मंगलवार, 1 जुलाई 2025

छत्तीसगढ़ में साहित्यिक जागरण के अग्रदूत

छत्तीसगढ़ में साहित्यिक जागरण के अग्रदूत 


छत्तीसगढ़ में हिंदी पत्रकारिता का गौरवशाली युग रहा है। इस युग की नींव छत्तीसगढ़ मित्र के शलाका पुरुष माधव राव सप्रे ने।शलाका का अर्थ सत्यअहिंसासादगी और पवित्रता है। सप्रे जी की पत्रकारिता के ऐसे रत्न थे जिनकी प्रेरणा और प्रताप से छत्तीसगढ़की पत्रकारिता का स्वर्णिम युग प्रारम्भ हुआ। ऐसे ही युग के शिरोमणि रहे .स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जीजिनकी आज जयंती है। हिंदीपत्रकारिता के शिरोमणि श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी का जन्म एक जुलाई 1920 को कानपुर के अकोढ़ी ग्राम में हुआ। लेकिनअविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ उनकी कर्मभूमि रही। पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी एक प्रसिद्ध पत्रकारसाहित्यकार और स्वतंत्रतासेनानी थे। उनके पिता श्री गयाचरण त्रिवेदी भी समाज सेवा और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे। त्रिवेदी जी ने अपनी शिक्षा छत्तीसगढ़कॉलेज से पूरी की और 1940 में कांग्रेस पार्टी के मुखपत्र “कांग्रेस पत्रिका” से जुड़े। पत्रकारिता और साहित्य में उनका योगदानअद्वितीय था। राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि में जनचेतना के अग्रदूत स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में हिंदी साहित्यऔर पत्रकारिता की एक समृद्ध विरासत को जन्म दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीपंजवाहर लाल नेहरूराजेन्द्र बाबू और सरदारवल्लभ भाई पटेल का उनके जीवन में गहरा प्रभाव था। इसलिए राष्ट्रीय आंदोलन की प्रत्येक गतिविधियों से वे जुड़े रहे। अपने पिता कीतरह ही उनमें देश की आजादी के लिए मर मिटने की तमन्ना कूट कूट कर भरी हुई थी। बाल्यावस्था में ही साहित्यिक लेखन औरपत्रकारिता में उनका जुड़ाव बन गया था। खड़ी बोली हिन्दी में लिखना और अनुवाद में अभिरुचि ने उनके जीवन को एक खास दिशा दी।यही वो दिशा थी जब उनके व्यक्तित्व में एक पत्रकार के साथ-साथ एक कविकहानीकारनाटककार , निबंधकारव्यंग्यकार जैसेबहुआयामी प्रतिभा का विकास हुआ। कर्मवीर के संपादक एक भारतीय आत्मा .माखनलाल चतुर्वेदी का त्रिवेदी जी के व्यक्तित्वनिर्माण में काफी प्रभाव रहा। स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी एक निश्छल प्रकृति के सहज एवं स्वाभाविक पीर थे। इसलिए उनके लेखन मेंस्वतंत्र लेखन और मानव जीवन का समूचा दर्शन होता था। प्रकृति का सौंदर्य बोध उनके जीवन में छलकता था। उनकी अनगिनतसाहित्यिक कृतियों में प्रकृति और मनुष्य के भावों का साक्षात्कार देखा जा सकता है। देश की आजादी और नवचेतना की मशाल लेकरचलने वाले स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी का संपूर्ण व्यक्तित्व राष्ट्र के उत्थान के प्रति समर्पित रहा। राष्ट्रशिल्पी स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी केजीवन के चार प्रमुख पड़ाव थे। पहला पड़ाव त्रिवेदी जी ने साप्ताहिक “अग्रदूत” में सहायक संपादक के रूप में काम किया और बाद मेंइसके सलाहकार संपादक बने। दूसरा पड़ाव उन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल के अनुरोध पर साप्ताहिक “महाकोशल” का संपादन कियाऔर इस पत्र को लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचाया। तीसरा पड़ाव त्रिवेदी जी मध्यप्रदेश सरकार के जनसम्पर्क अधिकारी रहे औरउपसंचालक के पद से सेवानिवृत्त हुए। चौथा पड़ाव
उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास को अपनी कविताओं में लिखा और कई प्रेरक रचनाएं लिखीं। उनकी कविता “तुम गए मिटे रह गईएक कहने को अमर कहानी है” बहुत प्रसिद्ध है।
स्वतंत्रता आंदोलन के लिए 1942 का समय बहुत महत्वपूर्ण था। इस क्रांति काल में समाचार पत्रपत्रिकाओं के तेवर देखते बनते थे।यही वो समय था जब रायपुर से श्री केशव प्रसाद वर्मा और श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी ने मिलकर साप्ताहिक ‘अग्रदूत’ का प्रकाशनकिया था। ‘अग्रदूत’ ने फिरंगी हुकूमत को ललकारा और बग़ावत का बिगुल बजा दिया। ब्रिटिश सरकार को अग्रदूत के तेवर पसंद नहींआए और और इसके संपादकों पर कड़ी निगरानी रखने लगे। 