अमित शाह का टेंशन और हिदुत्व का खेल...
इधर देश में बलात्कारियों की करतूतों को लेकर हंगामा मचा हुआ है, मणिपुर जल रहा जम्मू तक में आकर आतंकवादी अपनी करतूतों को अंजाम दे रहे हैं लेकिन देश के गृह मंत्री अमित शाह को बंग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं की घटती संख्या को लेकर टेंशन है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिंदुओं की कथित दुर्दशा और कम होती जनसंख्या का सच क्या है। क्या यह पूरा खेल भारत में हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण का खेल है।
क्या लोगों को सच से दूर रखकर एक ख़ास वर्ग के प्रति नफरत फैलाकर अपनी राजनीति साधाने का प्रयास हर चुनाव के पहले किया जाता है।
ये सच है कि 1941 की जनगणना के मुताबिक वेस्ट पाकिस्तान (वर्तमान) में 14 फीसदी हिदू थे और ईस्ट पाकिस्तान (बांग्लादेश) में 26 फीसदी हिन्दू थे।
ऐसे में पाकिस्तान और बाग्लादेश मैं वर्तमान में हितुओं की संख्या को लेकर बवाल मचाया जाता है कि देखिये पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिदुओं को काट डाला गया।
बहरहाल पाकिस्तान और बाग्लादेश में हिंदुओं की संख्या घटने के तीन प्रमुख कारण है जिसमें से पहला कारण तो सिम्पल स्टेस्टिक्स है तो दूसरा कन्वर्जन जबकि तीसरा कारण
माइग्रेशन है। इन तीनों कारणों से पहले के कारण भी महत्वपूर्ण है जो हिंदुओं की आबादी कम होने की वजह है।
अब 1941 की जनसंध्या के आंकड़े से आगे आ जाइये 1947 में। और 1947 के विभाजन में 50 लाख हिन्दू और सिख वेस्ट पाकिस्तान से भारत आ गये तब 1951 की जनग़णना में हिन्दुओं की संख्या दो फीसदी रह गई। तब से लेकर आजतक उनकी जनसंख्या प्रतिशत में लगभग उतनी है बल्कि 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
ईस्ट पाकिस्तान से भी बंटवारे के दौरान यानी 1947 में हिंदुओं की जनसंख्या 26 से गिरकर 22 फ़ीसदी हो गई।
लेकिन 1970 में पाकिस्तानी सरकार ने तमाम बंगालियों पर अत्याचार किये । मार्शल लॉ लगाया। दो करोड़ हिंदू शरणार्थी भारत की शरण में आ पहुंचे। मुसलमान कहां जाते इसलिए वे वही रहे, वे वहीं मरते रहे, अत्याचार सहते रहे।
अब 7 करोड़ की जनसंख्या में दो करोड़ यदि भारत आ गए तो हिसाब लगा लिजिए कि बांग्लादेश में हिन्दुओं की संख्या कितनी घटी। तब से आज तक ओवर ऑल हिदुओं की संख्या 9-10 फीसदी बची है जो आज भी उतनी ही हैं।
इसी 9-10 फ़ीसदी आंकड़े को पकड़कर गृह मंत्री अमित शाह कलह मचाये हुए हैं।
जनसंख्या घटने का एक और कारण कन्वर्जन को लेकर जो हल्ला मचाया जाता है वह कन्वर्जन प्रासिक्यूशन वहां भी वैसा है जैसे इंडिया में।
ईज्ज़त नौकरी, न्याय अधिकार को लेकर कन्वर्जन इंडिया में क्या कम हुए है।
जहां तक धर्म के आधार पर विभाजन की बात है तो यह बिल्कुल गलत है लेकिन अमित शाह फिर द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को मुस्लिम लीग के साथ तालमेल बिठानेवाले सावरकर को सर आँखों पर क्यों बिठाते हैं?
हैरानी की बात तो यह है कि सारा सच इंटरनेट पर मौजूद होने के बाद भी यदि लोग़ राष्ट्रवाद के नाम पर परोसे जा रहे झूठ पर आखें बंद किये हुए है तो फिर गलत लोगों को राज करने से कोई कैसे रोक सकता है!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें