मंगलवार, 2 सितंबर 2025

क्या इस लॉर्ड माउंटबेंटन को जानते हो…

 क्या इस लॉर्ड माउंटबेंटन को जानते हो… 

भारत की आज़ादी के दौरान ब्रिटेन के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेंटन का आज़ादी के बाद क्या हुआ, वे ब्रिटेन कब गये और उनके साथ क्या हुआ, जानकार आप चकरा जाएँगे…

लॉर्ड माऊंटबॅटन इनका निधन १९७९ में हुआ. साठ सत्तर के दशकों में भारत से इतने लेखक इंग्लैंड और लंदन गए परंतु किसी ने भी माउंटबेटन से मिलकर भारत की स्वतंत्रता के विषय में उनसे बातचीत नहीं की जबकि माउंटबेटन लन्दन में ही थे और अंग्रेज सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे. इस दरम्यान भारत में नेहरू, शास्त्री और इंदिरा गांधी तीन प्रधान मंत्री हो चुके थे . ‘फ्रीडम ॲट मिडनाइट’ किताब का  महत्त्व इसीलिए है, क्योंकि माऊंटबॅटन से बात करके ही उसके लेखकों को इतनी महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं . उन लेखकों को भारतीय संदर्भ ठीक से न समझने के कारण यह पुस्तक नीरस लगती है जबकि भारतीय लेखकों द्वारा यह काम अधिक कुशलता से किया जा सकता था.


भारत को स्वतंत्रता देने की प्रक्रिया में माउंटबेटन की भूमिका इतिहास में कायम स्वरूप दर्ज हो चुकी है. मार्च १९४७ में जब उनकी भारत के व्हाईसरॉय के रूप में नियुक्ती हुई तब उन्हें 2 बड़ी जिम्मेदारियां दी गईं. 

एक. भारत को जल्द से जल्द स्वतंत्र करना और 

दो. सत्ता का हस्तांतरण व्यवस्थित रूप से पूरा करना. 

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड की आर्थिक राजनैतिक और सैन्य शक्ति बहुत कम हो चुकी थी. चर्चिल चुनाव हार चुके थे. लेबर पार्टी के एटली नए प्रधानमंत्री बने थे. इसलिए भारत को स्वतंत्र करने के सिवा उनके पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था परंतु ब्रिटेन में चर्चिल चुनाव भले ही हार गए हों पर भारत को आजादी देने के वह पूरी तरह खिलाफ थे.  चर्चिल की विरोधी भूमिका के कारण एटली सशंक थे कि उनकी अपनी जनता उनके विरुद्ध न हो जाए इसलिए उन्होंने माउंटबेटन को चुना क्योंकि वो रानी एलिजाबेथ के रिश्तेदार थे, नौसेना के बड़े अधिकारी थे, युवा और रौबदार थे. एटली की सोच थी कि माउंटबेटन के निर्णयों के लिए उन्हें कोई दोष नहीं दे सकेगा.

जब माउंटबेटन भारत आए यह उनके लिए पूरी तरह नई जगह थी. उनकी जीवन शैली पाश्चात्य थी. वो खुद राजघराने से थे. 


इंग्लैंड से निकलते समय उन्हें बताया गया था कि यहां पहुंचने पर उन्हें जो सबसे ज्यादा तकलीफदायक व्यक्ति मिलेंगे उनका नाम महात्मा गांधी है. उनसे किसी भी प्रकार का समझौता करना बहुत मुश्किल काम है. 

भारत आते ही उन्होंने यहां के नेताओं से मिलना शुरू किया. पहले पटेल, फिर जिन्ना, फिर नेहरू

उन सब से वह अलग अलग कारणों से प्रभावित हुए पर नेहरू ने तो मानों उन्हें मुग्ध कर दिया था.

अंत में वह गांधी से मिलने आश्रम पहुंचे. ऊंचे पूरे माउंटबेटन को काफी झुक कर गांधी की कुटिया में प्रवेश करना पड़ा.  उस समय गांधी अपनी लेप चिकित्सा तथा मौन व्रत में थे अतः उन्होंने माउंटबेटन को लिखित में अपनी असमर्थता बता दी. माउंटबेटन कुछ असहज हुए कि इस व्यक्ति से वे कैसे वार्तालाप कर सकेंगे, किंतु जब गांधीजी से सही मायनों में उनकी मुलाकात हुई तो उन्होंने गांधी का लोहा मान लिया

1947 यह वर्ष भारत के इतिहास में अत्यंत अशांत वर्ष था. भारत को स्वतंत्रता मिली थी परंतु विभाजन, दंगे और रक्तपात के कारण चारों ओर भय का वातावरण था. लाखों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी लाखों अपनी जमीन से विस्थापित हो गए थे. इस हिंसा को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने पूरी सेना को झोंक दिया था परंतु पंजाब में तो दंगे थमने का नाम नहीं ले रहे थे


बंगाल में नोआखली में गांधी खुद पहुंचे. एक ओर देश स्वतंत्रता का उत्सव मना रहा था वहीं गांधी अकेले लोगों से बात कर रहे थे, उन्हें समझा रहे थे.

उनके पास ना सरकारी महकमा था न सेना, वे केवल सत्याग्रह, उपवास और नैतिक शक्ति का उपयोग कर रहे थे.अपनी जान खतरे में डालकर वे लोगों से बात करते रहे और उनके प्रयत्नों से दंगे शांत हुए.

26 अगस्त 1947 को माउंटबेटन ने गांधी को जो पत्र लिखा वह ऐतिहासिक दस्तावेज है. वो लिखते हैं " पंजाब मेंं हमारे पास 55000 सैनिकों के होते हुए भी दंगे थमे नहीं है और बंगाल में सिर्फ एक सैनिक ने दंगों को पूरी तरह रोक दिया है. एक प्रशासक और एक सैनिक होने के नाते मुझे इस "वन मैन बाउंड्री फोर्स " को सैल्यूट करने दीजिए"


गांधी की हत्या हुई तब माउंटबेटन यहीं दिल्ली में थे, उनके मृत शरीर को देखकर उन्होंने जो कहा वह दर्ज है 

" गांधी की तरह जीना बहुत कठिन है पर मुझे यदि गांधी की तरह मरना संभव हुआ तो मैं इसे भाग्य समझूंगा" 

नियति का खेल देखिए 1979 में माउंटबेटन की भी हत्या होती है, आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के विद्रोहियों ने उनकी हत्या कर दी थी. 

जैसे हमारे यहां देश का विभाजन हुआ था वैसे ही ब्रिटेन और आयरलैंड भी अलग हुए थे और उसी संघर्ष में माउंटबेटन की जान गई

गांधी ने अंग्रेजों से जो अच्छा था वह लिया 

जो बुरा था उसके विरुद्ध लड़े. 

लोकतंत्र को गांधी सिर्फ बहुमत का शासन नहीं मानते थे बल्कि हर व्यक्ति के अधिकारोंकी रक्षा का हथियार मानते थे

जिन अंग्रेजों से लड़कर उन्होंने  उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर किया 

आज उन्हीं अंग्रेजों की संसद के सामने गांधी की प्रतिमा सम्मान के साथ खड़ी है।(साभार)

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