बुधवार, 31 जुलाई 2024

मोदी सत्ता के इन रिकार्डो का कोई तोड़ नहीं...

 मोदी सत्ता के इन  रिकार्डो का कोई तोड़ नहीं...


हालांकि आम तौर पर कहा जाता है कि रिकार्ड तो टूटने के लिए ही बनता है लेकिन यदि रिकार्ड भयावकता का हो, कालिख भरा हो तो ऐसे रिकार्ड कोई नहीं तोड़‌ना चाहेगा कि इतिहास उन्हें खलनायक के रूप में दर्ज करे। लेकिन हाल में सोशल मीडिया में जो चर्चा है वह मोदी सरकार के अपने मंत्रियों की ही नहीं, उनके सहयोगियों की भी चर्चा जमकर हो रही है।

हावड़ा मुंबई मेल के दुर्घटना ग्रस्त होने के बाद लोगों का गुस्सा सोशल मीडिया के जरिये जिस तरह से सामने आया है वह किसी भी सरकार और उसके मंत्रियों के लिए बेचैन करने वाला है लेकिन बेशमी के इस दौर में नैतिकता की दुहाई देने का मतलब स्वयं का अपमान कराने वाली बात हो गई है।

मोदी की रिकार्ड तोड़ सरकार नामक शीर्षक से चल रहे विडियों और तस्वीर जमकर वायरल हो रहे हैं। जिसमें सबसे पहले नम्बर पर मोदी सरकार के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की तस्वीर के आगे लिखा गया है 'पेपर लीक का रिकार्ड '

धर्मेंद्र प्रधान उड़ीसा राज्य से आते हैं और मोदी सरकार में दमदार मंत्री माने जाते हैं। 2014 के बाद अब तक 70 से अधिक बार पेपर लीक होने का मामला सामने आया है, इससे लोगों के डॉक्टर बनने का सपना ही नहीं टूटा बल्कि कितने ही युवाओं का भविष्य चकनाचूर हो गया, क्योंकि कई युवाको की नौकरी के लिए निर्धारित आयु सीमा ही समाप्त हो गई। यहीं नहीं सरकार्र ने परीक्षा फॉर्म बेचकर करोड़ों कमाये।

आपदा में अवसर का इससे सटिक उदाहरण और क्या होगा।

दूसरे नम्बर पर जो तस्वीर है वह नीतिश कुमार की है। बिहार के मुख्यमंत्री जो बीजेपी के सहयोग से चल रहे हैं। पुल गिरने का रिकार्ड। लेकिन मजाक है कोई उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दे। दस से ज्यादा पुल तो  2023-24 में ही गिर गये।

तीसरे नम्बर पर मोदी सत्मार के रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव की तस्वीर है। एक दुर्घटना होते ही मंत्री पद से इस्तीफा दे देने की नैतिकता से इतर दर्जनों दुर्घटना के बाद भी यदि उनके माथे  पर शिकन नहीं होने का दावा किया जाता है तो यह इतिहास के पन्नों में बेशर्म राजनीतिज्ञ के रूप में जरूर दर्ज होगा। 

हर दुर्घटना के बाद रेलों में बेहतर सुविधा का दावा करने के अश्वनी यैष्णव के इस दौर में बुजुर्गो की सुविधा छिन लेने के साथ ही स्टेशन-पटरी, ट्रेन बेच देने या निजिकरण कर देने का खेल भी हुआ तो मालगाड़ी से अधिक कमाई के लिए सर्वाधिक यात्री ट्रेने भी इसी दौर में रद्द हुई।

वंदेभारत के चक्कर में भारत के ग़रीबों की जेबों पर डाका डालने का आरोप भी लगे।

तब देखना है कि आगे और कौन, कितने रिकार्ड तोड़‌ता है। 

सोमवार, 29 जुलाई 2024

बिजली दर में वृद्धि में भी अदानी…?

 सरकार का खेल, छोटे उ‌द्योग फेल


छत्तीसगढ़ में एकतरफ अडानी के पावर प्लाट को विस्तार देने कीखबर है तो दूसरी यहाँ के छोटे उद्योगों में संकट गहराता जा रहा है।

क्या इन दोनों खबरों में कोई ताल-मेल है, कहना मुश्किल है लेकिन जिस तरह से अडानी पावर प्लॉट के विस्तार के लिए होने जा रहे जनसुनवाई में पूरा प्रशासन जुटा हुआ है वह हैरान करने वाला है। तिल्दा क्षेत्र स्थित अदानी पॉवर प्लाट हो या रायगढ़ क्षेत्र का मामला हो। अदानी पॉवर प्लांट के विस्तार को लेकर जन‌सुनवाई में प्रशासन की ताकत के आगे जन विरोध को दबाने की जो खबरे आ रही है वहा कम चौकाने वाला नहीं है। पॉवर प्लोर के विस्तार के लिए किसान अपनी जमीन देने को तैयार नहीं है और क्षेत्र में स्थित सरकारी जमीनों को दे दिये जाने की खबर सुर्खियों में है।

सत्ता बदलते ही जिस तरह से हसदेव से लेकर पॉवर प्लांटों तक  अदानी की योजनाओ के विस्तार की खबरें आ रही है, वह डबल इंजन वाली विष्णु देव साय सरकार की नियत पर सवाल खड़ा  कर रही है। 

तो दूसरी तरफ साय सर‌कार ने  सत्ता में बैठने के 6 माह के भीतर ही बिजली की दरों में जो बढ़ोतरी की है उसे लेकर प्रदेश के उद्योग संघों में नाराजगी की खबर ज़ोर पकड़ने लगी है।

उद्योग संघ ने बिजली दर में वृद्धि के खिलाफ मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा है लेकिन अभी तक इनकी माँगो पर विचार तक नहीं होने की खबर ने उद्योगों के बंद होने में खतरे को बढ़ा दिया है।

खबर यह भी है कि बिजली दर में बढ़ोतरी से परेशान कई उद्योगों ने अन्य विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया है। स्पंज आयरन मैन्युफैक्चरर्स, रोलिंग मिल , मिनी स्टील प्लांट से जुड़े उद्योगपतियों में से कई लोग निजी बिजली कंपनियों की ओर रुख़ कर रहे हैं तो कुछ लोग धंधा ही बदल देने की बात कर रहे हैं।

री-रोलिंग मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय त्रिपाठी का कहना है कि एकाएक बिजली की कीमत बढ़ा देने से लागत तीन सौ से पांच सौ रूपये टन बढ़ गई है। तो मिनी स्टील प्लांट के महासचिव मनीष घुष्पड़ का कहना है कि यह उद्योगों के लिए गंभीर मसला है और उम्मीद है कि सरकार इस पर विचार करेगी।

इधर चर्चा इस बात की भी है कि निजी बिजली कंपनी को फायदा पहुंचाने ही बिजली की दरों में बढ़ोतरी की गई है, क्योंकि इस बढ़े दर से उद्योगों को बिजली करीब 7.60 रुपये प्रति मिल रही है और निजी कंपनी से ख़रीदने पर यह 6 रुपये पड़ेगी।

निजी कपनी को लेकर जब हमारी टीम ने पड्‌‌ताल की तो बताया गया कि अदानी से बिजली ख़रीदना सस्ता पड़े‌गा । यानी अदानी से बिजली खरीदने पर 6 रुपये प्रति यूनिट पड़े‌गा।

ऐसे में सवाल यही है अदानी को फायदा पहुंचाने कि क्या यह  कोई नया खेल है।

इधर बड़े हुए बिजली के दामों को लेकर युवा कांग्रेस ने बूढ़ा तालाब पर बने बिजली दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया ।प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ताओं ने बिजली बिल जलाकर अपना विरोध दर्ज कराया. प्रदर्शन के दौरान युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आकाश शर्मा ने कहा कि '' प्रदेश की जनता बढ़े हुए बिजली के दामों से परेशान है. कांग्रेस की सरकार ने पूर्व में बिजली बिल हॉफ कर दिया था. जब बीजेपी की सरकार आई तो उसने बिजली बिल में लंबा चौड़ा इजाफा कर दिया.''कंपनी मालिकों ने शटडाउन का ऐलान किया है उसका समर्थन कांग्रेस ने किया है. जिला कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश दुबे ने कहा कि ''प्रदेश में जब तक भूपेश बघेल की सरकार रही है तब उद्योग नीति लाया गया था, उसके तहत 5 साल उद्योग फला फूला और यहां के उद्योगों ने बहुत अच्छा काम किया. पूर्व की सरकार में छत्तीसगढ़ की जीडीपी बढ़ी लेकिन 6 माह में ऐसा क्या हो गया कि इन उद्योगों को बंद कराने पर ये सरकार आमादा हो गई है.''

राहुल ने सुना दिया चक्रव्यूह…

 अदानी-अंबानी का जिक्र क्यों बर्दाश्त नहीं  कर पाती बीजेपी...


राहुल गांधी ने एक बार फिर मोदी सत्ता के दुखती  नस पर हाथ रख दिया। महाभारत के चक्रव्यूह को लेकर जैसे ही राहुल गांधी ने अदानी-अंबानी का जिक्र किया वैसे ही पूरा सदन शोर-शराबे में डूब गया। राहुल ने यहा तक कह दिया कि यदि अदानी अंबानी का नाम सदन में नहीं ले सकते तो कोई ऑप्शन दें। इस नामों का।

दरअसल बजट भाषण में राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार अपने 6 लोगों के साथ मिलकर जो चक्रव्यूह रचा है उसने किसान, मजदूर, मीडिल क्लास, छोटे उद्योगों को अभिमन्यु  की तरह फँसा  दिया है।


राहुल गांधी ने अग्निवीर को लेकर भी मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि बजट में इसका ज़िक्र नहीं है।राहुल गांधी ने देश में डर के माहौल की बात कही। राहुल गांधी ने महाभारत के जरिये बीजेपी पर निशाना साधा। राहुल गांधी ने चक्रव्यूह का जिक्र करते हुए पीएम मोदी पर निशाना साधा। राहुल गांधी ने कहा कि चक्रव्यूह को 6 लोग कंट्रोल कर रहे हैं। राहुल गांधी ने कहा कि चक्रव्यूह में देश को फंसाया गया है। राहुल गांधी ने भाषण के दौरान सरकार पर हमला करते हुए कहा कि कहा कि डरो मत, डराओ मत।


'मंत्री, किसान, वोटर सब डरे हैं'

राहुल गांधी ने कहा कि आज मंत्री, किसान, वोटर, वर्कर सभी डरे हुए हैं। उन्होंने कहा कि इसके बारे में मैंने काफी सोचा और एक जवाब मैं प्रस्तावित करता हूं। हजारों साल पहले हरियाणा में कुरुक्षेत्र में एक युवा अभिमन्यु को 6 लोगों ने चक्रव्यूह में मारा था। फंसाकर मारा था। चक्रव्यूह के अंदर डर होता है, हिंसा होती है, और अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकार मारा। राहुल ने कहा कि मैंने चक्रव्यूह के बारे में तोड़ी रिसर्च की, पता लगा कि उसका दूसरा नम पद्म व्यूह वो लोटस के शेप में होता है। 21वीं सदी में सर एक नया चक्रव्यूह तैयार हुआ है। वो भी लोट्स की शेप में है, उनका चिह्न पीएम अपनी छाती पर लगाकर चलते हैं। यही चक्रव्यूह किसान, मीडियम साइज बिजनेस के साथ हो रहा है, द्रोण, कृतवर्मा, शकुनी, कृपाचार्य, अश्वस्थामा, आज भी चक्रव्यूह के बीज में है 6 लोग हैं।


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Rahul Gandhi Speech: पूरा परीक्षा सिस्टम ही फ्रॉड, शिक्षा मंत्री कुछ समझ नहीं पा रहे... संसद में राहुल गांधी के बयान पर बवाल


संपत्ति के हक पर सवाल

राहुल गांधी ने कहा कि किसी एक शख्स को देश की पूरी संपत्ति का हक रखने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि वित्तीय शक्ति, संस्थान, एजेंसी, सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स और तीसरा राजनीतिक कार्यकारी इस चक्रव्यूह का हार्ट है। राहुल ने कहा कि मेरी उम्मीद है थी कि इस बजट में इस चक्रव्यूह को कमजोर करेगा। किसान, मजदूर की मदद करने वाला होगा। इसकी नीयत जो है वो है बिग बिजनेस, राजनीतिक मोनोपली को मजबूत करने वाला है, एजेंसी को मजबूत करने वाला है।कुर्सी बचाओ बजट, सरकार बचाओ योजना... पढ़िए बजट को लेकर विपक्ष के नेताओं के रिएक्शन राहुल गांधी ने नोटबंदी, जीएसटी और टैक्स टेररिज्म के जरिए हमला किया गया। इसको रोकने के लिए बजट में आपने कुछ नहीं किया है। ये जो आपकी नीतियां है जो कोविड के समय बड़े बिजनेस की मदद की और छोटी बिजनेस को खत्म किया, उसके कारण आज देश के युवा को रोजगार नहीं मिल सकता है। एक युवा को रोजगार नहीं मिल सकते हैं।

पेपर लीक की हकीकत राहुल गांधी और अखिलेश, दोनों की मुश्किलें... शिक्षा मंत्री ने किस बात पर किया राहुल गांधी ने कहा कि बजट में आपने इंटर्नशिप प्रोग्राम है। आपने कहा कि सबसे बड़ी 5 कंपनियों में होगा। 99 फीसदी युवा को इस इंटर्नशिप प्रोग्राम से कोई लेना देना नहीं है। कांग्रेस नेता ने कहा कि मेन मुद्दा आज युवाओं का परीक्षा में पेपर लीक है। जहां भी हम जाते हैं वो कहते हैं बेरोजगारी है लेकिन पेपर लीक भी होता है। 10 साल में 70 बार हुआ है पेपर लीक।

रविवार, 28 जुलाई 2024

बाबा की बोलती बंद...

