रमन सरकार ने शायद यह तयही कर लिय अहै कि निजी स्कूल चाहे कितनी भी मनमानी करे उस पर कोई कार्यवाही नहीं होगी और सरकारी स्कूलों का स्तर इतना गिरा दिया जाए कि लोग अपने ब'चों को निजी स्कूलों में पढाने पर मजबूर हो जाएं।
तभी तो सरकारी स्कूलों में समय के अनुरुप न तो अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा ही शुरु की जा रही है और न ही शिक्षक रखे जा रहे हैं। न स्कूलों में ढंग से शौचालय बनाए जाते हैं और न ही पीने की पानी की व्यवस्था पर ध्यान दिया जा रहा है ऐसे में लोगों की मजबूरी का फ़ायदा निजी स्कूलों के द्वारा उठाया नहीं जाएगा तो क्या होगा।
छत्तीसगढ में निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर है। मनमाने फ़ीस के अलावा जूता-मोजा, बेल्ट-टाई, कापी-किताब से लेकर लोगों की जेब पर डकैती डालने नए नए तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं। लेकिन न तो यह सब अधिकारियों को ही दिख रहा है और न ही जनप्रतिनिधि कहलाने वाले मंत्रियों को ही दिख रहा है। उपर से इन निजी स्कूलों की करतूतों पर लीपा पोती की जा रही है।
सरकार के लिए तो सरकारी स्कूल घाटे का धंधा कहलाने लगा है। उन्हे लगता है कि सरकारी स्कूल को सुधारने में फिज़ूल खर्च है। जबकि उनकी सुविधा बढाने में फिज़ूल खर्ची उन्हे नहीं दिखता। सरकारी खजाने से जनता के लिए खर्च करने में उन्हे तकलीफ़ होती है। पता नहीं यह पैसा उन्की जेब से जाता तो क्या करते।
कहने को तो सरकार का काम जनता का हित देखना है लेकिन सरकार हर काम को धंधे की नजर से देखने लगी है। जबकि हर साल के परीक्षा परिणाम से स्पष्ट है कि निजी स्कूल के ब'चों से Óयादा होशियार अभाव ग्रस्त सरकारी स्कूल में पढ़ रहे ब'चे हैं।
निजी स्कूलों में सुविधाओं के नाम पर खुले आम डकैती की जा रही है। चौतरफ़ा लूट खसोट के अलावा नियम-कानून की धÓिजयाँ उड़ाई जा रही हैं। यदि सरकारी स्कूलों में सरकार नर्सरी से ही अंग्रेजी माध्यम शुरु कर दे तो अस्सी फ़ीसदी से अधिक लूटेरे अपने संस्थान बंद कर देगें। ये वे लोग हैं जो शिक्षा के माध्यम से समाज सेवा का दावा तो करते हैं लेकिन सरे आम लोगों की जेबों पर डकैती डाल रहे हैं।
यही वजह है कि निजी स्कूलों में चल रही बसों की हालत बदतर है। लेकिन अधिकारी से लेकर मंत्रियों तक पहुंच रही उपरी कमाई की वजह से ब'चों की ज आन से खिलवाड़ किया जा रहा है।
राजकुमार कालेज की चलती बस से स्निग्धा वर्मा नाम की मासूम ब'ची सड़क पर गिर जाती है और कालेज प्रबंधन से लेकर पूरी सरकार इस मामले पर कार्यवाई करने की बजाए लीपा-पोती में लग जाती है। बस चालक और परिचालक जैसे छोटे कर्मचारियों को गिरफ़्तार कर लिया जाता है लेकिन काले प्रबंधन के खिलाफ़ जुर्म तक दर्ज नहीं किया जाता।
इस मामले में तो सीधे राÓयपाल को हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि निजी शिक्षण संस्थाओं की मनमानी पर सरकार कुछ नहीं करने वाली। उपर से लेकर नीचे तक के लोगों का मुंह पैसों से भर दिया गया है। वे बोलेगें भी नही और कभी भी कोई और बड़ी घटना हुई तो मासूमों की जान तक जा सकती है। हर कोइ स्निग्धा वर्मा जैसी किस्मत वाली नहीं होती।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें