नक्सलियों को बड़ा आतंकवादी मानने वाले प्रदेश के मुखिया ने क्या कभी यह सोचा है कि नक्सलियों से मुठभेड़ के बाद हथियार के नाम पर सिर्फ भरमार बंदूक ही क्यों बरामद होती है जबकि दूसरी तरफ नक्सलियों के अत्याधुनिक हथियार से लैस बताया जाता है। इसके पीछे सरकार और पुलिस की मंशा की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ इन दिनों नक्सली आतंकवाद की चपेट में है कभी सिर्फ पुलिस को निशाना बनाने वाले लोग अब आम लोगों की जान के पीछे पड़ गए है और यह सरकार की दिवालिया पन नहीं तो और क्या है कि मुखबीर के नाम पर आम लोगों की हत्या करने पर भी कभी यह नहीं कहा गया कि वे आम आदमी को कत्लेआम कर रहे हैं।
80 के दशक से छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या ने घर करना शुरु किया तब पूर्ववर्ती सरकारों ने इसे सामाजिक समस्या का हवाला देकर इसे नजरअंदाज किया धीरे-धीरे नक्सली ताकतवर होते गए और आज समूचे बस्तर में उनकी सकरार कही जाए तो अतिसंयोक्ति नहीं होगी। इन सबके बीच सरकार और पुलिस की भूमिका भी कई मामले में संदेहास्पद रही है। सरकार और पुलिस ही दावा करती है कि नक्सली अत्याधुनिक हथियारों से लैस है लेकिन पिछले 5-6 सालों में नक्सली मुठभेड़ से बरामद हथियारों की पड़ताल करे तो कुछ एक मामले को छोड़कर कभी भी पुलिस ने मुठभेड़ के बाद आधुनिक हथियार बरामद करने की बात नहीं की।
इस संबंध में यह भी चर्चा है कि पुलिस जानबूझकर अपने पुराने स्टाक से भरमार बंदूक लाकर रख देती है और हथियार बरामद करने का दावा करती है। सूत्रों का दावा है कि यदि उच्च स्तरीय जांच कराई जाए तो कई बातें सामने आएंगी। बहरहाल मुठभेड़ में सिर्फ भरमार बंदूकों की जब्ती को लेकर सवाल तो उठाए ही जा रहे है सरकार की भूमिका की भी जमकर आलोचना की जा रही है।
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