गये थे हरिभजन को
वोटन लगे कपास…
यह तो गये थे हरिभजन को वोटन लगे कपास की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना मुख्यमंत्री बनकर छत्तीसगढ़ को भ्रष्टाचार मुक्त करने का दावा करने वाले उपमुख्यमंत्री अरुण साव के विभाग में भ्रष्टाचार की नदियां नहीं बहती। और न ही बटोर लेने का खेल इस पैमाने पर होता।
हालत यह है कि अब प्रभार वाद का नया खेल भी शुरू हो गया है सीनियर अफसरों को किनारे करके जूनियरों को प्रभार देने के इस खेल में लेन-देन की जो खबरें आ रही है वह हैरान कर देने वाला है तो जूनियर - सीनियर की लड़ाई ने कामकाज को भी बुरी तरह प्रभावित किया है।
कहा जाता है कि उपमुख्यमंत्री साव ने मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की कमी को अपने विभाग में धौंस जमाकर पूरी कर ली है। नगरीय निकायों में मनमाने ढंग से संविदा नियुक्ति के बाद जल संसाधन और पीएचई में प्रभारवाद का खेल कम चर्चा में नहीं है।
वैसे भी जल जीवन मिशन को कबाड़ा करने का आरोप तो विधानसभा तक में सुर्ख़ियाँ बिखेर चुका है और कहा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की हस महत्वाकांक्षी योजना का सबसे ज्यादा कबाड़ा तो धमतरी, बिलासपुर और महासमुंद जिले में निकल रहा है, जहाँ इंजिनियरों और ठेकेदारों की मिलीभगत से निकल रहा मलाई सीधे बंगले तक पहुंच रहा है।
सत्ता मिलते ही संघ का संस्कार किस तरह सिर चढ़ कर बोलता है यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन जो लोग अरुण साव के क्रियाकलापों को देख समझ रहे हैं वे भी हैरान है।
इधर जल जीवन मिशन के बजट के बंदर बाँट को लेकर खेल नया नहीं है। इस लंबे चौड़े बजट के चक्कर में भूपेश बघेल और रुद्र गुरु की लड़ाई अभी लोग भूले नहीं है लेकिन साव के साथ अभी यह स्थति पैदा नहीं हुई है लेकिन यह स्थिति नहीं पैदा होगी कहना मुश्किल है।
कहा जाता है कि धमतरी, महासमुंद और बलौदाबाजार में चल रहे गोलमाल और छोटे ठेकेदारों की करतूत को लेकर चर्चा अब मुख्यमंत्री तक जा पहुंचा है।
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