शनिवार, 13 सितंबर 2025

टॉपर भी होते हैं घूसखोर…

टॉपर भी होते हैं घूसखोर… 

तहसीलदार अश्विनी कुमार पंडा को रंगे हाथों रिश्वत लेते पकड़ा गया है। वह एक समय में युवाओं के लिए प्रेरणा थे लेकिन रिश्वतकांड से उनकी छवि धूमिल हुई है। उन्होंने पहले ही अटेम्प्ट में बिना किसी कोचिंग के ओडिशा सिविल सर्विस परीक्षा पास की थी और टॉपर बने थे।

ओडिशा के संबलपुर जिले के बामड़ा के तहसीलदार अश्विनी कुमार पंडा को शुक्रवार को विजिलेंस टीम ने रंगे हाथों घूस लेते हुए पकड़ा। उन पर एक किसान से ज़मीन का म्यूटेशन कराने के एवज में 20,000 रुपये की घूस मांगने का आरोप था।

शिकायतकर्ता ने इसकी जानकारी विजिलेंस को दी, जिसके बाद विजिलेंस ने तहसीलदार को उनके ड्राइवर पी. प्रवीण कुमार के ज़रिए 15,000 रुपये घूस लेते हुए पकड़ा गया। दोनों को हिरासत में ले लिया गया है और पूरा घूस का पैसा बरामद कर लिया गया है।

कभी युवाओं के लिए प्रेरणा थे पंडा

29 साल के अश्विनी पंडा की कहानी कभी युवाओं के लिए प्रेरणा थी। उन्होंने पहले ही अटेम्प्ट में बिना किसी कोचिंग के ओडिशा सिविल सर्विस परीक्षा पास की थी और तहसीलदार बने थे। लेकिन अब उन्हीं पर भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लग गया है।

अश्विनी ओडिशा के जाजपुर जिले के धर्मशाला ब्लॉक के खेतरपाल गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने जनकल्याण हाई स्कूल से स्कूली पढ़ाई की और फिर रेवेंशा विश्वविद्यालय से साइंस में प्लस टू किया। इसके बाद 2015 में ब्रह्मपुर के एक प्राइवेट कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया।

इंजीनियरिंग के बाद वे दिल्ली चले गए जहां तीन साल तक एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की। 2018 में नौकरी छोड़कर वे ओडिशा लौट आए और सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू कर दी। पहले उन्होंने असिस्टेंट सेक्शन ऑफिसर यानी ASO की परीक्षा दी लेकिन सिर्फ 0.5 नंबर से चूक गए। फिर उन्होंने ठान लिया कि ओडिशा सिविल सर्विसेस की परीक्षा देंगे।

शनिवार, 6 सितंबर 2025

मंत्री की गुंडागर्दी…

 मंत्री की गुंडागर्दी…

अब तक तो साय सरकार के मंत्रियों के रिश्तेदारों की गुंडागर्दी के क़िस्से ही चर्चा में था, लेकिन अब ख़ुद मंत्री ही गुंडागर्दी करने लगे तो फिर आसानी से समझा जा सकता है कि सत्ता का नशा किस तरह से सर चढ़ कर बोलने लगा है , मामला वन मंत्री केदार कश्यप का है…

केदार कश्यप पर सर्किट हाउस के एक कर्मचारी को पीटे जाने की खबर है पीड़ित कर्मचारी और उसकी पत्नी ने न्याय की गुहार लगाई है , केदार कश्यप पर पिटाई करने के इस आरोप के बाद साय जी क्या करेंगे ये देखना होगा , 

अश्लील गाली के साथ पिटाई के इस मामले को लेकर केदार कश्यप का कुछ होगा कहना मुश्किल है लेकिन इस मामले का वीडियो जमकर वायरल हो रहा है…

केदार कश्यप की दादागिरी का यह पहला मामला नहीं है, उन पर भ्रष्ट अफ़सरों को पनाह देने , विवाद होने पर ओएसडी को हटाने जैसे मामले भी है !

शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

मोदी ही नहीं उनके परिवार के लोग भी प्रतिभाशाली…

 मोदी ही नहीं उनके परिवार के लोग भी प्रतिभाशाली…

क्या आप इनमें से किसी को भी जानते हैं ? यह सब नरेंद्र मोदी जी परिवारवाद के लाभार्थी सदस्य हैं। यहां किसी को परिवारवाद ना ही दिखाई नहीं देता और ना ही चर्चा करता है।


1.सोमा भाई मोदी (75 वर्ष) सेवानिवृत्त स्वास्थ्य अधिकारी, वर्तमान में गुजरात में भर्ती प्रक्रिया में अध्यक्ष हैं।


2.अमृत भाई मोदी (72 वर्ष) जो एक निजी कारखाने में कार्यरत थे, आज वर्तमान में सेवानिवृत्त हैं, अहमदाबाद और गांधीनगर में सबसे बडे़ रियल एस्टेट कारोबारी हैं।


3.प्रह्लाद मोदी (64 वर्ष) की राशन की दुकान थी और आज वर्तमान में अहमदाबाद, वडोदरा में हुंडई, मारुति और होंडा फोर व्हीलर शो रूम है।


4.पंकज मोदी (58 वर्ष) सूचना विभाग में नौकरी।आज गुजरात में भर्ती प्रक्रिया में सोमा भाई के साथ उपाध्यक्ष है।


5.भोगीलाल मोदी (67 वर्ष) जो किराने की दुकान के मालिक हैं।आज वर्तमान में अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा में रिलायंस मॉल है।


6.अरविंद मोदी (64 वर्ष) स्क्रैप का व्यवसाय था,आज वर्तमान में प्रमुख निर्माण कंपनियों को स्टील की आपूर्ति और रीयल एस्टेट के नामी गिरामी ठेकेदार हैं।


7.भरत मोदी (55 वर्ष) एक पेट्रोल पंप पर काम कर रहे थे। आज वर्तमान में अहमदाबाद, गांधीनगर में अगियारस पेट्रोल पंप के मालिक हैं।


 8.अशोक मोदी (51 वर्ष) के पास पतंग और किराने की दुकान थी। आज वर्तमान में वह रिलायंस में भोगीलाल मोदी के साथ साझेदारी कर रहे हैं।


9.चन्द्रकांत मोदी (48 वर्ष) गौशाला में काम कर रहे थे। आज वर्तमान में अहमदाबाद, गांधीनगर में नौ बड़े और शानदार डेयरी उत्पादन केन्द्र है।


10.रमेश मोदी (६४ वर्ष) जो एक शिक्षक के रूप में काम कर रहा था।आज वर्तमान में वह पांच स्कूलों और तीन इंजीनियरिंग,आयुर्वेद, होम्योपैथी, फिजियोथेरेपी कॉलेज और एक मेडिकल कॉलेज का मालिक है।


11).भार्गव मोदी (44 वर्ष) जो ट्यूशन क्लास में काम कर रहे थे। आज वर्तमान में कॉलेजों में रमेश मोदी के साथ भागीदारी हैं।


12.बिपिन मोदी (42 वर्ष) अहमदाबाद लाइब्रेरी में काम करते थे।आज वर्तमान में केजी से मानक बारह तक पुस्तक प्रकाशकों के साथ एक साझेदारी है।


नंबर 1 से 4 ऊपर, प्रधानमंत्री मोदी के सगे भाई हैं।


 No. 5 से 9, मोदी के चचेरे भाई नरसिंहदास मोदी के बेटे हैं। वह प्रधानमंत्री का चचेरा भाई है।


नंबर 10 जगजीवनदास मोदी के बेटे रमेश, नंबर 11 भार्गव कांतिलाल के चाचा के बेटे, आखिरी बिपिन, प्रधान मंत्री के सबसे छोटे चाचा जयंतीलाल मोदी के बेटे हैं।


जी हाँ, ये है हमारे प्रधानमंत्री जी का परिवारवाद-विस्तार। बस फर्क ये है कि राजनीति में नहीं है परंतु सारे के सारे इतने काबिल तो नहीं हो सकते की सब अरबपति हो इनसभी को नरेंद्र मोदी ने लाभ तो अवश्य दिया है हां, इन सबपर मीडिया बात नहीं करेगी ना। साहेब की फकीरी वाली छवि धूमिल जो होगी। परंतु कोई बात नहीं, हम अपनी शोधकर्ताओं के माध्यम से मोदी के परिवारवाद का बहीखाता निकाल लाये हैं और बाकियों की भी जल्द से जल्द लाएंगे। 


 Umesh Sonkule जी की वॉल से !

