब कर दिया था, जब विजय बघेल को भूपेश के खिलाफ टिकिट दिया था और समझने  वालों के लिए ईशारा ही काफ़ी होता है। और फिर कल भोज में संगठन से लेकर सत्ता वालों का व्यवहार के बाद तो सब कुछ साफ़ हो जाने की बात कही जा रही हैं, तो अपनी पूछ परख का हवाला दे दे कर सांसद जिस तरह से एक दूसरे का पोल खोल रहे हैं , उसमें भी सब कुछ साफ़ हो गया है।

लेकिन विजय बघेल यह समझने को तैयार नहीं है और उन्हें लगता है कि देर-सबेर मंत्री बना ही दिया जायेगा...!

शनिवार, 29 जून 2024

नीट में यह धांधली भी हुई

 छत्तीसगढ़ की छात्रा के साथ हो गया खेल, मामला कोर्ट पहुँचा


देश भर में नीत को लेकर चल रहे हंगामे के बीच जो खबरे आ रही है वह मोदी सरकार के करतूतों का पोल खोल रहा है 

संसद से लेकर सड़क तक लड़ाई चल रही है, लेकिन मोदी सरकार के लाड़ले धर्मेंद्र प्रधान को एजुकेशन से नहीं हटाया जा रहा है 

सीबीआई भी गिरफ़्तारी पर गिरफ़्तारी किए जा रही है

इधर छत्तीसगढ़ में नीट की धांधली का मामला उजागर हुआ है , बिलासपुर की इस छात्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि उसके सही प्रश्न के उत्तर को नहीं जोड़ा गया और ग़लत उत्तर पर माइनस मार्किंग के चलते कुल प्राप्तांक जो होना चाहिए वह नहीं होने की वजह से उनका रैंक काफ़ी पीछे चला गया है।

हाईकोर्ट में सरकार ने अपनी गलती के लिये कंप्यूटर को ज़िम्मेदार ठहराया है , इस पर हाईकोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर जवाब माँगा है 

देखिए पूरी रिपोर्ट…

https://youtu.be/YrBCpsIBfhY?si=dLq_Nr83gL_4E5if


भावना ऐसे उजागर हुई…

भावना ऐसे उजागर हुई…

 


यह तो पूत के पाँव पालने में दिखाई देने वाली कहावत को ही उजागर करता है वरना पंडरिया की विधायक भावना बोहरा के खिलाफ न तो ऐसे आरोप लगते और न ही वे पार्टी में चर्चा में हीं आती। 

दरअसल भावना बोहरा की पहचान सिर्फ पंडरिया विधायक की ही सिर्फ़ नहीं है इससे इतर वे रमन सिंह के कैसे-कैसे रिश्तेदार के रूप में भी है। अब रमन सिंह की रिश्तेदार हो तो वीआईपी कल्चर का ताम-झाम भी स्वाभाविक है और पैसो की राजनीति या राजनीति में पैसों असर भी होना है। और फिर उन्हें स्कूल चलने चलाने के अलावा एनजीओ चलाने का भी अच्छा ख़ासा अनुभव है। अब उनके एनजीओ को ग्रांट मिलता था या नहीं, या कहाँ कहाँ से मदद मिलती थी यह जाँच का एक अलग ही मसाला है।

लेकिन ताजा मामला तो किसानी से जुड़ा मामला है और आरोप भी ऐसा वैसा नहीं है, गाँव के किसान ही शिकायत ले के पहुंच गये । तीन ट्रक डीएपी खाद खाली कराने का मामला तो अब राजधानी में गूंजने लगा। 

मामला तो उनसे आसानी से नहीं मिल पाने का पहले से ही गूंज रहा है।, चुनाव जीतने के बाद रायपुर से राजस्थान तक के दौरे की नई नई खबर  को कांग्रेस ने मुद्दा बनाकर तुल देना शुरु कर दिया है। लेकिन कांग्रेसी शायद भूल गये है कि भावना बोहरा कोन है…?

शुक्रवार, 28 जून 2024

फ़कत् ला-ला ने कर दिया बेड़ा-गर्क

 फ़कत् ला-ला ने कर

दिया बेड़ा-गर्क


महापौर से लेकर विधायक बनने का सपना संजोने वाले भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव को तो पार्टी ने वह सब कुछ दिया जिसने वे लायक थे या नहीं उसे लेकर पार्टी के भीतर भी सवाल उठते रहे हैं।

एलआई सी एजेंट से राजनीति में आये संजय श्रीवास्तव भी राजीव अग्रवाल की तरह हर चुनाव में टिकिट की लाईन में लग जाते हैं, पार्षद हो या कोई भी चुनाव ।  कहा जाता है कि उन्हें टिकिट चाहिए। यही वजह है कि अब पार्टी के नेता भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेते।

गौरी की सीढ़ी चढ़कर भजायुमों  की राजनीति करते करते ला-ला वाले खेल खेलने लगे और उनके खेल की चर्चा तो इतनी है कि ख़ुद भाजपा के नेता भी उनके निचोड़ने वाले गुण से नहीं बच पाये हैं, शंकरनगर के एक कॉम्प्लेक्स वाले ज़मीन को लेकर पार्टी के नेताओ से विवाद की चर्चा  तो इतना तूल पकड़ा था कि महापौर की टिकिट की ईच्छा चकवाचूर हो गया।

रमन सिंह के असली गृहमंत्री से संबंध बनाते बनते  संबंध प्रसाद तक जा पहुंचा लेकिन ला-ला प्रेम के चलते विधानसमा की टिकिट से वंचित होना पड़ा।यानी जो इन्हें जान गया वह टिकिट कभी नहीं देगा।

और कहा जाता है कि रायपुर दक्षिण की सीट खाली होते ही एक बार फिर जीभ लपलपाने लगा है। लेकिन सवाल तो वही है कि टिकिट  दिलायेगा कौन? क्योंकि सीढ़ी को ही तोड़ने में माहिर संजय श्रीवास्तव की  यह आदतें छूटती नहीं। और छूटे भी कैसे, इंदौरी चटोरापन कभी छूटता है क्या ?

अपराधी चला रहे थाना फिर पुलिस से डर कैसा...

 अपराधी चला रहे थाना 

फिर पुलिस से डर कैसा...


रमन राज में जब पूर्व गृह‌मंत्री ननकी राम कंवर ने कहा था कि दस - दस हजार में थाने बिकते हैं और कलेक्टर- एस पी वसूलीबाज़ हो गये हैं, तब विधानसमा में इस बात को लेकर खूब हल्ला मचा तो क्या छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आते ही यही स्थिति बन गई है और बढ़ते अपराध की एक बड़ी वजह साँठ-गाँठ है, या फिर शराब के धंधे में लिए नेताओं को ऐसे ही लोग चाहिए जो उनके अवैध शराब के धंधे को फलने-फूलने का अवसर दें।

छत्तीसगढ़ में बढ़ते अपराध की खबर ने आम आदमी की चिन्ता बड़ा‌ दी है, हत्या - बलात्कार के बढ़‌ते मामलो के बीच अपराधियों को पकड़ने की बजाय शिकायत करने वालों को ही परेशान करने का मामला भी बढ़‌ता ही जा रहा है। और अपराधी कॉलर उठाये बेखौफ़ घूम रहे हैं।




राजधानी में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद है कि वे थाने में ही गवाहों पर हमला करने लगे हैं।मीडिया रिपोर्ट के अनुसार थाने महिला आरोपी ने गवाह पर ब्लेड से हमला कर दिया। मामला शहर के संवेदनशील क्षेत्र माने जाने वाले मौदाहापारा का है, जहां उपद्रवियों ने जमकर उत्पात मचाया था। कांकेर सहित दूसरे स्थानो के हिस्टरी शिटर यहां रह रहे थे। गिरफ्तार उपद्र‌वियों में दो महिलाएं भी है। जिन पर आर्म एक्ट का मामला भी दर्ज हैं।

हालांकि पुलिस का कहना है कि काले धागे में बंधी ताबिज जैसी चीज से वार किया गया है। जबकि घायल युवक ब्लेड से वार करना बता रहा है। वह भी थाने के भीतर।


इधर पुलिस पर, चाकू से वार या हमले के मामले को धारदार नुकीले  चीजों से मारने का रिपोर्ट लिखकर या  लूट को चोरी, डकैती को चोरी बताकर मामले को कमजोर करने का आरोप भी लगता रहा है। तो अपराधियों को नहीं पकड़‌ने की बात आम है।

शहर के प्रतिष्ठित अख़बार नवभारत ने तो बकायदा इस शीर्षक के साथ समाचार प्रकाशित भी किया कि “पुलिस घेरे के बीच नजर आए कई फ़रार आरोपी' बाकायदा तस्वीर के साथ प्रकाशित इस रिपोर्ट  में बताया गया है कि जिन लोगों को पुलिस तलाश कर रही है या जिनके ख़िलाफ़ थाने में वारंट है वैसे लोग खुले-आम थाना आते जाते हैं और  पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं करती।

सूत्रों की माने तो राजनैतिक पहुंच के चलते ही पुलिस अपराधियों को बख्श रही है।

लता की छटपटाहट...

 लता की छटपटाहट...


विष्णुदेव साय मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए मरे जा रहे लोगों की कमी नहीं हैं, कई दिग्गज नेता साम-दाम की राजनीति में लगे हैं तो कोई अपने आकाओं के भरोसे है। कहा जा रहा है कि एक तरफ़ मंत्री बनने राजेश मूणत ने पूरा दांव खेल दिया है तो दूसरी तरफ सबसे ज्यादा छटपटाहट जिसमें दिखाई दे रही है वह लता उसेंडी है।

रमन सरकार में मंत्री रह चुनी लता उसेडी को लेकर कई चर्चे है और कहा जाता है कि ऐसे ही एक चर्चे ने रमन सरकार की किरकिरी तक करा दी थी, मीडिया प्रेम से ओत प्रोत लता उसेंडी ने प्रेसक्लब में बैडमिंटन कोर्ट बनाने में भी मदद की तो पार्टी  के मीडिया संभालने वालों की मदद को लेकर भी वे चर्चा में थी…।

कहा जाता है कि इस बार भी वे मंत्री बनने के लिए पूटी ताकत लगाई हुई है, और  अब उन्हें उड़ीसा चुनाव में किये मेहनत  पर ही ज्यादा भरोसा है, क्योंकि पिछली बार वे जिस सीढ़ी में चढ़‌कर मंत्री बनी वी, वह सीढ़ी से इन दिनों किनारे कर दी गई है।

लेकिन लता की दिक़्क़त यह है कि  साय सरकार ने महिला कोटे से पहले ही लक्ष्मी राजवाड़े को मंत्री बना रखा है तब क्या इस बार महिला मंत्री की संख्या बढ़ाई जायेगी। और क्या कोई नई सीढ़ी तैयार हो गई है..!

