कहने तो तो छत्तीसगढ़ के विधायक समाजसेवा कर रहे हैं लेकिन वास्तव में इनकी रूचि ऐन-केन प्रकारेण पैसे कमाने की है यही वजह है कि वेतन भत्ते बढाने के मामले में सभी विधायक एक हो जाते हैं और महंगाई से त्रस्त आम आदमी का मामला हाशिये पर चला जाता है। छत्तीसगढ़ के लोगों की गाढ़ी कमाई का 20 करोड़ रुपया हर साल सीधे इन्हीं मंत्रियों व विधायकों की जेब में जाता है।
वास्तव में राजनीति अब व्यवसाय का रूप ले चुकी है। सिध्दांतों की बात करने वाले राजनैतिक दल के नेता पैसा कमाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए पैसा लेकर सवाल करने का सवाल लगाकर पैसा लेकर गायब होने की परम्परा ने लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र करना शुरू कर दिया है। जनसेवा के नाम पर राजनीति की वकालत करने वाले छत्तीसगढ़ के किसी विधायक ने यह नहीं कहा कि सेवा वे मुफ्त में करेंगे बल्कि अपनी तनख्वाह और भत्ता बढ़ाने गलबट्टियां करने लगते हैं।
छत्तीसगढ़ में बजट सत्र में सरकार ने महंगाई का हवाला देकर जिस पैमाने पर विधायकों के वेतन भत्ते में बढ़ोत्तरी की है वह जनसेवा के नाम पर कलंक है। इस बड़े हुए वेतन भत्ते का हिसाब लगाया जाए तो अब हर विधायक 46 हजार रुपए महिना पायेंगे। आश्चर्य का विषय तो यह है कि आम लोगें की महंगाई की तकलीफ पर आंसू बहाने वाले किसी भी विधायक ने न तो इस विधेयक का विरोध ही किया और न ही किसी ने मुफ्त में जनसेवा करने की बात ही कही। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि राजनीति का वास्तविक उद्देश्य क्या होता जा रहा है। छत्तीसगढ नया राय है और वहां विकास करने की जरूरत है। सरकारी धन का बंदरबांट कर विकास में रोड़ा अटकाया गया तो राय निर्माण की वजह पर सवाल उठेंगे। भ्रष्टाचार तो चरम पर है ही सरकारी अधिकारी अपनी सुविधा के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा चुरा लेते है ऐसे में जनप्रतिनिधि भी सरकारी धन का बंदरबांट करे तो स्थिति विकराल हो सकती है। इसलिए अब आम लोगों को सोचना होगा कि उसे कैसा नेता चाहिए।
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