चुनाव आयोग का वेबसाइट और वाटरगेट कांड…
अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के दौर में हुए वाटरगेट कांड ने यदि सत्ता की नींद उड़ा दी थी तो चुनाव आयोग को लेकर राहुल गांधी के सबूतों के साथ खुलासे ने मोदी सत्ता को एक्सपोज़ कर दिया है और शायद यही वजह है कि चुनाव आयोग के वेबसाइट बंद होने की खबरें कई राज्यों से आने लगी , सत्ता को भले ही उम्मीद हो कि अभी भी वह सब अपने अनुकूल कर लेगा लेकिन पानी तो सर से निकल चुका है… और यदि राहुल इस सबूत के साथ आंदोलन करने निकल जाये तो उसे संभलना मुश्किल है…
सोशल मीडिया पर बड़ी सनसनीखेज खबर है भारतीय चुनाव आयोग की हरियाणा महाराष्ट्र राजस्थान मध्य प्रदेश कर्नाटक बिहार और उत्तर प्रदेश की वेबसाइट पर अस्थाई रूप से यह लिखा हुआ आ रहा है अभी
इससे संबंध स्थापित नहीं किया जा सकता!
यह इस बात का सीधा-सीधा संकेत है कि राहुल गांधी ने चुनाव चोरी को लेकर जो आंकड़े प्रस्तुत किए थे उसके बाद पूरे देश के फैक्ट चेकर उनका फैक्ट चेक कर रहे थे और वह फैक्ट सत्यापित हो रहे थे उस से घबराकर और इस बात से डर कर की और नए फैक्ट्स जनता के नॉरेटिव में नहीं आ जाए इलेक्शन कि यह वेबसाइट अभी अपने आप को संबंध स्थापित करने से बाहर बता रही है!
प्रदेशों की वेबसाइट का जो E पेज होता है, डाउन चल रहा है और कई जगह तो लिखा आ रहा है आप बाद में संपर्क करें!
कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह आशंका व्यक्त की है की चुनाव आयोग वेबसाइट डाउन कर कर सुधार करने की कोशिश कर रहा है ताकि नई वेबसाइट के माध्यम से वह अपनी निष्पक्षता जाहिर करें!
याने वेबसाइट को संशोधित करने का प्रयास कियाजा रहा है!
अभी प्रमाणित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय है कि राहुल गांधी का आरोपो ने चुनाव आयोग की नींद हराम कर दी है!
सोशल मीडिया के कई यूजर्स ने लिखा है कि सचमुच कई राज्यों के E पेज डाउन है!
क्या चुनाव आयोग एक नए बहाने के साथ एक नई शरारत के साथ अपने आप को सती सावित्री घोषित करने की कोशिश करेगा!
लेकिन शायद अब उसी तरह की देर हो चुका है जिस तरह अमेरिका में वाटरगेट कांड हुआ था , क्या था यह कांड यह भी समझ ले…
वाटरगेट स्कैंडल
17 जून 1972...
उस वक्त अमेरिका में रिचर्ड निक्सन की सरकार चल रही थी।
रिचर्ड निक्सन, एक ऐसा अमेरिकन राष्ट्रपति जिसे "अमेरिकन पोस्ट" जैसी रिसर्चेबल अखबारों से नफरत था। क्योंकि इनके पत्रकारों ने वाटरगेट स्कैंडल को एक्सपोज किया था।
पहले थे बॉब वुडवर्ड जो आगे चलकर वाशिंगटन पोस्ट में ऊंचे पदों पर चलते हुए आज भी कंपनी में एसोसिएट एडिटर के रूप में सक्रिय है। उन्होंने 15 से ज्यादा किताबें लिखीं जिनमें ओबामा, ट्रंप सबको लेकर कुछ न कुछ रहस्यमई जानकारी पढ़ने को मिली। सिस्टम कैसे काम करता है उन्होंने सब लिखा है।
और दूसरे थे कार्ल बर्नस्टीन। जो सीएनएन जैसे अन्य बड़े न्यूज चैनल के एडवाइजर रहे साथ ही फ्रीलांस में पत्रकार बने रहे।
17 जून 1972....
5 चोर डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी के दफ्तर में पकड़े गए। स्थान था वाटरगेट कॉन्प्लेक्स।
दोनों पत्रकार जांच में लग गए। बाल की खाल निकलना शुरू हुई। 7 लोग धर लिए गए जिनका कनेक्शन सीधा व्हाइट हाउस से था। वो ये बात भी स्वीकार किए कि वे रिपब्लिकन पार्टी के मेंबर है। इल्ज़ाम था पॉलिटिकल राइवल्स के फोन टैपिंग का।
जनवरी 1973.....
सातों लोगों पर मुकदमा दायर हो गया और ऑफिशियल जांच शुरू हो गई।
राष्ट्रपति निक्सन के गर्दन पर जांच की तलवार लटक चुकी थी। जांच शुरू हो चुकी थी।
निक्सन में अपने बचाव में मोर्चा खोल दिया। अपने पावर का मिसयूज करना शुरू कर दिया। एफबीआई जैसी एजेंसीज कंट्रोल में ले ली गई। बगावत का सुर भांप चुका था निक्सन।
मई 1973......
निक्सन के सिस्टम पर कंट्रोल करने की प्लानिंग को सीनेट ने आड़े हाथों लिया और जांच की कार्यवाही लाइव करवा दी। जिससे जुलाई आते आते ये खुलासा हो गया कि व्हाइट हाउस में वाकई फोन टैपिंग के सीक्रेट रिकॉर्डिंग एवलेबल है जो कि डेमोक्रेटिक पार्टी ने इल्ज़ाम लगाया था।
अक्टूबर 1973.....
निक्सन ने उस जांच अधिकारी को ही बर्खास्त कर दिया जो उसकी कब्र खोद चुका था।
जुलाई 1974....
सुप्रीम कोर्ट ने निक्सन को सारे रिकॉर्डिंग टेप सौंपने का आदेश दे दिया था। उस पर लगा इल्ज़ाम सिद्ध हो चुका था।
9 अगस्त 1974....
अमेरिकन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का इस्तीफा हुआ और अगले ही दिन यानि 19 अगस्त 1974 को नए राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड गद्दीनशीं हुएं।
राहुल के लीडरशिप में ये वोट चोरी का स्कैम एक स्कैंडल बन चुका है। अब देखते है उन जननेताओं को कि वो इस जनता के मताधिकार के साथ हुए अन्याय को लेकर व इस सामाजिक मुद्दे की निष्पक्ष जांच के लिए संसद की आवाज बनते है या नहीं।
जनता चाहती है कि वाटरगेट स्कैंडल की तरह इस वोट चोरी स्कैंडल की भी लाइव जांच हो जनता के आगे।
वरना एक एक का हिसाब जनता लेगी। (साभार)