गुरुवार, 27 जून 2024

भारतीय बच्चों की दशा पाक से भी ख़राब

 भारतीय बच्चों की दशा पाकिस्तानी बच्चों से भी ख़राब, ठीक से ख़ाना भी नसीब नहीं 

यूनिसेफ़ की ताज़ा रिपोर्ट में भारत के बच्चों कि जो स्थिति है वह निचले पायदान से आठवें नंबर है भारत से बेहतर पाकिस्तान नेपाल श्रीलंका और बंगलादेश की स्थिति है

भारत इस मामले में अफ़ग़ानिस्तान से थोड़ा ही बेहतर है  


एक तरफ़ जब देश के प्रधानमंत्री भारत को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने का दावा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ़ भारत के चालीस फ़ीसदी बच्चों को पोषित आहार नहीं मिल पा रहा है। तब सवाल ये है कि क्या आर्थिक मज़बूती सिर्फ़ कारपोरेट प्रगति से गिनी जा रही है ।


 


यूनिसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 20 साल पहले जब कुपोषण की बात की जाती थी तो सबसे पहले एक दुबले पतले कमजोर बच्चे की छवि दिमाग में आती थी, जिसे खाने के लिए भरपेट भोजन नहीं मिलता था, पर आज कुपोषित होने के मायने बदल रहे हैं । आज भी करोडो बच्चे कुपोषित हैं पर तस्वीर कुछ और ही है, यदि अफ्रीका को छोड़ दें तो आज सारी दुनिया में ऐसे बच्चों की संख्या कम हो रही है जिनकी वृद्धि अपनी आयु के मुकाबले कम है, जबकि आज ऐसे कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है जिनका वजन बढ़ गया है और जो मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं । यूनिसेफ द्वारा जारी नई रिपोर्ट

 


'द स्टेट ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रन 2019' के अनुसार, दुनिया में पांच साल से कम उम्र का हर तीसरा बच्चा या दूसरे शब्दों में 70 करोड़ बच्चे कुपोषण का शिकार है ।



बच्चों में बढ़ता मोटापा भी है गंभीर समस्या

सयुंक्त राष्ट्र द्वारा जारी इस रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि दुनिया के करोड़ों बच्चे को या तो जरूरत से बहुत कम खाना और पोषण मिल रहा हैं या फिर जितनी जरूरत है वो उससे अधिक मात्रा में भोजन ले रहे हैं, जो की स्पष्ट रूप से आर्थिक असमानता को दर्शाता है। यूनिसेफ के अनुसार बच्चों में पोषण की कमी का सीधा प्रभाव उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है । जिसमें दिमाग का पूर्ण विकास न हो पाना, कमजोर याददाश्त, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी और संक्रमण एवं बीमारियों का खतरा मुख्य है। आंकड़ों के अनुसार वैश्विक रूप से वर्ष 2018 में पांच साल से कम आयु के 14.9 करोड़ बच्चे अविकसित पाए गए । जबकि लगभग पांच करोड़ बच्चे शारीरिक रूप से कमजोर थे। अनुमान के विपरीत इनकी सबसे अधिक संख्या एशिया में देखने को मिली । इसके अलावा, पांच साल से कम आयु के 34 करोड़ बच्चों में जरूरी विटमिनों और खनिज पदार्थों की कमी पायी गयी । जबकि करीब चार करोड़ बच्चे मोटापे या ज्यादा वजन से पीड़ित पाए गए। बच्चे में अधिक वजन के चलते टाइप -2 डायबिटीज, अवसाद जैसी समस्याएं आम बात होती जा रही है वहीं आगे चलकर यह मोटापे में बदल सकती है जिससे रक्तचाप, डायबिटीज, शुगर, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां हो सकती है।

जरूरी विटमिनों और खनिज पदार्थों की कमी


यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने बताया कि बेहतर विकल्प न होने के कारण दुनिया भर में करोड़ों बच्चे ऐसा भोजन करने को मजबूर हैं जो उनका पेट तो भर सकता है, पर उन्हें पोषण नहीं दे सकता । वहीं दूसरी ओर बच्चों में जंक फ़ूड के प्रति बढ़ता लगाव भी एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है । आज बच्चे अपने भोजन में पोषक तत्वों के स्थान पर जंक फ़ूड को अधिक वरीयता दे रहे हैं और बचपन से ही संतुलित आहार नहीं ले रहे । आंकड़ों के अनुसार 6 से 23 महीने की उम्र के 44 फीसदी बच्चों को भोजन में फल या सब्जियां नहीं मिलती जबकि 59 फीसदी बच्चों दूध, दही, अंडे, मछली और मांस आदि नहीं मिल रहा । छह महीने से कम उम्र के 5 में से केवल 2 शिशुओं को अपनी मां का दूध मिल रहा है । जबकि वैश्विक स्तर पर डिब्बा बंद दूध की बिक्री 41 फीसदी बढ़ गयी है । जो साफ संकेत है की बच्चों को जरुरी स्तनपान नहीं कराया जा रहा । ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब परिवारों के 6 से 23 महीने की उम्र के केवल 5 में से 1 बच्चे को पोषित आहार नसीब हो सका । स्कूल जाने वाले बच्चों में फ़ास्ट फ़ूड के सेवन का चलन भी बढ़ता जा रहा है । आंकड़ों के अनुसार 42 फीसदी बच्चे दिन में कम से कम एक बार सॉफ्ट ड्रिंक्स (कार्बोनेटेड) का सेवन करते हैं, जबकि 46 फीसदी सप्ताह में कम से कम एक बार फास्ट फूड जरूर खाते हैं । यही वजह है जिसके चलते वैश्विक स्तर पर पांच साल से कम आयु के 34 करोड़ बच्चों में जरूरी विटमिनों और खनिज पदार्थों की कमी पायी गयी ।

कुपोषण, भारत के लिए भी है एक बड़ी समस्या

भारत में हालात और भी बदतर हैं जहां करीब 50 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं । जिसका परिणाम ने केवल उनके बचपन पर पड़ रहा है बल्कि उनका भविष्य भी अंधकारमय हो रहा है । हाल ही में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रेशन द्वारा भारत के सभी राज्यों में कुपोषण की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी । जिसके अनुसार वर्ष 2017 में देश में कम वजन वाले बच्चों के जन्म की दर 21.4 फीसदी रही। जबकि जिन बच्चों का विकास नहीं हो रहा है, उनकी संख्या 39.3 फीसदी, जल्दी थक जाने वाले बच्चों की संख्या 15.7 फीसदी, कम वजनी बच्चों की संख्या 32.7 फीसदी, अनीमिया पीड़ित बच्चों की संख्या 59.7 फीसदी और अपनी आयु से अधिक वजनी बच्चों की संख्या 11.5 फीसदी पाई गई थी। हालांकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के कुल मामलों में 1990 के मुकाबले 2017 में कमी आई है। 1990 में यह दर 2336 प्रति एक लाख थी, जो 2017 में 801 पर पहुंच गई है, लेकिन कुपोषण से होने वाली मौतों के मामले में मामूली सा अंतर आया है।  1990 में यह दर 70.4 फीसदी थी, 2017 में जो 68.2 फीसदी ही पहुंच पाई। यह एक प्रमुख चिंता का विषय है, क्योंकि इससे पता चलता है कि कुपोषण का खतरा कम नहीं हुआ है।

स्पष्ट है कि हम इस समस्या को जितना समझ रहे है, यह उससे कई गुना बड़ी है । आज हमारी वरीयता सिर्फ बच्चों का पेट भरना न होकर उन्हें एक संतुलित और पोषित आहार देने की होनी चाहिए । जो न केवल राष्ट की जिम्मेदारी है बल्कि परिवार को भी इसमें अपनी भूमिका समझनी होगी ।

https://youtu.be/-jl05KaXTLg?si=EbKclnkAraOCIHaX

साय का संविदा प्रेम...

साय का संविदा प्रेम...


मुख्यमंत्री बनने से चूक गये अरूण साव अब उपमुख्यमंत्री बनने के बाद ऐसा कोई मौका छोड़‌ना नहीं चाहते जो एक मुख्यमंत्री के हिस्से में न आता हो।  भारी भरकम कई विभाग संभाल रहे अरुण साव के किस्से अब बाहर आने लगे हैं तो इनकी वजह उनका संघ प्रेम भी है लेकिन कहा जाता है कि संघ प्रेम के साथ साथ वे संविदा प्रेमी भी बन गये हैं।

हिंग लगे ने फिटकिरी और रंग चोखा की तर्ज पर चल  इस खेल में नियम कायदों को ताक में रखकर  सेवानिवृत कर्मचारियों और अधिकारियों को संविदा नियुक्ति देने की चर्चा है ओर चर्चा तो उन लोगों को संविदा देने की भी है जो लेन-देन में खूब विश्वास रखते हैं, लेकिन अरुण साव का संबंध आरएसएस से है इसलिए वे इसमें कितना माहिर है, समझा जा सकता है।

चुनाव के पहले प्रदेश अध्यक्ष बनकर उन्होंने जो भूमिका निभाई थी, अब उसकी भी परते उघड़‌ने लगी है और अब उपमुख्यमंत्री बनकर वे कितनी सावधानी बरत रहे हैं वह भी काम नहीं आ रहा है।

कहा जाता है कि असल में उनका मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की बड़ी वजह वे खुद भी नहीं तलाश पाये हैं, रमन सिंह ओपी चौधरी से लेकर संघ के एक बड़े पदाधिकारी हो या संगठन का काम देखने. चुनाव के दौरान दिल्ली से भेजे गये लोग ।