बुधवार, 3 सितंबर 2025

एक ही काम अच्छा किया…

 एक ही काम अच्छा किया…

मोदी की आलोचना करने वालों से भक्तों का एक ही सवाल होता है कि  मोदीजी ने कोई तो अच्छा काम किया होगा । इसका जवाब बताने से पहले आदि शंकराचार्य जी का आध्यात्मिक अधोपतन पर विचार भी जान लें…

आदि शंकराचार्य ने आध्यात्मिक अधोपतन पर विवेकचूड़ामणि में एक अद्भुत रूपक गढ़ा है । 

जिसका आशय है ...."सीढ़ी पर यदि धोखे से भी गेंद हाथ से छुटकर गिर जाए तो वह वापस नहीं आती .....नीचे नीचे और नीचे ही लुढ़कती जाती है । 

इस देश में वही हो रहा है । फर्क इतना है कि इस देश के हाथ से  संविधान, लोकतंत्र, मूल्य, मान्यताओं और नैतिकताओं की गेंद धोखे से नहीं जानबूझकर छोड़ी गई है । जिन हाथों को इस गेंद को सजगता और कुशलता और संपूर्ण समर्पण के साथ संभालना था उन्होंने जानबूझ कर न सिर्फ उसे छोड़ दिया है बल्कि गिरने के बाद उसे फुटबॉल की तरह लतिया भी रहे हैं । 

वे इसी में अपनी सुरक्षा देखते हैं । यदि चुनाव आयोग, ई डी, सीबीआई, पुलिस, अदालतें सब सुचारु रूप से संविधान सम्मत काम करने लगें तो उनका वजूद ही मिट जाएगा । इसीलिए वे इन सबका वजूद मिटाने में लगे हैं ताकि उनका अपना वजूद बचा रहे । 

हर दिन पतन और गहराता जा रहा है । देश यदि अब भी नहीं जागा तो कब जागेगा ।

अब आते है मोदी जी के उस काम पर जो उन्होंने अच्छे से किया..

GST अर्थात गब्बर सिंह टैक्स जब लगाया गया तब गोदी पत्रकारों ने इसे मास्टरस्ट्रोक कहा और अब उस टैक्स स्लैब में बदलावा किए जाने के बाद भी गोदी मीडिया इसे मास्टरस्ट्रोक ही बता रहा है। 


आखिर यह मास्टरस्ट्रोक है क्या? एक व्यक्ति ने मुझे पूछा कि आप हमेशा मोदी सरकार की आलोचना करते हैं, क्या मोदी जी ने एक भी अच्छा काम नहीं किया है?


इसके उत्तर में मैं कहा कि मोदी जी केवल एक ही काम बहुत अच्छा किए हैं। वो कौन सा काम है पूछने पर मैं कहा "जनता से टैक्स वसूलने का काम"। शत प्रतिशत जनता से ज्यादा से ज्यादा टैक्स कैसे वसूला जाए, कोई छूट न जाए और कौन सा टैक्स किन वस्तुओं पर लगाया जाए इसकी प्लानिंग खूब की गई है।


आपको क्या लगता है कि 28% और 12% स्लैब हटाने से आम जनता को कोई लाभ होने वाला है? उत्तर है नहीं। 28 वाला अगर घटकर 18 हो जाएगा तो 12 वाला बढ़कर 18 हो जाएगा। इससे आम जन को कोई राहत नहीं है।


यह इसलिए किया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटे और ट्रंप के द्वारा भारत को हुई क्षति की पूर्ति हो सके। इस कदम से 28% टैक्स वाले सेक्टर में टैक्स की कमी से इसके बाजार में कुछ तेजी आएगी। लेकिन 12% वाले सेक्टर में टैक्स बढ़ जाने से इसके बाजार में कुछ मंदी भी आएगी। मिला जुला कर बात एक ही है परन्तु ट्रंप के टैरिफ से हुई हानि वाले सेक्टर में टैक्स कम किए जाएंगे ताकि अर्थव्यवस्था को संभाली जा सके।


उदाहरण के रूप में ट्रंप के टैरिफ से भारतीय दवाओं की मांग अमेरिका में कम हो जाएगी और भारत में उन्हीं दवाओं पर टैक्स घटा दिया जाएगा ताकि दवा कंपनियों को कोई नुक़सान ना हो। गोदी मीडिया दवाओं पर टैक्स घटने की घटना को प्रचार कर मोदी को महान बना देगी।


 यही मास्टरस्ट्रोक है इसमें आम जन को खुश होने की कोई वज़ह नहीं है। असल में यह भूल GST का करेक्शन है।(साभार)