 बाबा की बोलती बंद... 


प्रदेश कांग्रेस के कद्‌दावर नेताओं में शुमार टी एस सिंहदेव उर्फ बाबा की इन दिनों बोलती बंद है। कहा जाता है कि जिस स्वास्थ विभाग में घपले - घोटाले की विधानसमा में गूंज हुई उसे लेकर कांग्रेसी भी हैरान है कि आख़िरकार बाबा के विभाग में यह सब हो क्या रहा था। कैग की रिपोर्ट को लेकर स्वास्थ विभाग के जिस मामले की विधानसमा में चर्चा हुई, उससे कांग्रेस की ऐसी फजीहत कभी नहीं हुई थी।

मुख्यमंत्री बनने के लिए दस साल तक धमा चौकड़ी मचाने वाले बाबा की इस स्थिति को लेकर कहा जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद उन्हें पूरी उम्मीद थी कि कांग्रेस जब भी सत्ता में आयेगी वे मुख्यमंत्री बन ही जायेंगे लेकिन सत्ता आते ही जब कई नेता सक्रिय हो गये तो वे भूपेश बघेल के साथ मिलकर ढाई साल मुख्यमंत्री बनने तैयार तो हो गये लेकिन यह होशियारी भी काम नहीं आई और मुख्यमंत्री का पद तो मिला नहीं उल्टे विधायकी भी चली गई।

और विधायकी क्या गई, उनकी सक्रियता भी ढूंढने नहीं मिल रहा है। और कहा जा रहा है कि अब तो उन्हें कांग्रेस की बैठनों में भी नहीं बुलाया जाता।.

उपर से विधानसमा में कैग की रिपोर्ट पर जिस तरह से स्वास्थ विभाग में घपलेबाजी की खबर सामने आई है उससे रही सही हज्जत का भी पलीता लग गया।

भूपेश सरकार के दौरान स्वास्थ विभाग वे कितना संभाल रहे थे इसे लेकर कई तरह की चर्चा है। और इसमें हुए घपले घोटाले की चर्चा के दौरान एक बाबा समर्थक का कह दिया कि बाबा का घपले- घोटाले के खेल से क्या  लेना देना है, तो दूसरे ने कहा  कि यदि इस घपले घोराले से उनका लेना देना नहीं है तो पंचायत मंत्री की तरह स्वास्थ विभाग भी छोड़ देना था। और जब विभाग ही नहीं संभाल पा रहे थे तो फिर प्रदेश संभालने का सपना क्यों देख रहे थे।

यानी यहां भी फूल बेहज्जती। 

कांग्रेस तो कांग्रेस है, और कांग्रेसी कब किसी को बख्शते हैं, पीठ फेरा की बुराई शुरू।

ऐसे में बाबा कि दुविधा यह है कि वे कांग्रेस छोड्‌कर कहाँ जाये। क्योंकि उन्होंने भाजपा में नहीं जाने को लेकर जनम जन्मान्तर की बात पहले ही कह दी है।


शनिवार, 27 जुलाई 2024

हसदेव में जन सुनवाई से पहले एनआईए का छापा…

 हसदेव में जन सुनवाई से पहले एनआईए का छापा

अर्बन नक्सली होने का संदेह...


छत्तीसगढ़ के जामुल निवासी श्रमिक नेता कलादास डहरिया के निवास पर एनआईए की दबिश को लेकर श्रमिक संगठनों में हंगामा मच गया है। नक्सलियों से संबंध को लेकर की गई इस कार्रवाई में छत्रीसगढ़ मुक्ति मोर्चा से जुड़े कलादास डह‌रिया लंबे समय से मजदूरों की हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और  इसी कड़ी में उन्होंने अदानी के सब द्वारा खरीदे गये सीमेंट कंपनी एसीसी  में भी मजदुरों के हक में आवाज उठाई थी। कहा जाता है कि वे हसदेव बचाओ आंदोलन को लेकर भी बेहद सक्रिय हैं।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ एनआईए की टीम ने छापेमारी के दौरान न केवल कलादाएस डह‌रिया से पांच घंटे पूछ‌ताछ की बल्कि घर की तलाशी लेकर लेपटाप, पेन ड्राइव और मोबाईल फोन को जब्त किया है।

बताया जाता है कि एन आई ए की टीम ने यह कार्रवाई  रेला नाम के एक एनजीओ को लेकर की है जिसका पर्चा भी डह‌रिया के घर से बरामद हुआ है जिसका संबंध झारखंड से है, कलादास डहरिया को एक अगस्त को पूछताछ के लिए रांची बुलाया गया है।

रेला संगठन  के बारे में कहा जाता है कि यह संस्था किसान, मजदूर और आदिवासियों को संगठित करने का काम करता है। 

पांच अलग- अलग गाड़ियों में पहुंची एन आईए की टीम ने कलादास डहरिया की लड़की से भी पूछताछ की है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि फिलहाल कोई संदिग्ध वस्तु बरामद नहीं हुई है।

इधर कलादास डह‌रिया ने आरोप लगाया है कि एनआईए की पूरी कार्रवाई  सरकार के इशारे पर की जा रही है। चूंकि वे एसीसी सीमेंट कंपनी में मजदुरों की आवाज उठाते रहते हैं और अब जब एसीसी को अडानी ने खरीद लिया है तब भी वे मजहरों के हक की आवाज बुलंद कर रहे हैं। इस‌लिए सरकार उनकी आवाज बंद कर देना चाहती है। उन्होंने एक अगस्त को रांची जाने की बात कहते हुए कहा कि मजदूर किसान और आदिवासियों की  हितों की बात वे करते रहेंगे। ऐसी कार्रवाइयों से उन्हें और बल मिलता है।

इधर दो अगस्त को अडानी की एक अन्य कंपनी के मामले में होने वाले जनसुनवाई से भी इसे जोड़कर देखा जा रहा है।

राजस्थान बिजली कंपनी के लिए हसदेव की कटाई को लेकर दो अगस्त को होने वाली जन सुनवाई को लेकर जबरदस्त विरोध की खबर के बीच एनआईए की कार्रवाई को लेकर एक बार मोदी सरकार फिर निशाने पर है। देखना है कि अदानी की कंपनियों के विस्तार को लेकर और क्या क्या खबरें आती है। 

राजनीति में खत्म हो चुकी मानववाद को पुर्नजीवित करने की कोशिश...

 राजनीति में खत्म हो चुकी मानववाद को पुर्नजीवित करने की कोशिश... 




अपनी जिस जूती को पहनकर आदमी घर के भीतर इसलिए नहीं जाता कि घर अपवित्र हो जायेंगा, तब दूसरे की जूती को अपने जंघे पर रख लेना भले ही लोगों को राजनीति लगे, लेकिन सच तो यही है कि यही मानवता है जिसका  रास्ते का सफ़र गांधीवाद से शुरू होता है।

मंच से दलित-वंचित के लिए लंबे चौड़े भाषण देना उनके साथ,  उनके काम के साथ उनकी ज़िंदगी जीना आसान नहीं है । क्या कोई नेता सप्ताह नहीं, कुछ घंटे ही वैसी ज़िंदगी बिता सकता है?

धर्म और जाति की राजनीति के इस दौर में जब जन‌कल्याण और मानवता से लोगों ने दूरी बना ली है। सत्ता में बैठे लोगों को वेलफेयर की अवधारणा बकवास लगने लगी हो तब यह बात भाजपा और संघ को भी समझना होगा कि असली धर्म और जाति मानवता ही है जो लोगों को एक दूसरे से जोड़ कर रखती है।

क्या मोची की दुकान पर आकर उसने बातचीत करते हुए उसके काम को समझ लेना ही गांधी है ? नहीं क़तई नहीं..।

लेकिन यह गांधीवाद का एक रास्ता है।

 जरा सोचिये कि एक सामान्य घर का लड़का यदि चाय बेचने की बात बताकर खुद को महान होने का दंभ भरता है तो वह कितना महान होगा जिसकी तीन पीढ़ियां इस देश में सत्ता संभाली हो वह कभी बढ़ई के पास काम सीखने लगता है तो कभी गैराज में जाकर मोटर साइकिल बनाता है तो कभी किसान के साथ खेत में, और इसमें भी उसका मन नहीं भरता तो मोची की दुकान में पहुंचकर जूते बनाने की बारिकियां सीखने लगता है।

इसे कोई फोटो आपुर्चनिटी भी कह सकता है लेकिन यह दलितों और वंचितों को राजनीति में प्रासंगिक बनाये रखने का एक मात्र जरिया है।

गांधी इसलिए महात्मा हुए क्योंकि वे शौचालय की सफाई और सङ्‌क में झाडू लगाने से परहेज नहीं करते थे महात्मा ने सच का प्रयोग किया, सादगी के साथ जन सेवा को आत्म सात किया।

नेहरू इसलिए लोकदेव नहीं कहलाये कि विनेबा भावे ने उन्हें यह तमगा  दिया बल्कि नेहरू इसलिए लोकदेव कहे जाने लगे कि वे आजादी के बाद के भारत को संभालने में स्वयं को न्यौछावर करने से कभी हिचके नहीं। लाठी डंडा लिये हिंसक भीड़ में सीना ताने घूसते चले जाते थे।

तब राहुल गांधी ने जिस तरह से अपने सरनेम को सार्थक करने में सड़क से लेकर संसद तक समर्पित दिखाई दे रहे हैं यह भारत की पुर्नजागरण का ऐसा दौर है जो  धर्म और जाति के स्थान नाम पर मानवता को स्थापित करता है।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

लोकसभा चुनाव में पाँच करोड़ वोट का असामान्य बढ़ जाना…

लोकसभा चुनाव में पाँच करोड़ वोट का असामान्य बढ़ जाना…


वोट फॉर डेमोक्रेसी ने लोकसभा चुनाव 2024 के संचालन पर रिपोर्ट जारी की है, इस रिपोर्ट में चुनाव के प्रथम और अंतिम सातवें चरण के बीच असामान्य रूप से लगभग पांच करोड़ वोट बढ़ जाने, और इसका सीटवार तथा राज्यवार चुनाव नतीजों पर प्रभाव का विश्लेषण किया गया है।रिपोर्ट न केवल चौंकाने वाला है बल्कि कई सवाल खड़ा करता है…।

रिपोर्ट में 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान हुई कथित गड़बड़ियों पर भी रोशनी डालने की कोशिश की है। वोटों में बढ़ोतरी और दर्ज मतों में संख्यात्मक विसंगतियों के बारे में भी जानकारी दी गई है। 

