प्रतिष्ठा का प्रश्न कहाँ
आफत में अस्तित्व...
तिलमिलाहट कम, नौटंकी ज्यादा...
कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाते लगाते स्वयं को भगवान के रूप में प्रतिष्ठित करने के प्रयास में लगे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर इन दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत के शब्द बाण की चर्चा खूब सुर्खियां बटोर रही है। तो इसकी वजह क्या है। क्या मोदी ने इन दस सालो में संघ की प्रतिष्ठा को इतना धूमिल कर दिया है कि मोहन भागवत नये सिरे से संघ की प्रतिष्ठा बचाने की कवायद कर रहे हैं या फिर स्वयं सेवकों के ग़ुस्से पर पानी छिड़क रहे हैं!
पिछले दस सालों में यानी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर संघ के प्रचारक नरेद्र मोदी के बैठने के बाद संघ और उसके अनुषंकिक संगठनों की गतिविधियों पर नजर डाले तो यह साफ़ दिखाई देता है कि कांग्रेस मुक्त नारे से खुश संघ के तमाम अनुशंकिक संगठनों ने नरेंद्र मोदी के आगे स्वयं को नतमस्तक कर लिया था।
पचाल साल तक बीजेपी की सरकार बने रहने का सपना इतना बड़ा हो गया कि संघ के उद्देश्य को तिलांजलि दे दी गई। निजीकरण से लेकर तीन कृषि बिल हो या नोटबंदी से लेकर जीएसटी से होने वाली तकलीफ़,श्रम कानून से लेकर प्रधानमंत्री के हर घोषणा पर संघ ने यही सोचकर चुप्पी ओढ़ ली कि नरेंद्र मोदी का हर कदम हिन्दू राष्ट्र की ओर उठ रहा है?
संघ तो बीजेपी के 240 सीट आने पर भी आँखें नहीं खोलता यदि सत्ता जाने के अंदेशे में सर्वाधिक ख़तरा संघ के स्वयंसेवकों को ही है यह बात स्वयंसेवक जोर-शोर से नहीं उठाते ।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता का ऐसा चकाचौंध खड़ा कर दिया था कि संघ प्रमुख की आँखें चौधियां गई थी, उन्हें सत्ता और कारपोरेट के गठजोड़ से मंहगाई और बेरोजगारी से जूझ रहे लोग दिखाई ही नहीं दे रहे थे। झूठ और अफवाह की जिस राजनीति के आसरे नफरत का बीज बोकर राजनीति साधी जा रही थी, वह सब कुछ संघ को अपने अनुकूल लग रहा था कहा जाय तो भी गलत नहीं होगा ?
लेकिन राइल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा, भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से संघ पर सीधा प्रहार किया और आलोचना करने लगे, संघ ने तब भी इसकी परवाह इसलिए नहीं की थी, क्योकि उन्हें लगता रहा कि नरेंद्र मोदी ने जब दावा किया है तो 400 सीट न सहीं 350 सीट तो आ ही जायेगी।
लेकिन जब परिणाम आये तो स्वयं सेवकों की बेचैनी बढ़ गई । सत्ता जाने के बाद के ख़तरे दिखाई देने लगे तब संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी के अहंकार और भगवान बनने को लेकर अपरोक्ष बोलना शुरू किया है यानी अब भी नाम लेकर बोलने की हिम्मत नहीं है तो इसकी दो ही वजह है या तो नरेंद्र मोदी ने समूचे संघ पर क़ब्ज़ा जमा लिया है और इस ताक़त से उनके मन में डर घर कर गया है या सत्ता की मलाई छोड़ा नहीं जा रहा।
लेकिन जिस तरह से इस दौर में संघ की प्रतिष्ठा को आँच पहुंची है वह अब स्वयंसेवकों में बेचैनी का सबब है। सत्ता के प्रभाव में संघ ने शाखाओं का विस्तार ही नहीं किया बल्कि भव्य और सुविधा युक्त कार्यालय भी बने लेकिन उसने कभी सपने में नहीं सोचा रहा होगा कि जिस नरेंद्र मोदी की छवि बिगड़ने की बात वह ऑर्गेनज़र में कर रहा है उस नरेंद्र मोदी ने तो संघ की छवि ही नहीं प्रतिष्ठा पर तो प्रश्न चिन्ह लगाए है बल्कि अस्तित्व पर भी सवालिया निशान लगा दिया है?
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