लेकिन अब अरुण साव किसी को भी कोई मौका देना नहीं चाहते इसलिए वे फूंक फूंक कर कदम तो उठा रहे हैं लेकिन ख़ैर, खून, खाँसी ख़ुशी के साथ प्रेम भी कहां छिपता है।

विरासत सँभाले या खुद को…

 विरासत सँभाले या खुद को…


शुक्ल बंधुओं की राजनीति को आगे बढ़ाने में लगे अमितेष शुक्ल की स्थिति इन दिनों इतनी खराब है कि घर में भी उनकी बातें नहीं सुनी जाने की चर्चा आम हो गई है।

एक समय था जब चाचा विद्याचरण की तूती पूरे देश में बोलती थी तो श्यामाचान शुक्ल का अपना प्रभाव था और उसी प्रभाव के चलते वे जब पहली बार राजिम से विधायक बने तो इस विरासत  को आगे बढ़ाने  का दावा भी किया जा रहा था, बावजूद इसके कि उसमें खाने-खजुआने के अलावा और कोई विशेष गुण नहीं है।

राज्य बनने के बाद तो जिस ताह से अजीत जोगी ने राजनीति की, उसे समझ पानी में अमितेष इस कदर मुश्किल में पड़ गये कि चुनाव ही हार गये। दोहजार अट्ठारह के चुनाव में कांग्रेस की लहर की वजह से पचास हजार वोट से जीत हासिल कर अपने को फिर से तुर्मखां समझने लगे। लेकिन रोहित साहू से फिर वे मात खा गये।

ऐसे में अब प्रतिष्ठा बचाने की बात तो दूर अगले चुनाव में टिकिट भी मिल पायेगी कहना मुश्किल है, तब निष्ठावान कार्यकताओं ने भी पल्ला झाड़‌ना शुरु कर दिया है। इसकी दो तरह की चाय के अलावा भी दूसरी वजह की चर्चा भी खूब जमकर चल रही है।अब अमितेश के सामने दिक़्क़त सिर्फ़ खाने की ही नहीं, निकालने की भी है…!

बुधवार, 26 जून 2024

सीजीपीएससी घोटाला- आरोपियों से साँठ-गाँठ…

 सीजीपीएससी घोटाला

सीजीपीएससी घोटाला- आरोपियों से साँठ-गाँठ…



छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार के दौरान हुए सीजीपीएससी घोटाले को लेकर अब वित्र मंत्री ओपी चौधरी की भूमिका को लेकर सवाल उठने लगे हैं। वहीं इस मामले को सीबीदाई को सौंप तो दिया गया है लेकिन अभी तक सीबीआई के जांच शुरू नहीं करने को लेकर कई तरह के सवाल भी उठने लगे हैं।

सूत्रों की माने तो इस घोटाले में जिस तरह के  नाम सामने आये हैं उन्हें बचाने की कोशिश अब उच्च स्तर पर भी होने लगी है और कहा जाता है कि सीबीआई को केन्द्र सरकार की हरीझंडी का इंतजार है लेकिन गृह मंत्री अमित शाह ने अभी तक हरिझंडी नहीं दी है तो उसकी वजह छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा किया गया खेल है। और अब चर्चा इस बात की भी बड़ी होने लगी है कि यहां के एक मंत्री ने ही अमित शाह से जांच को लेकर निवेदन किया है।

ज्ञात हो कि सीजीपीएससीघोटाले के मामले को न केवल भाजपा ने तूल दिया था बलि देश के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने भी विधानसमा चुनाव के दौरान  घोटालेबाजों को सजा दिलाने की गारन्टी दी थी। यही नहीं सत्ता आने के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और वित्तमंत्री ने तत्परता भी दिखाई थी लेकिन कहा जाता है कि अब इसमें खेल हो गया है । 


इधर सूत्रों का कहना है कि सांठगांठ के आरोप से बचने मीडिया में झूठी खबर भी प्रकाशित कराई गई कि सीबीआई की टीम ने  जांच शुरु कर दी है। जिसका पीएससी को खंडन करना पड़ा। इस खेल में कौन कौन  शामिल है कहना मुश्किल है लेकिन कहा जा रहा है कि आरोपियों ने ज़बरदस्त साँठ गाँठ कर ली है।

क्या है घोटाले की कहानी…

परीक्षा का नोटिफिकेशन साल 2021 में जारी किया था. भर्ती के लिए कुल पद 171 थे। परीक्षा का प्री एग्जाम 13 फरवरी 2022 को कराया गया ।

छत्तीसगढ़ पब्लिक सर्विस कमीशन (CGPSC). जिसका काम राज्य में विभिन्न विभागों में भर्तियां कराने का होता है. इसी में से एक भर्ती राज्य सरकार के प्रशासनिक पदों पर बैठने वालों के लिए आयोजित कराई जाती है. इसके तहत DSP, डिस्ट्रिक्ट एक्साइज ऑफिसर, ट्रांसपोर्ट सब-इंस्पेक्टर, एक्साइज सब-इंस्पेक्टर जैसे पदों के लिए भर्ती होती है. ऐसी ही एक भर्ती में 18 अभ्यर्थियों के सिलेक्शन पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

सूत्रों के मुताबिक CGPSC के चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी, राजभवन सेक्रेटरी अमृत खलको समेत कई अधिकारियों के बेटे-बेटियों और करीबी रिश्तेदारों को डिप्टी कलेक्टर और DSP जैसे पदों पर नियुक्ति देने के आरोप लगे हैं. मामले को लेकर पूर्व बीजेपी नेता ननकी राम कंवर ने हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की है। परीक्षा का प्री एग्जाम 13 फरवरी 2022 को कराया गया. जिसमें कुल 2 हजार 565 पास हुए थे. इसके बाद आई मेंस एग्जाम की बारी. 26, 27, 28 और 29 मई 2022 को मेंस परीक्षा कराई गई. जिसमें कुल 509 अभ्यर्थी पास हुए. इनको इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. जिसके बाद 11 मई 2023 को परीक्षा का फाइनल रिजल्ट जारी हुआ. 170 अभ्यर्थियों का इसमें फाइनल सिलेक्शन हुआ. 

छत्तीसगढ़ में सीजीपीएससी का मामला कोर्ट में है और  16 अक्टूबर को इसकी सुनवाई भी हुई है। जिसमें पीएससी ने हाई कोर्ट में जवाब भी पेश किया। वहीं, दूसरी ओर बीजेपी शुरू से लेकर अंत यानि अब चुनाव होने हैं इसे बड़ा मुद्दा बनाने से बिल्कुल भी पीछे नहीं हटी है।

पीएससी ने बीजेपी के आरोप को खारिज किया था


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पीएससी ने जो जवाब पेश किया है उसमें आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया गया है। आरोप ख़ारिज करते हुए परीक्षा की प्रक्रिया का उल्लेख है। पीएससी ने बताया है कि कॉपी की जांच करने वाले को पता नहीं होता कि किसकी कॉपी है। साथ ही यह भी फिक्स नहीं है कि कौन सी कॉपी कहां जाएगी।

https://youtu.be/7zDegYnq3xQ?si=qJX_4EQju_r1V8pZ


लखन लाल की लीला ...

 लखन लाल की लीला ...


विष्णुदेव साय सरकार के उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन की महापौर बनने से लेकर विधायक और फिर मंत्री बनने की अपनी अलग ही कहानी है। कहते हैं कि लीला दिखाने में माहिर लखनलाल की मुश्किल यह है कि वे सत्ता में चल रही आपानी खींचतान में फँस गये हैं, और हालत यह है कि उन्हें उनको लिलाओं की वजह से चेतावनी भी मिल चुकी है।

ऐसा भी नहीं है कि उद्योग जैसे भारीभरकम विभाग को चलाने में उन्हें कोई दिक़्क़त है। क्योकि महापौर रहते हुए उन्होंने उद्योगों के खेल को बड़ी ही नज़दीक से समझा और जाना है और जमीन भी खूब नापा है। आखिर कोरबा में जयसिंह आग्रवाल को साधना आसान भी नहीं है। लेकिन अब जिस तरह से चेतावनी मिली है उससे वे हतप्रभ है। उनने पद संभालते ही जिस तरह से स्पेशल ब्लास्ट फ़ैक्ट्री में विस्फोट हुआ वह तो जैसे तैसे निपट गया। लेकिन अब उद्योगों में जो समस्या है वह उनके गले का फांस बनता जा रहा है। श्रम क़ानून के उल्लंघन का मामला तो जैसे तैसे टाल ही दिया गया, क्योंकि गरीबों का कोई पूछने वाला नहीं होता। 

लेकिन मंत्रीमंडल के सदस्यों की बढ़‌ती सिफारिशों ने उनके लीला दिखाने के मार्ग में जरूर रोढ़ा बनता जा रहा है, उपर से अडानी की कंपनियों के विस्तार के अलावा उघोगों को दी जाने वाली छूट का  ऐसे ऐसे मामले सामने है कि एक कुँआ तो दूसरी तरफ खाई की स्थिति बन गई है। किसी और की नहीं उन पर खजाना संभालने वाले मंत्री की नजर है जो अमित शाह के करीबी तो है ही, प्रशामनिक अफसरों को भी अपनी मुट्ठी में कसकर बांध रखा है। तब उन्हें कैसी कैसी लीला करना पड़ रहा है, बता भी नहीं पा रहे हैं।

गोपाल का ग़ुस्सा…

 गोपाल का  ग़ुस्सा…


यह तो आ बैल मुझे मार की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना शांत स्वभाव के माने जाने वाले संधी गोपाल कृष्ण अग्रवाल ऐसे समय में मोदी-शाह पर गुस्सा कतई नहीं करते जब मोदी- शाह की ताकत के आगे भाजपाई भीगी बिल्ली बने बैठे हैं।

कभी अपने पीडीएम के जरिये गद्रे भवन से लेकर आदिवासी कल्याण आश्रम को रसद पहुंचाने के लिए चर्चित गोपाल कृष्ण अग्रवाल की पहचान सिर्फ इतनी भर नहीं है कि वे संघ के महानगर प्रमुख भी रह चुके हैं। और संघ के दमदार नेताओ में गिने जाते हैं।  उनकी एक पहचान तो मोहन सेठ के बड़े भाई के रूप में भी है। वही मोहन सेठ जिसकी इन दिनों पार्टी में जमकर छिछालेदर ही नहीं बे-इज्जती करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा जा रहा है।