वोट फॉर डेमोक्रेसी (महाराष्ट्र) ने 22 जुलाई को मुंबई के वाईबी चव्हाण सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान लोकसभा चुनाव 2024 के संचालन पर अपनी व्यापक चुनाव रिपोर्ट जारी की। “रिपोर्ट: लोकसभा चुनाव 2024 का संचालन – ‘वोट हेरफेर’ और ‘मतदान और मतगणना के दौरान कदाचार’ का विश्लेषण” शीर्षक वाले प्रकाशन में चुनाव चक्र के दौरान सामने आईं कथित गड़बड़ियों, भारत के चुनाव आयोग और रिटर्निंग अधिकारियों की भूमिका, ईवीएम में डाले गए वोटों और गिनती के बीच रिपोर्ट की गई विसंगतियों और चरणवार, राज्यवार और राष्ट्रीय स्तर पर वोटों में बढ़ोतरी (“डंप किए गए” वोट) का वर्णन किया गया है। रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि शुरुआती मतदान और अंतिम मतदान के बीच कुल 5 करोड़ वोट बढ़े (“डंप किए गए”), जो यह दर्शाता है कि इस बढ़ोतरी ने सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को असंगत रूप से मदद की।


वीएफडी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि "कुल डाले गए वोटों और गिने गए वोटों के बीच विसंगतियों के बारे में गंभीर सवाल उठाए गए हैं, साथ ही, भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा मतदान प्रतिशत में पर्याप्त अस्पष्ट वृद्धि के बारे में भी सवाल उठाए गए हैं। हालाँकि हमें ईसीआई की विश्वसनीयता पर संदेह नहीं है, लेकिन इस लोकसभा चुनाव के दौरान इसके आचरण ने हमें, नागरिकों और मतदाताओं के रूप में, चुनावी प्रक्रिया के निष्पक्ष परिणाम के बारे में गंभीर रूप से चिंतित कर दिया है।"




रिपोर्ट में कुल 4 अध्याय हैं, जिसमें तालिकाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से चुनाव परिणामों में संभावित हेरफेर का विश्लेषण किया गया है, जिससे पता चलता है कि सत्तारूढ़ दल को अपनी सीटों की संख्या में कुल कमी के बावजूद अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने में मदद मिली है। उम्मीदवारों को किसी निर्वाचन क्षेत्र में संभावित कदाचार की पहचान करने में मदद करने के लिए, रिपोर्ट में संभावित हेरफेर का पता लगाने के लिए एक चेकलिस्ट संलग्न की गई है। इसके अलावा, एक कानूनी संसाधन के रूप में, चुनाव प्रक्रिया की अखंडता पर जोर देने के लिए, रिपोर्ट प्रासंगिक न्यायिक मिसालें और चुनाव कानून भी प्रदान करती है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव के संचालन के लिए मौलिक हैं। विशेष रूप से, मुंबई उत्तर पश्चिम और फर्रुखाबाद संसदीय क्षेत्रों में चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली कदाचारों का प्रकाशन में विस्तार से वर्णन किया गया है।

चुनाव आयोग पर सवाल

चुनावी गड़बड़ियों, शुरुआती मतदान के आंकड़ों की घोषणा में देरी और अंतिम मतदान के आंकड़ों में भारी वृद्धि को उजागर करते हुए, वीएफडी ने इन मुद्दों पर भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की चुप्पी की आलोचना की। शुरुआती मतदान के आंकड़ों को जारी करने में देरी और अंतिम मतदान के आंकड़ों में अस्पष्ट वृद्धि को चिह्नित करते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि चरण 1 के लिए "ईसीआई ने यह नहीं बताया कि अंतिम आंकड़ों में पर्याप्त वृद्धि क्यों हुई, न ही चुनाव निकाय ने अंतिम आंकड़े जारी करने में लंबी देरी (11 दिन!) और वह भी केवल प्रतिशत में" के बारे में बताया। इसने आगे कहा कि ईसीआई ने अंतिम वोटर टर्नाउट में उछाल और ईवीएम वोटों और आज तक की गिनती के बीच विसंगतियों के बारे में किसी भी विशिष्ट प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि कुछ उम्मीदवारों को फॉर्म 17C जारी नहीं किया गया था या नहीं दिया गया था, जो मतदान के दिन के अंत में डाले गए वोटों का लेखा-जोखा रखता है।

वोटों में बढ़ोतरी से सत्तारूढ़ गठबंधन को फायदा 

वीएफडी ने पाया कि शुरुआती मतदान के आंकड़ों की तुलना में अंतिम मतदान में पर्याप्त वृद्धि से पता चलता है कि सत्तारूढ़ दल को इन बढ़ोतरी से सबसे अधिक लाभ हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि "यह ध्यान देने योग्य है कि इस चरण 2 में मतदाता मतदान (वोटर टर्नाउट) वृद्धि की इस पद्धति से, एनडीए/बीजेपी के लिए बहुत लाभकारी परिणाम आए हैं: अधिकांश राज्यों में जैसे पश्चिम बंगाल 3/3, उत्तर प्रदेश 8/8, मध्य प्रदेश 6/6, छत्तीसगढ़ 3/3, त्रिपुरा 1/1, जम्मू और कश्मीर 1/1, कर्नाटक 12/14, राजस्थान 10/13 और असम 4/5। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, राजस्थान जैसे राज्यों सहित मतदान के अन्य 6 चरणों में ऐसा रुझान नहीं देखा गया है। इस चरण 2 में केरल का उदाहरण अनूठा है, क्योंकि इस चरण में भाजपा को एक सीट मिली, दूसरी सीट पर दूसरे स्थान पर रही और राज्य की कुल 20 सीटों में से 14 पर तीसरे स्थान पर रही! यहां स्पष्ट रूप से हेरफेर हुआ है।" इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि करीब 5 करोड़ वोटों की बढ़ोतरी से भाजपा/एनडीए को कम से कम 76 सीटें हासिल करने में मदद मिली है, जो ऐसी बढ़ोतरी के अभाव में उसे खोनी पड़ सकती थी।

रिपोर्ट में विशेष रूप से तीन तालिकाएँ दी गई हैं, जिसमें उन सभी संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों (पीसी) की सूची प्रदर्शित की गई है, जहाँ जीत/हार का अंतर 1 लाख वोट से कम रहा है; जहाँ ईवीएम में डाले गए वोटों और 50000 वोट या उससे कम के हार के अंतर वाले ईवीएम वोटों के बीच विसंगतियाँ पाई गई हैं; और उन निर्वाचन क्षेत्रों को शामिल करते हुए शॉर्टलिस्ट की गई तालिकाएँ दी गई हैं, जहाँ कथित तौर पर गड़बड़ी की सूचना दी गई है। इनके अलावा, मतदाता मतदान में वृद्धि, वोटों की कुल संख्या में वृद्धि और संभावित गड़बड़ी के कई पहलुओं का विश्लेषण करने वाली एक दर्जन से अधिक तालिकाएँ दी गई हैं।

डॉ. हरीश कार्निक ने कहा कि ईवीएम और वीवीपीएटी के वोटों का पूर्ण क्रॉस-सत्यापन करने से चुनाव आयोग का इनकार अनुचित है, खासकर शुरुआती मतदान के आंकड़ों को जारी करने में हुई अस्पष्ट देरी और उसके बाद अंतिम मतदान के आंकड़ों में हुई बढ़ोतरी को देखते हुए। डॉ. कार्निक ने कहा कि वीवीपीएटी के पूरे मामले से लेकर मतदाता के यह जानने के अधिकार के हनन तक कि उन्होंने किसे वोट दिया है, इन हेराफेरी के रिकॉर्ड मौजूद हैं लेकिन कोई जवाब नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ईवीएम ने चुनावी प्रक्रिया में मौजूदा कुछ कमियों को और बढ़ा दिया है और लगता है कि चुनाव आयोग ने उन कमियों का फायदा उठाया है।

उक्त रिपोर्ट में उठाई गई शिकायतों और मुद्दों के बाद, विभिन्न नागरिक समाज समूहों के सदस्यों द्वारा 18 जुलाई को ईसीआई को एक संयुक्त कानूनी नोटिस भेजा गया था। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को संबोधित नोटिस में ईसीआई से निम्नलिखित हस्तक्षेप की मांग की गई थी:

1. मतदाताओं की जानकारी के लिए, जो किसी भी चुनाव में वास्तविक हितधारक होते हैं, नोटिस में उठाए गए मुद्दों और बताई गई अनियमितताओं/अवैधताओं की गहन जांच की जाएगी।

2. उठाए गए सभी मुद्दों पर तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई की जाएगी।

3. संविधान या लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम या इस अधिनियम के तहत बनाए गए किसी नियम या आदेश के प्रावधानों का अनुपालन न करने के आधार पर अवैध रूप से निर्वाचित उम्मीदवारों के निर्वाचन को रद्द करना।

4. आरपीए 1951 की धारा 129, आईटी अधिनियम 200 की धारा 65, 66, 66एफ और आईपीसी धारा 171एफ/409/417/466/120बी/201/34 के तहत तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए और ईसीआई अधिकारियों, बीईएल और ईसीआईएल इंजीनियरों और लाभार्थी पक्षों सहित इसमें शामिल सभी लोगों की भूमिका की जांच की जाए।

5. अनुलग्नक में दी गई सूची के अनुसार, उन निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव रद्द करना जहां बड़े पैमाने पर फर्जी वोट डाले गए हैं तथा पुनः चुनाव कराने का आदेश देना।

6. तथ्यों के आधार पर तथा भविष्य में भी चुनावों की सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए ऐसे अन्य आदेश तथा आगे के आदेश पारित करना, जो आवश्यक समझे जाएं।

 

पूरी रिपोर्ट अंग्रेजी में है तथा https://votefordemocracy.org.in पर उपलब्ध है।

कौशिक की कुलबुलाहट…

 कौशिक की कुलबुलाहट…


कभी विधानसभा में अध्यक्ष रहे धरमलाल कौशिए इन दिनों सत्ता होने के बाद भी विपक्ष की भूमिका में खूब नाम कमा रहे हैं, जल जीवन मिशन के बपले घोटाले को लेकर तो उन्होंने अपने ही उपमुख्यमंत्री अरुण साव की बोलती बंद कर दी। वह तो विधानसमा स्पीकर डॉ रमन सिंह ने स्थिति को भांपते हुए हस्तक्षेप कर दिया नहीं तो धरमलाल कौशिक अधिकारियों और ठेकेदारों से वसूली करवा  कर ही दम लेते। स्वास्थमंत्री को तो ऐसा तगड़ा कि वे कभी नहीं भूल पायेंगे।

कहा जाता है कि असल में कौशिए मंत्री बनना चाहते  हैं लेकिन पहले ही बिलास‌पुर से मंत्रियों की भरमार और उपर से जाति समीकरण में अपने से जूनियर टंकराम वर्मा से मात खाने के बाद वे कुलबुलाने लगे है। 

कहा जाता है कि जिसके सहारे वे मंत्री बनना चाहते थे उन्होंने भी उनकी सिफारिश करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि लगातार चुनाव तो वे जीत नहीं पाते हैं फिर मंत्री किस काम को देखकर बनाया जाए। 

अविभाजित मध्यप्रदेश में भी विधायक रहे धामलाल कौशिक के बारे में कहा जाता है कि उनकी दाऊ गिरी के अपने क़िस्से हैं लेकिन लाल बत्ती का सपना संजोने वाले कौशिक को फटका तब लगा जब इस बात की चर्चा होने लगी कि अब विधायकों को निगम -मंडल या आयोग में भी नहीं बिठाया जायेगा।

तब से उनका ग़ुस्सा बेक़ाबू हो गया है।

गुरुवार, 25 जुलाई 2024

योगी के ख़िलाफ़ ऐसा षड़यंत्र…

 मोदी के बाद योगी'

पर लग रहा पलीता.


लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा बेचैन संघ है लेकिन मोदी के आगे घुटने टेक चुके संघ प्रमुख की दिक्कत यह है कि वे इस बात का विरोध भी नहीं पा रहे हैं कि आखिर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इतनी छिछालेदर क्यों की जा रही है।

दरअसल योगी आदित्यनाथ पर प्रहार तो लोकसभा चुनाव के बहुत पहले जब उत्तरप्रदेश में विधानसभा का चुनाव हुआ था तभी से योगी के खिलाफ षड़यंत्र शुरु हो चुका था। और इसकी एक मात्र वजह सोशल मीडिया में चलने वाला वह नारा था 'मोदी के बाद योगी।

इस नारे से भाजपा के गुजराती लॉबी में बेचैनी की खबर आने लगी। तब सवाल यह था कि आख़िर मोदी के बाद योगी वाले नारे से किसे दिक़्क़त थी और यह नारा किसे सबसे  ज्यादा परेशान कर रहा है।

क्या वे लोग परेशान हैं जो योगी के मुख्यमंत्री बनने से पहले अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे या ख़ुद अमित शाह।

यह गंभीर सवाल है, जिसका जवाब सीधे कोई नहीं देना चाहेगा। लेकिन उत्तरप्रदेश में अमित शाह के बढ़ते हस्तक्षेप की जो चर्चा रही, उससे यह समझा जा सनता है कि योगी के बढ़ते कद को कौन रोक रहा था या किसे दिक़्क़त है…?

तब लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद केशव‌प्रसाद मोर्या को क्या आगे ला कर फिर योगी को बदनाम करने की कोशिश हो रही है?

लेकिन भाजपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत आज भी संघ है। क्योंकि कहा जा है कि यदि संघ ने इस मामले में कड़ा रुख़ अख़्तियार नहीं करता तो योगी बहुत पहले ही हटा दिये जाते।तब मोदी के प्रभाव का डंका भी बज रहा था।

लेकिन अब बदली हुई परिस्थिति में योगी को हटा पाना इसलिए मुश्किल है क्योंकि लोकसभा के परिणाम से साफ़ है कि अब मोदी के चेहरे से यूपी में चुनाव नहीं जीता जा सकता?

हालोकि भाजपा के भीतर खाने में चर्चा यह भी है कि योगी को बचाने में संघ की भूमिका केवल बतौलेबाजी है। असल बात तो यह है कि मोदी-शाह भी जानते और मानते हैं कि उत्तरप्रदेश में योगी से बड़ा न तो कोई बड़ा नेता है और न ही किसी भाजपा नेता में वह दम है कि उत्तरप्रदेश में सरकार अपने बूते पर बना ले।

तब क्या यह पूरा खेल योगी को हटाने नहीं बल्कि योगी की छवि को बिगाड़‌ने का है ताकि मोदी के बाद योगी के नारे पर पलीता लग जाए?

मंत्री पद जाने का असर…

 मंत्री पद से  इस्तीफ़ा का असर...


कहा जाता है कि मंत्री पद का अपना जलवा है और मंत्री पद के साथ मिलने वाली सुविधा का अपना मिजाज । और मंत्री पद ही छिन जाये तो सबसे ज्यादा परिवार वालों पर इसका असर होता है। बंगला छिने जाने का असर के कई किस्से है। और नेता के परिवार वालों का बंगला छिने जाने के बाद बंगले के दीवार, खंभे से लिपटकर रोने के भी किसे चर्चा में रहे हैं। तो चेहरे से हंसी गायब हो जाने और भूख नहीं लगने , कुछ भी अच्छा नहीं लगने के किस्से भी जान चर्चा में रहे हैं। 

ऐसे में रायपुर के सांसद बने बृजमोहन अग्रवाल के मंत्री पद से इस्तीफा का असर भी जनचर्चा में है।

बड़े भाई गोपाल अग्रवाल ने तो सोशल मीडिया में अपना तेवर भी दिखाना शुरू कर दिया है। 



वे लगातार भाजपा की सरकार को कोस रहे हैं। जबकि वे खाटी संघी है और महानगर प्रमुख भी रह चुके हैं। पहले वे मीडिल क्लास की तकलीफ के बहाने गरियाते रहे तो अब बजट पर को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

दूसरे छोटे माई योगेश आग्वाल के अपने ही क़िस्से हैं। चला मुरारी हीरो बनने की तर्ज़ पर कवर्धा कांड  के किस्से तो सभी जानते ही हैं कि होटल में क्या क्या हुआ अब चेंबर की बैठक में उनके हरकतों को तिलमिलाहट की संज्ञा दी जा रही है। क्योंकि चेम्बर चुनाव में मोहन सेठ की सत्तावाली ताकत के बाद भी वे बुरी तरह हार गये थे।

एक और छोटे भाई तो रायपुर दक्षिण से विधायक बनने का सपना ही पाल लिया है और कहा जा रह है कि पत्रकारों से अपनी दावेदारी को सबसे सक्षम बताने और मोहन सेठ का सही उत्तराधिकारी बताने में लग गये है। इस सबसे  दूर यशवंत का मिजाज भी कम चर्चा में नहीं है उनके इस तरह से राजनीति से दूरी पर कई तरह की चर्चा है जो पारिवारिक बताया जा रहा है।

यानी मंत्री पद चले जाने का असर इस तरह चर्चा में है।।

बुधवार, 24 जुलाई 2024

सुप्रीम फ़ैसले ने गाल पर तमाचे से बचा लिया…

 नीट मामले में सुप्रीम फैसले का यह सच जानकर होश उड़ जायेंगे...


पता नहीं यह बात किसने कही है कि आपकी सड़‌क जब तक खामोश रहेगी संसद और उसके तंत्र अवारा होकर आपकों खुल्ला सांड की तरह अपनी सींगों से बिंधते रहेगें।

यह कड़‌वा सच भयावह भी है और डराने वाला भी।  NEET पेपर लीक मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या इस हकीकत को बयां करने वाला नहीं है?

आख़िर क्या वजह थी कि सुप्रीम कोर्ट भी इस नीट पेपर लीक की परीक्षा रद्द नहीं कर सका। क्या यह इस फैसले ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के माथे पर  लगने वाले कालिख से बचाने वाला साबित नहीं हुआ।

25000 सीट और हर एक सीट के लिए औसतन २० लाख रुपये भी माने जाये तो यह खेल 50000000000 का मामला है।

सारे तथ्य चीख चीख कर कह रहे थे  कि पेपर लीक हुआ है और इस घपले को दबाने के लिए परीक्षा परिणाम की घोषणा तब की गई जब समूचा देश लोकसभा चुनाव के परिणाम में व्यस्त था। क्या परिक्षा परिणाप का समय भी सुप्रीम कोर्ट ने अनदेखा किया।

कितने ही तथ्य है जो कह रहे थे कि परीक्षा परिणाम रद्द कर फिर से परीक्षा आयोजित किया जाना चाहिए। NTA, शिक्षा' माफिया के साथ पूरा सरकारी तंत्र की संलिप्तता स्पष्ट दिखाई देने के बावजूद यह फैसला क्या न्याय है।

तथ्य जो सामने है…

*67 छात्र- 720 में 720 अंक, इनमें से 8 छात्र एक ही सेंटर के.इससे पहले एक बार में 4 छात्र ही यह कीर्तिमान कर पाये थे.

*5 मई को NEET 2024 की परीक्षा हुई थी जिसका परिणाम 14 जून को आना था. लेकिन यह परिणाम 10 दिन पहले 4 जून को ही निकाल दिये गये, जिस दिन  लोकसभा चुनाव के नतीजे आ रहे थे. चुनाव परिणाम की आड़ में क्या छुपाना था? 

*परीक्षा कराने वाली सरकारी एजेंसी NTA संदेह के घेरे में है. इम्तिहान से  ठीक 24 दिन पहले 9 और 10 अप्रैल को एप्लीकेशन विंडो को फिर खोला गया था. बाद में Form correction के नाम एक बार फिर से window  खोला गया.  ऐसा क्यों किया गया, 24246 बच्चों ने तब फॉर्म भरा, उनमें से कितने कौन से सेंटर के थे, उनमें से कितनों का सेलेक्शन हुआ? इनमें से किनके कितने मार्क्स थे? 

*रांची से पटना पुलिस को इनपुट गया- एक डस्टर गाड़ी की तलाशी ली गई- 4 May  को पटना में NEET पेपरलीक की खबर, प्रश्नपत्र की बरामदगी, एक परिक्षार्थी की रात में प्रश्नपत्र मिलने की स्विकारोक्ती और  बिहार के 3 जिले से solver gang के 19 आरोपियों की गिरफ्तारी. अन्य राज्यों में भी अभ्यर्थियों के बदले परीक्षा देने वालों की गिरफ्तारी हुई.

*सवाई माधोपुर, राजस्थान में भी एक परिक्षार्थी ने स्विकारोक्ती दी कि उसे 4 की रात हूबहू प्रश्नपत्र हासिल हो गया था.

*बिहार, उड़ीसा, झारखंड, राजस्थान, कर्नाटक आदि से कई  छात्रों का सेंटर 1000-1500 किलोमीटर दूर गुजरात के गोधरा में. ये कमाल कैसे? 

*गोधरा में ही, 5 मई से पहले NEET परीक्षार्थियों की 10-10 लाख में गैरकानूनी मदद कर रहे एक एजुकेशनल कंसलटेंसी के मालिक पुरुषोत्तम राय, एक स्कूल शिक्षक एवं सुपरवाइजर तुषार भट्ट और भाजपा का एक नेता आरिफ बोहरा सहित 5 लोगों को पुलिस और कलेक्टर ने detain किया. DM ने कहा है कि solver gang  के साथ  करोड़ों के ट्राजेक्शन के सबूत हैं. गुजरात में ही एक छात्र  cbse में फेल (physiscs theory paper में 1 नं), पर   NEET में 715, कमाल पर कमाल!! 

*हरियाणा के झज्जर परिक्षा केंद्र पर बिना सरनेम के  8 छात्रों का केंद्र और सभी टॉपर. यह भी कमाल कैसे? और कुल मिलाकर 67 टॉपर - 720 /720, 718, 719. असंभव!!!! 

*67 टॉपर में से 44 को Physics  का एक सवाल गलत होने के कारण ग्रेस मार्क्स दिया गया जबकि 2018 के बाद छपी किताब के अनुसार वह सवाल सही है. 

*पटना पुलिस द्वारा आपराधिक विवेचना हेतु मांगे जाने के बाद भी NTA द्वारा प्रश्न पत्र का मिलान नहीं किया गया, जबकि 10 मिनट में मिलान करके बता सकता था कि यह प्रश्न पत्र NEET में पुछा गया प्रश्न पत्र है या नहीं. हांलाकि पटना पुलिस ने forensic जांच द्वारा साबित कर दिया कि  यह ओरिजिनल प्रश्नपत्र है. बिहार पुलिस ने  NTA से 3 बार ओरिजिनल प्रश्नपत्र की मांग, लेकिन NTA ने सहयोग नहीं किया. क्यों? 

*NTA ने बताया कि झज्जर में 6 टॉपर को प्रश्नपत्र देरी से मिलने के कारण ग्रेस मार्क्स दिया गया. जबकि  स्कूल के प्रिंसिपल ने टीवी चैनल पर कहा कि कोई देरी नहीं हुई थी. यहाँ बंटे  MNOP सीरीज के शीट पुरे देश में कहीं नहीं बंटे. घोटाला यहाँ पकड़ें. पूरा NTA संलिप्त है.

*महाराष्ट्र सहित और भी कई सेंटर पर प्रश्नपत्र 20 - 60 मीनट देरी से मिलने की खबर आई थी.

*सवाल है कि देरी से प्रश्न पत्र मिलने के कारण ग्रेस मार्क्स देने का कोई कानून न होने के बावजूद आखिर किस फार्मूले के तहत NTA ने ग्रेस मार्क्स दिए? और अब कोर्ट में अपनी गलती मान ली. तो आखिर इस तरह का भ्रष्टाचार करने वाले  NTA को अपराध की सजा कौन देगा और कब तक मिल जाएगी? 

2015 में पेपर लीक के कारण CBSE से छीनकर NTA को  exam conduct  करने का अधिकार दिया गया था. अब क्या? 

सवाल तो इतने सारे हैं कि बिना यह जांच किए ही…

1.1 महीने बाद 9-10 अप्रैल को  window क्यों खोला

    गया, 

2.पटना प्रश्नपत्र लीक की FIR की जांच पूरी किए बिना,

    झज्जर और गोधरा कांड की FIR की जांच किएबिना,  

3.मार्क्स के अनुसार रैंक में हेराफेरी की जांच किये बिना, 

    फटे  OMR शीट की जांच किये बिना, OMR शीट के

    अनुसार कम  मार्क्स आने की जांच किये बिना, खाली

    OMR शीट भरे जाने की जाच किये बिना, 

4. असाधारण और अप्राकृतिक रूप से अबतक के 

     highest cut off marks  आने की जांच किये

     बिना, 

5. बारबार application window खोलने वाले,

     लगातार अपना बयान बदलने वाले और  गैरकानूनी

     तरीके से ग्रेस मार्क्स देने वाले NTA की जांच किये

     बिना

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कैसे 1567 ग्रेस मार्क्स पाए बच्चों में से  50 टॉपर सहित 1536 बच्चों के  re-exam का आदेश  दिया? 