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

क्या इस लॉर्ड माउंटबेंटन को जानते हो…

 क्या इस लॉर्ड माउंटबेंटन को जानते हो… 

भारत की आज़ादी के दौरान ब्रिटेन के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेंटन का आज़ादी के बाद क्या हुआ, वे ब्रिटेन कब गये और उनके साथ क्या हुआ, जानकार आप चकरा जाएँगे…

लॉर्ड माऊंटबॅटन इनका निधन १९७९ में हुआ. साठ सत्तर के दशकों में भारत से इतने लेखक इंग्लैंड और लंदन गए परंतु किसी ने भी माउंटबेटन से मिलकर भारत की स्वतंत्रता के विषय में उनसे बातचीत नहीं की जबकि माउंटबेटन लन्दन में ही थे और अंग्रेज सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे. इस दरम्यान भारत में नेहरू, शास्त्री और इंदिरा गांधी तीन प्रधान मंत्री हो चुके थे . ‘फ्रीडम ॲट मिडनाइट’ किताब का  महत्त्व इसीलिए है, क्योंकि माऊंटबॅटन से बात करके ही उसके लेखकों को इतनी महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं . उन लेखकों को भारतीय संदर्भ ठीक से न समझने के कारण यह पुस्तक नीरस लगती है जबकि भारतीय लेखकों द्वारा यह काम अधिक कुशलता से किया जा सकता था.


भारत को स्वतंत्रता देने की प्रक्रिया में माउंटबेटन की भूमिका इतिहास में कायम स्वरूप दर्ज हो चुकी है. मार्च १९४७ में जब उनकी भारत के व्हाईसरॉय के रूप में नियुक्ती हुई तब उन्हें 2 बड़ी जिम्मेदारियां दी गईं. 

एक. भारत को जल्द से जल्द स्वतंत्र करना और 

दो. सत्ता का हस्तांतरण व्यवस्थित रूप से पूरा करना. 

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड की आर्थिक राजनैतिक और सैन्य शक्ति बहुत कम हो चुकी थी. चर्चिल चुनाव हार चुके थे. लेबर पार्टी के एटली नए प्रधानमंत्री बने थे. इसलिए भारत को स्वतंत्र करने के सिवा उनके पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था परंतु ब्रिटेन में चर्चिल चुनाव भले ही हार गए हों पर भारत को आजादी देने के वह पूरी तरह खिलाफ थे.  चर्चिल की विरोधी भूमिका के कारण एटली सशंक थे कि उनकी अपनी जनता उनके विरुद्ध न हो जाए इसलिए उन्होंने माउंटबेटन को चुना क्योंकि वो रानी एलिजाबेथ के रिश्तेदार थे, नौसेना के बड़े अधिकारी थे, युवा और रौबदार थे. एटली की सोच थी कि माउंटबेटन के निर्णयों के लिए उन्हें कोई दोष नहीं दे सकेगा.

जब माउंटबेटन भारत आए यह उनके लिए पूरी तरह नई जगह थी. उनकी जीवन शैली पाश्चात्य थी. वो खुद राजघराने से थे. 


इंग्लैंड से निकलते समय उन्हें बताया गया था कि यहां पहुंचने पर उन्हें जो सबसे ज्यादा तकलीफदायक व्यक्ति मिलेंगे उनका नाम महात्मा गांधी है. उनसे किसी भी प्रकार का समझौता करना बहुत मुश्किल काम है. 

भारत आते ही उन्होंने यहां के नेताओं से मिलना शुरू किया. पहले पटेल, फिर जिन्ना, फिर नेहरू

उन सब से वह अलग अलग कारणों से प्रभावित हुए पर नेहरू ने तो मानों उन्हें मुग्ध कर दिया था.

