बुधवार, 28 अप्रैल 2010

बड़े अखबारों की नई खिचड़ी

छत्तीसगढ़ में स्थापित हो चुके बड़े अखबारों की सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों के साथ अलग तरह की खिचड़ी पक रही है। वैसे भी राय बनने के बाद छत्तीसगढ़ की मीडिया में नया परिवर्तन आया है कभी रुपया दो रुपया फीट पर जमीन पाने भोपाल के चक्कर लगाने पड़ते थे और दूसरे उद्योग चलाने से पहले सोचना पड़ता था।
राय बनने के बाद परिवर्तन बड़ी तेजी से आया है। सकारात्मक खबरों के चक्कर में उन खबरों पर भी बंदिशें लगनी शुरु हो गई जिससे राय या देश को सीधे नुकसान उठाना पड़ रहा है। कोई अखबार वाला शॉपिंग मॉल की तैयारी में है तो कोई आयरन उद्योग में कूद रहा है। किसी के नए धंधे करने से किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती। इसलिए अखबार वाले भी अखबार के साथ दूसरा धंधा कर सकते हैं लेकिन धंधा के लिए गंदा समझौता उचित नहीं है।
यही वजह है कि अखबारों की विश्वसनियता पर सवाल उठने लगे हैं। चौक-चौराहों पर इसकी चर्चा होने लगी है और रिपोर्टरों को यह सब भुगतना भी पड़ रहा है। इन दिनों ग्राम सुराज को लेकर भी अखबारों की भूमिका भाढ की तरह हो गई थी। सुराज दल को जिस पैमाने पर गांव वालों के कोप भाजन बनना पड़ा है वह खबरों में कहीं नहीं दिखी। सरकारी विज्ञापन के दबाव में स्थानीय अखबार जिस तरह से सरकारी प्रचार का माध्यम बनता जा रहा है वह स्वस्थ पत्रकारिता के लिए चिंता का विषय है। भ्रष्ट मंत्रियों के विज्ञापन भी उतनी ही प्रमुखता से प्रकाशित किए जाने लगे है ऐसे में आम लोगों की सोच भी अखबारों के प्रति बदल जाए तो नुकसान इस प्रदेश का ही होना है।
और अंत में....संवाद के खिलाफ खबर जुटाने में लगे एक पत्रकार की किस्मत अच्छी है कि उसकी नौकरी अभी तक उस अखबार के दफ्तर में कायम है वरना संवाद के खाटी अधिकारी ने तो फोन कर उसे नौकरी से निकालने का फरमान सुना ही डाला था।

2 टिप्‍पणियां:

  1. अखबारों में अब पत्रकारिता बची ही कहां है कौशल जी।
    जो कुछ है बस धंधा-पानी तक सीमित हो गया है।
    कुछेक लोग जिनका जमीर अभी तक मरा नहीं है, आपकी
    ...और अंत में.... में शामिल हैं।

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