और शायद यही वजह है कि गोपाल अग्रवाल का भाई प्रेम जाग गया और वे फेस बुक पर मीडिल क्लास की तकलीफों के बहाने  वह बात लिख गये जो दिल्ली की सत्ता को पसंद नहीं आने वाला है।



गोपाल अग्रवाल ने जो लिखा वह तो लिखा ही उनको खुश करने के चक्कर तारीफ में कई भाजपाई उनकी तारीफ़ कर गये। इनमें से एक छगनलाल मुंदड़ा जैसे भाजपाई भी है जो मोहन सेठ के विरोधियों के साथ खिच‌ड़ी पकाते रहते है। मुंदड़ा ने तारीफ क्यों की इसकी अपनी कहानी है, कहा जाता है कि वे कुछ बड़ा खेल करने वाले हैं जिसमें साथ चाहिए।लेकिन सत्ता जाते ही दान-पत्र से जमीन देने की पीड़ा झेल रहे गोपाल अग्रवाल ने फेसबुक पर यह पोस्ट क्या मोहन सेठ के कहने पर लिखी है या फिर साय सरकार से कोई काम निकलवाने द‌बाव की राजनीति है।

सवाल तो कई हैं लेकिन इस पोस्ट की चर्चा के अब दिल्ली पहुंचने की चर्चा है और लोगों से क्रिया की प्रतिक्रिया का इंतजार...!

अंजय शुक्ला की दावेदारी ने कई लोगों की नींद उड़ा दी



बृजमोहन अग्रवाल के विधायकी से इस्तीफे के बाद रायपुर दक्षिण विधानसमा के लिए भाजपा में दावेदारों की फेहरिश्त है लेकिन जब से रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष अजय शुक्ला की दावेदारी सामने आई है अन्य दावेदारों में हड़‌कम्प
मच गया है। हड़‌कम्प मचने की वजह उनका युवाओं में प्रभाव के अलावा  राजनैतिक शैली है जो किसी को भी प्रभावित कर सकता है। कहा जाता है कि भाजपा के निर्धारित मापदंड में वे खरे तो उतरते ही हैं दक्षिण के रहवासी होने का भी उनको लाभ हैं।

दक्षिण के दावेदार...

भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज विधायक बृजमोहन अग्रवाल की विधायकी छुड़‌वाने के बाद अब पार्टी यहाँ किसे टिकिट देगी यह तो मोदी-शाह ही तय करेंगे लेकिन भाजपा में दावेदारों ने पार्टी की मुसिबत बढ़ा दी है।

दाबेदारों में ऐसे ऐसे नाम सामने आ रहे हैं जिनकी कल्पना ख़ुद भाजपा के स्थानीय नेताओं ने नहीं की थी, और  इनमें से  कुछ दावेदार तो ऐसे हैं जो वार्ड का चुनाव भी नहीं जीत पाये हैं लेकिन उन्हें लगता है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार और बृजमोहन अग्रवाल  की बोई फ़्रसल आसानी से चुनाव जीतवा देगा। ऐसे में कई लोग ऐसे हैं जो खामोशी से अपनी टिकिट का इंतज़ार कर रहे हैं। पार्टी नेताओ का भी मानना है कि दक्षिण में इस बार जो नाम आयेगा वह चौंकाने वाला होगा।

चौकाने वालो नाम कौन होगा यह कहना मुश्किल है लेकिन क्या वह दक्षिण विधानसभा का  रहने वाला होगा ? यह सवाल अब बड़ा इसलिए हो गया है क्योंकि अब तक यहाँ चुनाव जीतने वाले मोहन सेठ पश्चिम के निवासी थे, और दक्षिण के दावेदार उनके नाम और ताकत की वजह से विरोध तो छोड़िये दावेदारी भी नहीं करते थे।

ऐसे में पार्टी के भीतर इस बार दक्षिण से ही किसी को टिकिट देने की माँग जोर शोर से उठाई जा रही है तो इसकी बड़ी वजह  मोहन सेठ की पसंद की अनदेखी करना भी है।


कहा जाता है कि दक्षिण से ही उम्मीदवार हो यह माँग सबसे पहले केदार गुप्ता ने उठाई थी, और चर्चा तो इस बात की भी है कि उन्होंने इस मांग को हवा देने का खेल भी किया।जड़ी-बूटी  वाले एक मामले में भूपेश सरकार के दौरान विवाद में आने वाले केदार गुप्ता पर लोकसभा चुनाव के दौरान मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर खेल होने और करने के भी किस्से हैं।

दरअसल  टिकिट को लेकर पार्टी की दिक़्क़त यह भी है कि दक्षिण से ही कई नेता ऐसे हैं जो दमदार माने जाते हैं, बेमेतरा के लिए टिकिट वितरण  में विलम्ब होने की वजह वाले योगेश तिवारी  के लिए भी कई लोग लगे हैं तो, सिंधी समाज के गुरु भी दावेदार हैं, इसके अलावा मीनल चौबे, मृत्युंजय दुबे भी दावेदारों की फेहरिश्त में शामिल है तो कहा जा रहा है कि यूनिर्वसिटी प्रेसिडेंट रहे अंजय शुक्ला  की दावेदारी भी बेहद मजबूत है। वे दक्षिण के रहवासी भी है तो काली माई मंदिर के ट्रस्टी  भी है, यानी भाजपा जिस धर्म के घालमेल  पर विश्वास करती है उसमें अंजय शुक्ला  भी फिट बैठते हैं ,।


कहा जा रहा है कि छात्रनेता से राजनीति में आने वाले अजय शुक्ला को  बृजमोहन अग्रवाल का  बेहतर विकल्प भी माना जा रहा है। और कहा तो यहां तक जा रहा है कि अजय को टिकिट देने से पुराने छात्र नेताओ का साथ  भाजपा को उसी तरह से मिलेगा जैसे बृजमोहन अग्रवाल को मिलता रहा है।

दावेदारों की लंबी सूची होने की एक बड़ी वजह प्रदेश  में सरकार होना भी है। ऐसे में जब फैसला मोदीशाह की जोड़ी को करना है तो किसका भाग्य खुलेगा कहना मुश्किल है।

मंगलवार, 25 जून 2024

केदार का करामात...

केदार का करामात...


रमन राज में अपनी करामात दिखा चुके प्रदेश के वन मंत्री केदार कश्यप के बारे में वन कहा जाता है कि सब सुधर जाये तो सुधर जाये केदार नहीं सुधरेंगे ? और यही वजह है कि अपनी हरकतों की वजह से  2018 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। और इस बार भूपेश विरोधी लहर में चुनाव जीतने के बाद साय सरकार ने उन्हें मंत्री तो बना दिया लेकिन वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं और एक बार फिर अपनी करामात दिखाना शुरु कर दिया है।

दरअसल केदार कश्यप की अपनी पहचान क्या है कहना मुश्किल है। वे बस्तर के कद्‌दावर माने जाने वाले नेता स्व बलिराम कश्यप के पुत्र है। बलिशम कश्यप की दबंगई के सामने पार्टी में पटवा - लखीराम गुट पानी मांगते थे । लेकिन केदार कश्यप की राजनीति को लेकर कहा जाता है कि स्व-बलिराम जितने दबंग थे  केदार कश्यप उतने ही पिलपिले हैं। तो वे पिलपिले है या नहीं यह ये कहना कठिन है। लेकिन छत्तीसगढ़ में वन मंत्री के मायने क्या यह किसी से छिपा नहीं है। इससे पहले रमन राज में वन मंत्री रहे विक्रय उसेंडी को लेकर जो चर्चा उसी तरह की चर्चा अव एक बार फिर शुरू हो गई है। कैम्पा मद से लेकर जंगल तस्करों से अधिकारियों के खेल की केदार कश्यप अब समझ चुके हैं, लेकिन कितना समझे हैं इसका तो पता नहीं लेकिन उनके करामातों की चर्चा जब राजधानी पहुंची तो उन्हें चेतावनी मिलने की भी चर्चा है।

कहा जाता है कि इस चेतावनी के बाद खेल तो बदल गया है लेकिन करामात जारी है।

योगी अब मोदी के ख़िलाफ़ खुलकर आये

 मोहन भागवत से मुलाक़ात होते ही योगी ने मोदी से दो -दो हाथ करने की तैयारी कर ली 

अमित शाह और योगी का बैर किसी से छिपा नहीं है

लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बुरी गत के लिए बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई ही ज़िम्मेदार है

ऐसे में क्या मोहन भागवत ने योगी से मुलाक़ात कर उन्हें ताक़त दे दी है


सूत्रों की माने तो संघ प्रमुख और योगी के बीच मुलाकात शनिवार को ही दो बार हुई। पहले तो दिन में गोरखपुर कैंपियरगंज इलाके में संघ की एक बैठक के दौरान हुई। वहीं सूत्रों की मानें तो शहर के पक्कीबाग इलाके में स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिलने सीएम योगी पहुंचे थे। इस दौरान दोनों के बीच बंद कमरे में करीब 30 मिनट तक बातचीत हुई।

सूत्रों की माने तो संघ प्रमुख का गोरखपुर में आकर सीएम योगी से मिलना एक सामान्य मुलाकात नहीं है। इसके कई मायने है। बीते चुनाव में यूपी में भाजपा की हुई हार को लेकर लंबी चर्चा होने का अनुमान है। जहां पहले तो बीजेपी मजबूत स्थिति में नजर आ रही थी।

 जानकारी के अनुसार बुधवार को गोरखपुर पहुंचने के बाद से ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने क्षेत्र के सभी पदाधिकारियों के साथ बैठक करके चुनावी रिपोर्ट ली।

इधर सूत्रों का दावा है कि संघ प्रमुख के सामने योगी ने अमित शाह की मनमानी की वजह से यूपी में बीजेपी की स्थिति पर पूरी रिपोर्ट ही नहीं दी बल्कि ये आश्वासन भी ले लिया कि अब वे यूपी में किसी को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

कहा जा रहा है कि इस मुलाक़ात ने योगी की ताक़त बारह दी है और वे अब मोदी से दो दो हाथ को तैयार है। देखना है कि वे सिर पर बैठे दो उपमुख्यमंत्रियों का क्या करते हैं।

https://youtu.be/ZEi1Xf4cozg?si=83syd5YQa86B_YPL

सोमवार, 24 जून 2024

चोपड़ा पर भारी, सेठ की यारी...

