शनिवार, 31 अगस्त 2024

लौट के बुद्धू घर को आये...

 लौट के बुद्धू घर को आये...


एक सामान्य आदमी के लिए विदेश जाने का मोह क्या होता है इसका तो पता नहीं, लेकिन सरकारी खर्चे में विदेश यात्रा के मोह से बच पाना हर किसी के बस में नहीं है। कई नेता तो सरकारी खर्च में विदेश जाने का फर्जी उपाय भी कर लेते हैं, कुछ सफल हो जाते हैं तो कुछ….!

ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार के उपमुख्यमंत्री अरुण साव का विदेश जाने के सपने का टूटना कितना गजब है यह बताने की इसलिए जरूरत नहीं है कि रिमोट पर चलने वाली सरकार के काम काज सुपर सीएम देख रहे हैं और अपने से कम होशियार या अनुभवहीन लोगों की फौज, कब किसकी बेइज्जती करवा दे, कहा नहीं जा सकता ।

लेकिन अमेरिका जाने के लिए मरे जा रहे की तर्ज पर दिल्ली में लगभग सप्ताह भर से डेरा डालने के बावजूद यदि ख़ाली हाथ लौट के आना बड़े तो इससे दुर्भाग्यजनक बात शायद दूसरी नहीं हो सकती। कहते हैं कि संघियों का अमेरिका के प्रति मोह नया नहीं है, संघ के प्रचारक से प्रधानमंत्री बने नरेद्र मोदी ने तो प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका जाने के लिए किसी ने सरकारी बुलावे का इंतजार तक नहीं कर सके थे।

ऐसे में यदि अरुण साव अपने अधिकारी कमलप्रीत के साथ वीजा लेने यदि दिल्ली में डेरा डाले थे तो क्या हुआ। 

वैसे भी भारी माकम बजट वाले जल जीवन मिशन में उनके रहते कौन सा भ्रष्टाचार रूक गया है, लेकिन वीजा नहीं मिलने को लेकर मंत्रालय से लेकर पार्टी नेताओ में चल रहे क़िस्से भी कम खतरनाक नहीं है, नवा बईला के चिक्कन सिंग से लेकर अनाड़ी का… सत्यानाश तक की कहावत। 

अब देखना है कि अनुभवहीनता के चलते इस घोर बेईज्जती का हिसाब किस-किस अधिकारियों से लिया जाना है। 

शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

दयाल दास की दुविधा…

 दयाल दास की दुविधा


बलौदा बाजार हिंसा में समाज की नाराजगी की परवाह नहीं कर विष्णु देव साय सरकार के लिए सीना ठोंक कर ढाल बनने वाले प्रदेश सरकार के मंत्री दयालदास बघेल इन दिनों भारी दुविधा में है, और कहा जा  रहा है कि इस दुविधा का असर भी अब दिखाई देने लगा है।

द‌याल दास की दुविधा क्या है यह हम बताये उससे पहले बता देते हैं कि रमन सरकार में दो दो बार मंत्री रह चुके द‌याल दास बघेल ने जब तीसरी पारी की शुरुआत की तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि समाज के गुरु को चुनावी पटखनी देने के बाद उन्हें विष्णुदेव सरकार पर आये मुसिबत के लिए समाज से भी नाराजगी मोल लेनी होगी।

हालांकि आरक्षित सीटों से लड़ने वाले भाजपाई यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि चुनावी जीत में अपने समाज से ज्यादा दूसरे समाज के वोट से ही वे चुनाव जीतते हैं इसलिए बलौदाबार हिंसा को लेकर समाज के बेगुनाहो की पुलिसिया प्रताड़ना पर भी चुप्पी रही।वैसे भी इस तरह की नाराजगी की परवाह भाजपा से जुड़े नेता नहीं करते।

लेकिन दुविधा यह नहीं है कि समाज के लोग नाराज होंगे तो क्या होगा, दुविधा तो यह है कि  क्षेत्र के लोगों को अब मिलने के लिए नया रायपुर तक आना होगा। 

ऐसे में सतनाम सदन कैसे और कब छोड़ा जाए या नहीं छोड़ा जाए। दरअसल नई राजधानी में मंत्रियों के लिए बंगला तैयार हो चुका है और द‌यालदास बघेल के नाम एक बंगला आबंटित भी किया जा चुका है। बंगले के रखरखाव पर खर्च भी हो रहा है ऐसे में उन पर सतनाम सदन छोड्‌ने का दबाव भी बढ़‌ने लगा है।

एक तरफ नये बंगले में जाने का मोह तो दुसरी तरफ जनता से कटने का डर ? अब इस दुविधा से मुक्ति का मार्ग कोई कैसे सुझा सकता है। क्योंकि वे यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि पार्टी का रवैया क्या होगा।

गुरुवार, 29 अगस्त 2024

मोदी का विकास , दरकता विश्वास

 मोदी का विकास

दरकता विश्वास


कंगना रानौत के मुताबिक इस देश को आजादी तब मिली जब नरेन्द्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने। और तब से जो विकास की नदियां इस देश में बहना शुरू हुआ है उसकी गाथा भी गजब है।

जीएसटी की विसंगतियां और पेट्रोल डीजल पर खून निचोड़ने वाला टैक्स, मित्र-प्रेम के चलते खाई बनती असमानता, इलेक्ट्रोलर बांड से वसूली, पीएम केवर फंड की लूट और नफरत के बाज़ार सज़ा कर वोट की फसल काटने के खेल के बीच विकास की चकाचौंध। 

क्या यह सब इस देश की सत्ता को तानाशाही के रास्ते नहीं ले जा रहा था। और उसकी पराकाष्ठा नान बायोलॉजिकल नहीं था।

लेकिन धर्म और स्वार्थ की पट्टी  बांधे लोग आज भी बेरोजगारी और मंहगाई के भीषण त्रासदी को नहीं समझ पा रहे हैं तो इसका परिणाम क्या भयावह नहीं होगा।

अपराध पर राजनैतिक  नफा नुक़सान का खेल नया नहीं है और राष्ट्रपति की भूमिका पर सवाल भी।

लेकिन यदि न खाऊंगा, न खाने दूँगा के जुमले में केवल विरोधियों को ही फंसाया जाए और ख़ुद वाशिंग मशीन बन जाये तो महाराष्ट्र के लोगों के लिए भगवान माने जाने वाले शिवाजी महाराज की प्रतिमा कहां टिक पायेगी। 

लेकिन दूसरों के पाप गिनाकर स्वयं के पाप को ढंकने की कोशिश को लोगों ने उज्जैन में भी देखा तो अयोध्या में, दिल्ली के प्रगति मैदान में देखा तो नये संसद भवन में टपकते पानी में भी ।

जो देख पा रहे हैं वे जाग चुके है और जिन्होंने धर्म और स्वार्थ की पट्टी बांध रखी है वे कंस और रावण की श्रेणी में स्वयं को खड़ा कर चुके हैं। क्योंकि राम और कृष्ण ही नहीं रावण और कंस भी हिन्दू थे।

कर्म का फल एक न एक दिन मिलता है। 

ऐसे में यदि 240 के संकेत समझ में न आये ।  हम बंटेगे तो कटेंगे और असम में क़ब्ज़ा नहीं करने दूंगा के नफ़रती बोल 440 का झटका जरूर देगा।

ऐसे में राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता का असर न केवल स्मृति ईरानी  के अलावा कई विरोधियों में दिखाई देगा तो मोदी की बिगड़ती छवि से संघ प्रमुख मोहन भागवत ही नहीं चीन और अमेरिका भी चिंतित होंगे।

बुधवार, 28 अगस्त 2024

दुविधा के दो घंटे मचता रहा हडकम्प...

 दुविधा के दो घंटे मचता रहा हडकम्प...

बिलासपुर कमिश्नरी प्रभारी के हवाले


छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण संभागों में से एक बिलासपुर संभाग अब प्रभारी कमिश्नर के हवाले कर दिया गया है। रायपुर के कमिश्नर महादेव कावरे के पास यह अतिरिक्त प्रभार आया है तो यह कावरे की काबिलियत है, वरना रिमोट से चलने के आरोप से जूझ  रहे विष्णुदेव साय सरकार के सामने यह स्थिति कभी पैदा नहीं होती।

कहा जाता है कि बिलासपुर के एक दबंग नेता ने जब विछले हफ्ते सीधे मुख्यमंत्री से मिलकर कहा था कि नीलम नामदेव एक्का नहीं चलेगा तभी से उसकी बिलासपुर से छुट्टी तय हो चुकी थी, अब लोग सोच रहे होंगे कि आखिर कमिश्नर इतना प्रभावशाली पद कब से हो गया कि जन नेता उसके रहने या नहीं रहने को लेकर चिंता करने लगे। लेकिन जो लोग जमीन के कारोबार में है उनके लिए कमिश्नर क्या मायने रखता है ये वहीं जानते हैं। आम आदमी के लिए भले ही कमिश्नर का कोई मतलब न हो।

तो इस तय छुट्टी के तहत हफ्ते भर में यह तय कर दिया गया कि नीलम की जगह जनक पाठक को बिठाया जाये। कहते हैं जनक पाठक के नाम पर बिलासपुर के इस नेता ने सहमति दे दी तो आदेश जारी करने का फरमान सुना दिया गया ।

लेकिन जैसे ही आदेश जारी हुआ, रायगढ़ में हड्‌कंप मच गया और धनधनाते मोबाईल की घंटियों के बीच फरमान आया। जनक पाठक यही अच्छा काम कर रहे हैं, उनके काम से धन-धान्य की कोई कमी नहीं हो रही है। पार्टी को हो नहीं पार्टी से जुड़े लोगों का भी मुनाफ़ा बढ़ रहा है। कमिश्नरी बिल्कुल भी नहीं भेजा जाये ।

सुपर सीएम की तर्ज पर आये इस फ़रमान से मंत्रालय में हड़कम्प मच गया । नीलम को  वापस भेजा नहीं जा सकता था, जनक को भेजना नहीं है तो बिलासपुर के राजस्व मामले को निपटराने में महादेव कावरे की काबिलियत पर किसी को शंका होनी नहीं चाहिए तो फैसला आ गया।

मंगलवार, 27 अगस्त 2024

प्रतिशोध की राजनीति का पारदर्शी रुप...

 प्रतिशोध की राजनीति का पारदर्शी रुप...


दिल्ली शराब घोटाले में गिरफ्तार भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को भी जमानत मिल गई। इससे पहले मनीष सिसोदिया की भी जमानत हो गई थी। और कहा जा है कि अरविन्द केजरीवाल भी जल्द जेल से बाहर आ जायेंगे। 

के. कविता ने जेल से बाहर आते ही कहा  'हम लड़ेंगे और ख़ुद को निर्दोष साबित करेंगे।

दिल्ली शराब घोटाला क्या आम आदमी पार्टी को समाप्त करने की राजनीति का केवल टूल है? क्या केजीवाल की राजनीति के आगे नरेंद्र मोदी की गढ़ी गई छवि का कोई मतलब नहीं है।

हालांकि इस पूरे मामले को समझना इतना आसान नहीं है क्योंकि प्रतिशोध की इस राजनीति ने साम दाम दंड भेद को  जिस कुचक के साथ चक्रव्यूह का रूप दिया है उससे कोई नहीं बव सकता।

दरअसल चक्रव्यूह रचने का एक ही मतलब है प्रतिद्वंदियों की हत्या।अर्जुन जानते थे चक्रव्यूह तोड़‌ना लेकिन अपने प्रिय पुत्र को भी नहीं बचा पाये।

दिल्ली शराब घोटाले को लेकर जो कहानी बनाई जा रही है उसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है - 

अचानक एक दिन पुलिस आपके दरवाजे पहुंचती है और आपको साल भर पहले हुई किसी लूट की घटना में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है। आप इंकार करते हैं लेकिन वह नहीं सुनती । आपके ज्यादा जिद करने पर वह उस सीसीटीवी फुटेज की ओर इशारा कर देती है कि देखिये इस रास्ते से आपका अक्सर आना जाना रहा है। और इसलिए लूट आपने ही की है। आपको अदालत में घसीट लिया जाता है।

अदालत में आत्मविश्वास से लबरेज पुलिम कहती है कि हमारे पास यह मानने का ठोस कारण है कि इस व्यक्ति ने ही लूट की है।

पुलिस आपके तार्किक रूप से सबूत दिखाने के सवाल पर कहती है , लूटने का सबूत नहीं है क्योंकि सबूत नष्ट कर दिया गया है लेकिन हम सबूत जुटा लेंगे।

कितने समय तक के सवाल पर पुलिस कहती है, जितना समय हमे चाहिए , हम समय सीमा कैसे बता सकते है।इन्हें जमानत नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि ये ब्यक्ति गवाह को प्रभावित कर सकता है। 

हालांकि ऐसा करने के लिए आपके पास साल भर का समय था। लेकिन पुलिस अपना कुतर्क जारी रखते हुए दोहराती है आप जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। जबकि आप पुलिस के जांच में सहयोग की बात करते हुए कहते भी है कि पुलिस के हर सवाल का जवाब तो दे रहा हूँ।

पुलिम झल्ला जाती है और कहती है कि बस !आप गुनाह कबूल कर लो।यही सहयोग चाहते हैं।

आप अदालत में चिखते हैं यह क्या बकवास है, मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं, कोई बरामद‌गी नही,अपराध स्थल का पता नहीं लेकिन जांच के नाम पर जेल में सड़ा‌या जा रहा है, जमानत नहीं दी जा रही है। जिस गवाह  की गवाही पर मुझे गिरफ्तार किया गया है वह पुलिस के सामने दर्जन भर गवाही दे चुका है और आखरी गवाही में मेरा नाम लिया है, जबकि वह गवाह खुद आरोपी है ।

अदालत इस बकवास को सुनने के बाद जमानत दे देता है।

हालांकि पुलिम यह सब पहले भी करते आई है लेकिन राजनैतिक प्रतिद्वंदिता में यह खेल हस दौर में जिस पैमाने पर हुआ है वह हैरान और परेशान करता है।

क्या यह कहानी किसी से मेल खाती है, एक बार ठिठक कर सोचियेगा…।

सोमवार, 26 अगस्त 2024

गये थे हरिभजन को वोटन लगे कपास…

 गये थे हरिभजन को

वोटन लगे कपास…


यह तो गये थे हरिभजन को वोटन लगे कपास की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना मुख्यमंत्री बनकर छत्तीसगढ़ को भ्रष्टाचार मुक्त करने का दावा करने वाले उपमुख्यमंत्री अरुण साव के विभाग में भ्रष्टाचार की नदियां नहीं बहती। और न ही बटोर लेने का खेल इस पैमाने पर होता। 

हालत यह है कि अब प्रभार वाद का नया खेल भी शुरू हो गया है सीनियर अफसरों को किनारे करके  जूनियरों को प्रभार देने के इस खेल में  लेन-देन की जो खबरें आ रही है वह हैरान कर देने वाला है तो जूनियर - सीनियर की लड़ाई ने कामकाज को भी बुरी तरह प्रभावित किया है।

कहा जाता है कि उपमुख्यमंत्री साव ने मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की कमी को अपने विभाग में धौंस जमाकर पूरी कर ली है। नगरीय निकायों में मनमाने ढंग से संविदा नियुक्ति के बाद जल संसाधन और पीएचई में प्रभारवाद का खेल कम चर्चा में नहीं है।

वैसे भी जल जीवन मिशन को कबाड़ा करने का आरोप तो विधानसभा तक में सुर्ख़ियाँ बिखेर चुका है और कहा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की हस महत्वाकांक्षी योजना का सबसे ज्यादा कबाड़ा तो धमतरी, बिलासपुर और महासमुंद जिले में निकल रहा है, जहाँ इंजिनियरों और ठेकेदारों की मिलीभगत से निकल रहा मलाई सीधे बंगले तक पहुंच रहा है।

सत्ता मिलते ही संघ का संस्कार किस तरह सिर चढ़ कर बोलता है यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन जो लोग अरुण साव के क्रियाकलापों को देख समझ रहे हैं वे भी हैरान है।

इधर जल जीवन मिशन के बजट के बंदर बाँट को लेकर खेल नया नहीं है। इस लंबे चौड़े बजट के चक्कर में भूपेश बघेल और रुद्र गुरु   की लड़ाई अभी लोग भूले नहीं है लेकिन साव के साथ अभी यह स्थति पैदा नहीं हुई है लेकिन यह स्थिति नहीं पैदा होगी कहना मुश्किल है।

कहा जाता है कि धमतरी, महासमुंद और बलौदाबाजार में चल रहे गोलमाल और  छोटे ठेकेदारों की करतूत को लेकर चर्चा अब मुख्यमंत्री तक जा पहुंचा है।

रविवार, 25 अगस्त 2024

ठन गई कौशिक और चंद्राकर के बीच...

 ठन गई कौशिक और चंद्राकर के बीच...


यह तो सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना भारतीय जनता पार्टी के इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच हस कदर जंग नहीं होती कि शिकायत मुख्यमंत्री तक जा पहुंचे।

दरअसल धरमलाल कौशिक और अजय चंद्राकर दोनों ही मंत्री बनने के कतार में है। रमन सिंह ने धमलाल कौशिक को विधानसभा का अध्यक्ष बनवा कर अजय चंद्राकर की कुर्मी वाद की राजनीति पर पहले ही डेंट लगा चुके है तो अजय चंद्राकर को भरोसा है कि लोकसभा वार मंत्री बनाने की रणनीति में वे महासमुद्र के खाली पड़े मंत्री पद पर आसीन हो जायेंगे। 

ऐसे में चर्चा है कि दोनों हो नेताओ का रूतबा किसी मंत्री से कम नहीं है। कौशिक का तो अपने क्षेत्र के लोगों से बातचीत का आडियों तक वायरल हो चुका है तो अजय चन्द्राकर की जुबान को लेकर भी चर्चा पहले से गरम है।

कहा जाता है कि दोनों के बीच चल रहे कुर्मीवाद के इस जंग के बीच अब नया मामला आ गया है। सप्लायर का…।

और सप्लायर भी ऐसा वैसा नहीं है, सप्लायर की करतूत से पूरा प्रदेश वाकिक है। 

चर्चा है कि सत्ता मिलते हीं अपने अपने सप्लायर को काम दिलाने के फेर में वैसे तो कई भाजपाई उलझे हुए हैं, लेकिन यहां तो मामला हसे छोड़कर किसी को भी काम देने का है।

अब जब विवाद मुख्ययमंत्री तक जा पहुंचा है तो इसका परिणाम क्या होगा कहना मुश्किल है क्योंकि वहाँ भी तो कई घाघ बैठे हैं और जब मामला परसेंटेज का हो तो फिर इस बात का मतलब कहाँ रह जाता है कि कौन कितना चूना लगाने में सक्षम है।

बहरहाल यह लड़‌ाई अब कुर्मी राजनीति में प्रभाव को लेकर मी चल रहा है ऐसे में राजस्व के साथ खेल खेल रहे टंकराम की कहानी एक अलग ही रूप ले रहा है।

शनिवार, 24 अगस्त 2024

ओपीएस - एनपीएस - यूपीएस के बाद क्या ...

 ओपीएस - एनपीएस - यूपीएस के बाद क्या ...


एक बार फिर सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन स्कीम लागू करने की घोषणा कर दी गई है। लेकिन ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग पर अड़े कर्मचारियों का ग़ुस्सा इससे शांत नहीं हो रहा  है, वे  इस नये पेशन स्कीम यानी यू पी एस को अपनाने तैयार नहीं हैं।

दरअसल ओपीएस का मामला इतना बड़ा हो गया कि वह चुनाव को प्रभावित करने लगा है और जब अब हरियाणा - जम्मूकश्मीर के बाद महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसमा का चुनाव है तो मोदी सरकार ने यूपीएस स्कीम लांच कर कर्मचारियों के ग़ुस्से पर पानी डालने की कोशिश कर रही है। लेकिन लगता है कि इससे बात नहीं बनने वाली है कर्मचारी संगठनों ने अपनी ओपीएस की माँग को दोहराते हुए नये सिरे से आन्दोलन की रूपरेखा बनाने की घोषणा कर दी है।

असल में एन पी एस को लागू करने का काम भारतीय जनता पार्टी की सरकार के पूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में शुरू किया गया था, इसलिए कर्मचारियों का ग़ुस्सा बीजेपी पर फूटने लगा है। और मोदी सरकार जानती है कि यदि कर्मचारियों को नहीं मनाया गया तो जैसे जैसे आन्दोलन तेज होगा, बीजेपी का चुनाव जीतना मुश्किल होता चला जायेगा।

इस स्कीम के लागू होते ही कर्मचारियों के पास विकल्प चुनने का अवसर तो बढ़ गया है लेकिन वोट की राजनीति के चलते जिस तरह से सरकार नई-नई पेंशन स्कीम ला रही है क्या आने वाले दिनों में कोई और स्कीम लाई जायेगी।

इस नई पेंशन स्कीम के तहत केंद्रीय कर्मचारियों के अंतिम वेतन के 40 से 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन की गारंटी होगी. आसान भाषा में कहें तो, यदि आपका 50,000 रुपये महीने के अंतिम वेतन पर रिटायर होते हैं तो, आपको 20 से 25 हजार रुपये प्रति महीने पेंशन के रूप में दिया जाएगा. हालांकि कुल सेवा का समय और पेंशन कोष से आपके द्वारा किसी भी प्रकार की निकासी का समायोजन किया जाएगा. इस पेंशन गारंटी को पूरा करने के लिए पेंशन कोष में किसी भी कमी को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के बजट से पूरा किया जाएगा. 

दावा किया जा रहा है कि अगर राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली को लागू किया जाता है तो 1 जनवरी साल 2004 से नेशनल पेंशन स्कीम में रजिस्ट्रर्ड कें 87 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारियों को इसका फायदा मिलेगा. वित्त मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, डीए दरों में बढ़ोतरी के साथ यह राशि बढ़ती रहती है. मंत्रालय ने कहा था कि ओपीएस वित्तीय रूप से टिकाऊ नहीं है क्योंकि यह अंशदायी नहीं है और सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ता रहता है. 

सत्ता के नर‌पिशाचों की हवस...

 सत्ता के नर‌पिशाचों की हवस... 


दिल्ली की निर्भया से लेकर उत्तराखंड की अंकिता भंडारी,  कुछ भी तो नहीं बदला है। बल्कि कानून कड़े  करने की नौटंकी और राजनैतिक नफा-नुक़सान  वाला प्रदर्शन नया जुड़ गया है। 

ऐसे में छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में बलात्कारियों के साथ सत्ता का गठजोड़ एक वीभत्स चेहरा  के रूप सामने आकर छाती ठोंककर खड़ा होने लगा है। राजनैतिक दलों की बेशर्मी को उजागर करती घटनाएं क्या इस शांत प्रदेश को उद्देलित नहीं करती ।

ऐसा भी नहीं है कि रायगढ़ और कांकेर में हुए गैंगरेप पर जो मीडिया आज खामोश है, पहले भी ऐसा ही था । तब मीडिया ईट पर ईट बजा देता था और न तो  राजनैतिक दलों की और न ही उनके नेताओं की हिम्मत पड़ती कि वह किसी यौन शोषण के किसी छिछोरे  के साथ खड़ा  हो सके ।

लेकिन राज्य बनने के बाद सत्ता ने जिस तरह से मीडिया को अपने ईशारे पर नचाना शुरु किया है उसके बाद ऐसे छिछोरों के साथ न केवल नेता बल्कि समूची पार्टी खड़ी हो जाती है।

रायगढ़ के भाजपा जिलाध्यक्ष अग्रवाल की करतूत पर तो उसे हटाने की बजाय समू‌ची पार्टी का इस कदर संरक्षण में खड़ा रहा कि बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी गई।

कांकेर के बाहुचर्चित घटना के आरोपी को तो सांसद की रिकिट तक दे दी गई।

और औद्योगिक नगरी के विमला रेप कांड का कथित आरोपी सत्ता तक जा पहुंचा है तो फिर हिमशिखर गुप्ता से लेकर कितने ही नाम बरबस ही याद आ जाते हैं जो सत्ता और नेताओं के साये तले अपनी हवस के लिए नरपिशाच से कम नहीं है।

क्या एक बार फिर उन घटनाँओं को सामने लाया जाना चाहिए जिसने आदोलन की शक्ल लेकर समूचे छत्तीसगढ़ में हलचल मचा दी थी।

हमने तय किया है कि अब इतिहास के पन्नों को कुरेद कर उन नरपिशाचों की करतूत को लोगों तक लाने की जो शायद आम लोगों को यह से सोचने के लिए मजबूर कर दे कि राजनीति में हवस के नरपिशाचों के लिए कोई जगह नहीं है और राजनैतिक दल भी ऐसे लोगों से ही दूरी बना लें।

याद कीजिए 80 के दशक की नह श्वेता हत्याकांड जिसने समूचे छत्तीसगढ़ में अपने विरोध प्रदर्शन से हलचल मचा दी थी, और पुलिस की वह भूमिका जिसने आनन फानन में किसी को भी पकड़ लेने की पटकथा लिखी थी । इस घटना में शामिल डाक्टरी की पढ़ाई करने वालों को बचाने की भी चर्चा रही। क्या है यह श्वेता रेप हत्याकांड, पूरे मामले को  एक बार किए आपकी आँखों के सामने लाने की कोशिश होगी। विमला रेप कांड हो या हो या कांकेर रायगढ़ हो या छत्तीसगढ़ के किसी भी हिस्से का रेप कांड  सिलसिलेवार प्रस्तुत करने की कोशिश होगी।

किस किस पाटी के कौन कौन से नेता या फिर संभ्रात परिवारों के रईसज़ादे ? सब कुछ आपने सामने लाने की कोशिश... (शीघ्र ही)

गुरुवार, 22 अगस्त 2024

हमने मारी औरतें…

 हमने मारी औरतें....


