बड़ों को बांटा-छोटों को डांटा
सरकार के इशारे पर हो रही कार्रवाई!
वैसे तो कोई भी सरकार अखबारों के खिलाफ मौका तलाशने से परहेज नहीं करती लेकिन भाजपा सरकार इस मामले में कुछ यादा ही बदनाम है। ताजा मामला जनसंपर्क आयुक्त एन. बैजेन्द्र कुमार का नवभारत में छपा वह बयान है जिसमें उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं के प्रचार संख्या की जांच करने कलेक्टरों से कहते हुए विज्ञापन नहीं देने की बात कही है जबकि बड़े अखबारों को विज्ञापन की एवज में एडवांश राशि दी जा रही है। इतने बड़े निर्णय क्या सरकार के इशारे पर हुए हैं या अपनी करतूत छापने वाले अखबारों को सबक सीखने किया गया है। यह जांच का विषय है।
वैसे मीडिया जगत में इस बात की चर्चा शुरु से रही है कि जब से एन. बैजेन्द्र कुमार ने आयुक्त जनसंपर्क का पद संभाला है तभी से वे सरकार के खिलाफ छपने वाली खबरों को लेकर मीडिया के खिलाफ तीखी टिप्पणी करना शुरु कर दिया था। हालांकि तब से किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया था। बताया जाता है कि उनके आने के बाद जनसंपर्क व संवाद में घपलेबाजी बढ़ने लगी और इसे दबाने नवभारत, भास्कर, नईदुनिया जैसे बड़े अखबारों को एडवांश में राशि दी जाने लगी और छोटे अखबार खासकर वे अखबार जो जनसंपर्क व संवाद की करतूत छाप रहे थे उन पर नकेल कसना शुरु कर दिया। उन्हीं छोटे अखबारों को विज्ञापन दिए जाने लगे जो चापलूसी करते थे और उनमें भी यादा चापलूसी करने वालों को अधिक विज्ञापन दिया जाने लगा।
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ सरकार की रूचि शुरु से ही स्थानीय अखबारों व पत्रकारों को प्रताड़ित करने की मानी जाती है। यही वजह है कि भोपाल या प्रदेश के बाहर से प्रकाशित होने वाले अखबारों को मनमाने तरीके से अनाप-शनाप कीमतों का विज्ञापन दिया जाने लगा और छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले अखबारों को प्रताड़ित किया गया।
यहीं नहीं पिछले दिनों तो जनसंपर्क आयुक्त एन. बैजेन्द्र कुमार ने अति कर दी जब वे आरएनआई द्वारा डी ब्लाक किए जाने के मौके का फायदा उठाते हुए यह कह दिया कि इन अखबारों के प्रसार की कलेक्टरों द्वारा जांच कराई जाएगी और इन्हें विज्ञापन भी नहीं दिए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि एडवांश राशि का भरपूर विज्ञापन पाने वाले अखबार तो सरकार की चापलूसी करते हैं जबकि छोटे अखबार वाले सरकार के खिलाफ जमकर छापते हैं। यही वजह है कि सरकार ऐसे अखबारों पर शिकंजा कसने की कोशिश करती है। इस संबंध में श्रमजीवी पत्रकार संघ ने ऐसे अखबार वालों की बैठक बुलाते हुए कहा है कि सरकार के इशारे पर आयुक्त ने जो बात कही है उसके लिए वे माफी मांगे अन्यथा पत्रकार संघ सड़क की लड़ाई लड़ेगी।
सरकार के इशारे पर हो रही कार्रवाई!
वैसे तो कोई भी सरकार अखबारों के खिलाफ मौका तलाशने से परहेज नहीं करती लेकिन भाजपा सरकार इस मामले में कुछ यादा ही बदनाम है। ताजा मामला जनसंपर्क आयुक्त एन. बैजेन्द्र कुमार का नवभारत में छपा वह बयान है जिसमें उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं के प्रचार संख्या की जांच करने कलेक्टरों से कहते हुए विज्ञापन नहीं देने की बात कही है जबकि बड़े अखबारों को विज्ञापन की एवज में एडवांश राशि दी जा रही है। इतने बड़े निर्णय क्या सरकार के इशारे पर हुए हैं या अपनी करतूत छापने वाले अखबारों को सबक सीखने किया गया है। यह जांच का विषय है।
वैसे मीडिया जगत में इस बात की चर्चा शुरु से रही है कि जब से एन. बैजेन्द्र कुमार ने आयुक्त जनसंपर्क का पद संभाला है तभी से वे सरकार के खिलाफ छपने वाली खबरों को लेकर मीडिया के खिलाफ तीखी टिप्पणी करना शुरु कर दिया था। हालांकि तब से किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया था। बताया जाता है कि उनके आने के बाद जनसंपर्क व संवाद में घपलेबाजी बढ़ने लगी और इसे दबाने नवभारत, भास्कर, नईदुनिया जैसे बड़े अखबारों को एडवांश में राशि दी जाने लगी और छोटे अखबार खासकर वे अखबार जो जनसंपर्क व संवाद की करतूत छाप रहे थे उन पर नकेल कसना शुरु कर दिया। उन्हीं छोटे अखबारों को विज्ञापन दिए जाने लगे जो चापलूसी करते थे और उनमें भी यादा चापलूसी करने वालों को अधिक विज्ञापन दिया जाने लगा।
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ सरकार की रूचि शुरु से ही स्थानीय अखबारों व पत्रकारों को प्रताड़ित करने की मानी जाती है। यही वजह है कि भोपाल या प्रदेश के बाहर से प्रकाशित होने वाले अखबारों को मनमाने तरीके से अनाप-शनाप कीमतों का विज्ञापन दिया जाने लगा और छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले अखबारों को प्रताड़ित किया गया।
यहीं नहीं पिछले दिनों तो जनसंपर्क आयुक्त एन. बैजेन्द्र कुमार ने अति कर दी जब वे आरएनआई द्वारा डी ब्लाक किए जाने के मौके का फायदा उठाते हुए यह कह दिया कि इन अखबारों के प्रसार की कलेक्टरों द्वारा जांच कराई जाएगी और इन्हें विज्ञापन भी नहीं दिए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि एडवांश राशि का भरपूर विज्ञापन पाने वाले अखबार तो सरकार की चापलूसी करते हैं जबकि छोटे अखबार वाले सरकार के खिलाफ जमकर छापते हैं। यही वजह है कि सरकार ऐसे अखबारों पर शिकंजा कसने की कोशिश करती है। इस संबंध में श्रमजीवी पत्रकार संघ ने ऐसे अखबार वालों की बैठक बुलाते हुए कहा है कि सरकार के इशारे पर आयुक्त ने जो बात कही है उसके लिए वे माफी मांगे अन्यथा पत्रकार संघ सड़क की लड़ाई लड़ेगी।
...ये तो घोर अन्याय है!!!
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