चोपड़ा पर भारी 

सेठ की यारी...


महासमुंद से  निर्दलीय चुनाव लड़‌कर विधायक बन चुके विमल चोपड़ा को उम्मीद है कि भारतीय जनता पार्टी की साय सरकार उन्हें इस बार लाल बत्ती दे ही देगी। दो बार भाजपा को आँख दिखाकर चुनाव लड़ चुके विमल चोपड़ा की परेशानी ये है कि भाजपा की टिकिट पर वे चुनाव नहीं जीत पाये और न ही राजधानी वाले सेठ की यारी ही छोड़ पा रहे हैं।

और जब रायपुर वाले सेठ को ही साय सरकार पसंद नहीं करती तो फिर लाल बत्ती के सपने का क्या होगा । कहते हैं कि भाजपा से बार-बार बगावत करने की वजह से महासमुद्र के भाजपाई उन्हें पसंद नहीं करते हैं और लाल बत्ती की चर्चा ने उनके विरोधियों को लामबंद कर दिया है, हालांकि वे इन दिनों संगठन और रमन सिंह का खूब चक्कर लगा रहे हैं।क्योंकि सेठ की हालत क्या है वह किसी से छिपी नहीं है, सेठ की हालत ऐसी है कि अपना धोए या…।

वैसे भी सेठ की राजनीति का केंद्र रामपुर है और वे विमल चोपड़ा की बजाय मोहन चोपड़ा पर ज्यादा दांव लगाने में विश्वास रखतें है, यही कारण है कि पिछ‌ली बार माहेन चोपड़ा को बच्चों वाले विमाग में बिठाने में वे सफल हो गये थे क्योंकि तब रंगा-बिल्ला की धमक नहीं थी।और नाम ख़राब करने वाले बिल्डर्स को सब बर्दाश्त कर गये।

ऐसे में कहा जा रहा है कि विमल चोपड़ा इन दिनों सफाई देते घूम रहे हैं कि उनका सेठ से  कोई लेना-देना नहीं है लेकिन सच छुपने की चीज तो है नहीं।इसलिए लालबत्ती की होड़ में यदि सेठ को गाली भी देना पड़े तो क्या हुआ, राजनीति में सब जायज़ है।लेकिन सेठ ऐसे वैसे तो है नहीं, इसलिए लालबत्ती की राह का यह रोढ़ा हटाना आसान काम नहीं है।

साय की मुश्किलें क्यों बढ़ी

 छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की मुसीबत बढ़ी, चौतरफ़ा दबाव

मोदी मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ को पर्याप्त महत्व नहीं देने के अलावा बलौदाबाज़ार हिंसा मॉब लिंचिंग के अलावा इन मुद्दों के साथ पार्टी में अंदरूनी झगड़े ने साय की मुश्किलें बढ़ा दी


मोदी मंत्रिमंडल में  छत्तीसगढ़ को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने को लेकर कांग्रेस ने साय सरकार पर ज़बरदस्त हमला किया है । राज्य बनने के बाद से ही  बीजेपी को छत्तीसगढ़ से बम्फ़र जीत मिलते रही है लेकिन यहाँ से मंत्री बनाने के मामले में मोदी सत्ता के द्वारा अनदेखी पर अब सवाल उठने लगे है ।

कांग्रेस नेता चरणदास महंत ने तो साय सरकार से इस्तीफ़े की माँग भी कर दी है तो दूसरी तरफ़ बलौदा बाज़ार हिंसा को लेकर भी गृह मंत्री निशाने पर हैं।

इधर मंत्रिमंडल  और निगम मंडल में नियुक्ति भी  पार्टी के भीतर लड़ाई को तेज कर दिया है 

कहा जा रहा है कि सरकार के क्रियाकलाप को लेकर अब आम कार्यकर्ताओं में भी असंतोष पनपने लगा है 

ऊपर से वित्त मंत्री ओपी चौधरी की प्रसाशनिक चौधराहट के क़िस्से ने सरकार के लिए नई मुसीबत पैदा कर दी है।

https://youtu.be/-YMK5r525mw?si=yjhlVeCaAwNkhTm9

नीट-प्रेमी साय…

साय का नीट प्रेम...


इन दिनों पूरे देश में नीट को लेकर हंगामा मचा है, समूचा विपक्ष इस मामले में मोदी सत्ता पर हमलावर है, तो शराब प्रेमियों का  नीट को लेकर अलग ही नजरिया है, कुछ इसे सेहत के लिए नुकसानदेह मानते हैं तो कुछ लोग तो नीट ही मार देते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में तो महुआ का शराब ही चलता है, जिसमें न तो पानी न बर्फ का ही हस्तेमाल होता है। और ऐसा भी नहीं है कि सभी आदिवाली महुआ ही पीते हैं। कुछ तो शहरी क्षेत्रों में आकर बढ़ि‌या विदेशी शराब का सेवन करते हैं।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी आदिवासी वर्ग से आते हैं लेकिन उनकी रुचि इसमें है या नहीं किसी को नहीं पता। लेकिन इन दिनों चर्चा उनके नीट प्रेम की है।


कहा जाता है कि सत्त्रा मिलते ही विष्णु देव साथ के सामने सबसे बड़ी चुनौति सीजीपीएससी के घोटाले को निपटाना था । तो उन्होंने सबसे पहला काम इस मामले को सीबीआई को सौंप कर पूरा कर दिया। फिर घपला न हो इसके लिए उन्होंने जो कदम बढ़ाया वह था प्रदीप जोशी को सलाहकार बनाना। प्रदीप जोशी मध्यप्रदेश वाले व्यापाम कांड का चर्चित चेहरा, -प्रदीप जोशी यानी एन टी ए का चेयरमेन । एनटीए मानी नीट का आयोजन कर्ता ।

कांग्रेस ने प्रदीप जोशी को लेकर विष्णुदेव साय सरकार पर हमला भी कर दिया है, कि प्रदीप जोशी को सलाहकार से हटाया जाए। लेकिन हटाना आसान नहीं है क्योंकि प्रदीप जोशी संघ ही नहीं मोदी सरकार के भी खास हैं फिर ओपी चौधरी के मार्फत हुए इस नियुक्ति में कौन-कौन नाराज होंगे कहना मुश्किल है।

ऐसे में भले ही प्रदीप जोशी और एनटीए के चेयरमेन में हो लेकिन उनकी पहचान तो नीट ने ही देश में बढ़ाई है तब भला साय के इस जोशी प्रेम को लोग नीट प्रेम से जोड़ रहे हैं तो भाजपा क्यों तिलमिला रही है।

चला मुरारी हीरो बनने…

 मोहन सेठ की सीट पर राजीव सेठ की नजर...


हर विधानसभा चुनाव में रिकिट के लिए जी तोड़ कोशिश करने वाले भारतीय जनता पार्टी के राजीव सेठ की नजर अब मोहन सेठ की खाली हुई दक्षिण विधानसमा सीट पर लग गई है। यहां उपचुनाव होना है। वैसे तो इस सीट के लिए भाजपा के भीतर ही दर्जन भर दावेदार है और कहा जा रहा है कि जिस तरह से मोहन सेठ को किनारे लगाया गया है उसके बाद एक बात तो तय मानी जानी चाहिए कि यहाँ उसे टिकिट मिलेगी जो बृज‌मोहन अग्रवाल का विरोधी भले ही न हो कम से कम करीबी न हो यानी मोहन सेठ जिसे उँगली में न नचा पाये।

 कहा जाता है कि वैसे तो सभी दावेदार अपने अपने ढंग से टिकिट के लिए जोर आजमाईश कर रहे है लेकिन इन दावेदारों में अशोका रतन वाले सेठ यानी राजीव अग्रवाल ने जोर आजमाईश में कोई कसर बाकी नहीं रखा है। खल्लारी से लेकर रायपुर ग्रामीण से पहले ही दावेदारी कर चुके राजीव सेठ ने संगठन का काम भी किया है और कहा जाता है कि पैसे के दम पर उन्होंने न केवल जिला भाजपा के अध्यक्ष बने बल्कि कई तरह के ज़मीन विवादों को भी निपटाया है। क्या है बिल्डर्स का खेल इस पर चर्चा लंबी है लेकिन उनकी टिकिट की गाड़ी कहां अटक जाती है यह शोध का विषय है। 

ऐसा भी नहीं है कि वे टिकिट के मामले में निरंक हो। पार्टी ने उन्हें दो-दो बार टिकिर दी है वह भी पार्षद का लेकिन वे कभी चुनाव नहीं जीत पाये।

दो बार पार्षद चुनाव नहीं जीत पाने वाले राजीव सेठ को लगता है कि पार्षद का चुनाव छोटा चुनाव है और वे हार इसलिए गये, क्योंकि वार्ड के लोग उन्हें इच्छी तरह से जानते है, और विधानसभा बड़ा चुनाव है दूसरे वार्ड वाले उन्हें कम जानते है इसलिए' 'कमल' के ज़रिए चुनाव जीत ही जायेंगे। 

अब ये अलग बात है कि अभी शहर इतना बड़ा भी नहीं हुआ है कि राजीव सेठ क्या हैं लोगों से छिपा हुआ रह जाये वे क्या बला है।हालाँकि इस बार वे निगम मंडल के लिये भी ताक़त लगाये हुए है लेकिन पार्टनर के कारण यह भी बाधित न हो जाये।


अग्निवीर को बंद से कम पर तैयार नहीं युवा

 अग्निवीर योजना को लेकर कांग्रेस के रुख़ से मोदी सत्ता की नींद उड़ी 


अग्निवीर योजना के शुरुआत से ही इसे बेरोज़गारों से छल बताया जाता रहा है लेकिन मोदी सत्ता के अड़ियल रुख़ के चलते तमाम विरोध का मतलब नहीं रह गया था। अब जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना दिया तो मोदी सरकार उसने बदलाव को तैयार तो हो गई है लेकिन इस बदलाव को कांग्रेस मानने तैयार नहीं है तब क्या इस योजना को बंद करना ही अंतिम उपाय है 