*शिक्षा मंत्री ने NTA को क्यों क्लीन चिट दे दी बिना जांच के?भ्रष्टाचार करने वाले को ही जांच का जिम्मा कैसे दे दिया गया? चोर को ही चौकीदार बना दिया. इतनी हडबडी  किसको है और क्यों है? 

*पहले भी शिक्षा के  Don ने, नटवरलालों ने, माफियाओं ने  entrance exam में कई बार घपले किए हैं, मध्यप्रदेश के व्यापम का रहस्य नहीं खुला अब तक और आज नटवरलाल और शिक्षा माफियाओं ने, कई कोचिंग संस्थान ने  सरकारी तंत्र के साथ मिलकर एक जाल बुनकर अरबों का व्यपार खड़ा कर लिया है. 

*इस वर्ष, NEET 2024 के लिए कुल 24,06,079 अभ्यर्थी पंजीकृत हुए, जिनमें से 23,33,297 उम्मीदवार परीक्षा में उपस्थित हुए। NEET 2024 परीक्षा में कुल 1,316,268 अभ्यर्थी सफल रहे हैं। भारत में वर्तमान में 695 चिकित्सा कॉलेज हैं, जिनमें कुल 1,06,333 सीटें चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए प्राप्त हैं। इनमें से लगभग 55,648 सीटें सरकारी कॉलेजों में हैं, और 50,685 सीटें निजी MBBS कॉलेजों में हैं। 

सोचिये, 12 लाख अधिक रिजल्ट क्यों? ....प्राईवेट कालेज में एडमिशन के लिए अधिक से अधिक पैसे लेकर अभिभावकों की अंधी दौड़.

*गोधरा, गुजरात NEET घोटाले का सबसे बड़ा सेंटर है. सुप्रीम साहेब, आप सिर्फ गोधरा की जांच कर लेते, आपको देशव्यापी नेटवर्क का पता चल जाता. जी हां, व्यापम पूरे देश में व्याप्त हो गया है. 

गोधरा में खाली पेपर जमा' करवाए गए, बाद में खाली पेपर भरे गए और स्टूडेंट टॉप कर गया!!  मीडिया बता रहा है..

*क्यों कोर्ट NEET की काउंसलिंग बंद कर "कोर्ट मॉनिटरड जांच" नहीं करना चाहती थी? कोर्ट को जांच से क्या दिक़्क़त हो सकती थी?

पिछले 10 सालों में सैकड़ों  एग्जाम्स रद्द, सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में. द टाइम्स आफ इंडिया अखबार ने इन्वेस्टिगेट कर 41 एग्जाम्स में पेपर लिक की पोल खोली है. जी हाँ, पिछले 50 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी वाले देश में! 

अब तो संपूर्ण देश के करोड़ों छात्रों युवाओं के जीवन का प्रश्न है.

इस तथ्य के बाद भी सुप्रीम फैसले का क्या मतलब है, किसके साथ न्याय  हुआ?

अब तो उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे की तर्ज पर इस मु‌द्दे को उठाने वालों से ही माफी मांगने कहा जा रहा है।

बेशर्मी के इस दौर में एक बार फिर राफेल घोटाले की याद ताजा कर ही। 

मंगलवार, 23 जुलाई 2024

सीजी में भी निकला जियो का कबाड़ा…


 जियो का निकला कबाड़ा...

सीजी में भी कर रहे बॉय-बॉय… 

बीएसएनएल का टैरिफ़ प्लान जानिए 

पहले ही निजी टेलीकॉम कंपनियों से परेशान लोगों ने टैरिफ बढ़‌ाने के बाद जिस तरह से भारतीय दूर संचार BSNL की तरफ कूच कर रहे हैं, उससे सबसे ज्यादा नुकसान जियो को उठाना पड़ सकता है। कहा जा रहा है कि जियो द्वारा अपने टैरिफ़ प्लान में कीमत बढ़ाने अनंत अंबानी की शादी क्या रिश्ता है यह चर्चा का अलग मुद्दा है लेकिन कहा जा रहा है कि निजी कंपनियों के द्वारा कीमत बढ़ाई जाने के बाद बीएसएसएल की बल्ले-बल्ले हो गई है।

सूत्रों की माने तो पिछले एक सप्ताह में बीएसएनएल को लगभग एक करोड़ नये ग्राहक मिले है जिसमें सर्वाधिक ग्राहक बिहार यूपी और • महाराष्ट्र के है। वहीं सूत्रों का यह भी दावा है कि इस दौरान न केवल बीएसएनएल नये सिम तो बेचे ही है प्राईवेट कंपनी से पोर्ट कराकर बीएसएलएल आने वाले ग्राहकों की संख्या भी 80 लाख से अधिक हो गई है।

कहा तो यहां तक जा रहा है कि निजी कंपनियों में जियो, एयरतेल, वीआई के सामने ग्राहक बचाने की दिक़्क़त आ गई है और  इस निजी कंपनियों से छुटकारा पाने वालों में जीयो  के ग्राहरु सबसे ज्यादा है।

इधर बीएसएनएल और टाटा समूह के बीच करार होने के आलावा बीएसएनएल का वह टैरिफ प्लान है जो ग्राहकों को सस्ते दर पर सुविधा प्रदान कर रहा है।






ज्ञात हो कि निजी टेलीकॉम कंपनियों की मनमानी को लेकर पहले ही उपभोक्ताओ में नाराज़गी थी ।

छत्तीसगढ़ से मिली जानकारी के मुताबिक भले ही जियों ने यहां के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से सेटिंग कर केबल बिछाने का काम पूरा कर लिया हो लेकिन कहा जा रहा है कि नेटवर्क के प्राबलम से वे सर्वाधिक प्रभावित थे। रायपुर राजधानी से ही इस तरह की शिकायते लगातार आ रही थी। ऐसे में कीमत 20 से 25 फ़ीसदी बढ़ने से लोग और ज्यादा नाराज हो गये।

सूत्रों की माने तो केबल बिछाने के खेल को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे है और इस खेल में जिस तरह से नगर निगम और पालिका के अधिकारी शामिल थे, उसकी शिकायत भी की गई है।

इधर छत्तीसगढ़ में भी जियो को छोड़ने वाले ग्राहकों की संख्या सबसे ज्यादा है और अभी भी लतातार जियो को बॉय-बॉय करने का सिलसिला जारी है।

सोमवार, 22 जुलाई 2024

कालेज छात्रों को ड्रग्स का लत लगा रहा था संस्कारी संघी…

 कालेज छात्रों को ड्रग्स का लत लगा रहा था संस्कारी संघी…


अभी उत्तर प्रदेश के प्रयाग राज को एके 47 से दहलाने वाला भाजपा के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया को समय पूर्व रिहाई का मामला ठंडा भी नहीं हो पाया था कि अब गुजरात से यह खबर आ गई कि कालेज छात्रों में ड्रग्स का लत लगाने वाले संघ के स्वयं सेवक और हिन्दू युवा वाहिनी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विकास अहिर पकड़ा गया। वह अपना यह खेल आइसक्रीम पार्लर की आड़ में चला रहा था। योगी आदित्यनाथ से लेकर भाजपा के दिग्गजों के साल उनकी तस्बीर और फेसबुक प्रोफाईल ने संघ के संस्कार की पोल खोल कर रख दी है।


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ गुजरात की सूरत शहर पुलिस ने एक सनसनीखेज मामले में हिंदूवादी नेता और बीजेपी कार्यकर्ता विकास अहीर समेत दो अन्य को एमडी ड्रग बेचने के मामले में अरेस्ट किया है। सोशल मीडिया पर मौजूद प्रोफाइल के अनुसार विकास अहीर हिंदू युवा वाहिनी गुजरात प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष हैं। इसके साथ वह बीजेपी युवा मोर्चा से जुड़े हुए हैं। सूरत पुलिस आयुक्त अनुपम सिंह गहलोत ने प्रेस कांफ्रेंस करके शहर में एमडी ड्रग्स की बिक्री के मामले में पुलिस कार्रवाई की जानकारी दी। गहलोत ने कहा कि सूरत में पहले ड्रग्स की खेप मुंबई से आती थी, लेकिन पुलिस की सख्ती के बाद इस धंधे में लिप्त लोगों ने मॉड्स ऑपरेंडी में बदलाव किया है। अब राजस्थान से जरिए सूरत में ड्रग्स की बिक्री कर रहे हैं। पुलिस ने विकास अहीर के विकास के साथ चेतन साहू और अनीश खान पठान को गिरफ्तार किया है। पुलिस के इनके पास से 354 ग्राम एमडी ड्रग्स मिला है।

हिंदूवादी नेता की छवि 


सूरत पुलिस द्वारा ड्रग्स बेचने के मामले में गिरफ़्तार किए गए विकास अहीर ने सोशल मीडिया पर अपनी छवि एक हिंदू वादी नेता की बनाई है। एक्स पर अहीर ने अपने बॉयो में लिखा है कि पूर्व अध्यक्ष हिन्दू युवा वाहिनी गुजरात प्रदेश बताया है। इसके बाद अहीर ने खुद को बीजेपी युवा मोर्चा गुजरात से जुड़ा हुआ बताया है। अहीर ने बॉयो में खुद को आरएसएस को स्वयंसेवक भी बताया है। सूरत शहर पुलिस के अनुसार करीब एक महीने की होमवर्क और निगरानी के बाद तीनों आरोपियों को अरेस्ट किया गया है। पुलिस ने अनुसार पकड़े गए आरोपियों पर पहले भी कुल मामले दर्ज हैं। पुलिस ने अनुसार ड्रग्स राजस्थान के जरिए सूरत में लाया जा रहा था।

आप ने साधा निशाना 

एक तरफ जहां ड्रग्स बेचने के मामले में सूरत पुलिस ने पुलिस ने विकास अहीर और उसके 2 दोस्तों को अरेस्ट किया है तो वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने इस मुद्दे पर बीजेपी पर हमला बोला है। इटालिया ने लिखा है हिंदुत्व के नाम पर 2022 के चुनाव में यही टोली उनके घर पर पहुंची थी।सूरत पुलिस आयुक्त अनुपम सिंह गहलोत ने कहा है कि सामने आया है कि आरोपी आइसक्रीम पॉर्लर की आड़ में एमडी ड्रग्स का धंधा कर रहे थे। ये टू व्हीलर से डिलीवरी भी करते थे। गहलोत ने कहा पिछले कुछ समय में सूरत में ड्रग्स बेचने के 37 मामले में दर्ज किए गए हैं। इनमें कुल 85 आरोपियों को अरेस्ट किया है। गहलोत ने कहा एनडीपीएस एक्ट में अरेस्ट आरोपियों की संपत्ति की जांच भी जा रही है। अवैध और काली कमाई से अर्जित की गई संपत्ति को सील किया जाएगा।

अब योगी भी हत्यारे को सिर में नचायेंगे

 योगी चले मोदी की चाल 

अब हत्यारे को सिर में नचायेंगे !



गुजरात में बलात्कारियों का स्वागत सत्कार करने वाली संघ से संस्कारित पार्टी का अब उत्तरप्रदेश  में नया कारनामा सामने आया है। एके 47 रायफल से प्रयागराज के सिविल लाईन में बसपा विधायक जवाहर यादव सहित तीन लोगों को मौत की घाट उतार चुके पूर्व विधायक उद‌यमान करवरिया को अब योगी आदित्यनाज ने रिहाई करवा दी है। उदयभान करवरिया को प्रयागराज की एक अदालत ने उम्र क़ैद की सजा सुनाई थी। हालांकि योगी आदित्यनाथ का यह पहला कारनामा नहीं है। इससे पहले अमरमणि त्रिपाठी को भी समयपूर्व रिहा कर दिया गया था। और गुजरात में दर्जनभर बलात्कारियों और हत्या के आरोपियों  को समय पूर्व रिहाई के लिए तो सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा था | तो क्या योगी  आदित्यनाथ भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राह पर चल पड़े हैं।

कहा जाता है कि योगी आदित्यनाथ  सरकार की सिफ़ारिश के बाद राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश की जेल में चार साल से आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व BJP विधायक उदय भान करवरिया की रिहाई का आदेश दे दिया  है।1996 में समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक जवाहर यादव की हत्या की गई थी. उसी मामले में चार साल पहले कोर्ट ने उदय भान को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. अब राज्य सरकार ने समय से बहुत पहले ही रिहाई का आदेश दे दिया है. पूरा मामला टाइमलाइन के हिसाब से समझ लेते हैं.