अंत में वह गांधी से मिलने आश्रम पहुंचे. ऊंचे पूरे माउंटबेटन को काफी झुक कर गांधी की कुटिया में प्रवेश करना पड़ा.  उस समय गांधी अपनी लेप चिकित्सा तथा मौन व्रत में थे अतः उन्होंने माउंटबेटन को लिखित में अपनी असमर्थता बता दी. माउंटबेटन कुछ असहज हुए कि इस व्यक्ति से वे कैसे वार्तालाप कर सकेंगे, किंतु जब गांधीजी से सही मायनों में उनकी मुलाकात हुई तो उन्होंने गांधी का लोहा मान लिया

1947 यह वर्ष भारत के इतिहास में अत्यंत अशांत वर्ष था. भारत को स्वतंत्रता मिली थी परंतु विभाजन, दंगे और रक्तपात के कारण चारों ओर भय का वातावरण था. लाखों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी लाखों अपनी जमीन से विस्थापित हो गए थे. इस हिंसा को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने पूरी सेना को झोंक दिया था परंतु पंजाब में तो दंगे थमने का नाम नहीं ले रहे थे


बंगाल में नोआखली में गांधी खुद पहुंचे. एक ओर देश स्वतंत्रता का उत्सव मना रहा था वहीं गांधी अकेले लोगों से बात कर रहे थे, उन्हें समझा रहे थे.

उनके पास ना सरकारी महकमा था न सेना, वे केवल सत्याग्रह, उपवास और नैतिक शक्ति का उपयोग कर रहे थे.अपनी जान खतरे में डालकर वे लोगों से बात करते रहे और उनके प्रयत्नों से दंगे शांत हुए.

26 अगस्त 1947 को माउंटबेटन ने गांधी को जो पत्र लिखा वह ऐतिहासिक दस्तावेज है. वो लिखते हैं " पंजाब मेंं हमारे पास 55000 सैनिकों के होते हुए भी दंगे थमे नहीं है और बंगाल में सिर्फ एक सैनिक ने दंगों को पूरी तरह रोक दिया है. एक प्रशासक और एक सैनिक होने के नाते मुझे इस "वन मैन बाउंड्री फोर्स " को सैल्यूट करने दीजिए"


गांधी की हत्या हुई तब माउंटबेटन यहीं दिल्ली में थे, उनके मृत शरीर को देखकर उन्होंने जो कहा वह दर्ज है 

" गांधी की तरह जीना बहुत कठिन है पर मुझे यदि गांधी की तरह मरना संभव हुआ तो मैं इसे भाग्य समझूंगा" 

नियति का खेल देखिए 1979 में माउंटबेटन की भी हत्या होती है, आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के विद्रोहियों ने उनकी हत्या कर दी थी. 

जैसे हमारे यहां देश का विभाजन हुआ था वैसे ही ब्रिटेन और आयरलैंड भी अलग हुए थे और उसी संघर्ष में माउंटबेटन की जान गई

गांधी ने अंग्रेजों से जो अच्छा था वह लिया 

जो बुरा था उसके विरुद्ध लड़े. 

लोकतंत्र को गांधी सिर्फ बहुमत का शासन नहीं मानते थे बल्कि हर व्यक्ति के अधिकारोंकी रक्षा का हथियार मानते थे

जिन अंग्रेजों से लड़कर उन्होंने  उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर किया 

आज उन्हीं अंग्रेजों की संसद के सामने गांधी की प्रतिमा सम्मान के साथ खड़ी है।(साभार)

सोमवार, 1 सितंबर 2025

जब काला झंडा दिखाने वाले को राहुल ने बुला लिया…

 जब काला झंडा दिखाने वाले को राहुल ने बुला लिया…

राहुल गांधी के बिहार यात्रा को असफल करने आरएसएस और बीजेपी ने तमाम हथकंडे अपनाए लेकिन राहुल टस से मस नहीं हुए, ऐसे में गाली कांड को लेकर काला झंडा दिखाने पहुँचे युवाओं के साथ राहुल का अन्दाज़ आपको भी समझना चाहिए…

बिहार में वोटर अधिकार यात्रा पर निकले राहुल गांधी को आरा, भोजपुर के पास आज चार पांच युवकों ने काला झंडा दिखाया। 

राहुल ने गाड़ी रोकी और उन्हें बुलाया।

सुरक्षाकर्मी बुलाने बढ़े तो युवक लगे सरकने। 

एक धरा गया। राहुल ने कहा, उसे मेरे पास ले आओ। 

डरा सहमा युवक जीप के पास आया। राहुल ने उसे जीप पर ऊपर चढ़ाया और पूछा - मुझसे क्यों नाराज हो ?

युवक बोला - पीएम की मां को गाली दी। 

राहुल ने पूछा - क्या मैंने दी? मेरी उपस्थिति में दी? मेरे किसी नेता ने दी?