भारतीय सेना में लाई गई अग्निवीर योजना आजकल चर्चा  का विषय बना हुआ है। आए दिन इस योजना को लेकर कई सवाल खड़े कर रहे हैं। वहीं हरियाणा के रोहतक लोकसभा से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने अग्निवीर योजना को लेकर कुछ बातें रखी। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से एक बात सामने आ रही है कि सेना के इंटरनल सर्वे में 'अग्निपथ' से जुड़ी बहुत सारी खामियों का जिक्र किया जा रहा है।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि उनमें से कुछ बातें निकलकर सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा कि अग्निवीर की नौकरी 4 साल से बढ़ाकर 7 साल की जा सकती है। साथ ही, 25 प्रतिशत की जगह 60-70 फीसदी जवानों को रिटेन किया जा सकता है। साथ ही अग्निवीरों की ट्रेनिंग पीरियड को बढ़ाया जाए। दीपेंद्र हुड्डा ने साफ किया कि कांग्रेस पहले ही कहती है कि ये योजना न तो देश के हित में, न सेना के हित में और न ही युवाओं के हित में है। हमारा शुरू से कहना है कि इस योजना को रोका जाए, और फौज की पक्की भर्ती दोबारा से शुरू की जाए। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि इस योजना की खामियों और गलतियों को सरकार स्वीकारे औप पूर्ण रूप से इस योजना को वापिस लिया जाए। साथ ही पक्की भर्ती जो अग्निपथ योजना 2022 से पहले देश में होती रही देश की फौज में उस पक्की भर्ती को पूर्ण रूप से दोबारा शुरू किया जाए। दीपेंद्र ने कहा कि रिपोर्ट बता रही हैं कि ये योजना देश की फौज के लिए बड़ी घातक योजना साबित हुई।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सेना की इंटरनल रिपोर्ट में कुछ बातें निकलकर सामने आई हैं। जिसमें एक ये कि अग्निवीर योजना से सेना के मनोबल, आपसी भाईचारे और एक-दूसरे के लिए मर-मिटने की भावना में गिरावट आई है। जो कि फौज के मनोबल के लिए ठीक नहीं है। दूसरा ये कि अग्निवीरों की 6 महीने की ट्रेनिंग का समय पर्याप्त नहीं है। इसलिए ट्रेनिंग पीरियड को 37 से 42 हफ्ते तक बढ़ाने की बात कही जा रही है। अग्निवीर से सेना भर्ती में कमी आई है और ये कहा जा रहा है कि 2035 तक सेना में भारी शॉर्टफॉल देखने को मिलेगा। दीपेंद्र ने बताया कि इन सभी बातों को देखते हुए कुछ अहम कदम उठाए जाएंगे।

दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अग्निवीर योजना को सिरे से ख़ारिज करती है। उन्होंने कहा कि ये कोई राजनीतिक विषय नहीं है, क्योंकि देश की फौज कभी राजनीति का विषय नहीं हो सकती। दीपेंद्र ने कहा कि सरकार से मांग करती है कि सेना में पहले की तरह पक्की भर्ती शुरू की जाए। हुड्डा ने कहा कि चुनावी नतीजों में स्पष्ट दिखता है कि जिन राज्यों के युवा फौज में सबसे अधिक भर्ती होते हैं वहां से भाजपा को लॉस हुआ है। 

गौरतलब है कि लोकसभा के चुनावी कैंपेन के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी हर रैली में अग्निवीर योजना को कूड़ेदान में डालने की बात करते थे। जिसका फायदा भी कांग्रेस पार्टी को चुनाव में हुआ। हालांकि कांग्रेस सत्ता में नहीं आई, लेकिन अब संसद में अग्निवीर के मुद्दे को जोर शोर से उठाने की तैयारी है।

कांग्रेस ने साफ़ कहा कि यह योजना ना देश के सुरक्षा के हित में, ना देश के नौजवान के हित में, और न देश के हित में पाई गई और ना ये योजना भाजपा के घोषणा पत्र में थी तो आखिर ये योजना लाए कैसे गई। ना ही इस योजना को लागू करने की कोई मांग कर रहा था। दीपेंद्र ने सरकार से सवाल किया कि किसके सुझाव पर यह योजना लेकर आई, जो देश की फौज के लिए नुकसान साबित हुई।

इधर बीजेपी इस योजना को हर हाल में जारी रखना चाहती है लेकिन युवाओं ने जिस तरह से इस योजना के ख़िलाफ़ खड़ा होने लगे हैं उससे संघ के भी पसीने छूट गये हैं और अब कहा जा रहा है कि संघ ने भी इस योजना को बंद करने कह दिया है। अब देखना है कि एनडीए के बाक़ी दलों का क्या रुख़ रहता है।

https://youtu.be/aslptx5g9P8?si=94BVnHUibnBu4fkp

रविवार, 23 जून 2024

रामगोपाल की सेटिंग...

 रामगोपाल की सेटिंग...


छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल लगभग साल भर से फ़रार है, ईडी की गिरफ्तारी से बचने के लिए रामगोपाल अग्रवाल फरार हो गये हैं। लेकिन उनके बारे में भाजपा भी बोलने के लिए तैयार नहीं है। और कांग्रेस ने तो इस फरार कोषाध्यक्ष के आसरे विधानसमा ही नहीं लोकसभा का चुनाव मी निपटा दिया, यह अलग बात है कि इन दोनों चुनाव में कांग्रेस भी निपट गई।

तब क्या दीपक बैज़ रामगोपाल की जगह किसी और को कोषाध्यक्ष बना पायेंगे या फिर अब रामगोपाल अग्रवाल के पद का फैसला कोई और ही करेंगे?  लेकिन यदि बग़ैर कोषाध्यक्ष के भी  कोग्रेस दो-दो चुनाव लड़ गई और खर्चा भी ठीक-ठाक चल रहा है, कांग्रेस भवन के कर्मचारियों के अलावा मीडिया मैनेजमेंट भी हो रहा है तो इसका मतलब क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि भले ही रामगोपाल ईडी या पुलिए की नजर में फरार हैं लेकिन उनका मैनेजमेट तगड़ा है और इस तगड़े मैनेजमेंट की वजह क्या मारूति वाले सूर्यकुमार हैं?

लेकिन रामगोपाल अग्रवाल का मैनेजमेंट सिर्फ कांग्रेस में ही नहीं चलता, भाजपा में भी उनका जबरदात मैनेजमेंट है तभी तो फरार कोषाध्यक्ष को लेकर भाजपा के नेता चूँ-चाँ नहीं कर रहें है ठीक वैसे ही जैसे मोहन सेठ के आगे कांग्रेसी चूं चाँ नहीं करते।

और शायद यह बात ईडी को भी मालूम है तभी तो रामगोपाल अग्रवाल के फरार होने की खबर के साथ सेटिंग की खबर भी बाहर आ गई थी। सेटिंग की खबर तो एक आईपीएस की भी जमकर हो रही है और दोनों ही सेटिंग का सूत्रधार एक ही व्यक्ति को बताया जा रहा है। 

तब ऐसे में कांग्रेस हो को डर भी नहीं है कि भाजपा कुछ बोलेगी तब रामगोपाल को पद से क्यों हटाया जाए।आख़िर रामगोपाल कोई ऐसे वैसे तो नेता है नहीं धमतरी से शुरू उनके राजनीतिक सफ़र का खेल कौन नहीं जानता।

कहाँ गया विवेक...

 कहाँ गया विवेक...


रमन राज से लेकर भूपेश राज तक प्रभावशाली अफसरों में गिने जाने वाले पूर्व मुख्यसचिव विवेक ढांड की गिरफ्तारी को लेकर उठ  रहे सवालों पर अब किसी को जवाब नहीं मिल रहा है तो उसकी वजह क्या उनका वह खेल है जो वे हमेशा ही गुपचुप तरीके से खेला करते हैं और इस खेल के चलते ही गिरफ्तारी से बचे हुए हैं।

दरअसल ईडी के राडार में आने से पहले से ही वे विवादास्पद रहे हैं। कहा जाता है कि विवेड ढाड का विवादों से पुराना नाता है। उज्जैन में कलेक्टरी के दौरान भी वे विवाद में आ गये थे, जांच होती उससे पहले कमिश्नर  तिवारी ने माम‌ला रफा दफा करवा दिया ।

लेकिन जीई रोड क्षेत्र के बेशकीमती जमीन के लीज को लेकर विवाद गहराता उसने पहले रमन-भूपेश ने उन्हें बचा लिया, मामला कोर्ट क्यों नहीं पहुंचा यह आसानी से समझा जा सकता।

लेकिन ताजा मामला घोटाले का है और इस घोटाले में कई धुरंधरों को ईडी ने जेल में डाल रखा है, और रही सही कसर ई ओ डब्ल्यू ने पूरा कर दिया है। अनिल टूटेजा, सौम्या चौरसिया लेकर कई अफ़सर जेल में बंद है।

कहा गया है कि पूरे घोटाले का मास्टर माइंड अभी भी जेल से बाहर है।और वह अपना खेल बड़ी चतुराई से खेल रहा है। तब सवाल विवेक ढाड का है और चार्जशीट में नाम होने के बावजूद यदि  विवेक ढांड बचे हुए हैं तो  भाजपाई भी हैरान है और पूछ रहे हैं, अपनी ही सरकार से , कहाँ है विकेक ढांड...!