पिछले दस दिनों से देश का प्रायः हर राज्य औरतों के बलात्कार की घटना से स्तब्ध है । लगातार हो रही अपराधों में सबसे विभत्स अपराध को लेकर बहस भी हो रही है कि इस बढ़ते अपराध लिए कौन दोषी है, इसका कारण  क्या है।जबकि ऐसे अपराधों पर सज़ा के कानून भी कड़े बना दिये गए है फिर भी अपराध पर अंकुश क्यों नहीं लग रहा है।

हर रोज 87 बलात्कार ! क्या किसी  सभ्य समाज को विचलित नहीं करते। चर्चा में कहा जा रहा है मोबाईल और बाजारवाद ही इसका प्रमुख कारण है लेकिन कलकत्ता जैसे महानगर से लेकर सुदूर बस्तर जैसे इलाके में हो रही घटनाओं की असली वजह से कौन भाग रहा है।

सबके अपने अपने विचार और सुझाव है लेकिन किसी ने राजनैतिक दलो पर ऊँगली उठाने की हिम्मत नहीं की जो इन घटनाओं के बढ़ने में सबसे बड़े दोषी के रूप में दिखाई दे रहे हैं।

राजनीति का अपराधीकरण को लेकर अब कोई बहस भी नहीं कहना चाहता। तब बलात्कारियों के लिए संरक्षक बन चुके इन संगठित गिरोह पर उंगली उठाना आसान भी नहीं है।

बेटी बचाओ - बेटी पढ़‌ाओ के नारे जितने सुन्दर लगते है, नारा लगाने वालों की करतूत उतनी ही भयावह हो चली है। बेशर्मी की पराकाष्ठा तक पहुंच चुके लोग अब बलात्कार को भी राजनैतिक नफ़ा-नुक़सान के तराजू से तौलने लगे हैं।

शायद यही वजह है कि कल तक जो राजनैतिक दल बलात्कारियों को टिकिट देने से या पार्टी संगठन में बड़े पद देने से कतराती थी वे अब खुले आम बलात्कारियों के संरक्षक बने हुए है।

जैसी राजा-वैसी प्रजा कहना बेहद कठोर हो जायेगा लेकिन सन्च तो यही है कि बलात्कार के आरोपियों को टिकिट देकर, या पद देने के बाद भी लोगों की खामोशी से राजनैतिक दलों के हौसले इतने बुलंद हो गये कि इन दलों  ने बलात्कारियों का पक्ष लेना, स्वागत करना और रिहाई का इंतजाम करने जैसे फैसले बेशर्मी से करने लगे।

कांकेर में कल हुए गैंगरेप के बाद किसी ने सोशल मीडिया में अपना गुस्सा उतारते हुए लिख मारा कि जब यौन शोषण के आरोप के बाद बीजेपी  ने सांसद की टिकिट दे दी और जनता ने जीता दिया तो फिर झेलो...।

ग़ुस्सा कितना जायज है? लेकिन कठुआ के बलात्कारियों का स्वागत करने की बेशर्मी पर चुप्पी  और बिल्किस बानों के बलात्कारियों की समय पूर्व रिहाई और  स्वागत  पर लोगों की ख़ामोशी क्या विचलित नहीं करता। या देश का गौरव बढ़ाने वाली महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह को सत्ता संरक्षण पर लोगों की चुप्पी ? क्या राजनैतिक दलों के हौसले बुलंद नहीं करता ?

राजनैतिक दलों के हौसले कितने बुलंद है, 'सत्ता का हौसला किस तरह उफान मारता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो बलात्कारी और छिछोरे राम-रहीम का हर चुनाव के पहले पैरोल पर रिहा हो जाना है। अब तक इस बलात्कारी को 12 बार से अधिक पैरोल मिल चुका है।

सत्ता के इस कृत्य पर किसने विरोध जताया। तब कदम, कदम पर राज्य दर राज्य आ  रहे बलात्कारियों के चेहरे और बढ़‌ती घटनाए क्या यह तय नहीं करती कि हम सबने मिलकर औरतों  को मारा है और रोज मार रहे हैं...।

बुधवार, 21 अगस्त 2024

चौधरी को छवि की चिंता...

 चौधरी को छवि की चिंता...


यह तो बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना अमित शाह जैसे कद्‌दावर नेता के खासमखास और प्रदेश सरकार के दमदार मंत्री ओपी चौधरी को अपनी छवि सुधारने के लिए इतनी कवायद नहीं करनी पड़ती।

कहा जा रहा है कि ३३ हजार शिक्षकों की भर्ती वाले मामले में विडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया में जिस तरह से ओपी चौधरी के ख़िलाफ़ बेरोजगारों ने मोर्चा खोला है उससे ओपी चौधरी अपनी छवि को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गए है, हालाँकि कलेक्टरी के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप भी उन पर कम नहीं है, लेकिन अमित शाह के वरदहस्त में सुपर सीएम की कथित पदवी से उत्साहित ओपी चौधरी ने जिए ताह से सत्ता और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत की थी वह उतनी ही तेजी से फिसलता जा रहा है।

और शायद यही वजह है कि उन्होंने अब अपनी छवि नये सिरे से गढ़ने की कवायद करने में  लग गये  हैं। दरअसल ओपी चौधरी यह बात भूल गये हैं कि एक बार छवि बिगड़ गई तो उसे सुधारना बड़ा टेढ़ा काम है लेकिन नौकरशाही का रुतबा उन्हें हार नहीं मानने दे रहा है, ऐसे में चर्चा  इस बात की भी है कि नेशनल प्रोपेगेंडा ग्रुप भोपाल वाले ने ठेका लिया कि वे हर हप्ते अपने सबसे बड़े पोर्टल में उनकी छवि सुधारेंगे तो दर्जन भर पोर्टल को भी छवि सुधारने की जिम्मेदारी तो दे दी गई लेकिन छवि है कि...!

राजीव गांधी को क्यों याद किया जाना चाहिए...

 राजीव गांधी को क्यों याद किया जाना चाहिए...


युवा प्रधानमंत्री, मिस्टर क्लीन के रूप में चर्चित रहे इंदिरा के बेटे राजीव गांधी की असमय मृत्यु ने देश को नई आधु‌निक सोच के साथ काम करने वाले को ही नहीं खोया था, बल्कि  उस  नये भारत की उम्मीद की नींव को भी धराशाही कर दिया था, जो विश्व में युवाओं ने जो सपने पाल रखे थे।

समूचा देश २० अगस्त को जब उन्हें याद कर रहा था तब मेरे ज़ेहन में रायपुर के उस छोटे से एयरपोर्ट में उनकी आमद  की धुंधली  तस्वीर में खो गया ।

हम रिपोर्टरों का समूह एक ही जगह पर खड़े थे और राजीव हम सबके बेहद नज़दीक। फोटोग्राफरों गोकूल सोनी - विनय शर्मा की सजग आँखें राजीव की एक एक हरकत पर

कैमरे को क्लीक कर रही थी तो तमाम कांग्रेसियों की नजर टकटकी लगाए राजीव को देख रही थी। हाथ हिलाते पत्रकारों के सामने से गुजरते हुए एक आवाज ने सबका ध्यान अपनी खीच लिया 

राजीव....

यही कहा था नेता शिवेन्द्र बहादूर सिंह ने। राजीव के लिए यह संबोधन जीतना सहज़ रहा होगा मौजूद लोगों के लिए उतना ही असहज । इस घटना की चर्चा अब भी होती है। राजीव और शिवेंद्र दून स्कूल के सहपाठी थे।

लेकिन वे जितने सहज और सरल थे उतने ही संवेदनशील और बेबाक ।

गांवों की बदहाली उन्हें भीतर तक सालती रही होगी इसलिए उन्होंने जब कहा कि केंद्र सरकार एक रुपये भेजतीं है वह गाँव तक पहुंचते पहुंचते 25 पैसे रह जाते है तब विपक्ष ने राजीव के इस कथन को कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार के रूप में प्रस्तुत प्रस्तुत करने लगे और आज भी गाहे-बगाहे कांग्रेस राज में भ्रष्टाचार  के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। 

राजनैतिक चालबाज़ी से दूर 1984 के दंगों पर उनकी टिप्पणी को  भी विपक्ष  ने कांग्रेस के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो....! लेकिन यह बात उन्होंने इंदिरा की जयंती समारोह में तब कही थी जब दंगे समाप्त हो चुके थे।

श्रीलंका में शांति  सेना भेजने की बात हो या उन पर हमला ।' कोई कैसे भूल सकता है।

इस देश को राजीव को क्यो याद कर नमन करना चाहिए यह बताने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि उनकी हत्या की खबर जब लोगों तक पहुंची तब तक शाम का अंधेरा गहरा चुका था, दोपहर की इस घटना की खबर जब प्रेस तक पहुंची तो रोजमर्रा के कामकाज ऊफान पर था।

खट् खट् करते टेली प्रिंटर से आई इस खबर को देखकर सहसा किसी को भरोसा नहीं हो रहा था । पर नियति ने अपनी इबादत लिख दिया था । तब मैं दैनिक स्वदेश में रिपोर्टर की हैसियत से काम कर रहा था।

फ़्रंट पेज प्रशांत शर्मा देखते थे। उन्होंने ही यह खबर पहले दी थी, और इसके बाद आनन फानन में बुलेटिन निकाला गया था ।

राजीन के इस असमय चले जाने को लेकर देश भर से शोक संवेदनाओ ने टेली प्रिंटर की स्पीड बड़ा दी थी और  छोड़ गई राजीव की वह यादें जिसके लिए यह देश उन्हें हमेशा याद रखेगा।

राजीव ने इस देश को क्या दिया इसका सबसे अच्छा जवाब यह है कि आज जो दूरसंचार, डिजिटल हेडिया, सोशल मीडिया जो  कुछ भी दिखाई दे रहा है, उसके पीछे का मूल विचार राजीव का ही था। उन्होंने दूरसंचार क्रांति लाई। सी डॉट  से लेकर एमटीएनएल जैसी  कंपनियां उन्ही की देन है।

90 के दशक में जब लोग बेरोजगारी से जूझ रहे थे तब लाखों लोगों को रोजगार देने वाला एसटीडी पीसीओ बूथ उनकी ही देन है। स्वरोजगार का वर्तमान मॉडल जनसेवा केंद्र की नींव भी राजीव की सोच है।भारत का युवा आईटी सेक्टर में जो झंडे गाड़ रहा है उसके पीछे एक छोटी उम्र के प्रधानमंत्री की बड़ी सोच है । राजीव गांधी ने देश में कंप्यूटर क्रांति लाने का काम किया राजीव विज्ञान और तकनीक की ताकत जानते थे उन्होंने सस्ते कंप्यूटर के लिए इंपोर्ट ड्यूटी कम कर दी थी . रेलवे में कम्प्यूटरों का इस्तेमाल करके टिकीटिंग भी शुरू करवाई. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 1970 में देश में पब्लिक डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स की शुरुआत हो गई थी लेकिन आईबीएम के साथ देश मे कम्प्यूटर के व्यवसायिक उपयोग को गति राजीव के प्रयासों से ही मिली थी आज अगर भारत आईटी सेक्टर का सुपर पावर है तो उसकी एक वजह राजीव की सोच है।

राजीव गांधी को 21 वीं सदी के महान लोकतंत्र का सबसे बडा कैटेलिस्ट माना जाना चाहिए।  राजीव सरकार ने 1989 में संविधान के 61 वें संशोधन के जरिए वोट देने की उम्रसीमा 21 से घटाकर 18 वर्ष कर इस लोकतंत्र की जवान कर दिया, तो पंचायत राज अधिनियम लाकर ग्रामीण भारत को शहर के बराबर शक्तिशाली बनाया।

राजीव गांधी ने शिक्षा क्षेत्र में क्रांति की पहल करते हुए नवोदय विद्यालयों की शुरुआत की और गाँव के बच्चों को भी उत्कृष्ट शिक्षा मिले इसलिए गाँव -गाँव मे नवोदय विद्यालय खोलकर बच्चों को कक्षा 6 से 12 वीं तक की मुफ्त शिक्षा और हॉस्टल में रहने की सुविधा दी और आज नवोदय विद्यालय के विद्यार्थी पूरे देश विदेश मैं देश का झंडा ऊंचा कर रहे है

ये है इंदिरा के बेटे की सोच जिसकी वजह से उन्हें देश हमेशा याद रखेगा।

मंगलवार, 20 अगस्त 2024

अमित शाह का टेंशन और हिदुत्व का खेल...