कहा जाता है कि 13 अगस्त, 1996 को प्रयागराज के सिविल लाइंस इलाके में कुछ लोगों ने मिलकर सपा विधायक की गाड़ी पर गोलीबारी कर दी थी. हमले में विधायक जवाहर यादव और दो अन्य लोगों की मौत हो गई. पुलिस जांच में पता चला कि हत्या राजनीतिक और व्यापारिक रंजिश के चलते की गई.फिर 4 नवंबर 2019 को प्रयागराज की एक अदालत ने उदय भान, उनके भाइयों सूरज भान और कपिल मुनि और उनके चाचा राम चंद्र को सपा विधायक जवाहर यादव की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई. तीनों दोषी फिलहाल प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद हैं.


रविवार, 21 जुलाई 2024

गुजरात लॉबी का यह कैसा करतूत

 फिर जुड़‌ने लगा पीएमओ से तार…

गुजरात लॉबी का यह कैसा करतूत


इन दस सालों में का देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित्र शाह ने जो चक्रव्यूह रचा था, क्या उस चक्रव्यूह का खेल खत्म होने लगा है। पूंजी निवेश से लेकर बैंको के कर्जे ‌लेकर भागने का मामला हो या फिर भ्रष्टाचार के बड़े मामले, नीट पेपर लीक घोटाला हो या यूपीएससी का खेल ! आखिर सारे तार पीएमओ से क्यों जुड़ जाते है?

नीट पेपर लीक मामले में जिस तरह से गुजरात का गोधरा चर्चा में है। गोधरा के इस पेपर लीक मामले को लेकर हो रहे रोज खुलासे के बाद अब ट्रेनी आईएएस पूजा खेड्‌कर का मामला सामने आने के बाद एक बार फिर गुजरात लॉबी ही नहीं पीएमओ पर भी उंगली उठने लगी है। और इस विवाद के बीच जिस ताह से यूपीएससी के अध्यक्ष मनोज सोनी का इस्तीफ़ा सामने आया है वह हैरान करने वाला तो है ही बल्कि मोदी सत्ता के उस निर्णय की नीयत पर उंगली उठाता है जिसके तहत दर्जनौ लोगों को प्रोफेशनल नियुप्ति के नाम पर कहीं सचिव बना दिया गया तो कहीं अध्यक्ष या डायरेक्टर ।

यश बॉस के इस दौर में यह जान लेना ज़रूरी है कि आखिर मनोज सोनी के इस्तीफ़े को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,गृह मंत्री अमित शाह क्यों निशाने पर है।

क्या मनोज सोनी का इस्तीफ़ा फर्जी प्रमाणपत्र, सत्ता और विशेषाधिकार का कथित दुरुपयोग के बाद जिस तरह से कई आईपीएस और आईएएस के चयन पर उठ रही उंगली है। लेकिन पहले ये जान ले कि मोदी-शाह क्यों निशाने पर है। गुजरात के रहने वाले मनोज सोनी का अभी पांच साल का कार्यकाल बाकी था। सोनी ने अपने इस्तीफे में व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया है। सोनी का कार्यकाल 2029 में पूरा होना था। मनोज सोनी आयोग में 2017 में बतौर सदस्य नियुक्त हुए थे। उन्होंने 16 मई, 2023 को अध्यक्ष के रूप में शपथ ली। ऐसे में उन्होंने बतौर अध्यक्ष सिर्फ करीब 13 महीने काम किया। मनोज सोनी गुजरात के आणंद जिले से ताल्लुक रखते हैं। उनका परिवार मुंबई से गुजरात शिफ्ट हुआ था। उन्होंने बचपन के दिनों में अगरबत्तियां तक बेंची।

द हिंदू' ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उन्होंने लगभग एक महीने पहले इस्तीफा दे दिया था। सूत्रों के अनुसार वह गुजरात के शक्तिशाली स्वामीनारायण संप्रदाय की एक शाखा अनुपम मिशन को अधिक समय देना चाहते हैं। वह 2020 में दीक्षा प्राप्त करने के बाद मिशन में एक साधु या निष्काम कर्मयोगी बन गए थे। सोनी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है, जिन्होंने उन्हें 2005 में वडोदरा में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (MSU) के कुलपति के रूप में चुना था। तब वह 40 वर्ष के थे। जिससे वह देश के सबसे कम उम्र के कुलपति बन गए थे। जून 2017 में यूपीएससी में नियुक्ति से पहले सोनी ने बाबासाहेब अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय (बीएओयू) के 1 अगस्त 2009 से 31 जुलाई 2015 तक कुलपति रहे थे। इसके बाद वह अप्रैल 2005 से अप्रैल 2008 तक वडोदरा में स्थित महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा के कुलपति रहे थे। 

 सोनी गुजरात विधानमंडल के एक अधिनियम द्वारा गठित एक अर्ध-न्यायिक निकाय के सदस्य भी रह चुके हैं। मनोज सोनी की गिनती उन लोगों में होती है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र माने जाते हैं। पीएम मोदी ने मनोज सोनी के संघर्ष को देखते हुए ही मुख्यमंत्री रहते हुए एमएसयू के वीसी की जिम्मेदारी सौंपी थी। एमएसयू में मनोज सोनी के वीसी रहते हुए कई आंदोलन हुए थे, लेकिन उन्होंने नो कंप्राेमाइज का फॉर्मूला अपनाया था। आर्ट्स फैकल्टी में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों से जुड़े विवाद में वह काफी सुर्खियों में रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि इस विवाद के चलते उन्हें एमएसयू में दूसरा कार्यकाल नहीं मिल पाया था, हालांकि मनोज सोनी को बाद में बाबासाहेब अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय (बीएओयू) का वीसी बनाया गया था।

तब सवाल यही है कि क्या प्रोफ़ेशनलों की नियुक्ति की वजह क्या है…?


शनिवार, 20 जुलाई 2024

नेम प्लेट- मुसलमानों के बहाने दलित-पिछड़ा निशाने पर

 नेम प्लेटः इस नफरत से उजड़ जायेंगे दलित-पिछड़े...


उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू वोटरों के ध्रुवीकरण को लेकर कांवड़ यात्रा के मार्ग में दुकानदारों को नाम पट्टिका लगाने की अनिवार्यता थोपी है उससे मुसलमान कितने प्रभावित होंगे कहना मुश्किल है लेकिन इस आदेश से दलित और पिछ‌‌ड़े वर्ग के दुकामदार जरूर उज‌ड़ जायेंगे, क्योंकि हुए देश में सवर्ण समाज की मानसिकता अब भी नहीं बदली है और आज भी इसी भेदभाव के चलते दलितों की हत्या तक कर दी जाती है।

लोकसभा के बाद विधानसभा के उपचुनाव में हार से बौखलाए भाजपा को यदि हिंदू वोटो के ध्रुवीकारण की तलाश है तो उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी दस सीटों पर होने भाले उपचुनाव में स्वयं की कुर्सी बचा लेने का ख़तरा बढ़ गया है। और इसी खतरे को भांपते हुए ही कांवड़ यात्रा मार्ग को लेकर नाम पट्टिका वाला फरमान जारी किया गया है।

लेकिन इस फ़रमान के विरोध में खड़े लोगों को हिन्दू विरोधी तमगा देने से भी हिन्दूवादी संगठन पीछे नहीं है लेकिन क्या नफ़रत से जल रहे हिन्दुवादी इस देश के सच को देखना ही नहीं चाहते।

देश का सच भयावह है, कि आज भी सवर्ण समाज का एक बड़ा तपका दलितों और वंचितों के साथ बैठना तक नहीं चाहता । सिर्फ दलित या अति पिछड़‌ा वर्ग होने के नाम पर प्रताड़ना का दौर  कम होने का नाम ही नहीं ले रहा।गुजरात हो या राजस्थान, मध्यप्रदेश हो या उत्तरप्रदेश, आप किसी भी राज्य का नाम ले लें। सुदूर दक्षिण से लेकर उत्तर तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक अब भी वंचित या पिछड़े वर्ग के दूल्हे के घोड़ी में बैठने मात्र से हत्या की घटना सुनाई पड़ जाती है।

ऐसी परिस्थिति में यदि नाम पट्टिका की अनिवार्यता क्या इन दलित और पिछ‌ड़े वर्ग के लोगों को प्रभावित नहीं करेंगी।

भले ही हिन्दू‌वादी संगठन योगी आदित्यनाथ के इस फैसले में मुसलमानों की पराजय देख रहे हो लेकिन सच तो यह है कि इससे  सर्वाधिक प्रभावित दलित और पिछड़े वर्ग के लोग ही होंगे।

क्या इन वर्गो के द्वारा बेचे जा रहे पूजन सामग्री ख़रीदेगा,  जब बाजू में ही ब्राम्हण बनिया ठाकुर की दुकान होगी। क्या इनके खाने पीने की सामग्री भी कोई खरीदेगा यदि बगल में ही सवर्गो की दूकान होगी।

सच तो यही है कि योगी आदित्यनाथ ने जिस राजनैतिक उद्देश्य से यह फैसला लिया है उससे मुसलमान कम दलित व पिछ‌ड़े ही अधिक प्रभावित होंगे।

मॉब लिचिंग मामले में दबाव में आ गई डबल इंजन...

 मॉब लिचिंग मामले में दबाव में आ गई डबल इंजन...


आरंग क्षेत्र के महानदी पुल पर गौरक्षकों के द्वारा मॉब लिचिंग के मामले में पुलिस ने न्यायालय में दाखिल आटोप पत्र में ही तीन लोगों की मौत को पुल से कुदने की वजह बताई है। तो कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि डबल इजन की साय सरकार आरोपियों को बचा रही है इस मामले की न्यायिक जांच कराने की मांग की है।

छत्तीसगढ़ को शर्मसार कर देने वाली इस घटना को लेकर जिस तरह की राजनीति की गई वह हैरान कर देने वाला है। मॉब लिचिंग की इस घटना को लेकर पहले ही दिन से सरकार की भूमिका पर सवाल उठते रहे है और जब इस मामले को लेकर कांग्रेस के नेता विकास उपाध्याय आरंग जा पहुंचे और मुस्लिम संगठनों ने प्रदर्शन किया तब कहीं जाकर हिन्दु संगठन से जुड़े आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।

लेकिन गिरफ्तारी होते ही विश्वहिन्दू परिषद, बजरंगदल सहित गौरक्षकों ने भी प्रदर्शन कर दिया। राजधानी के कोतवाली थाने का घेराव कर वे घंटो बैठ गये और उपमुख्यमंत्री अरुण साव को धरना स्थल पर आश्वासन देना पड़ा। यहीं नहीं रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने भी इसी बहाने अपनी ही सरकार पर भड़ास निकाली।

इसके बाद से ही जनचर्चा थी कि मॉब लिचिंग के आरोपियों को बचा लिया जायेगा।

 न्यायालय में  आठ जुलाई को रायपुर की अदालत में पेश किए गए आरोप पत्र में दावा किया गया है कि ट्रक में मवेशी ले जा रहे तीनों लोगों का पांच आरोपियों ने करीब 53 किलोमीटर तक पीछा किया और इसके बाद ट्रक सवारों ने नदी में छलांग लगा दी। पुलिस ने पहले बताया था कि मवेशियों को ले जा रहे गुड्डू खान (35) और चांद मियां खान (23) की सात जून की सुबह जिले के आरंग थाना क्षेत्र में भीड़ द्वारा कथित तौर पर पीछा किए जाने के

बाद संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। उनका एक अन्य साथी सद्दाम कुरैशी भी इसी घटना में गंभीर रूप से घायल पाया गया था, जिसकी 18 जून को यहां एक अस्पताल में मौत हो गई थी। उत्तर प्रदेश के रहने वाले तीनों लोग आरंग क्षेत्र में महानदी पर बने पुल के नीचे पाए गए थे, जबकि भैंसों से लदा उनका ट्रक पुल पर खड़ा मिला था। आरंग पुलिस ने तब मामले के संबंध में अज्ञात आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 304 (गैर इरादतन हत्या), 307 (हत्या का प्रयास) और 34 (साझा इरादा) के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। कुरैशी की मौत के बाद पुलिस ने कहा था कि उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मारपीट के कारण प्राणघातक चोट लगने का जिक्र नहीं है, जिसके बाद हत्या के प्रयास का आरोप हटा दिया गया।