9 अगस्त 1942 को जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलनकी शुरुआत हुई तो अग्रदूत ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के चलते अंग्रेजों ने अग्रदूत के संपादकों श्री केशव प्रसादवर्मा और श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी के घरों की तलाशी ली और अग्रदूत पर सेंसर लगा दिया। श्री केशव प्रसाद वर्मा गिरफ्तार कर लिएगए। कुछ समय तक अग्रदूत का प्रकाशन स्थगित रहा। बाद में इसका प्रकाशन फिर शुरू हुआ जो आज दैनिक अखबार के रूप मेंप्रतिष्ठित है। श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी के संपादन में साप्ताहिक महाकौशल का पुनर्प्रकाशन 06 मार्च 1946 से रायपुर से शुरू हुआ।नए कलेवर के साथ शुरू हुए इस पत्र में राजनीति के अलावा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को भरपूर स्थान मिला। श्रीस्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी इस पत्र में महादेव घाट से एक लोकप्रिय स्तंभ लिखते थे जो अघोर भैरव के नाम से विख्यात था। श्री स्वराज्यप्रसाद त्रिवेदी ने महाकौशल को वर्ष 1951में दैनिक अखबार का स्वरूप दिया जिसकी व्यवस्था का जिम्मा श्री श्यामाचरण शुक्ल नेउठाया। श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी ने 1954 में मध्यप्रदेश सरकार में जनसंपर्क अधिकारी और बाद में उप संचालक जनसंपर्क अधिकारीके रूप में अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दी। इस बीच महाकौशल के संपादन का दायित्व श्री विश्वनाथ वैशम्पायनजीने संभाला। इसकेबाद क्रमशः श्री विष्णु दत्त मिश्र तरंगीश्री गुरुदेव कश्यपश्री कमल दीक्षितश्री रमेश नैयरश्री कमल ठाकुरश्री जयशंकर नीरव जैसेलोकप्रिय संपादकों ने महाकौशल को आगे बढ़ाया। बाद में 1977 से 1983 तक पुनः श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी ने महाकौशल कासंपादन किया। श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी को एक सर्वश्रेष्ठ जनसंपर्क अधिकारी के रूप में भी ख्याति मिली। पब्लिक रिलेशन्ससोसाइटी आफ इंडिया रायपुर ने स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी के नाम से पुरस्कार भी शुरू किया है।
श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी को उनके कार्यों के लिए अनेकों सम्मान मिले हैं और उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कई शोध कार्य हुए।लेखक को इस बात का गर्व है कि स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी के उनके अंतिम समय वर्ष 2009 तक जुड़े रहने का अवसर मिला। स्मरणआता है कि 88-89 वर्ष की आयु में भी वे काफी स्वस्थ और सीधे खड़े रहकर घंटों भाषण देते थे। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवंजनसंचार विश्वविद्यालय में इस अत्यधिक आयु में भी उन्होंने तत्कालीन कुलपति डॉ सच्चिदानन्द जोशी जी के निमंत्रण पर उन्होंनेविद्यार्थियों को बिना किसी सहारे के खड़े रहकर लगभग दो घंटे तक संबोधित किया। यह इस पीढ़ी का सौभाग्य था कि स्वतंत्रताआंदोलन के छत्तीसगढ़ के चितेरे पत्रकार स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी से साक्षात्कार का अवसर मिला और राष्ट्रीय आंदोलन के साक्षीसेनानी पत्रकार को सुनने का अवसर मिला। श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी के मेधावी सुपुत्र डॉ सुशील त्रिवेदी जो भारतीय प्रशासनिक सेवाऔर मुख्य निर्वाचन आयुक्त पद से सेवानिवृत्त हुए उनके निवास पर कई बार जाना हुआसिर्फ एक ऐसी हस्ती का दर्शन करने जो राष्ट्रीयआंदोलन के एक युग की जीवंत कहानी थे। सुप्रसिद्ध पत्रकार श्री हरि ठाकुर ने स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी के लिए कहा थाकि श्री स्वराज्यप्रसाद त्रिवेदी की रायपुर में साहित्यिक जागरण में प्रमुख भूमिका रही है।  जाने कितने साहित्यकारों को उन्होंने प्रेरित और प्रोत्साहितकिया। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उन्होंने युवा प्रतिभाओं को साथ लेकर उनका मार्गदर्शन किया। पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी एक महानपत्रकारसाहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अपने जीवन को समाज सेवा और साहित्य सृजन के लिए समर्पित किया। उनकीकविताएं और पत्रकारिता के कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। श्री स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जी ने अपनी कविता 42 का संघर्ष में जोलिखाआज उनके लिए ही है –
तुम गये मिटे , रह गई एक
कहने को अमर कहानी है।
दिल में तस्वीर तुम्हारी है,
आंखों में खारा पानी है।।(साभार)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें