मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

संवाद में 18 करोड़ का घोटाला...


आडिट आपत्ति के बाद लीपापोती शुरु
अपने निर्माण के साथ ही विवादों में घिरे छत्तीसगढ़ संवाद में अनियमितता की कहानी थमने का नाम नहीं ले रही है संविदा नियुक्ति के मामले में लेन-देन में फंसे यहां के अधिकारी अब छत्तीसगढ क़े बाहर से प्रकाशित होने वाले कथित नेशनल अखबारों को व्यवसायिक दर पर विज्ञापन देने के मामले में बुरी तरह फंस गए हैं। इस मामले में अधिकारियों द्वारा कमीशनखोरी की भी चर्चा है और अब आडिट आपत्ति के बाद इस मामले की लीपा-पोती की जा रही है। मुख्यमंत्री के विभाग में चल रहे घपलेबाजी के उजागर होने के बाद भी किसी तरह की कार्रवाई नहीं होने पर सीधे सचिव बृजेन्द्र कुमार पर उंगली उठने लगी है।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद राय सरकार के विज्ञापन से मिलने वाले कमीशन पर खड़ा संवाद के अधिकारी कमीशनखोरी में मस्त हो गए हैं। वैसे तो संवाद में यह सब नया नहीं है। पहले किराये के भवन में संचालित होने को लेकर विवाद में रहे जनसंपर्क के अधिकारियों पर कमीशनखोरी का आरोप लगते रहा है। इसके बाद संविदा नियुक्ति के मामले में संवाद विवादों में घिरा लेकिन मुख्यमंत्री का विवाद होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं हुई और यहां के अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री के नाम से धमकी-चमकी देने की वजह से कई पत्रकारों की नौकरी तक खतरे में पड़ चुकी है।
ऐसे में इस विभाग में चल रहे घपलेबाजी की तरफ कोई देखना ही नहीं चाहता और प्रकाशन से लेकर विज्ञापनों के डिजाईन के नाम पर मनमाने रुप से अनियमितता की जा रही है हालत यह है कि करोड़ों की संपत्ति के स्वामी होते यहां के अधिकारियों की शिकायतों की फाईलें दब जाती है और सूचना का अधिकार कानून भी यहां आकर दम तोड़ देता है। ताजा मामले का खुलासा तब हुअआ जब आडिट विभाग ने तथा कथित नेशनल अखबारों को विज्ञापन के नाम पर भुगतान पर आपत्ति की। दरअसल इन अखबारों को डीएवीपी रेट से भुगतान करने की बजाय व्यवसायिक दर पर भुगतान किया गया जो डीएवीपी दर से 10 गुणा अधिक होता है।
बताया जाता है कि डीएवीपी की बजाय व्यवसायिक दर पर भुगतान की कहानी कमीशनखोरी से जुड़ी हुई है और हर भुगतान के एवज में 10 फीसदी राशि अलग से लिए जाने की चर्चा है। बताया जाता है कि आडिट आपत्ति के बाद अफसरों ने इस पर लीपापोती का खेल शुरु कर दिया है और यह सब उच्च स्तर पर किया गया। बताया जाता है कि लीपापोती के तहत उन अखबारों को डीएवीपी की दर पर पुन: विज्ञापन दिए जा रहे हैं ताकि भुगतान को एडजेस्ट किया जा सके। इसी तरह इसकी कहानी भी गढ़ी जा रही है।
इधर यह भी पता चला है कि इस मामले में ऊपर तक पैसा पहुंचाये जाने का हल्ला है। किस स्तर तक पैसा पहुंचाया गया है यह तो जांच का विषय है लेकिन प्रदेश के मुखिया के विभाग में चल रहे 18 करोड़ के इस घपलेबाजी को लेकर कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री और सरकार की छवि बनने वाले इस विभाग की करतूत से सरकार की छवि पर भी असर पड़ेगा। बहरहाल मुख्यमंत्री के विभाग में ही चल रहे भ्रष्टाचार की आम लोगों में बेहद चर्चा है और कहा जा रहा है कि सालों से जमें अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई तो स्थिति और भी बदतर होगी।

1 टिप्पणी:

  1. जिस विभाग के मंत्री खुद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह हैं, वहां यह हाल है तो बाकी विभागों का भगवान ही मालिक है।

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