प्रतिशोध की राजनीति का पारदर्शी रुप...
दिल्ली शराब घोटाले में गिरफ्तार भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को भी जमानत मिल गई। इससे पहले मनीष सिसोदिया की भी जमानत हो गई थी। और कहा जा है कि अरविन्द केजरीवाल भी जल्द जेल से बाहर आ जायेंगे।
के. कविता ने जेल से बाहर आते ही कहा 'हम लड़ेंगे और ख़ुद को निर्दोष साबित करेंगे।
दिल्ली शराब घोटाला क्या आम आदमी पार्टी को समाप्त करने की राजनीति का केवल टूल है? क्या केजीवाल की राजनीति के आगे नरेंद्र मोदी की गढ़ी गई छवि का कोई मतलब नहीं है।
हालांकि इस पूरे मामले को समझना इतना आसान नहीं है क्योंकि प्रतिशोध की इस राजनीति ने साम दाम दंड भेद को जिस कुचक के साथ चक्रव्यूह का रूप दिया है उससे कोई नहीं बव सकता।
दरअसल चक्रव्यूह रचने का एक ही मतलब है प्रतिद्वंदियों की हत्या।अर्जुन जानते थे चक्रव्यूह तोड़ना लेकिन अपने प्रिय पुत्र को भी नहीं बचा पाये।
दिल्ली शराब घोटाले को लेकर जो कहानी बनाई जा रही है उसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है -
अचानक एक दिन पुलिस आपके दरवाजे पहुंचती है और आपको साल भर पहले हुई किसी लूट की घटना में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है। आप इंकार करते हैं लेकिन वह नहीं सुनती । आपके ज्यादा जिद करने पर वह उस सीसीटीवी फुटेज की ओर इशारा कर देती है कि देखिये इस रास्ते से आपका अक्सर आना जाना रहा है। और इसलिए लूट आपने ही की है। आपको अदालत में घसीट लिया जाता है।
अदालत में आत्मविश्वास से लबरेज पुलिम कहती है कि हमारे पास यह मानने का ठोस कारण है कि इस व्यक्ति ने ही लूट की है।
पुलिस आपके तार्किक रूप से सबूत दिखाने के सवाल पर कहती है , लूटने का सबूत नहीं है क्योंकि सबूत नष्ट कर दिया गया है लेकिन हम सबूत जुटा लेंगे।
कितने समय तक के सवाल पर पुलिस कहती है, जितना समय हमे चाहिए , हम समय सीमा कैसे बता सकते है।इन्हें जमानत नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि ये ब्यक्ति गवाह को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि ऐसा करने के लिए आपके पास साल भर का समय था। लेकिन पुलिस अपना कुतर्क जारी रखते हुए दोहराती है आप जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। जबकि आप पुलिस के जांच में सहयोग की बात करते हुए कहते भी है कि पुलिस के हर सवाल का जवाब तो दे रहा हूँ।
पुलिम झल्ला जाती है और कहती है कि बस !आप गुनाह कबूल कर लो।यही सहयोग चाहते हैं।
आप अदालत में चिखते हैं यह क्या बकवास है, मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं, कोई बरामदगी नही,अपराध स्थल का पता नहीं लेकिन जांच के नाम पर जेल में सड़ाया जा रहा है, जमानत नहीं दी जा रही है। जिस गवाह की गवाही पर मुझे गिरफ्तार किया गया है वह पुलिस के सामने दर्जन भर गवाही दे चुका है और आखरी गवाही में मेरा नाम लिया है, जबकि वह गवाह खुद आरोपी है ।
अदालत इस बकवास को सुनने के बाद जमानत दे देता है।
हालांकि पुलिम यह सब पहले भी करते आई है लेकिन राजनैतिक प्रतिद्वंदिता में यह खेल हस दौर में जिस पैमाने पर हुआ है वह हैरान और परेशान करता है।
क्या यह कहानी किसी से मेल खाती है, एक बार ठिठक कर सोचियेगा…।
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