पुलिस ने तब मामले की जांच के लिए रायपुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) कीर्तन राठौर के नेतृत्व में 14 सदस्यीय विशेष दल का गठन किया था । बाद में पुलिस ने अलग-अलग जगहों से पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया और उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 304 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया। पुलिस सूत्रों ने बताया कि आरोपपत्र में कहा गया है, पांचों आरोपियों को संभवतः मवेशियों को ले जा रहे एक वाहन के बारे में जानकारी मिली थी। तीन कार में सवार आरोपियों ने. ट्रक का पीछा किया और लोहे की कीलें लगी लकड़ी और कांच के टुकड़े फेंक कर वाहन को रोकने की कोशिश की। ट्रक चालक ने भागने के लिए करीब 14 किलोमीटर तक गलत दिशा में गाड़ी चलाई, लेकिन आरोपियों ने उनका पीछा करना जारी रखा। जब आरोपियों द्वारा फेंकी गईं लोहे की कीलों और पत्थरों के कारण ट्रक का एक टायर क्षतिग्रस्त हो गया तो ट्रक महानदी नदी पर बने पुल पर रुका। आरोप पत्र में कहा गया है कि ट्रक में सवार तीनों लोग डर के कारण वाहन से उतर गए और अपनी जान बचाने के लिए पुल से नदी में कूद गए। इसमें कहा गया है कि पूरी घटना में आरोपियों ने करीब 53 किलोमीटर तक तेज गति से ट्रक का पीछा किया और उसे अवैधं रूप से रोकने की कोशिश की, जिससे पता चलता है कि आरोपियों को पता था कि उनके कृत्य से ट्रक में सवार लोगों की मौत हो सकती है या उन्हें ऐसी शारीरिक चोट लग सकती है, जिससे उनकी मौत हो सकती है। आरोप पत्र के मुताबिक, आरोपियों के कृत्य से भयभीत होकर तीनों व्यक्ति ट्रक से उतर गए और पुल से नदी में कूद गए, जिससे तीनों में से एक चांद मियां की मौके पर ही मौत हो गई और गुड्डू खान ने अस्पताल ले जाते समय दम तोड़ दिया। इसमें कहा गया कि सद्दाम ने करीब 12 दिनों के इलाज के बाद दम तोड़ दिया। आरोप पत्र में कहा गया है कि पुल से कूदने के बाद उसे लगी गंभीर चोटों के कारण उसकी मौत हो गई। इसमें कहा गया है कि आरोपियों का कृत्य भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 में उल्लेखित आपराधिक कृत्य के अंतर्गत आता है। जांच के बाद आईपीसी की धारा 304 और 34 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया।

इधर आरंग पुलिस ने इस मामले गिरफ्तार किया था जिसमें हर्ष मिश्रा, राजा अग्रवाल, नवीन सिंह ठाकुर और मयंक शर्मा शामिल है जबकिकहा जा रहा है कि अन्य लोगों की गिरफतारी सत्ता के दबाव में रोक दी गई। 

इधर पुलिए के आरोप पत्र को लेकर कांग्रेस ने डबल इंजन की साय सरकार पर गंभीर आरोप लगाये है। कांग्रेस प्रवक्ता सुशीत आनंद शुक्ला ने  न्यायिक जांच कराने की मांग उठाई है। अपराधियों को बचाने आरोप पत्र में लीपापोती के दावे करते हुए पुलिस की पूरी कार्रवाई को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला के मुताबिक कांग्रेस पार्टी इस घटना की न्यायिक जांच चाहती है। भाजपा सरकार की नीयत शुरू से ही आरोपियों को बचाने की थी। सांसद बृजमोहन अग्रवाल के बयान को ही आधार बनाते हुए पुलिस द्वारा आरोप पत्र तैयार करना प्रतीत हो रहा है।

छत्तीसगढ़ जैसे शांत प्रदेश में धर्म के नाम पर इस तरह की वारदात ने डबल इजन वाली विष्णुदेव साय सरकार को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। क्योंकि हाल के दिनों में भाजपा ने जिस तरह की  राजनीति शुरू की है उसका असर मी पड़ने लगा है, । बस्तर के नारायणपुर में धर्मान्तरण को लेकर हुए विवाद में तत्कालीन एसपी सदानंद कुमार का उपद्रकीयों ने सर फोड़ दिया था, तो बीरमपुर की घटना पर बवाल मचा  था। 

यही नहीं झंडा लगाने के मामूली विवाद के चलते कवर्धा में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा था तो वर्तमान गृह‌मंत्री विजय शर्मा पर उपद्रव मचाने के आरोप में जुर्म दर्ज हुआ था और विजय शर्मा सहित दर्जनों भर लोगों को जेल भी जाना पड़ा था।

ऐसे में इस शांत प्रदेश में हुए मॉब लिचिंग की घटना किसी भी सत्ता के माथे पर कलंक है।

शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

संघ- तिलमिलाहट कम, नौटंकी ज्यादा...

 प्रतिष्ठा का प्रश्न कहाँ 

आफत में अस्तित्व... 

तिलमिलाहट कम, नौटंकी ज्यादा...


कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाते लगाते स्वयं को भगवान के रूप में प्रतिष्ठित करने के प्रयास में लगे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इन दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत के शब्द बाण की चर्चा खूब सुर्खियां बटोर रही है। तो इसकी वजह क्या है। क्या मोदी ने इन दस सालो में संघ की प्रतिष्ठा को इतना धूमिल कर दिया है कि मोहन भागवत नये सिरे से संघ की प्रतिष्ठा बचाने की कवायद कर रहे हैं या फिर स्वयं सेवकों  के ग़ुस्से पर पानी छिड़क रहे हैं!

पिछले दस सालों में यानी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर संघ के प्रचारक नरेद्र मोदी के बैठने के बाद संघ और उसके अनुषंकिक संगठनों की गतिविधियों पर नजर डाले तो यह साफ़ दिखाई देता है कि कांग्रेस मुक्त नारे  से खुश संघ के तमाम अनुशंकिक संगठनों ने नरेंद्र मोदी के आगे स्वयं को नतमस्तक कर लिया था।

पचाल साल तक बीजेपी की सरकार  बने रहने का सपना इतना बड़ा  हो गया कि संघ के उद्देश्य को तिलांजलि दे दी गई। निजीकरण से लेकर तीन कृषि बिल हो या नोटबंदी से लेकर जीएसटी से होने वाली तकलीफ़,श्रम कानून से लेकर प्रधानमंत्री के हर घोषणा पर संघ ने यही सोचकर चुप्पी ओढ़ ली  कि  नरेंद्र मोदी का हर कदम हिन्दू राष्ट्र की ओर उठ रहा है?

संघ तो बीजेपी  के 240 सीट आने पर भी आँखें नहीं खोलता यदि सत्ता जाने के अंदेशे में सर्वाधिक ख़तरा संघ के स्वयंसेवकों को ही है यह बात स्वयंसेवक जोर-शोर से नहीं उठाते ।

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता का ऐसा चकाचौंध खड़ा कर दिया था कि संघ प्रमुख की आँखें चौधियां गई थी, उन्हें सत्ता और कारपोरेट के गठजोड़ से मंह‌गाई और बेरोजगारी से जूझ रहे लोग दिखाई ही नहीं दे रहे थे। झूठ और अफवाह की जिस राजनीति के आसरे नफरत का बीज बोकर राजनीति साधी जा रही थी, वह सब कुछ संघ को अपने अनुकूल लग रहा था कहा जाय तो भी गलत नहीं होगा ?

लेकिन राइल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा, भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से संघ पर सीधा प्रहार किया और आलोचना करने लगे, संघ ने तब भी इसकी परवाह इसलिए नहीं की थी, क्योकि उन्हें लगता रहा कि नरेंद्र मोदी ने जब दावा किया है तो 400 सीट न सहीं 350 सीट तो आ ही जायेगी।

लेकिन जब परिणाम आये तो स्वयं सेवकों की बेचैनी बढ़ गई । सत्ता जाने के बाद के ख़तरे दिखाई देने लगे तब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी के अहंकार और भगवान बनने को लेकर अपरोक्ष बोलना शुरू  किया है यानी अब भी नाम लेकर बोलने की हिम्मत नहीं है तो इसकी दो ही वजह है या तो नरेंद्र मोदी ने समूचे संघ पर क़ब्ज़ा जमा लिया है और इस ताक़त से उनके मन में  डर घर कर गया है या सत्ता की मलाई छोड़ा नहीं जा रहा।

लेकिन जिस तरह से इस दौर में संघ की प्रतिष्ठा को आँच पहुंची है वह अब स्वयंसेवकों में बेचैनी का सबब है। सत्ता के प्रभाव में संघ ने शाखाओं का विस्तार ही नहीं किया बल्कि भव्य और सुविधा युक्त कार्यालय  भी बने लेकिन उसने कभी सपने में नहीं सोचा रहा होगा कि जिस नरेंद्र मोदी की छवि बिग‌ड़‌ने की बात वह ऑर्गेनज़र में कर रहा है उस नरेंद्र मोदी ने तो संघ की छवि ही नहीं प्रतिष्ठा पर तो प्रश्न चिन्ह लगाए है बल्कि अस्तित्व पर भी सवालिया निशान लगा दिया है?

गुरुवार, 18 जुलाई 2024

भूपेश को चौतरफा घेरने में लगी भाजपा...

 भूपेश को चौतरफा घेरने में लगी भाजपा...


छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश वघेल को घेरने में लगी भाजपा ने अब नया दांव खेला है, क्या इस नये दांव में भूपेश बघेल भाजपा के घेरे में आ जायेंगे या फिर भूपेश बघेल को बदनाम कर यह राजनीति साधने का सिर्फ जरिया मात्र बनकर रह जायेगा।

राजनीति के जानकारों का अपना अपना दावा है, लेकिन भूपेश सरकार के दौरान हुए घपले-घोटालों को लेकर विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी-शाह  के जो तेवर थे, वह कुंद पड़   गया  है कहा जाय तब भी ग़लत नहीं होगा।

करोड़ो रूपये के कोयला और शराब घोटाले में कार्रवाई तो जरूर हुई है लेकिन इस कार्रवाई को लेकर कई तरह के सवाल भी उठने लगे है। भाजपा लगातार दावा करती रही कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जायेगा। गृह मंत्री अमित शाह तो एक कदम आगे बढ़‌कर भ्रष्टाचारियों को उल्टा लटकाकर सीधा कर देने का दावा करते रहे लेकिन इन दोनों मामलों में कार्रवाई पर नजर डाले तो गिरफ्‌तारी से आईपीएस अफसरों और बड़े नेताओ को छोड़ दिया गया है। यहां तक की कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल को भी  अभी तक ढूंढा नहीं जा सका है जबकि पूर्व मुख्यमन्त्री भूपेश बघेल से तार जुड़े होने का दावा मी धरातल पर दिखाई नहीं दे रहा है।

कहा जाता है कि यही स्थिति महादेव एप के मामले में भी बन गई । इस मामले में भी अब तक केवल छोटी मछ‌लियों पर ही कार्रवाई  की गई है। कहने को तो महादेव एप से जुड़े तीन सौ लोगों की गिरफ्तारी की जा चुकी है. कुछ लोगों को तो नौकरी से बखस्ति तक कर दिया गया है। लेकिन इस मामले में भी अब तक जिन्हें बड़ा खिलाड़ी बताया जा रहा था   उनकी गिरफ्तारी तो दूर एफ़आईआर में नाम तक नहीं है।

कहा जाता है कि इस मामले में भी आईपीएस अधिकारियों को बख्श दिया गया।

तब सीजी पीएससी घोटाले की जांच जब सीबीआई ने शुरू कर ही है तो क्या अब बड़े राजनेताओं पर गिरफ्तारी का फन्दा कसेगा ।

सीबीआई सूत्रों की माने तो पीएससी घोटाले को लेकर दर्ज एफ आई आर में भी किसी नेता का नाम नही है। हालांकि सीबीआई ने जाँच कल ही शुरू की है और उसने शुरुआती कार्रवाई में पीएससी  के पूर्व अध्यक्ष टामन सिंह सोनवानी, सचिव जीवन  किशोर ध्रुव और परीक्षा नियंत्रन वासनिक के घर और दफ्तर में कागजात जब्त किये है।

ऐसे में सबसे बड़ा‌ सवाल यह है कि क्या इस पूरे खेल में कोई राजनैतिक ध्येय छिपा है और आईपीएस और नेताओ को छोड़ा गया है।

इधर सूत्रों का दावा है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को घेरे में लेने की कोशिश अब अंतिम चरण में है और इसके बाद क्या होगा यह देखना होगा।

बुधवार, 17 जुलाई 2024

विकास के नाम पर मौत का विभत्स खेल...