 अमित शाह का टेंशन और हिदुत्व का खेल...


इधर देश में बलात्कारियों की करतू‌तों को लेकर हंगामा मचा हुआ है, मणिपुर जल रहा जम्मू तक में आकर आतंकवादी अपनी करतू‌तों को अंजाम दे रहे हैं लेकिन देश के गृह मंत्री अमित शाह को बंग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं की घटती संख्या को लेकर टेंशन है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिंदुओं की  कथित दुर्दशा और कम होती जनसंख्या का सच क्या है। क्या  यह पूरा खेल भारत में हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण का खेल है। 

क्या लोगों को सच से दूर रखकर एक ख़ास वर्ग के प्रति नफरत फैलाकर अपनी राजनीति साधाने का प्रयास हर चुनाव के पहले किया जाता है।

ये सच है कि 1941 की जनगणना के मुताबिक वेस्ट पाकिस्तान (वर्तमान) में 14 फीसदी हिदू थे और ईस्ट पाकिस्तान (बांग्लादेश) में 26 फीसदी हिन्दू थे।

ऐसे में पाकिस्तान और बाग्लादेश मैं वर्तमान में हितुओं की संख्या  को लेकर बवाल मचाया जाता है कि देखिये पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिदुओं को काट डाला गया।

बहरहाल पाकिस्तान और बाग्लादेश में हिंदुओं की संख्या घटने के तीन प्रमुख कारण है जिसमें से पहला कारण तो सिम्पल स्टेस्टिक्स है तो दूसरा कन्वर्जन जबकि तीसरा कारण

माइग्रेशन है। इन तीनों कारणों से पहले के कारण भी महत्वपूर्ण है जो हिंदुओं की आबादी कम होने की वजह है।

अब 1941 की जनसंध्या के आंकड़े से आगे आ जाइये 1947 में। और 1947 के विभाजन में 50 लाख हिन्दू और सिख वेस्ट पाकिस्तान से भारत आ गये तब 1951 की जन‌ग़णना में हिन्दुओं की संख्या दो फीसदी रह गई। तब से लेकर आजतक उनकी जनसंख्या प्रतिशत में लगभग उतनी है बल्कि 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

ईस्ट पाकिस्तान से भी बंटवारे के दौरान यानी 1947 में हिंदुओं की जनसंख्या  26 से गिरकर 22 फ़ीसदी हो गई।

लेकिन 1970 में पाकिस्तानी सरकार ने तमाम बंगालियों पर अत्याचार किये । मार्शल लॉ लगाया। दो करोड़ हिंदू शरणार्थी भारत की शरण में आ पहुंचे। मुसलमान कहां जाते इसलिए वे वही रहे, वे वहीं मरते रहे, अत्याचार सहते रहे।

अब 7 करोड़ की जनसंख्या में दो करोड़ यदि भारत आ गए तो हिसाब लगा लिजिए कि बांग्लादेश में हिन्दु‌ओं की संख्या कितनी घटी। तब से आज तक ओवर ऑल हिदुओं की संख्या 9-10 फीसदी बची है जो आज भी उतनी ही हैं।

इसी 9-10 फ़ीसदी आंकड़े को पकड़‌कर गृह मंत्री अमित शाह कलह मचाये हुए हैं।

जनसंख्या  घटने का एक और कारण कन्वर्जन को लेकर जो हल्ला मचाया जाता है वह कन्वर्जन प्रासिक्यूशन वहां भी वैसा है जैसे इंडिया में।

ईज्ज़त नौकरी, न्याय  अधिकार को लेकर कन्वर्जन इंडिया में क्या कम हुए है।

जहां तक धर्म के आधार पर विभाजन की बात है तो यह बिल्कुल गलत है लेकिन अमित शाह फिर द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को मुस्लिम लीग के साथ तालमेल बिठानेवाले सावरकर को सर आँखों पर क्यों  बिठाते हैं?

हैरानी की बात तो यह है कि सारा सच इंटरनेट पर मौजूद होने के बाद भी यदि लोग़ राष्ट्रवाद के नाम पर परोसे जा रहे झूठ  पर आखें बंद किये हुए है तो फिर गलत लोगों को राज करने से कोई कैसे रोक सकता है!

सोमवार, 19 अगस्त 2024

अंधा बाँटे रेवड़ी...

 अंधा बाँटे रेवड़ी...


यह तो अंधा बाँटे रेवड़ी... की कहावत को ही चरितार्थ करता है, वरना खेल विभाग के द्वारा  खेल अलंकरण और पुरस्कार को लेकर इतना गोल माल नहीं होता, कहा जाता है कि अपने लोगों को उपकृत करने में लगी छत्तीसगढ़ की डबल इंजन सरकार के खेल मंत्री टंकराम वर्मा की इस टंकार से खिलाड़ियों में ग़ुस्सा भर गया है और वे इसे लेकर प्रधानमंत्री तक शिकायत करने लगे है।

पीएगिरी से मंत्री तक के सफ़र में खेल मेत्री के कारनामें की चर्चा नया नहीं है, कहा जाता है कि जब वे पीएगिरी कर रहे थे तब भी अपनी लाला वाले रोल से चर्चित थे। चर्चित तो वे अपने गृह जिले में खेलों की बदहाली को लेकर भी है लेकिन इस बार चर्चा खेल अलंकाण और खेल पुरस्कार को लेकर है।

भूपेश सरकार के दौरान इसके लिए तरस रहे खिलाड़ियों व खेल संगठनों की उम्मीद पर पानी तब फिरने लगा जब पुरस्कारों की सूची जारी हुई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अवॉर्ड के लिए खेल विभाग ने एक ऐसे खेल संघ को पात्रता दे दी, जिसे विभागीय मान्यता 7 जुलाई 2024 को दी गई। यहां बात नॉन ओलंपिक गेम किक बॉक्सिंग की हो रही है। जिस वर्ष में उपलब्धि के लिए खिलाड़ियों से आवेदन आमंत्रित किए गए हैं, उस वर्ष में तो किक बॉक्सिंग को विभागीय मान्यता मिली थी या नहीं, इस पर भी अब प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है। इस खेल में कोरबा की श्रेया शुक्ला और कृष्णकुमार डडसेना को वर्ष 2021- 22 एवं वर्ष 2022-23 में शहीद कौशल यादव पुरस्कार की पात्रता खेल विभाग की पुरस्कार समिति ने दी है। इसे लेकर अब खिलाड़ियों में चर्चा शुरू हो गई। इतना ही नहीं सीनियर वर्ग के शहीद राजीव पांडेय पुरस्कार के लिए ओलंपिक खेलों की सूची में वुशू को शामिल करके वेटलिफ्टिंग के पदक विजेता खिलाड़ी को दरकिनार कर दिया गया। वुशू में राजनांदगांव के डी. पार्थ को इसकी पात्रता दी गई है। वहीं सीनियर नेशनल वेटलिफ्टिंग के पदक विजेता रायपुर के विजय कुमार को इस अवॉर्ड की पात्रता से अलग कर दिया गया है। इसे लेकर वुशू के सीनियर खिलाड़ी प्रतीक सिंह ने कहा कि डी. पार्थ का सीनियर वर्ग में कोई पदक नहीं है, वह जूनियर वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भाग लिया था। इधर वेटलिफ्टर विजय कुमार ने वुशू को ओलंपिक गेम कैसे माना जा रहा है।

वर्ष 2022-23 के शहीद राजीव पांडेय पुरस्कार नियम में सात खिलाड़ियों को पुरस्कृत करने का प्रावधान है। लेकिन खेल विभाग द्वारा जारी सूची में केवल 6 खिलाड़ियों को ही इसकी पात्रता दी गई। इसमें ओलंपिक गेम से 4 खिलाड़ियों को शामिल किया गया, लेकिन नॉन ओलंपिक व पैरास्पोर्ट्स से 1-1 खिलाड़ी नामित किये गये।

वर्ष 2008 के बीजिंग ओलंपिक में इसे केवल प्रदर्शन के लिए रखा गया था। मेडल टेली में इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं है। 

एक खिलाड़ी को रस्साकशी में दो पुरस्कार खेल विभाग की जारी सूची में टग ऑफ वार (रस्साकशी) की खिलाड़ी रायपुर की नेहा यादव को वर्ष 2021-22 के शहीद कौशल यादव पुरस्कार के लिए नामित किया गया है।

यही खिलाड़ी वर्ष 2021-22 के मुख्यमंत्री ट्रॉफी पुरस्कार के लिए नामित 10 खिलाड़ियों

के दल में भी शामिल है। इस प्रकार एक खिलाड़ी को एक ही वर्ष में दो अलग-अलग

पुरस्कार की पात्रता कैसे दी गई, इस पर भी आपत्ति दर्ज कराई जा रही है।

राज्य के लिए पदक विजेता राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों और उन्हें इसके लिए तैयार करने वाले प्रशिक्षकों के अधिकारिक रूप से जारी कर दी।


रविवार, 18 अगस्त 2024

उठो द्रोपदी...

 उठो द्रोपदी...



पिछले एक सप्ताह से अचानक सोशल मीडिया में उठो द्रौपदी... शास्त्र उठा लो, अब गोविन्द न आयेंगे की गूंज तेज होने लगी।

लेकिन क्या द्रोपदी के शस्त्र उठाने को यह समाज बर्दाश्त कर पायेगा?

इस दौर में शस्त्र उठाने वाले द्रौपदी को छिनाल कहने से क्या वे चुकेंगे?

याद किजिए जब विनेश फोगाट, साक्षी मलिक ने छोटे-छोटे बच्चियों की छाती पर हाथ धरने वाले के खिलाए जब शस्त्र उठाया था, तब क्या उन्हें छिनाल कहने वाले वहीं लोग नहीं थे जो अब उठो द्रोपदी.. का राग अलाप रहे हैं।

किस तरह से पूरी सरकार छिछोरा बृजभू‌षण शरण सिंह को बचाने कूद पड़ी थी।

कुलदीप सेंगर, चिन्म्यानंद और बृजभूषण शरण सिंह जैसे छिछोरों को भगवान की तरह जब तक पूजा जाता रहेगा,  क्या कोई द्रोपदी शस्त्र उठा पायेगी?

शस्त्र तो उस द्रौपदी ने भी उठाने की हिम्मत नहीं कि क्योंकि राजा धृतराष्ट्र था और भीष्म-द्रोणाचार्य की भूमिका दुर्योधन - दुसाशन की जय करने की थी।

अपराजेय निवेश के स्वदेश लौटने के बाद हुए स्वागत देख जिनकी  छाती में अब भी साँप लोट रहे हैं, वे भी द्रोपदी को शस्त्र उठाने का हुंकार भर रहे हैं। 

इन शस्त्र उठाने की हुंकार भरने वाले क्या अपने राजनैतिक दलों में मौजूद छिछोरों को पार्टी से हटाने की मांग कर पायेंगे।

शस्त्र द्रोपदी को नहीं अर्जुन को उठाना होगा, तभी धृतराष्ट्र के संरक्षण द्रोपदी को जंघा में बिठाने का दुस्साहस बंद होगा।

एक प्रदर्शन इन राजनैतिक दलों में मौजूद छिछोरों को पार्टी से निकाले जाने के खिलाफ भी होना चाहिए ।

शनिवार, 17 अगस्त 2024

बुरी तरह फँस गये विधायक...

 बुरी तरह फँस गये विधायक...


पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सबसे करीबी विधायक देवेंद्र यादव को छत्तीसगढ़ की पुलिस ने गिरफ़्तार कर ही लिया। उनकी गिरफ्तारी की आशंका तो उसी दिन जाहिर कर दी गई थी, जब डबल इंजन सरकार के तीन-तीन मंत्रियों ने बतौदाबाजार हिंसाकांड  के बाद कांग्रेस के नेताओ की तस्वीर  जारी करते हुए हिंसा फैलाने का आरोप लगाया था।

सतनामी समाज के जैतखंभ को काटे जाने के विरोध में बलौदाबाजार में समाज के प्रदर्शन के दौरान इस तरह लोग बेकाबू हो गये कि एसपी दफ़्तर। , कलेक्ट्रोरेट परिसर को फूंक दिया था। इसके बाद सरकार ने आनन फानन में बलौदाबाजार के कलेक्टर और एसपी को हटा दिया लेकिन जब मामला तूल पक‌ड़ने लगा तो एसपी - कलेक्टर को निलंबित करना पड़ा।

इसके बाद पुलिस ने प्रद‌र्शन में उपस्थित सतनामी समाज के नेताओकी गिर‌फ्तारी शुरु कर दी तो सर‌कार पर यह आरोप भी लगने लगा कि वह निर्दोष लोगों को न केवल गिरफ्तार कर रही है बल्कि मारपीट और  प्रताडित भी कर रही है।

प्रदर्शन में शामिल मिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव पर तीन-तीन मंत्रियों ने प्रेसवार्ता ले कर गंभीर आरोप लगाये थे और इसके बाद जब पुलिस ने देवेन्द्र यादव को पूछताछ के लिए बुलाया तभी से उन पर गिफ्तारी की तलवार लटकने लगी थी।

कल सुबह 6 बजे अचानक पुलिस देवेन्द्र यादव के घर पहुंच गई, और पुलिस के पहुंचने की खबर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बेज सहित बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता यादव के घर पहुंच गये । एक पुलिस अधिकारी ने इस बात की जानकारी दी। वहीं यादव ने भाजपा सरकार पर आगजनी मामले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को फंसाने का आरोप लगाया।बलौदाबाजार के पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल ने बताया कि यादव को दुर्ग जिले में उनके आवास से गिरफ्तार किया गया। पुलिस की कार्रवाई की खबर फैलने के बाद दुर्ग के भिलाई नगर इलाके में यादव के आवास के बाहर उनके कई समर्थक जमा हो गए और नारेबाजी करने लगे। पार्टी का प्रभावशाली युवा चेहरा यादव भिलाई नगर निर्वाचन क्षेत्र से दूसरी बार विधायक हैं।अग्रवाल ने बताया कि यादव को बलौदाबाजार आगजनी की घटना में कोतवाली पुलिस थाने में दर्ज मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है।

यह मामला भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 147 (दंगा करने की सजा), 186 (किसी लोक सेवक को अपने कर्तव्यों का पालन करने से स्वैच्छिक रूप से रोकना), 353 (लोक सेवक को अपने कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग), 307 (हत्या का प्रयास) और अन्य तथा सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 1984 के तहत दर्ज किया गया था।अग्रवाल ने बताया कि यादव को स्थानीय अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 20 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। सूत्रों के अनुसार, पुलिस ने यादव को बयान दर्ज करने के लिए कम से कम तीन बार बुलाया था, लेकिन उन्होंने सहयोग नहीं किया, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

बलौदाबाजार से पुलिस के जवान दुर्ग पुलिस के साथ सुबह करीब 7 बजे यादव के घर पहुंचे। खबर फैलते ही यादव के समर्थकों ने विधायक को बचाने की कोशिश की और नारे लगाए। एक अधिकारी ने बताया कि पुलिस शाम करीब 5 बजे यादव को अपने साथ ले जाने में कामयाब रही।

इस साल 15 और 16 मई की मध्य रात्रि को बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के गिरौदपुरी धाम में अमर गुफा के पास अज्ञात व्यक्तियों ने सतनामी समुदाय द्वारा पूजे जाने वाले पवित्र प्रतीक ‘जैतखाम’ (विजय स्तंभ) को तोड़ दिया था, जिसके बाद जून में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था।

10 जून को, बलौदाबाजार शहर में ‘विजय स्तंभ’ की कथित तोड़फोड़ के खिलाफ सतनामियों द्वारा विरोध प्रदर्शन के दौरान भीड़ ने एक सरकारी कार्यालय भवन और 150 से अधिक वाहनों में आग लगा दी, जिसके कारण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 लागू कर दी गई।

यादव सहित कांग्रेस नेताओं ने कथित तौर पर दशहरा मैदान में सतनामियों द्वारा आयोजित प्रदर्शन के दौरान एक सार्वजनिक बैठक में भाग लिया था। 10 जून की आगजनी के सिलसिले में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) और भीम “रेजिमेंट” के सदस्यों सहित लगभग 150 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।मध्यकालीन समाज सुधारक बाबा गुरु घासीदास द्वारा स्थापित प्रभावशाली सतनामी समुदाय, छत्तीसगढ़ में सबसे बड़े अनुसूचित जाति समूह का प्रतिनिधित्व करता है।

सत्तारूढ़ भाजपा की आलोचना करते हुए यादव ने कहा कि वह सरकार से नहीं डरते और जनता के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने भिलाई में कहा, “राज्य सरकार बलौदाबाजार आगजनी मामले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को फंसाने की कोशिश कर रही है। सतनामी समुदाय के युवाओं और निर्दोष लोगों के लिए आवाज उठाने पर सरकार ने मेरे खिलाफ कार्रवाई की। मैं सरकार से नहीं डरता और कानूनी लड़ाई लड़ रहूंगा।” यादव ने दावा किया कि वह पहले भी बलौदाबाजार पुलिस के समक्ष सम्मन मिलने पर उपस्थित हुए थे।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यादव की गिरफ्तारी को राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया और पुलिस से राजनीतिक दबाव में कार्रवाई नहीं करने को कहा।

बघेल ने आरोप लगाया, “पूरे घटनाक्रम में सरकार और पुलिस की भूमिका संदिग्ध है। भाजपा के किसी भी सदस्य से न तो पूछताछ की गई और न ही उन्हें गिरफ्तार किया गया, जबकि घटना में उसके पूर्व विधायक सनम जांगड़े की कथित भूमिका सामने आई थी।” सतनामी समुदाय के प्रदर्शन का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें यादव न तो मंच पर चढ़ते हैं और न ही वहां लंबे समय तक इंतजार करते हैं। उन्होंने कहा कि देवेंद्र यादव की गिरफ्तारी पूरी तरह से राजनीतिक द्वेष के कारण की गई है और हम इसका विरोध करते हैं।

बघेल ने कहा, “हम कानूनी सुझाव लेंगे और उसके अनुसार आगे की कार्रवाई तय करेंगे।” यादव, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान सामने आए कथित कोयला लेवी घोटाले के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय और राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो/आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज मामलों में भी आरोपी हैं

शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

चुनाव आयोग की घोषणा में सत्ता की बेशर्मी...

 चुनाव आयोग की घोषणा में सत्ता की बेशर्मी...


चुनाव आयोग ने हरियाणा और जम्मूकश्मीर में चुनाव की तारीख की घोषणा कर दी, लेकिन इसी साल के अंत तक होने वाले दो अन्य राज्य महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसमा के चुनाव होने है उसकी घोषणा कब होगी और राजनैतिक दलों को इन राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए कितना समय दिया जायेगा अभी केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है। ऐसे में सवाल देश के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की उस दंभोक्ति का क्या जो एक देश-एक चुनाव को लेकर जनता में भ्रम पैदा करता रहा है।

यदि चार राज्यों के चुनाव की तारिखो  का एलान नहीं हो पा रहा है तो फिर एक राष्ट्र-एक चुनाव के सपने दिखाने का मतलब क्या निकाला जाना चाहिए।

दरअसल चुनाव आयोग की इस चुनावी एलान में मोदी सत्ता की बेशर्मी का वह खेल को उजागर कर दिया है जो राजनीति को अपने अनुकूल साधने में लगा है।

जम्मू कश्मीर में चुनाव दस साल बाद होंगे। वह भी सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख़ की वजह से। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर में चुनाव के लिए जो समय सीमा तय की थी , उसकी वजह से वहां चुनाव हो रहे हैं कहा जाय तो गलत नहीं होगा।

लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र में तो नवम्बर में हर हाल में नई सरकार का गठन हो जाना है तब सिर्फ हरियाणा में ही विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा क्या महाराष्ट्र में मोदी सत्ता को घोषणाओं के लिए समय देना नहीं है?

अब तक के रिकाई बताते हैं कि महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा एक साथ होते रही है और दोनों ही राज्यों में एनडीए या बीजेपी की सरकार भी है। तब एक ही साथ तारीख के एलान में इस बार क्या परेशानी हो गई। 

दोनों ही राज्यों में बीजेपी की हालत बेहद खराब होने का संकेत तो लोकसभा चुनाव के परिणाम ने दे दिया है तब क्या इस संकेत से डरी सत्ता ने यह खेल खेला है जिस पर चुनाव आयोग की मुहर लग गई है।

सवाल तो उठेंगे ही जब चुनाव आयोग लगातार सत्ता के अनुकुल तारीखों का एलान करेगा। हरियाणा में नवम्बर के पहले सप्ताह और महाराष्ट्र में नवम्बर  के आखरी सप्ताह में नई सरकार का गठन होना है?

जम्‍मू कश्‍मीर और हरियाणा में चुनावों का ऐलान कर दिया गया है. चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में जम्‍मू कश्‍मीर में तीन चरणों में 18 सितंबर से मतदान की घोषणा की है. वहीं हरियाणा में एक अक्‍टूबर को वोट डाले जाएंगे. मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का मतदान 18 सितंबर को, दूसरे चरण का मतदान 25 सितंबर को और तीसरे चरण का मतदान एक अक्टूबर को होगा. वहीं मतगणना चार अक्टूबर को होगी. इसी तरह से हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए एक अक्टूबर को मतदान और चार अक्टूबर को मतगणना होगी. 

मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त राजीव कुमार ने कहा कि जम्‍मू कश्‍मीर के लोग तस्‍वीर बदलना चाहते हैं. जम्‍मू कश्‍मीर के लोगों ने हिंसा को नकारा है. उन्‍होंने कहा कि 20 अगस्त को मतदाता लिस्ट जारी होगी. उन्‍होंने कहा कि चुनाव के लिए लोगों में ललक दिखी है. 


निर्वाचन आयोग को जम्मू-कश्मीर में 30 सितंबर से पहले विधानसभा चुनाव कराने थे. यह समय सीमा सुप्रीम कोर्ट ने तय की थी. आयोग ने चुनाव संबंधी तैयारियों का जायजा लेने के लिए हाल में जम्मू-कश्मीर और हरियाणा का दौरा किया था. 

बांग्लादेश के हिदु‌ओं के लिए 25 सदस्यीय जत्था का तीर्थ यात्रा

 बांग्लादेश के हिदु‌ओं के लिए 25 सदस्यीय जत्था का तीर्थ यात्रा


बांग्ला देश के हालात को लेकर वैसे तो पूरा देश चिंतित है। ऐसे में वहां रह रहे हिन्दू समाज पर अत्याचार की खब‌रें विचलित करने वाली है। बांग्लादेश में शांति बहाली और हिंदुओं की जान माल की सुरक्षा को लेकर रायपुर उत्तर विधानसमा के पूर्व विधायक और छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रवक्ता श्रीचंद सुन्दरानी ने बालाजी महालक्ष्मी और रामेश्वरम की यात्रा की।

भाजपा प्रवक्ता श्री चंद सुंदरानी ने बगया कि बांग्लादेश की खबरें चिंताजनक है और वहां के हिदु‌ओं पर जिस तरह से हमले हो रहे हैं वे हिन्दुसमान के लिए चिंता की बात है और हिन्दू समाज के जानमाल की सुरक्षा और बांग्लादेश में शांति बहाली के लिए उन्होंने 25 सदस्यीय जत्था के साथ तिरुपति, बेल्लूर और रामेश्वरम् की यात्रा की जहां ईश्वर से हिन्दु समाज की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की।

उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में जिस तरह के हालात की खबरें आ रही है उससे पूरा मानव समाज़ चिंतित है इसलिए उन्होंने 25 सदस्यीय जत्थे के साथ यह धार्मिक यात्रा की।

उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि भगवान् सबकी सुनते है और  बांग्लादेश में भी शीघ्र ही न केवल शांति बहाली होगी बल्कि हिन्दुओ के साथ हो रहे अत्याचार के मामले में भी न्याय होगा।

उनके साथ यात्रा में गये मोहन सुंदरानी ने कहा कि वे पहले भी कई धार्मिक यात्रा त्रा कर चुके हैं लेकिन यह यात्रा अद्‌भूत रही, और भगवान भोलेनाथ इस यात्रा के ध्येय को सफल बनायेंगे। यात्रा में मनोज दुबे, अर्जुनदास वासवानी, हरिभाई तलरेजा, नंदकिशोर अग्रवाल,अशोक कुमार मुजवारी, श्रीचंद कालाणी, दयाल राजपाल, गुलाब असरानी, नारायण हिदुजा,पवन कुमार भुलवानी, सुरेश परप्यानी शामिल थे।

पांच दिवसीय इस धार्मिक यात्रा में तिरुपति बालाजी, वेल्लूर में महालक्ष्मी और रामेश्वरम् ज्योर्लिंग के दर्शन कर हिंदुओं की सुरक्षा के लिए प्रार्थना की गई।

शनिवार, 10 अगस्त 2024

टीकाराम का ना टोटका काम आया, न चालबाजी !

