शनिवार, 24 मार्च 2012

छोटे चोर...चोर, बड़े साहूकार...!


छत्तीसगढ़ सरकार ने विधानसभा में स्वीकार किया है कि एस्सार सहित के द्वारा 2006 से पानी चोरी कर रही है। इससे पहले उद्योगों द्वारा जबरिया जमीन कब्जे व मनमाने ढंग से बोर कराने की घटना हो चुकी है। और जब से भाजपा सत्ता में आई है। उद्योगों के प्रति मेहरबानी ने आम आदमी का जीना दूस्वार कर दिया है। प्रदूषण से लेकर पानी और जमीनों को कब्जा करने की कवायद को सरकार मदद कर रही है। कहा जाये तो गलत नहीं होगा।
सरकार में बैठे मंत्रियों के अलावा अधिकारियों के द्वारा भी उद्योगों को भरपूर मदद की जा रही है और आम आदमी पानी के गिरते स्तर, प्रदूषण और छिने जा रहे जमीन से नारकीय जीवन जीने मजबूर है। प्रदेश में अधिकारियों द्वारा उद्योगों को मदद करने के एवज में अपनी जेबे भरी जा रही है और धंधे बाज नेताओं को तो आम लोगों से कोई सरोकार ही नहीं रह गया है।
राजधानी में स्थित आईएएस आईपीएस के लिए बने मौली श्री विहार तो उद्योगपतियों के एय्याशी का अड्डा बन चुका है। कई अधिकारियों ने अपने बंगले उद्योगों को रेस्ट हाउस के लिए किराये पर दे रखा है। और किराया भी इतनी है जिसकी कल्पना बेमानी है।
विधानसभा में एस्सार द्वारा 2006 से पानी चोरी की बात स्वीकार करने वाले मंत्री रामविचारर नेताम कार्रवाई पर चुप रहे गये। जबकि अपनी खेती को बचाने नहर में पानी चोरी करने वाले किसानों को तत्काल पुलिस में दे दिया जाता है। प्राय: अधिकांश उद्योग पानी के लिए हुए समझौते का उल्लंघन कर समझौते से अधिक दोहन कर रहे हैं और मनमाने ढंग से बोर करवा रहे हैं। मनमाने ढंग से बोर करने से औद्योगिक क्षेत्रों से लगे गांवों में जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है और पानी को लेकर एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।
कोल ब्लॉक के आबंटन को लेकर घिरी कांग्रेस की सरकार में धंधेबाज नेताओं को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है और यहां तो अधिकारी से लेकर नेता धंधे में लगे हैं तो सरकार अपने को बदनामी से कब तक बचायेगी या 1-2 रुपया चावल या अन्य बांटों योजना से आम आदमी को कब तक बरगलाया जा सकता है।
वेदांता से लेकर एस्सार जैसी बड़ी कंपनियों ने जिस तरह से खुले आम नियम कानून का उल्लंघन किया है उसके बाद तो सरकार को इन्हें बंद करवाने में एक मिनट नहीं लगाना चाहिए लेकिन उद्योग लगाने के पहले ही उद्योगपतियों द्वारा जिस तरह से अधिकारियों व नेताओं के रिश्तेदारों को ओब्लाईज किया जाता है उसके बाद तो उन पर कार्रवाई हो पाना संभव ही नहीं दिखता।
छत्तीसगढ़ में उद्योगों की करतूतों पर सरकार ने विराम नहीं लगाया तो इसके परिणाम भयंकर हो सकते है। खेती की जमीन से लेकर पानी तक में कब्जे की कयावद के बाद हवा को जिस पैमाने पर प्रदूषित किया जा रहा है यहां के कई क्षेत्रों में जीना दूभर हो सकता है। वक्त रहते सरकार को ठोस कदम उठाना ही होगा वरना आम आदमी अपनी हक के लिए सड़क पर जब भी आयेंगे उन्हें जवाब देना मुश्किल हो जायेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें