मोवा के लोग ही नहीं इस रोड से गुजरने वाले भी पिछले सालभर से त्रस्त हैं। रेलवे की अपनी जिद है और प्रदेश सरकार का पीडब्ल्यूडी विभाग अपनी जिम्मेदारी से मुकर रहा है। यहां के लोग सबका चक्कर लगा चुके है। छत्तीसगढ़ की मीडिया इस मार्ग से गुजरने वालों की परेशानियां लगातार छाप रही है और सरकार तथा उसके पीडब्ल्यडी मंत्री को इससे कोई सरोकार नहीं है।
मोवा के लोग आंदोलित हैं लेकिन वे कोई ऐसा आंदोलन नहीं चाहते जिससे आम लोगों की तकलीफ बढ ज़ाए। इसके बाद भी सरकार की खामोशी को कोई क्या कहेगा। मोवा में रेलवे ओवर ब्रिज का काम चल रहा है। सालभर से चल रहे इस काम की वजह से घंटो यातायात जाम रहता है और सड़कों पर उभर आए गङ्ढों से गंभीर दुर्घटनाएं तक हो चुकी है। लोगों ने जब चीख-पुकार मचाई तो छत्तीसगढ़ सरकार ने सर्विस रोड को दुरुस्त किया। लेकिन साल भी पूरा नहीं हुआ और सड़के उखड़ गई लोग फिर अनजानी दुर्घटना के शिकार होने लगे। सर्विस रोड कितने की बनी इसके एवज में किस-किस को कमीशन मिला यह अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। तभी तो सड़के सालभर भी नहीं चली।
लेकिन वाह रे जनता। जय हो। उसने उखड़ती सड़कों को नजर अंदाज कर पीडब्ल्यूडी मंत्री को धन्यवाद ज्ञापित कर आए। मोवा आंदोलनकारी कहते हैं कि हम पॉजेटिव्ह सोचते हैं। इसलिए हम किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहते और इसलिए वे आंदोलन को गांधीवाद तरीके से ही चलाना चाहते हैं।
इन दिनों वे लोगों को सांसद-विधायकों के नाम पोस्ट कार्ड लिखवाते घूम रहे हैं। साथ ही मांग भी कर रहे हैं कि इस प्रदेश के विधायक व मंत्री यदि विधानसभा जाते हैं तो वे वीआईपी रोड से जाने की बजाय मोवा मार्ग से जाएं। वह भी बिना वीआईपी व्यवस्था के। पता नहीं मोवा वासियों की मांग सरकार में बैठे मंत्री व विधायक मानते हैं या नहीं लेकिन पीडब्ल्यूडी विभाग के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को इस मार्ग से जरूर गुजरना चाहिए। ताकि उन्हें पता चल सके इस मार्ग में पीडब्ल्यूडी ने कितना खर्च किया है। हम किसी दूसरे की तकलीफ को किसी अन्य को महसूस करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। लेकिन इस बहाने सड़क निर्माण में लगे एजेंसियों की करतूत को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं।
बृजमोहन अग्रवाल जिस दमदारी के लिए जाने जाते हैं। क्या पूरे प्रदेश में पीडब्ल्यूडी में चल रहे कमीशनखोरी को वे रोक पाए हैं। यदि ओवरब्रिज के निर्माण में देर है तो क्या प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे सर्विस रोड को अच्छा बना दे ताकि जनता परेशान न हो। यदि सर्विस रोड से सालभर के भीतर उखड़ गई तो जिम्मेदारी क्या इसलिए तय नहीं की जा रही है क्योंकि कमीशन मंत्रियों तक पहुंचाई जाती है। मोवावासियों का वहां से गुजरने वालों की हाय क्या सरकार को नहीं लगेगी। सालभर से किसी मार्ग से गुजरने वालों की परेशानी नहीं सुनना क्या अंधेरगर्दी नहीं है। मैं तो मोवा के आंदोलनकारियों की हिम्मत की दाद देता हूं कि वे इस अंधेरगर्दी के आलम में भी मंत्री से लेकर सभी को धन्यवाद दे गए। लेकिन अब बारी सरकार और विधायकों की है कि वे धन्यवाद के बदले विधानसभा का पूरा सत्र इस रास्ते से होकर अटेंड करें।
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