लौट के बुद्धू घर को आये...
एक सामान्य आदमी के लिए विदेश जाने का मोह क्या होता है इसका तो पता नहीं, लेकिन सरकारी खर्चे में विदेश यात्रा के मोह से बच पाना हर किसी के बस में नहीं है। कई नेता तो सरकारी खर्च में विदेश जाने का फर्जी उपाय भी कर लेते हैं, कुछ सफल हो जाते हैं तो कुछ….!
ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार के उपमुख्यमंत्री अरुण साव का विदेश जाने के सपने का टूटना कितना गजब है यह बताने की इसलिए जरूरत नहीं है कि रिमोट पर चलने वाली सरकार के काम काज सुपर सीएम देख रहे हैं और अपने से कम होशियार या अनुभवहीन लोगों की फौज, कब किसकी बेइज्जती करवा दे, कहा नहीं जा सकता ।
लेकिन अमेरिका जाने के लिए मरे जा रहे की तर्ज पर दिल्ली में लगभग सप्ताह भर से डेरा डालने के बावजूद यदि ख़ाली हाथ लौट के आना बड़े तो इससे दुर्भाग्यजनक बात शायद दूसरी नहीं हो सकती। कहते हैं कि संघियों का अमेरिका के प्रति मोह नया नहीं है, संघ के प्रचारक से प्रधानमंत्री बने नरेद्र मोदी ने तो प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका जाने के लिए किसी ने सरकारी बुलावे का इंतजार तक नहीं कर सके थे।
ऐसे में यदि अरुण साव अपने अधिकारी कमलप्रीत के साथ वीजा लेने यदि दिल्ली में डेरा डाले थे तो क्या हुआ।
वैसे भी भारी माकम बजट वाले जल जीवन मिशन में उनके रहते कौन सा भ्रष्टाचार रूक गया है, लेकिन वीजा नहीं मिलने को लेकर मंत्रालय से लेकर पार्टी नेताओ में चल रहे क़िस्से भी कम खतरनाक नहीं है, नवा बईला के चिक्कन सिंग से लेकर अनाड़ी का… सत्यानाश तक की कहावत।
अब देखना है कि अनुभवहीनता के चलते इस घोर बेईज्जती का हिसाब किस-किस अधिकारियों से लिया जाना है।
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