गोदी मीडिया क्यों कहलाता है सच आ गया सामने, सुनकर चौंक जाएँगे…
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद मुख्य धारा की मीडिया क्यों गोदी मीडिया कहलाने लगी। क्या सिर्फ़ इसलिए कि यह नाम रवीश कुमार ने दिया या फिर इसकी कोई और वजह भी है, आख़िर गोदी मीडिया क्यों कहा जाता है , इसे ऐसे समझे….
गौर से देखिए ...... प्रधानमंत्री मोदी जी के सामने हाथ जोड़े, खींसे नूपुर रहे यह लोग कथित तौर पर देश के जाने माने पत्रकार हैं। अब आप ही बताएं क्या इन लोगों में इतना नैतिक साहस है कि यह सरकार या सत्ता से कोई सवाल कर सकें ??? तो क्या इसीलिए इनको गोदी मीडिया कहा जाता है।
यही लोग 2014 के पहले सरकार से बढ़चढ़ कर सवाल करते थे क्योंकि तब मनमाफिक सरकार नहीं थी। जो सरकार थी वह धार्मिक नफरत फैलाने के इनके एजेंडे को सपोर्ट नहीं करती थी। दरअसल मीडिया के एक बड़े वर्ग पर क़ब्ज़ा की कोशिश उस दिन शुरू हो गया था जब विहीप के आसरे साधु संतों पर क़ब्ज़ा होने लगा था , फिर इन्ही साधु संतों के आसरे मीडिया में काम करने वालो पर क़ब्ज़ा की कोशिश हुई, चूँकि देश के बड़े मीडिया हाउस पर बनियों का कब्जा है। और बनिया और ठाकुर शुरुआत से ही संघ की विचारधारा का समर्थक रहा है, इस वर्ग ने विपरीत परिस्थितियों में भी भाजपा और संघ का साथ दिया है। जबकि ब्राह्मण का एक बड़ा तबका कभी कांग्रेसी कभी समाजवादी तो कभी बसपाई हुआ है।
इस गठजोड़ ने ही इंदिरा के खिलाफ वैचारिक रूप से एक दूसरे के विरोधी रहे कम्युनिस्टों, समाजवादियों और संघीयों को एकजुट किया था। इसी गठजोड़ ने वीपी सिंह के बोफोर्स वाले झूठ को सच बताया। इसी गठजोड़ ने मायावती को सीएम बनाया। इसी गठजोड़ ने हिंदू हृदय सम्राट कल्याण सिंह, आडवाणी, तोगड़िया, जसवंत सिंह आदि को ढक्कन किया। इसी गठजोड़ ने देश में हिंदू मुस्लिम का नारेटिव खड़ा किया।
इसी गठजोड़ ने आजादी के पहले द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन और समर्थन किया।यही गठजोड़ आपको बताता है कि राहुल गांधी के पिता पारसी नहीं मुसलमान थे और स्मृति ईरानी पारसी नहीं हिंदू हैं। यह गठजोड़ भगत सिंह को तिलकधारी और चंद्रशेखर आजाद को जनेऊधारी दिखाता है। यह गठजोड़ आपको नफरत करना सिखाता है और यही आपको "हिंदुत्व" के नाम पर गरीब, पिछड़ा और दलित बनाए रखना चाहता है। यही आपको कट्टर हिंदू और मुझे गद्दार मुसलमान बना रहा है ताकि सत्ता, संसाधनों और संस्थानों पर उसकी पकड़ बरकार रहे।
एक बार फिर गौर से देखिए इन कथित पत्रकारों को। इनके चेहरे पर खिल रही मुस्कान उस युद्ध में विजय की परिणीति है जो आज से 100 साल पहले गुरु गोलवलकर ने शुरू किया था। इस विजय में इनका भी जबरदस्त योगदान है। चाहे वह मंदिर आंदोलन हो या अन्ना का धरना। यही पत्रकार स्वयंसेवक बनकर नैरेटिव बनाने में जुटे थे। यह एक ऐसा युद्ध था जिसमें बेहद समर्पण, लगन, एकजुटता की जरूरत थी। देश में एक नैरेटिव खड़ा करना था कि विभाजन के लिए दक्षिणपंथ की विचारधारा के कांग्रेस जिम्मेदार है। गांधी जी की हत्या को "वध" बता कर गोडसे को पीड़ित दिखाना था, सावरकर को वीर साबित करना था, नेहरू को अय्याश बताना था, पटेल, सुभाष, से मतभेदों के बावजूद उनको अपना हीरो दिखाना था, मुसलमानों को विलेन और मुसलमानों को अधिकार को तुष्टिकरण कहना था। इतिहास को सिर के बल खड़ा करना था। जातीय भेदभाव को कम करके आंकना था। इस युद्ध में देश की जनता के सिर से धार्मिक सद्भाव का भूत उतार कर उसे हिंदू योद्धा बनाना था।
यह युद्ध बहुत लंबा चलना था लेकिन विश्वास था कि एक दिन भ्रष्ट सरकारों से ऊबी जनता इन बातों पर विश्वास कर लेगी और अंततः यही हुआ। आज इनकी मेहनत रंग लाई है और यही इनके मुस्कुराने की वजह है। यह हाथ जोड़े खड़े हैं अपने आराध्य के सामने जिसने इस युद्ध का नेतृत्व करके इन्हें विजय दिलाई। इसीलिए मोदी जी भगवान हैं और गोदी मीडिया भक्त और अपने आराध्य के सामने ऐसे ही हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए खड़ा हुआ जाता है। सवाल पूछने की धृष्टता करने वाला यूट्यूबर कहलाता है।(साभार)