 विकास के नाम पर मौत का विभत्स खेल...

 उद्योग पति और शासन-प्रशासन का गठ‌जोड़ छतीसगढ़ में भी


विकास के नाम पर सत्ता कैसे-कैसें खेल खेलती है, यह सिर्फ तूतीकोरिन में उद्योगपति के इशारे पर मारे गये  पुलिस द्वारा 13 प्रदर्शनकारियों से समझ पाना मुश्किल है। इस तरह का खेल इन दिनों सत्ता के लिए सहज और आम हो गई है। क्योंकि इस तरह की घटना के बाद जाँच और न्यायालयीन प्रक्रिया इतनी लंबी चलती है कि न्याय का कोई मतलब ही नहीं रहता।


स्टरलाइट कंपनी के इशारे पर पुलिम द्वारा 13 प्रदर्शनकारियों को गोली से भून देने के मामले में मद्रास हाइकोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी  पर बात


करने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि सत्ता और कारपोरेट के गठजोड़

को लेकर उठते सवाल क्यों महत्वपूर्ण हो चले है। विकास किस शर्त पर होना चाहिए और सत्ता की पैसों की भूख की सीमा क्या है? इस दौर में यह सवाल इसलिए बेमानी है क्योंकि राजनेताओं का संगठित गिरोह ने लूट का नया तरीका अख़्तियार किया है। जिसने अब सीधे सीधे लोगों की जान से खिलवाह करना शुरू कर दिया है।

सवाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मित्र प्रेम का नहीं है, और न ही सवाल इलेक्ट्राल बाण्ड लेने के चलते उन दवा कंपनियों की जांच रोक देने का है जो जहर परोसने आमादा थे। सवाल तो यही है कि क्या अब सत्ता में बैठे लोगों ने यह तय कर लिया है जब तक वे हैं, मौज कर ले, मरने के बाद किसने देखा है कि दुनिया का क्या होगा?

और इसी ख़तरनाक सोच ने आम आदमी का जीवन नारकीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा है।


छत्तीसगढ़ में शंकर गुहा नियोगी हत्याकांड सत्ता और कार्पोरेट का विभत्स चेहरा नहीं था? या फिर दुर्ग जिले के बेरला स्थित स्पेशल ब्लास्ट  फैक्टरी में हुए मौत का तांडव !

 घटना के बाद खूब हो हल्ला हुआ लेकिन क्या इस कंपनी के सभी संचालक गिरफ्तार हुए। कार्रवाई के पर किस तरह की खाना-पूर्ति की गई। उस पर क्या कांग्रेस भी सवाल उठायेगी?

छत्तीसगढ़ में भी अदानी पावर के विस्तार को लेकर तिल्दा और रायगढ़ में जनसुनवाई हो रही है। किसानों के जनसुनवाई स्थगित करने के एलान के बाद भी शासन - प्रशासन मुस्तैद है। और यदि सत्ता चाह ले तो किसानो से जमीन छिने जाने से कौन रोक सकता ।


क्या हर तरह के विरोध के बाद हसदेव अरण्य की कटाई को रोका गया, विरोध करने वालों को हिरासत में लेकर जिस तरह से वृक्षों  की कटाई की गई उसके आगे पर्यावरण को लेकर बनी तमाम संस्थाएं किस तरह मौन है? आख़िर यह परियोजना भी तो मित्र-प्रेम की इबादत है।

तब मद्रास हाईकोर्ट में चल रहे स्टरलाईट कंपनी से जुड़े इस मामले पर न्याय होगा !

कहना कठिन इस लिए भी है क्योंकि 2014 के बाद से सुनवाई के दौरान न्यायालय का ग़ुस्सा और फ़ैसले में एका दिखाई ही नहीं देता।

 स्टरलाईट के विस्तार के विरोध में ही प्रदर्शनकारियों को गोली से भून देने की इस घटना की सुनवाई के दौरान मद्रास हाइकोर्ट के जजों ने जिस तरह से सीबीआई की जाँच पर नाराजगी जाहिर करते हुए इस मौत को नियोजित बताया है क्या फ़ैसले में यह दिखाई देगा?

घटना 2018 की है, २२ और 23 मई 2018 की यह घटना स्टालाईट् के विस्तार को लेकर जनसुनवाई के दौरान हुई। जनसुनवाई के विरोध में आसपास के क्षेत्रों के लोग प्रदर्शन कर रहे थे। और जब पुलिस ने कार्रवाई शुरु की तो प्रदर्शनकारी भागने लगे और इन्हीं भागते प्रदर्शनरियों को यानी उनकी पीठ पर गोली मारी गई। 13 लोगों की मौत हो गई। प्रदर्शनकारी प्रदूषण संबंधी चिंताओं के कारण स्टरलाईंट् के कापर स्मेलटर इकाई को बंद करने की माँग कर रहे थे।

छत्तीसगढ़ के तिल्दा और रायगढ़ में भी अदानी पावर के विस्तार का विरोध हो या हसदेव अरण्य की कटाई का विरोध प्रदूषन संबंधी चिंता ही प्रमुख वजह है।

तब सवाल यही खड़ा होता है कि क्या हसदेव की कटाई नहीं रोक देनी चाहिए। हालांकि इस मामले में कांग्रेस ने विरोध जरूर किया है लेकिन क्या यह विरोध सिर्फ बयानबाजी तक रहेगा या कटाई के दौरान कांग्रेसी हसदेव को बचाने वहां जायेंगे?

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

खिसीयानी बिल्ली खंभा नोचे...

 खिसीयानी बिल्ली खंभा नोचे...


यह तो खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत को ही चरितार्थ करता अन्यथा छत्तीसगढ़ में बदहाल होती कानून व्यवस्था को लेकर वे लोग आग बबूला नहीं होते जिन पर अपराधियाँ को ही संरक्षण देने का आरोप है या अपने राजनैतिक उद्देश्य के लिए गलत काम करने वालों को प्रश्रय देने का आरोप है।

दरअसल डबल इंजन की सरकार बनने के बाद छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था की स्थिति दिनों दिन बदतर होते जा रही है, अपराधियों के हौसले बुलंद है, सरे आम चाकू बाजी और धमकी चमकी की ही खबर बस नही है, नशे का कारोबार तो फल-फूल रहा ही है, राजनैतिक संरक्षण के चलते कोल माफिया रेत माफिया, भू-माफिया सहित कई तरह के माफियाओं ने अपना खेल बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया है, ऐसे में कांग्रेस ने भी सरकार को घेरने की रणनीति के तहत विधानसभा घेराव का निर्णय ले लिया है।

कांग्रेस के बढ़ते दबाव और आक्रामक रवैये के चलते सत्ता में बेचैनी बढ़ गई है । और इसी के तहत पिछले दिनों मंगलवार को गृहमंत्री विजय शर्मा ने रायपुर जिले के जनप्रतिनिधियों की बैठक बुलाई थी। यह जनप्रतिनिधियो की बैठक थी या केवल भाजपाई विधायक और सांसद को ही बुलाया गया था, यह कहना पर मुश्किल है। लेकिन बैठक में पहुंचे जनप्रतिनिधियो से कानून व्यवथा सुधारने के लिए सुझाव मांगे गये।

कहा जाता है कि इस टेबल टॉक के दौरानअन्य विधायकों ने सुझाव भी दिये किसी ने नाईट गश्त बढ़ाने की बात कही तो किसी ने  नशे के बढ़ते कारोबार पर चिंता जताई।

लेकिन कहा जाता है कि रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने तो अपने को किनारे लगाने की भड़ास ही निकाल ली, मंत्री पद से मजबूरी में इस्तीफ़ा देने वाले मोहन सेठ ने तो यहां तक कह दिया कि कानून व्यवस्था की ऐसी बदतर स्थिति मैंने आज तक नहीं देखी।तो रायपुर पश्चिम के विधायक ने भी जमकर भड़ास निकाला ।

कहा जाता है कि दोनों ही नेताओका ग़ुस्से की असली वजह क़ानून व्यवस्था  के बहाने स्वयं की उपेक्षा को लेकर अधिक था। जबकि अन्य जनप्रतिनिधि सामान्य लहजे में सुझाव दे रहे थे। सूत्रों का कहना है कि मोहन सेठ और मूणत सेठ के इस तेवर से न केवल गृहमंत्री हतप्रभ रह गये बल्कि इसे लेकर पार्टी में भी कई तरह की चर्चा है।

हालांकि अंत भला तो सब भला की तर्ज पर मीडिया में वहीं खबरें छपी जो दोनों को कानून व्यवस्था का चिंतक साबित करें।

सिर्फ एक पेड़ माँ के नाम पूरा हसदेव माई-बाप के नाम...

 सिर्फ एक पेड़  माँ के नाम 

पूरा हसदेव माई-बाप के नाम...


प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने जब मन की बात कार्यक्रम में एक पेड़ माँ के नाम अभियान की शुरुआत की, तब शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि इस अभियान को शुरु करने का ध्येय क्या है!


वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर मास्टर स्ट्रोक का असल मकसद कुछ और होता है। नोट बंदी का असल मकसद भी विपक्ष को कमजोर  करना था तो इलेक्ट्रॉल बांड का मकसद चंदा-चकारी, जीएस टी का मतलब कापेरिट के कर्जे माफ करना था तो पी एम केयर फण्ड का मकसद वसूली ।

ऐसे में एक पेड़ माँ के नाम का मकसद क्या जंगलों को उद्योगों को सौंप देना है?



यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे हैं क्योंकि  प्रधानमंत्री के आव्हान के बाद छत्तीसगढ़ के डबल इंजन की सरकार मे भी एक पेड़ मां के नाम पर एक तरफ महाअभियान छेड़ दिया तो दूसरी तरफ हसदेव अरण्य का 91 हेक्टेयर भूमि  मे पेड़ों की कटाई की अनुमति दे दी।

मध्यमारत का फेफड़ा कहलाने वाले हसदेव की कटाई को लेकर पर्यावरणविद् से लेकर आप आदमी विरोध जता चुके हैं लेकिन मोदी के सबसे खास मित्र गोतम अदानी की कंपनी के आगे डबल इंजन  की सरकार इस कदर नतमस्तक है कि उन्हें न तो जन विरोध की परवाह है और न ही भविष्य में होने वाले भयावह दुष्परिणाम की ही चिंता है।

इस पूरे खेल में छत्तीसगढ़ को क्या मिलेगा यह एक बड़ा सवाल है लेकिन हसदेव के 91 हेक्टेयर जमीन के नीचे दबे कोयले से जो बिजली बनेगी उससे राजस्थान को रोशनी मिलेगी, अग्रणी राजस्थान के सपने को पूरा करने राजस्थान की डबल इंजन की सरकार का कहा मानकर छत्तीसगढ़  की डबल इंजन की सरखार ने छत्तीसगढ़ का नुकसान पहुँचाने की क्या   शुरु‌कात कर दी है? या फिर यह सब कुछ मित्र-प्रेम का खेल है।


ऐसे में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का यह कहना क्या मायने रखता   है कि  'कोयला हमारे छत्तीसगढ़ का है, प्रदू‌षण भी हम ही झेलते हैं, ट्रांसपोर्ट ट्रक की सड़‌क दुर्घटना भी हम झेलें, दूसरे राज्यों को बिजली भी हम दें और हम स्वयं बिना बिजली के रहें और हमारा बिजली बिल भी हमको लूटे, यह तो अन्याय है।

लेकिन इस अन्याय से सत्ता को कब मतलब रहा है। और शायद यही वजह है कि एक तरफ़ उस पेड़ को  लगाने की नौटंकी की जा रही है जिनके बचने की कोई गारंटी नहीं है तो दूसरी ताफ मित्र-प्रेम में समू‌चे जंगल को सौंप देने की बद‌नियत…?