मंगलवार, 4 मई 2010

जनता का हितैषी बनने नौटंकी

संपत्ति कर के लिए कांग्रेस-भाजपा दोनों दोषी!
पिछले एक पखवाड़े से कांग्रेसी और भाजपाईयों ने निगम टैक्स की आड़ में जनता का हितैषी बनने जिस तरह से नौटंकी पर उतर आए हैं ऐसा नजारा बहुत कम देखने को मिलेगा। जनता की गाढी क़माई का एक बड़ा हिस्सा अपनी सुख-सुविधाओं और एय्याशी में लुटाने वालों की नौटंकी से आम लोग तमाशाबीन बने हुए हैं एक दूसरे पर दोषारोपण कर राजनैतिक लाभ की ऐसी लड़ाई से आम आदमी निराश हैं।
छत्तीसगढ क़ी राजधानी रायपुर में जब से कांग्रेसी महापौर ने पदभार संभाला है तभी से यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि राय शासन और निगम में टकराव होकर रहेगा। सभापति चुनाव के दौरान ही राय शासन की मंशा स्पष्ट हो गई थी कि वह किस मूड में है। सरकार के एक मंत्री पार्टी का सभापति बनाने न केवल खुलकर सामने आए बल्कि खुले आम लेन देन किया गया। लाखों रुपए वोट बटोरने पार्षदों को बांटे गए और भ्रष्ट कारनामों पर अपनी ही पीठ थपथपाई गई।
इसके बाद निगम का बजट सत्र में भी अभूतपूर्व हंगामा हुआ। विकास की बजाय राजनीति हुई और जैसे तैसे बजट पास किया गया। किरण बिल्डिंग मामले में पिछले महापौर परिषद का कारनामा भी लोगों की जुबान पर चढ़ा और इस मामले में यह भी चर्चा रही कि शहर विधायक ने किस तरह से खेल खेलकर लाखों-करोड़ों का व्यारा-न्यारा किया। कांग्रेस और भाजपा के यह कारनामें अभी लोग भूले भी नहीं थे कि संपत्तिकर को लेकर महापौर किरणमयी नायक पुन: विवादों में आ गई। पहले तो कांग्रेस संगठन ने ही महापौर की पेशी ली लेकिन बाद ें जब भाजपाईयों ने महापौर पर सीधे हमला किया तो कांग्रेस ने रणनीति के तहत बिलासपुर और राजनांदगांव के महापौरों को बुलाकर राय सरकार पर हमला किया।
इसके बाद तो अपनी हार से बौखलाए भाजपाईयों ने महापौर पर हमला बोल दिया और एक-दूसरे पर संपत्ति कर बढ़ाने आरोप लगाए जाने लगे। चुनौती दी जाने लगी। जबकि वास्तविकता यह है कि पहले टेक्स में वृध्दि सरकार ने की फिर इसके झांसे में आकर कांग्रेसी महापौरों ने वृध्दि कर दी। जबकि निगम चाहती तो शासन का प्रस्ताव ठुकरा सकती थी लेकिन कमिश्नर के खेल में कांग्रेसी फंस गए और यही से लड़ाई शुरू हुई। वास्तव में देखा जाए तो टैक्स में की गई बेतहाशा वृध्दि ने आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है और भाजपाई राजनीति करने की बजाए टैक्स कम करने निगम से प्रस्ताव मांगकर सरकार से टैक्स कम करवा सकती है लेकिन एक दूसरों पर आरोप की राजनीति में माहिर नेताओं को तो राजनैतिक लाभ चाहिए।
बहरहाल कांग्रेसी-भाजपाईयों की इस राजनीति ने आम लोगों की जेबों पर डाका तो डाल ही दिया है और अब आम लोगों को निर्णय लेना है कि वह ऐसे सरकार और निगम परिषद के बारे में क्या निर्णय लेती है या पहले की तरह चुपचाप टैक्स पटाती है?

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