 जिला शिक्षाअधिकारी बुरी तरह फँसे...


टीकाराम का ना टोटका काम आया, न चालबाजी !


आर्थिक अपराध शाखा की जद में आये बिलासपुर में जिला शिक्षा अधिकाटी के पद पर पदस्थ टीकाराम साहू की मुसिबत बढ़ते ही जा रही है। कहा जाता है कि अपनी काली कमाई को छुपाने के लिए परिवार के लोगों को भी टीकाराम ने करोड‌पति बना  दिया था तो तरह-तरह के टोटके भी किये जाने की खबर है ताकि उनकी करतूत उजागर न हो।

मूल रूप से कवर्धा निवासी टीकाराम साहू के बारे में कहा जाता है कि व्याख्यता से जब वे विकासखंड शिक्षा अधिकारी बने तभी से उन्होंने जमकर कमाना शुरु कर दिया था और

राजर्नादगांव जिले के तीन विकासखंडों में शिक्षा अधिकारी के रूप में वे बेहद चर्चितभी थे। कहा जाता है कि उस दोर में उनकी उमक की वजह से कोई शिकायत करने की हिम्मत भी नहीं करता था। लेकिन रमन राज के बाद उनके खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा बनना शुरु हो गया।

कहा जाता है कि आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में उन्हें कोर्ट से भी राहत नहीं मिलने से उनकी मुसिबत बढ़ गई है। एसीबी के मुताबिक जो संपत्ति उजागर हुआ है उसकी बानगी हैरान कर देने वाला है। पढिये छापे में कहां-कहां मिली प्रॉपर्टी

1988 में व्याख्याता के पद से नौकरी की शुरुवात करने वाले बिलासपुर के जिला शिक्षा अधिकारी टीकाराम साहू ने बीईओ और डीईओ के पद पर रहने के दौरान करोड़ों रुपए की करीबन दो दर्जन संपत्तियां बनाई हैं। शिकायत सत्यापन के पश्चात आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने अपराध दर्ज कर लिया है।

टीकाराम साहू के खिलाफ दर्ज FIR में उनके द्वारा अर्जित चल अचल संपत्ति का विवरण भी दिया है। टीकाराम साहू ने आय के ज्ञात स्रोतों से काफी अधिक मात्रा में स्वयं और परिवार के सदस्यों के नाम से करोड़ों रुपए की संपत्ति अर्जित की है।

56 वर्षीय टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू मूलतः कवर्धा के श्याम नगर वार्ड क्रमांक 8 के रहने वाले हैं। 7 अक्टूबर 2023 से वे जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं। टीकाराम साहू की प्रथम नियुक्ति 20 दिसंबर 1988 को व्याख्याता के पद पर शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खैरागढ़ जिला राजनंदगांव में हुई थी। इसके बाद भी विकासखंड शिक्षा अधिकारी के पद पर कबीरधाम, छुईखदान कवर्धा, में मलाईदार पदों पर रहे। 7 अक्टूबर 2023 से बिलासपुर में जिला शिक्षा अधिकारी हैं।

01- संपत्ति धारक का नाम टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी- वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम, संपत्ति का विवरण जी श्यामनगर, विजय ग्रीन पथ में 40x60 में 2400 वर्गफुट में दो मंजिला सर्वसुविधायुक्त मकान। इस भूमि पर कवर्धा में मकान बनाया गया है जिसकी अनुमानित कीमत लगभग, ई-स्टाम्प राशि 30 लाख रुपये है।

02-संपत्ति धारक का नाम टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 88/34, 89/26 रकबा 0.014 हेक्टेयर जमीन टीकाराम साहू के नाम पर दिनांक 20 नवम्बर 2017 को क्रय किया गर रजिस्ट्री दिनांक-20/11/2017, ई-स्टाम्प राशि 4,74,000/- रुपये

03-संपत्ति धारक का नाम टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 360/1 रकबा 0.403 हेक्टेयर जमीन 13 जून 2018 को क्रया किया गया। रजिस्ट्री दिनांक 13/06/2018, ई-स्टाम्प राशि 3,24,500/-

04- संपत्ति धारक का नाम टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा • जिला कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 359/1 रकबा 0.130 हेक्टेयर जमीन दिनांक 9 सितम्बर 2018 को क्रया किया गया। रजिस्ट्री दिनांक- 11/09/2018 ई-स्टाम्प राशि -1,05,00005-

05–संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड कवर्धा, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण अटल विहार योजना मकान नं. एलआईजी. 117 मैनपुरी, कवर्धा, जिला कबीरधाम रजिस्ट्री दिनांक 31/05/2019, ई-स्टाम्प राशि -6,35,840/- रुपये

06- टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा, जिला-कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम-नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 350 रकबा 0.129 हेक्टेयर जमीन दिनांक 4 अगस्त 2021 को क्रया किया गया। रजिस्ट्री दिनांक 04/08/2021, ई-स्टाम्प राशि 1,53,000 रु

07- संपत्ति धारक का नाम टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा जिला कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम-नवागांव (का०) पहन- 29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 220/12, रकबा 0.158 हेक्टेयर जमीन दिनांक 22 जुलाई 2022 को क्रय किया गया रजिस्ट्री दिनांक 22/07/2022, ई-स्टाम्प रात्रि 98,000/-

08- संपत्ति धारक का नाम- टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा, जिला- 3

कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम-नवागांव (का0) पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 220/10, रकबा 0.420 हेक्टेयर जमीन दिनांक 22 जुलाई 2000 को क्रय किया गया। रजिस्ट्री दिनांक 22/07/2022, ई-स्टाम्प राशि 2,60,000/- रुपये

09- संपत्ति धारक का नाम टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा जिला कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम सागौना प.ह.न.-02 रा.कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम-नवागांव (का0) पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 220/10, रकबा 0.420 हेक्टेयर जमीन दिनांक 22 जुलाई 2000 को क्रय किया गया। रजिस्ट्री दिनांक 22/07/2022, ई-स्टाम्प राशि 2,60,000/- रुपये

10– संपत्ति धारक का नाम टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी- वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम सागोना प.ह.न.-02 रा. नि.म. तहसील कवर्धा जिला कबीरधाम, में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 97/48 रकबा 0.018 हेक्टेयर जमीन दिनांक 28 नवम्बर 2022 को क्रय किया गया। रजिस्ट्री दिनांक 28/11/2022, ई-स्टाम्प राशि 3,37,000/- रुपये

11–संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी घोटिया रोड कवर्धा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू के नाम पर दिनांक 29 नवम्बर 2022 को पहन 03 रानिम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 44/1 का टुकड़ा रकबा 1200 वर्गफुट प्लाट नम्बर 26 क्रय किया गया है। रजिस्ट्री दिनांक 29/11/2022 प्लाट नंबर 26,27,28,29 का एक ई-स्टाम्प कुल राशि 17,14,000/- रुपये टीकाराम साहू एवं उनकी पत्नी के नाम निम्नलिखित संपतियों के संबंध में पुष्टिकृत जानकारी प्राप्त हुई है।

12–संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी घोटिया रोड़ कवर्चा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू के नाम पर दिनांक 29 नवम्बर 2022 को पहन 03 रानिम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 44/1 का टुकड़ा रकबा 1200 वर्गफुट प्लाट नम्बर 27 क्रय किया गया है।

12-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड़ कवर्धा, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग., संपत्ति का विवरण पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू के नाम पर दिनांक 29 नवम्बर 2022 को पहन 03 रानिम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 44/1 का टुकड़ा रकबा 1200 वर्गफुट प्लाट नम्बर 28 क्रय किया गया है।

13-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी घोटिया रोड कवर्धा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग.संपत्ति का विवरण पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू के नाम पर दिनांक 29 नवम्बर 2022 को पहन 03 रानिम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 44/1 का टुकड़ा रकबा 1200 वर्गफुट प्लाट क्रय किया गया है।

14- संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी घोटिया रोड कवर्धा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग संपत्ति का विवरण पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू के नाम पर 2022-23 को पहन 03 रानिम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 88/34, रकबा 0.014 वर्गफुट क्रय किया गया है।

15-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी घोटिया रोड कवर्धा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू के नाम पर दिनांक 2022-23 को पहन 03 रानिम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 452/9, रकबा 0.012 वर्गफुट क्रय किया गया है।

16-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड कवर्धा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू के नाम पर दिनांक 2020-21 को ग्राम खुटू, कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 120/10, रकबा 0.040 वर्गफुट क्रय किया गया है।

17-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड़ कवर्धा, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग., संपत्ति का विवरण ग्राम-नवघटा पहन- 29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 360/1 रकबा 0.403 हेक्टेयर

18- संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी घोटिया रोड कवर्धा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण ग्राम-नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 431/12 रकबा 0.049 हेक्टेयर 09-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा नाम पर दिनांक 2022-23 को पहन 03 रानिम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 452/9, रकबा 0.012 वर्गफुट क्रय किया गया है।

19-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड कवर्धा, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम संपत्ति का विवरण पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू के नाम पर दिनांक 2020-21 को ग्राम खुटु, कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 120/10, रकबा 0.040 वर्गफुट क्रय किया गया है।

18-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड़ कवर्धा, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग., संपत्ति का विवरण ग्राम-नवघटा पहन 29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 360/1 रकबा 0.403 हेक्टेयर

19- संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी घोटिया रोड़ कवाँ, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण ग्राम-नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 431/12 रकबा 0.049 हेक्टेयर

19-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी घोटिया रोड़ कवर्धा, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण-ग्राम-नबघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 468/12 रकबा 0.971 हेक्टेयर

20-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड़ कवर्धा, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण, ग्राम नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 501/3 रकबा 0.328 हेक्टेयर

21-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड़ कवर्धा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण ग्राम-नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 514/5 रकबा 0.235 हेक्टेयर

22-संपत्ति धारक का नाम - पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड कवर्धा, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति धारक का नाम ग्राम-नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 514/7 रकबा 0.060 हेक्टेयर

23-संपत्ति धारक का नाम पूर्णिमा साहू पति टीकाराम साहू उम्र 53 वर्ष, निवासी- घोटिया रोड़ कवर्धा, तहसील- कवर्धा, जिला कबीरधाम छ.ग. संपत्ति का विवरण. ग्राम-नवघटा पहन-29, रानिम व तहसील पिपरिया, जिला कवर्धा में टीकाराम साहू के नाम पर खसरा नंबर 359/1 रकबा 0.1300 हेक्टेयर

24-संपत्ति धारक का नाम टीकाराम साहू पिता कुंजराम साहू उम्र 56 वर्ष, निवासी- वार्ड नंबर 08, जी-श्याम नगर, तहसील कवर्धा, जिला कबीरधाम, संपत्ति का विवरण ग्राम कवर्धा तहसील व जिला कवर्धा खसरा नंबर 88/46 रकबा 0.025 हेक्टेयर जमीन टीकाराम साह के नाम पर क्रय किया गया।

शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

छत्तीसगढ़ में चार हजार से अधिक स्कूलों को बंद करने की तैयारी…

  छत्तीसगढ़ में चार हजार से अधिक स्कूलों को बंद करने की तैयारी शासन ने हाईकोर्ट में कैवियेट लगाया...



छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार ने युक्तीकाण के नाम पर चार हजार से अधिक स्कूलों को बंद करने का निर्णय लेने जा रही है और इस मामले में न्यायालयीन पचड़े से बचने हाईकोर्ट में कैवियेट भी दाखिल कर दिया है। इसके साथ ही अब  स्कूलों में 33000 शिक्षकों की भर्ती का मामला भी ठंडे बस्ते  में चला गया है।


छत्तीसगढ़ में बदहाल होती शिक्षा व्यवस्था को सुधार के नाम पर चल रहे इस खेल को लेकर सबसे बड़ी चर्चा तो तेतीस हजार शिक्षकों की भर्ती  का मामला है। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले तेत्तीस हजार शिक्षकों की भर्ती की घोषणा अब दूर की कौड़ी होने लगी है ا

बताया जा रहा है के सरकार ने हस निर्णय के ख़िलाफ़ किसी भी तरह के  आक्रोश को दबाने का पूरा इंतजाम कर लिया है और इस कड़ी में हाईकोर्ट बिलासपुर में कैवियेट दायर कर दिया गया है ताकि स्कूलों को बंद  करने के मामले में किसी को स्टे न मिल पाये।

इधर सोशल मीडिया में जिस तरह से शिक्षको की भर्ती का मामला युवा बेरोजगारों ने उठाना शुरु किया है उससे भी निपटने की तैयारी की खबर भी अब सुर्ख़ियाँ बटोर रही है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निर्देश पर स्कूल शिक्षा विभाग ने युक्तियुक्तकरण की कार्यवाही प्रारंभ कर दिया है। पिछले हफ्ते युक्तियुक्तरण के ड्राफ्ट को भी मुख्यमंत्री ने मंजूरी दे दी। इसके बाद स्कूल शिक्षा विभाग युद्ध स्तर पर युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया में जुट गया है। स्कूलों के युक्तियुक्तकरण से करीब छह हजार शिक्षक अतिशेष बचेंगे। शिक्षकों के 7303 शिक्षक पहले से अतिशेष हैं। याने कुल मिलाकर 13 हजार से अधिक शिक्षक सरकार के पास एक्सट्रा हो जाएंगे। इससे शिक्षक विहीन और सिंगल टीचर वाले लगभग सारे स्कूल कवर हो जाएंगे। कवर मतलब शिक्षक विहीन या फिर सिंगल टीचर वाला झंझट नहीं रहेगा।

अधिकारियों की मानें तो सबसे पहले स्कूलों का युक्तियुक्तकरण किया जाएगा। क्योंकि, अतिशेष स्कूलों की संख्या पहले से ही ज्ञात है। वो करीब 7303 है। स्कूलों के युक्यिक्तकरण के बाद फिर फायनल लिस्ट बनाई जाएगी। क्योंकि जिन 4077 स्कूलों का युक्तियुक्तकरण किया जाना है, उनमें 3978 प्रायमरी, मीडिल, हाईस्कूल और हायर सेकेंड्री स्कूल एक ही परिसर में हैं। सिर्फ 99 स्कूलों का आसपास के गांवों में शिफ्थ करना होगा। इनमें 63 प्राईमरी और 36 मीडिल स्कूल हैं। इन 99 स्कूलों में चार-से-पांच बच्चे हैं और टीचर बच्चों से अधिक। छत्तीसगढ़ में एक ही परिसर में राष्ट्रीय औसत से कम बच्चे वाले सबसे अधिक प्राईमरी और मीडिल स्कूल हैं। इनकी संख्या 2933 हैं। इन्हें एक में मिला दिया जाएगा। हालांकि, इससे नाम बदलेगा मगर जगह नहीं। इसलिए इसमें दिक्कत नहीं। इसी तरह एक ही परिसर में मीडिल और हाईस्कूलों की संख्या 282, एक ही परिसर में प्राईमरी, मीडिल और हाईस्कूलां की संख्या 413 और एक ही परिसर में मीडिल, हाई स्कूल और हायर सेकेंड्री स्कूलों की संख्या 350 चिन्हांकित की गई, जिन्हें एक-दूसरे में मर्ज कर दिया ।

स्कूलों के युक्तियुक्तकरण के लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने चार बिंदुओं में मापदंड तैयार किया है।

अफसरों का कहना था कि युक्तियुक्तकरण का काम पहले हो जाना था। उन्होंने इसके ये फायदे गिनाए....शिक्षक विहीन या सिंगल टीचर वाले स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर हो जाएगी।स्थापना व्यय में कमी आएगी।एक ही परिसर के स्कूलों के युक्यिक्तकरण से बच्चों के ड्रॉप आाउट में कमी आएगी। एक ही परिसर के स्कूलों से बार-बार प्रवेश प्रक्रिया से बच्चों को राहत मिलेगी।एक ही परिसर के स्कूलों को एक-दूसरे में मर्ज करने पर अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चन मुहैया हो सकेगा।

इधर स्कूल शिक्षा विभाग ने स्कूलों और शिक्षकों का युक्यिक्तकरण करने से पहले बिलासपुर हाई कोर्ट में केवियेट दायर कर दिया है। इसका मतलब यह है कि युक्तियुक्तकरण के खिलाफ अब कोई कोर्ट जाएगा तो उस पर फैसला लेने से पहले सरकार का पक्ष भी सुना जाएगा।

अंबानी ने मोदी के दावे की ह‌वा निकाल दी…

 अंबानी ने मोदी के दावे की ह‌वा निकाल दी…


रिलायंस समूह के बड़े कारोबारी मुकेश अंबानी ने मोदी सरकार के उस दावे की हवा निकाल दी, जिसमें सरकार ने बताया था कि देश की जीडीपी लगातार बढ़ रही है और 2047 तक में भारत विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आ जाएगा।

सच से दूर या फर्जी आकड़े को लेकर उठते सवालों  के बीच  जो खबर सामने आ रही है वह बेहद चौकाने वाला है। खबरों के मुताबिक देश की आर्थिक स्थिति  लगातार खराब होते जा रही है। इम्पोर्ट भी लगातार घट रहा है तो  उत्पादन में मी भारी गिरावट हो रही है। यही नहीं अधिकाश बड़े कंपनियों ने नौकरी को लेकर साइलेंट कट का रास्ता अख़्तियार कर लिया है ताकि छँटनी की खबर को दबाया जा सके।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने दावा किया था कि कोरोना के बाद देश की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर  लौट रही है लेकिन कहा जा रहा है कि सबसे ज्यादा नौकरी देने वाले आईटी और रिटेल सेक्टरों में कर्मचारियों की छँटनी का काम बढ़ता ही जा रहा है। कॉल सेंटरों में भी बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी से निकालने की खबर अब सामने आने लगी है।

शादी में करोड़ों रुपये खर्च करने को लेकर चर्चा में आये अंबानी ग्रुप की स्थिति को लेकर चर्चा तब शुरु हुई जब उसने जियों के दर में वृद्धि कर दी और लोगों ने जियो सहित दूसरी कई टेलीकाम कम्पनियों को छोड़‌कर बीएसएनएल में स्वीच करना शुरु कर दिया।

 मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक देश और दुनिया में बढ़ती मंदी की खबर के बीच एक हैरान करने वाली जानकारी सामने आई है. देश की दिग्गज कंपनी रिलायंस इंडस्ट्री में पिछले एक साल में बड़ी संख्या में कॉस्ट कटिंग हुई है. कंपनी ने वर्कफोर्स कम करने की बात अपने एनुअल जनरल रिपोर्ट में दी है. कंपनी ने बताया है कि वित्तवर्ष 2023 में रिलायंस इडंस्ट्री में कुल कर्मचारियों की संख्या 3,89,000 थी जो 2024 में घटाकर 3,47,000 हो गई है. रिलायंस ग्रुप ने सबसे अधिक कॉस्ट कटिंग रिलायंस रिटेल वर्टिकल में किया है.

कंपनी के सालाना रिपोर्ट में मिली जानकारी के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एक साल पहले की तुलना में वित्त वर्ष 24 में अपने कर्मचारियों की संख्या में लगभग 11% या 42,000 की कमी की है, जो कॉस्ट एफिशिएंसी और विशेष रूप से रिटेल सेक्टर में कम नियुक्तियों को दर्शाता है, जिसमें स्टोर बंद होने और धीमी ग्रोथ रेट भी देखी गई. आरआईएल की लेटेस्ट सालाना रिपोर्ट के अनुसार, नई भर्तियों की संख्या में एक तिहाई से अधिक की कटौती करके 1,70,000 कर दी गई है.

ग्रुप में हुई वर्क फोर्स में कटौती का एक बड़ा हिस्सा इसके रिटेल कारोबार में था, जो पिछले वित्त वर्ष में RIL के 2,07,000 कर्मचारियों की संख्या का लगभग 60% था, जबकि वित्त वर्ष 23 में यह 2,45,000 था. जियो ने भी वित्त वर्ष 24 में कर्मचारियों की संख्या घटाकर 90,000 कर दी, जो एक साल पहले 95,000 थी. RIL ने कहा कि वित्त वर्ष 24 में खुद से नौकरी छोड़ने की संख्या वित्त वर्ष 23 की तुलना में बेहद कम रही है.

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने जून तिमाही के अपने नेट प्रॉफिट में पांच प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है. रिफाइनिंग और पेट्रो-रसायन कारोबार के कम मार्जिन ने टेलीकॉम एवं रिटेल कारोबार में मिली बढ़त को भी फीका कर दिया है. तेल से लेकर रिटेल और टेलीकॉम कारोबार तक में एक्टिव रिलायंस इंडस्ट्रीज ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि अप्रैल-जून तिमाही में समूह का नेट प्रॉफिट 15,138 करोड़ रुपए यानी 22.37 रुपए प्रति शेयर रहा, जो एक साल पहले की समान अवधि में 16,011 करोड़ रुपए यानी 23.66 रुपए प्रति शेयर था.

इससे पहले जनवरी-मार्च तिमाही में कंपनी ने रिकॉर्ड 18,951 करोड़ रुपए की कमाई की थी. तिमाही आधार पर कंपनी का नेट प्रॉफिट 20 प्रतिशत घटा है. इस समान तिमाही में परिवहन ईंधन के मार्जिन में कमी के अलावा रिलायंस के डेप्रिसिएशन लागत पर भी अधिक खर्च हुआ है, जिससे कंपनी की कमाई प्रभावित हुई है. पेट्रोल की कीमतों में 30 प्रतिशत की गिरावट और रसायन कारोबार के मार्जिन में कमी दर्ज होने से ऐसा हुआ

गुरुवार, 8 अगस्त 2024

उद्धव ठाकरे ने कर दिया खेल...

 उद्धव ठाकरे ने कर दिया खेल...

 मोदी-भागवत  के हाथ-पांव फूले


महाराष्ट्र में इस साल के अंत में होने बाले विधानसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से उध्दव ठाकरे ने फ्रंट-फूट पर खेलना शुरु कर दिया है उससे मोदी सत्ता और आरएसएस की बेचैनी ही नहीं बड़ी है बल्कि उनके सामने सबसे बड़ी चुनौति उन मुद्‌दों की हवा भी निकालनी है जो उद्धव ठाकरे ने जोर-शोर से उठाना शुरु कर दिया है।

महाराष्ट्र जाने का क्या मतलब है यह मोदी सरकार ही नहीं आरएसएस भी अच्छी तरह जानता है, यही वजह है कि कल जब शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने दिल्ली पहुंच कर जब राहुल गांधी और शरद पवार से मुलाकात कर बांग्लादेश के मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमला किया तो आरएसएस ही नहीं समूची बीजेपी के हाथ पाँव फूलने लगे।

दरअसल लोकसमा चुनाव के परिणाम जिस तरह से महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के पक्ष में आया है उससे साफ है कि यदि विधानसभा चुनाव में भी यह गठबंधन कायम रहा तो भाजपा के लिए महाराष्ट्र बचा पाना मुश्किल हो जायेगा।

महाराष्ट्र में मोदी का जादू नहीं चलने या आरएसएस का हिन्दूत्व कमजोर पड़‌ने की यदि बड़ी वजह पर नज़र डाले तो साफ दिखेगा कि उद्धव ठाकरे की पहचान हिन्दुत्व के जिस चेहरे को लेकर है उसे तमाम कोशिश के बाद भी बीजेपी नहीं नहीं बिगाड़ पायी।

लेकिन इससे भी बड़ा मुद्दा जो भाजपा के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है वह महाराष्ट्र के हक की परियोजना को गुजरात शिफ्ट करने का है यह इतना बड़ा मुद्दा है कि इस मुद्दे ने शिंदे व अजित पवार तक को भी झकझोर कर रख दिया है। ऐसे में बेरोजगारी महगाई के साथ किसान के मुद्दे ने भी शिंदे सरकार को पस्त कर दिया है।

तब सवाल यह भी है कि क्या इंडिया गंठबंधन ने जब चेहरा व सीट तय कर ली है तब भाजपा गठबंधन के लिए सीटो का बटवारा भी तो मुश्किल है।

और शायद यही वजह है कि भाजपा के सामने अब हिन्दूत्व की लकीर को मोटी करने की चुनौति है लेकिन उद्धव ठाकरे के पलटवार ने

भाजपा और आरएसएस के हाथों से यह मुद्रा भी छीन लिया है।उद्धव ठाकरे जिस आक्रामक मुद्रा में खड़े है उससे आरएसएस भी सकते में है।

लेकिन इससे भी बड़ी चुनौति महाराष्ट्र चुनाव में नेतृत्व के चेहरे का है और उद्धव ठाकरे के चेहरे के सामने बीजेपी के सामने यह बेहद दुविधा की स्थिति है क्योंकि मोदी शाह के खेल ने देवेंद्र फड़नवीस के चेहरे पर पहले ही डेंट लगा दिया है।और शिंदे की मजबूरी को आरएसएस बर्दाश्त नहीं कर पा रही।

सुप्रीम कोर्ट पर भड़‌क गये हाई कोर्ट का जज...