युवक का गला सूख गया, कंठ से आवाज़ नहीं निकली। 

क्योंकि कोई जवाब नहीं था उसके पास।

राहुल ने उसे पानी पिलाया। टॉफी दी। अपना मुद्दा समझाया। 

और सुरक्षाकर्मियों को ताक़ीद किया कोई इनके साथ मारापीटी औऱ दुर्व्यवहार नहीं करेगा।

युवक आंख नीची कर चला गया।

पता है, काला झंडा दिखाने वाले ये युवक कौन थे ? 

भाजयुमो के विभु जैन, हर्ष राज मंगलम, आदित्य सिंह, महाराणा प्रताप और विकास तिवारी।

लेकिन, इनके नाम और संगठन जानना आपके लिए महत्व की बात नहीं। महत्व की बात ये है कि 

"आज की राजनीति में जब विरोध का सम्मान और असहमति का विवेक खत्म किया जा रहा है तब राहुल गांधी ही वह प्रकाशपुंज हैं जो लोकतंत्र पर गहराते अंधियारे को मिटा सकते हैं।"

क्योंकि उन्हें पता है कि लोकतंत्र, 

विरोध का सम्मान करने से ही पुष्पित पल्लवित होता है। 

राहुल गांधी अद्भुत हैं।अपने पिता और दादी दोनों की निर्मम हत्या देखने वाले राहुल का किसी भी अनजान विरोधी को अपनी गाड़ी पर बुला लेने का ये साहस इस देश की थाती है।


कहां से आती है ये थाती?

राहुल गांधी जिस विरासत के वारिस हैं, उसमें 'साहस' और

'विरोध का सम्मान' के अनेकों किस्से भरे पड़े हैं।


दो पुराने किस्से सुनाता हूं....एक 'साहस' का और एक 'विरोध के सम्मान' का।


1. 'साहस' -

बात कर रहा हूं साल 1944 में हुए गांधीजी के हत्या की दूसरी कोशिश की।

आगाखान महल की लंबी कैद में अपने पुत्रवत महादेव देसाई और 

पत्नी 'बा' को खोकर रिहा हुए गांधीजी बीमार भी थे और बेहद कमजोर भी। 

स्वास्थ्य लाभ और आराम के लिए पुणे के निकट पंचगनी रहने गए। 

पुणे के नजदीक बीमार गांधी का ठहरना सांप्रदायिक गिरोह को 

अपने शौर्य प्रदर्शन का अवसर लगा। बोले तो "आपदा में अवसर"।

सांप्रदायिक गिरोह के लोग गांधी जी के आवास पर पहुंचकर 

लगातार नारेबाजी, प्रदर्शन करने लगे। फिर 22 जुलाई को 

एक प्रदर्शनकारी युवक मौका देखकर गांधी जी की ओर 

छुरा लेकर झपटा। लेकिन, गांधी जी के सहयोगी 

भिसारे गुरुजी ने उसे दबोच लिया और उसके हाथ से छुरा छीन लिया।

गांधी जी ने उस युवा को छोड़ देने का निर्देश देते हुए कहा,

उसको कहो कि वह मेरे पास आकर कुछ दिन रहे ताकि 

मैं जान सकूं कि उसे मुझसे शिकायत क्या है। 

हालांकि वह युवक इसके लिए तैयार नहीं हुआ, भाग खड़ा हुआ। 

उस युवक का नाम नाथूराम गोडसे था।


2. 'विरोध का सम्मान' 

आजादी के तुरत बाद की घटना है। बंटवारे से विस्थापित हुए लोग 

दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में रह रहे थे। प्रधानमंत्री पंडित नेहरू 

अक्सर उन शिविरों में जाकर उनका हालचाल लेते रहते थे।


एक दिन जब वे एक शिविर में गाड़ी से उतर रहे थे, अचानक एक बुजुर्ग महिला ने उनका कालर पकड़ लिया। आसपास मौजूद लोग हक्का बक्का, सुरक्षाकर्मी बढ़े लेकिन नेहरू ने इशारे से रोक दिया। 

गिरहबान पकड़े महिला बोली - आजादी के बाद तुम तो प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन हमें क्या मिला ?

पंडित नेहरू ने कहा - अम्मा, आजादी के बाद तुम्हें देश के प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़कर अपनी बात कहने का अधिकार मिला है।

यह है गांधी नेहरू की विरासत। यह है इस देश की थाती।

सीने की चौड़ाई और दिल की गहराई ऐसे मापी जाती है।(साभार)