शनिवार, 22 जून 2024

कांग्रेस में खलनायक क्यों बन गये ये लोग

 कांग्रेस के ये तीन बड़े नेता किसने निशाने पर


लोकसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने पिछले दो बार के चुनाव से बेहतर प्रदर्शन किया हो लेकिन मध्यप्रदेश राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली ही नहीं कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश - उड़ीसा में उसका प्रदर्शन अत्यंत खराब रहा है। और कहा जा रहा है कि यदि इन राज्यों में कांग्रेस का  प्रदर्शन थोड़ा भी बेहतर होता तो लोकसभा चुनाव के परिणाम कुछ और होते, नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बन पाते। ऐसे में कांग्रेस के उन नेताओं पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं जिन्होंने केन्द्रीय नेत्तृत्व को बेहतर प्रदर्शन  का भरोसा दिलाया था।

सबसे बुरी स्थिति कांग्रेस की कहीं हुई है तो वह मध्यप्रदेश है जहाँ कांग्रेस कोई सीट नहीं जीत पाई। २१ सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष तक बदल दिया था लेकिन यहां के कद्‌दावर माने जाने वाले कमलनाथ भी अपनी सीट नहीं बचा पाये, उनका पुत्र नकुलनाथ बुरी तरह से पराजित हुआ। गांधी परिवार के इस नायक को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं , ऐसे में एक सवाल तो यह भी है कि क्या वे इडी सीबीआई की डर से भाजपा की गोद में जा बैठें हैं, ऐसे में एक सवाल तो यह भी है कि क्या अब कमलनाथ पर भरोसा किया जाना चाहिए। और अब तो कांग्रेसी ख़ेमे  ने उन्हें सबसे बड़ा खलनायक भी सिद्ध करने में लगे हैं।

दूसरा नाम राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का है। अशोक गहलोत भी अपने बेटे को नहीं जीता सके और कहा जा रहा है कि यदि सचिन पायलट ने मोर्चा नहीं संभाला होता तो राजस्थान की स्थिति भी मध्यप्रदेश की तरह हो जाती।

तब छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल क्या अब नायक नहीं रह गये, विधानसमा चुनाव में मनमर्जी चलाकर सत्ता गँवाने वाले भूपेश बघेल यदि लोकासभा का  चुनाव स्वयं हार गये तो इसकी वजह क्या है। क्या सत्ता में बने रहने के दौरान उनपर भ्रस्टाचार का आरोप ही प्रमुख कारण है कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और अहंकार भी एक बड़ा कारण है।

आम कार्यकताओं की नजर में भूपेश बघेल क्यों खलनायक बन चुके है छोर क्या इसकी खबर हाईकमान को नहीं है।

तब उड़ीसा, दिल्ली, झारखंड और हिमाचल में कांग्रेस का खलनायन कोन है। चर्चा तो कई नामों का है ऐसे में कमलनाथ, भूपेश बघेल और अशोक गहलोत को लेकर जिस तरह के सवाल उठ रहे हैं, क्या केंद्रीय नेतृत्व इससे अनभिज्ञ है, या फिर इन तीनों ही नेताओं में सत्ता में बने रहने के दौरान जो पैठ दिल्ली में बनाई है। उसकी वजह ते हाईकमान अंधेरे में है।

कहना मुश्किल है लेकिन इन तीनों ही नेताओ की अपने-अपने राज्यों में छवि बिगड़ चुकी है। ऐसे में आने वाले दिनों में केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय का पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को इंतजार है।

https://youtu.be/KFpFiUcXG60?si=mfGZ330xHlWZzz9C


शुक्रवार, 21 जून 2024

अयोध्या की हार पर कांव-काँव, डीएम और भाजपाई महंत में गुत्थम-गुत्था

 अयोध्या की हार पर कांव-काँव शुरू हो गया है  डीएम और भाजपाई महंत में गुत्थम-गुत्था हुआ वह भी दो दो मंत्रियों के सामने, लखनऊ तक हड़कंप 



लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की हार की समीक्षा के दौरान मंत्रियों के सामने ही जिलाधिकारी नीतीश कुमार और हनुमानगढ़ी के महंत राजूदस के बीच कथित तौर पर भिड़ंत हो गई. सूत्रों ने दावा किया कि अयोध्या में बीजेपी की समीक्षा के दौरान देर रात हंगामा और 'हाईप्रोफाइल' झड़प हुई. 

अब सब सवाल कर रहे हैं कि आख़िर बीजेपी की बैठक में डीएम का क्या काम था, उन्हें बैठक में किसने बुलाया था।

सूत्रों ने कहा कि योगी सरकार के दो कैबिनेट मंत्रियों के सामने DM अयोध्या नीतीश कुमार और हनुमान गढ़ी के महंत राजू दास के बीच तीखी नोंकझोंक हुई. योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री सूर्य प्रताप शाही और जयवीर सिंह की मौजूदगी में झड़प हुई. इस झड़प के बाद डीएम नीतीश कुमार इतने आक्रोशित हुए कि उन्होंने राजूदास  को प्रदान की गई सुरक्षा के लिए तैनात गनर वापस लिया गया.

सूत्रों के अनुसार राजू दास अयोध्या के प्रभारी मंत्री सूर्य प्रताप शाही से समय लेकर हार पर अपना फीडबैक देने पहुंचे थे उस दौरान DM अयोध्या नीतीश कुमार मौके पर मौजूद थे. वे राजू दास के चुनाव के दौरान प्रशासन के खिलाफ दिये बयानों से बेहद नाराज थे. उन्होंने राजू दास के साथ बैठने से इनकार किया. और बस इसी बात को लेकर दोनों के बीच पहले कहा सुनी हुई फिर दोनों गुत्थम-गुत्था हो  गये। 

सूत्रों का दावा है कि झड़प के बाद राजू दास के साथ आए गनर को वापस जाने को कहा गया. गनर वापिस लिए जाने के बाद राजू दास अपनी हत्या कराने की साजिश का आरोप लगा रहे हैं. दावा किया गया कि यह घटना रात 11 बजे अयोध्या के सरजू गेस्ट हाउस की है.

इन सब में दिलचस्प बात ये है कि समीक्षा बैठक के दौरान प्रशासन के असहयोग और अधिकारियों की मनमानी की शिकायत हो रही थी. मंत्रियों की मौजूदगी के चलते DM सरजू गेस्ट हाउस में उनसे मिलने पहुंचे थे वहीं झड़प शुरू हो गई.

समस्या ग्रस्त साव

  समस्या ग्रस्त साव


छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री अरुण साव इन दिनों अपनी कार्यशैली ही नहीं बयानों को लेकर भी खूब सुर्खियां बटोर रहे है, तो मुख्यमंत्री खेमे के लोगों ने तो उनका नाम ही बद‌लकर समस्याग्रस्त साव रख दिया है और सामान्य बोलचाल की भाषा में इसी नाम का इस्तेमाल करते हैं।

उपमुख्यमंत्री साव की पीड़ा यह है कि वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाये पार्टी अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने भरोसे की भैस को पानी में डाल दिया और पार्टी को सत्ता दिलाई, जबकि 2003 में पार्टी अध्यक्ष के बाद डॉ. रमन सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। 

कहा जाता है कि पहले ही मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की पीड़ा को झेल रहे अरुण साव को दूसरा झटका तब लगा जब तोखन साहू को केंद्र में मंत्री बना दिया गया, यानी साहू समाज के बड़े नेता का तमगा भी हाथ से अब निकल - तब निकल की स्थिति में है।

यही वजह है कि योग दिवस पर उन्होंने कुछ अलग ही योग  कर दिया, शिक्षामंत्री बृजमोहन अग्रवाल को छ माह  पद पर  बने रहने वाला बयान दे दिया, जबकि मोहन सेठ का इस्तीफ़ा स्वीकृत हो चुका था।

अब लोग इस बयान का अपने अपने ढंग से अर्थ निकाल रहे है और कह  रहे हैं कि मोहन सेठ के साथ हो रहे इस खेल के पीछे कहीं लोग ये न समझ ले कि यह सब अरुण साव करवा रहे हैं, इसलिए यह बयान दिया गया है, तो कोई इस बयान को उनके विभाग के खेल में मुख्यमंत्री की नजर पड़‌ जाने से जोड़ रहे हैं। अब विभाग में खेल होगा तो नजर तो पड़‌‌नी ही है और नजर मुख्यमंत्री की पड़े या न पड़े, अफसरों में चौधराहट चलाने वाले चौधरी की तो पड़ हो जायेगी। चौधरी यानी शाह…!



बीजेपी हो गई गांधी मुक्त

 क्या बीजेपी की राजनीति से अब गांधी परिवार का युग समाप्त 


मेनका गांधी के हार के बाद यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि मोदी ने पहले ही वरुण गांधी कि टिकिट काटकर उन्हें किनारे कर दिया है

सालो से बीजेपी की राजनीति में अपनी धमक रखने वाले मेनका गांधी और वरुण गांधी के लिए क्या बीजेपी के दरवाज़े अब मोदी-शाह की जोड़ी ने बंद कर दिये है और अब बीजेपी गांधी परिवार से पूरी तरह मुक्त हो गया है?

यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे है क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने से गांधी परिवार का बीजेपी में भी रुतबा रहा है । मेनका गांधी अटल सरकार में बेहद प्रभावशाली रही और इस प्रभाव के चलते उन्होंने अपने पुत्र वरुण को भी न केवल बीजेपी की राजनीति में लाई बल्कि सांसद भी बनवाया

माँ बेटे के इस जोड़ी ने बीजेपी को यूपी में बड़ा करने का हौसला भी दिया तो कांग्रेस की राजनीति पर भी ग्रहण लगाने में माँ बेटे कि बड़ी भूमिका रही

लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पार्टी में इनकी अहमियत कम होते चली गई और 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद सब कुछ ख़त्म कर दिया कहा ज़ाय तो ग़लत नहीं होगा

वरुण गांधी को टिकिट ही नहीं दिया गया तो मेनका गांधी चुनाव हार गई ऐसे में क्या अब इन्हें संगठन में कोई जगह दी जाएगी या क्या होगा

पूरे मामले पर यह रिपोर्ट ज़रूर देखें….

https://youtu.be/nHLEIeOSmDo?si=nziTeZKuVUmEK8q6

गुरुवार, 20 जून 2024

मूणत की मलाई पर नजर

 मूणत की मलाई  पर नजर…



हालांकि सभी से यह कहना ठीक नहीं होगा कि बिल्ली के भाग से छींका टूटा,  लेकिन बृजमोहन अग्रवाल यानी मोहन सेठ के इस्तीफ़े से सबसे ज्यादा कोई खुश है तो वह रायपुर पश्चिम के विधायक राजेश मूणत का नाम लिया जा रहा है।

