मंत्री पर भी आरोप , हाईकोर्ट में मामला
छत्तीसगढ़ में उच्चाधिकारियों व नेताओं की करतूत थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। सेवानिवृत्त आईएएस राघवन ने पदोन्नति सूची पर हंगामें पर भले ही कोई कार्रवाई नहीं हुई है लेकिन हाईकोर्ट ने पीडब्ल्यूडी में हुए पदोन्नति पर न केवल रोक लगा दी बल्कि 4 अधिकारियों का पदावतन भी कर दिया। सम्पूर्ण मामले में उच्च स्तर पर 10 करोड़ के लेन-देन की चर्चा है और पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी इन आरोपों से अछूते नहीं हैं।
मामले की शुरुआत को लेकर ही संदेह किया गया कि आखिर लोकसभा चुनाव के आचार संहिता लगने के चंद घंटे पहले ही डीपीसी कैसे हो गया। इस संदेह को अमलीजामा पहनाया गरियाबंद में पदस्थ इंजीनियर वर्मा ने। दरअसल प्रमोशन के असली हकदार वर्मा की बजाय शासन स्तर पर जब लेन-देन कर दूसरे इंजीनियर को इएनसी बनाने की चर्चा छिड़ी और आचार संहिता लगने के ठीक पहले डीपीसी को ऐसे बनाया गया जिससे आधा दर्जन से अधिक भ्रष्ट इंजीनियरों को पैसे के दम पर प्रमोशन दिया गया।
बताया जाता है कि इस मामले में अनुसूचित जाति के कोटे से जनवदे को ईएनसी बना दिया गया जबकि वे अनुसूचित जनजाति के कोटे के हैं। इस हेराफेरी की वजह 2.50 करोड़ के लेन-देन को बताया जा रहा है। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है इस डीपीसी के अदला बदली में अग्रवाल, पिपरी सहित सेतु निगम के ऐसे अधिकारियों को पैसा लेकर लाभ दिया गया जिन पर भ्रष्टाचार के आरोपों में विभागीय जांच तक चल रही है। सात लोगों को आनन फानन में प्रमोशन की कहानी से लेन देन की नई कहानी बाहर आने लगी है।
बताया जाता है कि इस मामले में सर्वाधिक प्रभावित गरियाबंद में पदस्थ वर्मा हुए। ईएनसी की दौड़ से बाहर होने को लेकर वर्मा ने जब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो सारे घपले खुब ब खुद बाहर आ गए और हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सेतु निगम के चार उन अधिकारियों को पदवतन (डिमोशन) किया गया जिन पर पैसा लेकर प्रमोशन पाने का आरोप था।
बताया जाता है कि पीडब्ल्यूडी में यह नया खेल नहीं है जब सचिव या मंत्री स्तर पर लेन देन कर पदोन्नति दी गई हो। इसके पहले मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बंटवारे के दौरान भी कई तरह का घालमेल हुआ है। ताजा मामला पिंकरी और शर्मा के बीच हुए स्थानांतरण का है जब इंजीनियर ने कार्यपालन अभियंता का पद पा लिया। बहरहाल हाईकोर्ट ने डीपीसी पर बेन लगा दिया है लेकिन मंत्री से सचिव स्तर पर हुए दस करोड़ के लेन की बेहद चर्चा है।
छत्तीसगढ़ में उच्चाधिकारियों व नेताओं की करतूत थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। सेवानिवृत्त आईएएस राघवन ने पदोन्नति सूची पर हंगामें पर भले ही कोई कार्रवाई नहीं हुई है लेकिन हाईकोर्ट ने पीडब्ल्यूडी में हुए पदोन्नति पर न केवल रोक लगा दी बल्कि 4 अधिकारियों का पदावतन भी कर दिया। सम्पूर्ण मामले में उच्च स्तर पर 10 करोड़ के लेन-देन की चर्चा है और पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी इन आरोपों से अछूते नहीं हैं।
मामले की शुरुआत को लेकर ही संदेह किया गया कि आखिर लोकसभा चुनाव के आचार संहिता लगने के चंद घंटे पहले ही डीपीसी कैसे हो गया। इस संदेह को अमलीजामा पहनाया गरियाबंद में पदस्थ इंजीनियर वर्मा ने। दरअसल प्रमोशन के असली हकदार वर्मा की बजाय शासन स्तर पर जब लेन-देन कर दूसरे इंजीनियर को इएनसी बनाने की चर्चा छिड़ी और आचार संहिता लगने के ठीक पहले डीपीसी को ऐसे बनाया गया जिससे आधा दर्जन से अधिक भ्रष्ट इंजीनियरों को पैसे के दम पर प्रमोशन दिया गया।
बताया जाता है कि इस मामले में अनुसूचित जाति के कोटे से जनवदे को ईएनसी बना दिया गया जबकि वे अनुसूचित जनजाति के कोटे के हैं। इस हेराफेरी की वजह 2.50 करोड़ के लेन-देन को बताया जा रहा है। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है इस डीपीसी के अदला बदली में अग्रवाल, पिपरी सहित सेतु निगम के ऐसे अधिकारियों को पैसा लेकर लाभ दिया गया जिन पर भ्रष्टाचार के आरोपों में विभागीय जांच तक चल रही है। सात लोगों को आनन फानन में प्रमोशन की कहानी से लेन देन की नई कहानी बाहर आने लगी है।
बताया जाता है कि इस मामले में सर्वाधिक प्रभावित गरियाबंद में पदस्थ वर्मा हुए। ईएनसी की दौड़ से बाहर होने को लेकर वर्मा ने जब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो सारे घपले खुब ब खुद बाहर आ गए और हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सेतु निगम के चार उन अधिकारियों को पदवतन (डिमोशन) किया गया जिन पर पैसा लेकर प्रमोशन पाने का आरोप था।
बताया जाता है कि पीडब्ल्यूडी में यह नया खेल नहीं है जब सचिव या मंत्री स्तर पर लेन देन कर पदोन्नति दी गई हो। इसके पहले मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बंटवारे के दौरान भी कई तरह का घालमेल हुआ है। ताजा मामला पिंकरी और शर्मा के बीच हुए स्थानांतरण का है जब इंजीनियर ने कार्यपालन अभियंता का पद पा लिया। बहरहाल हाईकोर्ट ने डीपीसी पर बेन लगा दिया है लेकिन मंत्री से सचिव स्तर पर हुए दस करोड़ के लेन की बेहद चर्चा है।
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