 सुप्रीम कोर्ट पर भड़‌क गये हाई कोर्ट का जज...


एक तरफ सुप्रीम कोर्ट के रवैये को लेकर आम आदमी में नाराजगी है तो दूसरी अब हाईकोर्ट के एक जज ने भी संबैधानिक सीमाओं से बाहर जाने और हाईकोर्ट के अधिकार को कमजोर करने का आरोप लगा किया है। और कह दिया कि हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं है। 

यह पूरा मामला एक अवमानना के मामले से जुड़ा हुआ है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दीथीं,और इसी से नाराज हाईकोर्ट के न्यायपूर्ति राजबीर सहारावत ने कड़ी -टिप्पणी कर दी।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ एक आश्चर्यजनक आदेश में, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की अपने संवैधानिक सीमाओं से बाहर जाने और हाई कोर्ट की अधिकारिता को कमजोर करने के लिए आलोचना की है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सहारावत द्वारा 17 जुलाई, 2024 को जारी किया गया, जो भारत की न्यायिक प्रणाली में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के बीच के संबंधों पर सवाल उठाता है।

मामला एक अवमानना याचिका से जुड़ा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के समक्ष अवमानना प्रक्रियाओं पर रोक लगा दी थी। न्यायमूर्ति सहारावत का कहना है कि इस रोक आदेश ने “संवैधानिक अनुपालन बनाम कोर्ट अनुपालन की समस्या" पैदा कर दी है और हाई कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या अनावश्यक रूप से बढ़ा दी है।

आदेश इस बात पर जोर देता है कि हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीनस्थ नहीं हैं, और उनके संबंध को परिभाषित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हैं। न्यायमूर्ति सहारावत नोट करते हैं, “माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं कई बार स्पष्ट किया है कि हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं है।"

यह मामला नौरती राम द्वारा देवेंद्र सिंह आईएएस और एक अन्य पार्टी के खिलाफ दायर अवमानना याचिका से संबंधित है। सुनवाई के दौरान, प्रतिवादियों द्वारा एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश, दिनांक 3 मई, 2024, एसएलपी (सी) संख्या 9638/2024 में हाई कोर्ट के समक्ष अवमानना प्रक्रियाओं पर रोक लगा दी। इस रोक ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलित आदेश के संचालन को नहीं रोका, जिससे महत्वपूर्ण न्यायिक और संवैधानिक प्रभाव पड़े।

एक महत्वपूर्ण विवाद का मुद्दा यह है कि हाई कोर्ट में अवमानना प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करने का सुप्रीम कोर्ट का अधिकार। आदेश कहता है, “संविधान के अनुच्छेद 215 और अवमानना अदालत अधिनियम की धारा 12 के अनुसार, हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश के कथित अवमानना के लिए कार्यवाही शुरू करने और जारी रखने की शक्ति विशेष रूप से हाई कोर्ट के पास है।"

न्यायमूर्ति सहारावत ने सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण की आलोचना की और कहा:

“मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस प्रकार के आदेश दो प्रमुख कारणों से उत्पन्न होते हैं, पहला, एक प्रवृत्ति कि उस आदेश के परिणाम की जिम्मेदारी लेने से बचा जाए, जो इस प्रकार का आदेश, सभी संभावना में, उत्पन्न होने के लिए बाध्य है, यह बहाना करते हुए कि अवमानना प्रक्रियाओं पर रोक का आदेश किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता है, और दूसरा, सुप्रीम कोर्ट को वास्तव में जितना 'सुप्रीम' है उससे अधिक 'सुप्रीम' और हाई कोर्ट को संवैधानिक रूप से जितना 'हाई' है उससे कम 'हाई' समझने की प्रवृत्ति।”

न्यायमूर्ति सहारावत ने सुप्रीम कोर्ट से अधिक सावधानी बरतने का आह्वान किया, यह सुझाव देते हुए कि इसे अपने आदेश के माध्यम से कानूनी परिणामों को स्पष्ट रूप से पैदा करना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे आदेशों की आकस्मिक व्याख्या मुकदमेबाजों द्वारा गंभीर और हानिकारक परिणाम ला सकती है।

हालांकि, न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को देखते हुए, कोर्ट ने महसूस किया कि वह आदेश का पालन करने के लिए पूर्णतः बाध्य है और इसलिए, मामला स्थगित कर दिया गया है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपरोक्त एसएलपी का फैसला नहीं किया जाता।

कोर्ट ने जोड़ा, “लेकिन यह हमेशा संभव नहीं हो सकता है कि हाई कोर्ट इस तरह का मार्ग अपनाए, खासकर किसी विशेष मामले में विशेष तथ्यों और परिस्थितियों के कारण या कुछ विधायी प्रावधानों के शामिल होने के कारण। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी, जिसे बेहतर तरीके से टाला जाना चाहिए।"

बुधवार, 7 अगस्त 2024

बाप रे... कदम-कदम पर साजिश...

 बाप रे... कदम-कदम पर साजिश... 

नहीं खेलती तब भी सिल्वर तो मिल ही जाता...


7 घंटे के अंदर तीन पहलवानों को हराकर स्वर्ण पदक जीतने की राह में चल पड़ी विनेश फोगाट को अयोग्य घोषित कर दिया गया, आख़िर वह कौन था? जिसे विनेश की जीत बर्दाश्त नहीं हो रही थी?

अब यह सवाल बड़ा तो हो गया है लेकिन क्या इस सवाल का हश्र  भी राफेल, नोट बंदी, करोना टीका, इलेक्ट्रोल बांड, ईवीएम, प्रधानमंत्री केयर फंड; हिडन बर्ग की तरह अनुत्तरित रह जायेगा ?

या फिर अब देश को जवाब मिलेगा ? 

कहना कठिन है लैकिन विनेश ने तो बहुत पहले ही अपने खिलाफ होने वाले षड्‌यंत्र की बात मीडिया से कर दी थी।


सवाल अब भी वही है कि विवेश के पदक जीतने से सबसे ज्यादा दिक्कत किसे की।

लोकसभा में भी यह मुद्‌दा उठा तो खेल मंत्री विनेश पर हुएर् खर्च का ब्यौरा देकर अपनी पीठ थपथपा रहे थे ?

53 किग्रा से शुरू हुआ साज़िश 50 किलो सौ ग्राम में सफल कर लिया गया ।


खुद भाजपा सांसद विजेन्द्र कुमार ने कह दिया कि यह साजिश है क्योंकि उसने इतिहास में इस तरह से अयोग्य ठहराने की घटना नहीं देखी, न सुनी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विनेश के अयोग्य घोषित होने के सेकण्डों बाद ही सांत्वना  के ट्वीट कर दिया ? जीत पर तो नहीं दी थी बधाई ?

अब आ जाइये ओलंपिक संघ के नियम के आर्टिकल 11 पर । क्यों इस पर अमल नहीं हुआ ? अमल होता तो बग़ैर खेले ही विनेश को सिल्वर मेडल मिल ही जाता।


तब क्या इस पूरे साजिश है पीछे विनेश फोगाट की वह लड़ाई है जिसे इस देश ने देखा कि महिला पहलवानों की छाती पर हाथ रखने के आरोपी बृजभू‌षण शरण सिंह को बचाने  समूची मोदी सत्ता खुलकर सामने आ गई थी।

सवाल यदि साजिश के उठ रहे हैं तो एक बार दिल पर हाथ रखकर ज़रूर सोचिए , कि आख़िर विनेश को सिल्वर भी क्यों नहीं लेने दिया गया।

फिर उस धमकी को याद कीजिए “ कैरियर ख़त्म कर देंगे”

दिल्ली शराब घोटाले में फँस गये मोदी के लाड़ले...

 दिल्ली शराब घोटाले में फँस गये मोदी के लाड़ले...

15 अधिकारियों पर भी गिरफ्तारी की तलवार...


दिल्ली शराब घोटाले मामले में ईडी और सीबीआई ने सनसनी खेज खुलासा किया है, इस मामले में गिरफ्तार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के अंतरिम जमानत का विरोध करते हुए जाँच एजेंसी ने जो आरोप पत्र दाखिल किया है उसमें देश के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के लाड़ले के अलावा मुख्यसचिव से लेकर दिल्ली के 15 आईएएस व प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी फँसते नजर  आ रहे हैं और इन पर गिरफ्तारी की तलवार भी लटकने लगी है।

ज्ञात हो कि दिल्ली आबकारी नीति को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, उपमु‌ख्यमंत्री मनीष सीसोदिया जेल में बद है और दोनों की जमानत की सुनवाई चल रही है। इस मामले के एक आरोपी को सरकारी गवाह बनाने को लेकर मोदी सरकार पहले ही निशाने पर है और अब आरोप पत्र ने मोदी सरकार के लाड़ले एलजी की भी मुसिबत बढ़ा दी है।

आविद केजरीवाल के जमानत का विरोध करते हुए उनकी गिरफ्तारी का जो आधार बताया है उस आधार पर अब कार्रवाई हुई तो डेर दर्जन गिरफ़्तारी और होगी।

सीबीआई  ने कहा है कि उनका अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी आबकारी नीति में हस्ताक्षर करने के आधार पर किया है। और आबकारी नीति पर सह‌मति जताते हुए हस्ताक्षर काने वालों में दिल्ली के एलजी वी के सक्सेना की मुसिबत इसलिए  बढ़ गई है।

प्रधानमंत्री मोदी के लाड़ले माने जाने वाले एलजी वीके सक्सेना सहित इस नीति पर मुख्यसचिव सहित 15 अधिकारियों के दस्तख़त है और इस आधार पर इन सभी को आरोपी बनाया गया है।

मंगलवार, 6 अगस्त 2024

कहाँ गये वे सीना ताने...

 कहाँ गये वे सीना ताने...



चट्टानों का सीना

चीर रही थी नदियाँ 

बढ़ रही थी नदियां 

अहंकार का चट्‌टान 

खड़ा था सीना ताने । 


देश ने तब भी देखा 

सम्मान सड़क पर 

यातना उफान पर 

कुर्सी का मोह 

हंसा था सीना ताने ।


दुस्सासन का बढ़ता हाथ 

समूची सत्ता का था साथ

अंध-भक्तों की जमात 

और खुशामद मीडिया 

नाच रहा था सीना ताने


स्तब्ध हवा थी

 मौन गगन था 

धरती भी बे-हलचल थी

सबके थे अपने अपने 

स्वार्थ खड़ा था सीना ताने


पर यह कब तक चलता 

अहंकार रावण का टूटा

दुशासन का जंघा भी टूटा 

समम लिखेगा फिर‌ इतिहास 

कौन अड़ा था सीना ताने


माना कि रात घनी काली थी

 लंबी और दुरुह वाली थी

लेकिन उम्मीदों का सूरज 

जैसे ही सामने आया 

कहां गये वे सीना ताने...।

                   (साक्षी, बजरंग और विनेश सहित अन्याय के खिलाफ                    खड़ा होने वालों को समर्पित)

पेरिस ओलिंपिक में विनेश ने उस जापानी रेसलर को हराया जो चौदह वर्षों से अविजित थी। समय भी गजब खेल रचता है। यादों पर धूल  जमती उसके पहले विनेश और अन्य महिला पहलवानो के साथ क्या गुजरा था गूगल पर तैरने लगा।  अवसरवादी मोदी ने उन्हें अपनी बेटी कहा था लेकिन जब वे कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष द्वारा महिला पहलवानो की यौन उत्पीड़न की शिकायत कर रही थी तब दिल्ली पुलिस ने इन्ही मोदी की बेटी को सड़कों पर घसीट दिया था।


वह दिन है और आज का दिन है , मोदी ने फिर कभी विनेश की चिंता नहीं पाली। वजह  बस इतनी सी थी कि कही ब्रजभूषण भाजपा को चार पांच सीटों का नुक्सान न कर देवे।

अब शर्त इस बात पर लग रही है कि जब विनेश सेमीफइनल जीत कर फाइनल खेलेगी तब क्या मोदी आदतन उन्हें फोन लगाएंगे ? कुछ लोगों का कहना है कि वे निश्चित तौर पर फोन करेंगे , क्रेडिटजीवी जो ठहरे !!


विनेश ने आज न सिर्फ मोदी को पेशोंपेश में डाल  दिया है वरन भारतीय गोदी मीडिया को भी आईना दिखा दिया है। दो कोड़ी के एंकर एंकरनियों अब किस मुंह से विनेश पर प्राइम टाइम शो करेंगे , देखना दिलचस्प होगा।