मंगलवार, 2 जुलाई 2024

मिठलबरा के बाद डर‌पोक-चापलूस का तमगा…

 मिठलबरा के बाद डर‌पोक-चापलूस का तमगा…


शोले फिल्म का एक मशहूर डॉयलाग है,गब्बर का नाम मिट्टी में मिला दिया… यह डायलॉग कांग्रेस नेता रविन्द्र चौबे पर कितना फिट बैठता है यह तो उनके अपने ही तय करेंगे, लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेताकों में शुमार रविन्द्र चौबे की राज्य बनने के बाद से ही पोल खुलने लगी थी।

समाज से जुड़े लोगों ने तो रवींद्र चौबे को पहले ही मिठलबरा का तमगा दे रखा था, और अजीत जोगी की चापलूसी का तमगा भी जुडेते जुड़ते इसलिए रह गया क्योंकि,  राज्य बनने के बाद सत्ता तीन साल ही चल पाया, लेकिन नेता प्रतिपक्ष बनते ही जिस तरह से चौदहवें मंत्री के रूप में गिनती हुई, रहा सहा साख भी जाता रहा। और इस करनी का फल यह हुआ कि कांग्रेस का गढ़ तो ढहा ही परिवार की साख भी जाते रही । हद तो तब हुआ जब बाफना की इस पटखनी के बाद भी उनका रवैया नहीं बदला।

इसके बाद भूपेश सरकार में मंत्री बनने के बाद भी मोहन सेठ से पिछले दरवाजे से संबंध ने कई तरह के गुल खिलाने की चर्चा को ही हवा नहीं दी बल्कि मंत्री बने रहने की चाह ने अब उन पर चापलूसी ही नहीं बलि डरपोक होने का भी तमगा लगा दिया।

अब तो इस बात की हवा तब और फैलने लगी जब कथित लेटर बम के हर पन्ने में रवींद्र चौबे को डरपोक - चापलूस बताया गया।

एक तो पहले ही ईश्वर साहू जैसे अनजान चेहरे से हार जाने का दर्द वे भूल नहीं पा रहे हैं उपर से हप्पोक और चापलूस का यह तमगा उनकी राजनीति को किस दिशा में ले जाएगा कहना मुश्किल है।

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