पन्द्रह साल रमन राज में मंत्री रहने माले राजेश मूणत के बारे में कहा जाता है कि 2018 का चुनाव वे अपनी जुबान और अहंकार की वजह से ही हारे थे। और जब 2023 में सत्ता मिली तो उन्हें मंत्री नहीं बनाने के पीछे भी तरह तरह के चर्चे हैं। कथित सीडी कांड के अलावा उन पर डॉ. रमन सिंह के हनु‌मान होने का भी तमगा है। और शायद यही वजह है कि पंद्रह साल मंत्री रहने वाले इस नेता को चुनाव जीतने के बाद भी कुछ नहीं मिला।

हालांकि उनके समर्थक दम भरते रहे कि मंत्रीमंडल के विस्तार में राजेश मूणत का नम्बर सबने उपर हे और अब जब रमन सिंह की नीचे से लेकर उपर तक चलने की चर्चा है तो राजेश मूणत का मंत्री बनना तय मान समर्थक खुशियां भी मना रहे हैं।

कहा जाता है कि के मंत्री बनने के लिए साम दाम का जमकर उपयोग किया ही जा रहा है। मध्यप्रदेश वाला एप्रोच भी लगाया जा रहा है।

चर्चा तो इस बात की भी है कि बृजमोहन अग्रवाल को मोहन सेठ का नाम भूपेश बघेल से पहले किसी और ने नहीं राजेश मूणत ने ही दिया था, और डाक्टर साहब का राजेश मूणत को पंद्रह साल मंत्री बनाये रखने की प्रमुख वजह में से हनुमान के अलावा एक बड़ी वजह सेठ का काट समझा  जाना है।

यानी चर्चा गरम है डाक्टर साहब की जब चल रही है तो राजेश मूणत को मलाई मिलना तय है।

बलौदाबाज़ारकांड-बीजेपी की जाँच समिति क्यों बनी

  आख़िर बीजेपी ने जाँच समिति क्यों बनाई, सत्ता का कैसा खेल 

कांग्रेस की जाँच समिति तो समझ आता है लेकिन सत्ता में बैठी पार्टी का जाँच समिति बनाने का मतलब क्या बीजेपी में विवाद या कोई षड्यंत्र




बलौदाबाज़ार की घटना के बाद क्या सरकार  साँप गुजरने के बाद लकीर पीटने वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है । यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि इस मामले को लेकर जहां कांग्रेस हमलावर है वही विष्णुदेव सरकार बैकफ़ुट में आ  गई है और अब सरकार को बचाने बीजेपी सामने ए गई है 

बीजेपी ने जाँच समिति की घोषणा कर दी है जिसे लेकर कांग्रेस ने तो सवाल उठाये ही है , आम लोगो में भी चर्चा गरम है कि क्या बीजेपी को अपनी ही सरकार पर भरोसा नहीं है या यह किसी को बदनाम करने की साज़िश है ।

छत्तीसगढ़ की पहचान हमेशा से शांत जगहों के रूप में होती है, जीयो और जीने दो की संस्कृति से ओतप्रोत छत्तीसगढ़ में यह घटना हर किसी को हैरानी में डालने वाली है।'मनखे मनखे एक समान का संदेश देने वाले सतनाम समाज के   गुरु घासीदास के तपोभूमि क्षेत्र माने जाने वाले बलौदा बाजार जिले में अब तक जो भी घटनाएं हुई हैं उनमें बाहरी तत्वों का हाथ रहा है. यही वजह है कि प्रशासन सतनाम समाज के प्रदर्शन को उस रूप में नहीं लिया और प्रदर्शन के दौरान हिंसक झड़प और आगजनी हो गई.

जानकारी के मुताबिक, अब तक के जांच में ये सामने आया है कि इस घटना के पीछे भी बाहरी तत्वों का हाथ था. दरअसल, पुलिस ने लिखित कथन दिया है कि उत्पात मचाकर तोड़फोड़ और आगजनी भीम आर्मी, भीम रेजिमेंट और भीम कांतीवीर सेना के कार्यकर्ता, पदाधिकारियों ने किया है. 

सतनामी समाज के प्रवर्तक गुरु बाबा गुरु घासीदास की तपोभूमि गिरौधपुरी से लगे महकोनी गांव के अमर गुफा स्थित तीन जैतखाम को असामाजिक तत्वों ने 15-16 मई की रात आरी से कटकर गिरा दिया था. इस घटना की जानकारी पूजा करने वाले पुजारी ने समाज प्रमुखों को दी. जिसके बाद सतनामी समाज के लोग एफआईआर दर्ज कराने गिरौदपुरी पुलिस चौकी पहुंचे.

आरोप है कि घटना को पुलिस बहुत हल्के में लेते हुए एफआईआर दर्ज नहीं की. जैतखाम काटे जाने के कारण सतनामी समाज खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे. यही वजह रही कि समाज के लोग वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिए और देखते ही देखते मामला पूरे राज्य में गया. इसके बाद  इस मामले की शिकायत एसपी से की गई. वहीं उग्र प्रदर्शन की चेतावनी के बाद 17 मई को पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया.एफआईआर में देरी, आरोपियों की गिरफ्तारी में देरी और पूरी कार्रवाई में पारदर्शिता का अभाव ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए. इतना ही नहीं बलौदा बाजार जिले में पुलिस द्वारा अपराधियों को बदले जाने की परंपरा ने इस मामले में भी संदेह पैदा किया. बिहार के जिन तीन मजदूरों को पुलिस सैड कम काटने के मामले में गिरफ्तार किया गया, उन्हें भी कुछ दिनों बाद जमानत मिल गई और वो छूटते ही प्रदेश से गायब हो गए और यही वजह थी सतनामी समाज में विद्रोह पैदा हो गया.

गिरोदपुरी धाम के अमरगुफा के जैतखाम को अज्ञात आरोपी ने 15-16 मई की रात तोड़फोड़ कर जैतखाम को नष्ट करने की कोशिश की. आरोपियों के खिलाफ गिरौदपुरी पुलिस चौकी में आईपीसी की धारा 295 के तहत मामला दर्ज किया गया. वहीं दूसरी ओर जैतखाम को अपमानित किए जाने के मामले में सतनाम समाज के लोगों के भीतर गुस्सा फूट पड़ा. बाबा गुरु घासीदास को मानने वाले तपोभूमि गिरौदपुरी आने वाले श्रद्धालु जैतखाम काटे जाने से अमरपुर की ओर जाने लगे और प्रदर्शन व कार्रवाई की मांग करते हुए पुलिस पर दबाव बनाने लगे।

इधर, पुलिस बढ़ते दबाव के बीच आरोपी की पतासाजी कर रही थी. पुलिस के मुताबिक, जांच के दौरान पता चला कि भोजराम अजगल्ले जो कि ठेकेदारी का काम करता है उसके द्वारा गांव महकोनी में नल जल मिशन के तहत पानी टंकी का निर्माण किया जा रहा था. जिसका ठेका उसने 4.50 लाख में आरोपियों को दिया था. शुरुआत में ठेकेदार ने 1 लाख रुपये ही भुगतान किया गया था, जबकि कार्य 90 फीसदी हो जाने पर भी बाकी रकम का भुगतान नहीं किया जा रहा था.पुलिस के मुताबिक, आरोपियों ने कार्य का भुगतान मांगने पर ठेकेदार ने गाली गलौज दिया था. पुलिस अपने संपूर्ण जांच और विवेचना क्रम में ग्राम महकोनी में नल जल योजना के तहत पानी टंकी का निर्माण करने वाले 03 आरोपियों को दबोचा. जिनसे कड़ाई से पूछताछ पर तीनों आरोपियों ने अमर गुफा में स्थित जैतखाम को काटना और लोहे के गेट में तोड़फोड़ करना स्वीकार किया.आरोपियों से पूछताछ के दौरान यह बात सामने आई कि सभी आरोपी ग्राम महकोनी में नल जल योजना के तहत पानी टंकी का निर्माण ठेकेदार भोजराम अजगल्ले के माध्यम से ठेका राशि 4.50 लाख में कर रहे थे. जिसका काम लगभग 90 फीसदी पूरा होने के बाद भी भोजराम अजगल्ले ने बकाया राशि आरोपियों को नहीं दिया था. आरोपियों ने बार-बार बकाया रकम मांगा, लेकिन ठेकेदार रकम नहीं दी, जिसके कारण ठेकेदार से नाराज आरोपियों ने अमर गुफा में तोड़फोड़ करने की योजना बना डाली.

योजना के अनुसार, तीनों आरोपियों ने शराब का सेवन कर 15 मई 2024 की रात 11.30 बजे लगभग अपनी बजाज मोटरसाइकिल में बैठकर आरी और अन्य सामान लेकर अमर गुफा गए. तीनों ने गुस्से में आकर सतनामी समाज के प्रतीक जैतखाम को आरी से काट दिया और लोहे के गेट को उखाड़ कर तोड़फोड़ किया।पुलिस ने जांच के दौरान आरोपियों से घटना में प्रयुक्त आरी और मोटरसाइकिल जब्त किया है और तीनों आरोपियों को विधिवत्त गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. गिरफ्तार किए गए आरोपियों में बिहार के सहरसा निवासी सल्टू कुमार, पिंटू कुमार और रघुनंदन कुमार हैं जो कि वर्तमान में ग्राम महकोनी पुलिस चौकी गिरौदपुरी में रह रहे थे।

बता दें कि पुलिस की बताई पैसे वाली कहानी से समाज में और गुस्सा बढ़ने लगा और समाज के लोगों ने मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग करने लगे. पुलिस के द्वारा बताई गई बातों के बाद समाज ने सीबीआई जांच की मांग की.

अमर गुफा के तीन जैतखाम काटे जाने के अलावा पिछले कुछ अरसे और वर्षों में हुए सतनामी समाज से जुड़े मामले से भी समाज में गुस्सा था. बताया जा रहा है कि पूर्व में बिलासपुर के बोडसरा, कबीरधाम व अन्य जिलों में सतनामी समाज संबंधी विभिन्न मुद्दो को लेकर समाज के लोग व्यापक प्रदर्शन की तैयारी की. साथ ही 10 जून को दशहरा मैदान बलौदा बाजार में धरना स्थल के रूप में घोषित कर प्रदर्शन आयोजित किया.

https://youtu.be/YeiXWOoNCW4?si=GyxrkHHpx1Ug7a00