मंगलवार, 19 जनवरी 2021

राष्ट्रवाद का ढोंग...


 

रिपब्लिक टीवी चैनल ग्रुप के मालिक और प्रखर राष्ट्रवादी संपादक अर्नब गोस्वामी भले ही मुश्किल में बच जाये लेकिन जिस तरह का खुलासा उसके वाट्सअप चैट को लेकर सामने आया है उससे मोदी सत्ता की कारगुजारियों को एक बार फिर उजागर कर दिया है। टीआरपी बढ़ाने से शुरु हुआ यह खेल देश की सुरक्षा से लेकर मंत्रियों के कारनामें तक पहुंच चुका है।

मुंबई पुलिस ने टीआरपी घोटाले की जांच शुरु की तो यह किसी ने नहीं सोचा था कि इस राष्ट्रवादी संपादक का वह 'सच भी उजागरÓ होगा जो देश के लिए गंभीर अपराध माना जाता है लेकिन सत्ता के इस खेल में जब विरोध करने वाला ही देशद्रोही हो तो फिर इसका मतलब क्या है कि सत्ता से जुड़कर आप कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं।

यही वजह है कि इस देश में सत्ता हासिल करने के लिए झूठ, अफवाह और नफरत की दीवारें खड़ी की गई। जरूरत दो जून की रोटी की थी लेकिन नफरत को चाशनी में डूबो कर परोसा गया।

सवाल अर्नब का नहीं है, सवाल है अर्नब के पीछे सत्ता हासिल करने की मानसिकता है। आजादी की लड़ाई के दौरान के इतिहास को खंगाला जाये तो यही सब मिलेगा, आजादी ने महानायकों गांधी, सुभाष, पटेल, नेहरु, राजेन्द्र प्रसाद से लेकर कई नाम सामने आयेंगे जिन्हें कट्टरपंथियों ने बदनाम करने झूठ और अफवाह का सहारा लिया था, लेकिन इनकी नैतिकता के आगे यह सब नहीं चला।

लेकिन अब चल रहा है क्योंकि जब राष्ट्रवाद कोढ़ की शक्ल ले ले तो उनकी संवेदनाएं शून्य हो जाती है उन्हें न ठंड में ठिठुरते आंदोलनरत किसानों की पीड़ा नजर आती है और न ही अरुणाचल में चीन के द्वारा बनाये घर ही नजर आते हैं। उन्हें नजर आते है केवल सत्ता की रईसी को बरकरार रखने के साधन।

यही वजह है कि बदहाल होती आर्थिक स्थिति बेरोजगारों की पीड़ा अब कोई मायने नहीं रखता। उनके अपने अच्छे दिन तो आ ही गये है?

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