बुधवार, 30 जून 2010

जब अखबार को माफी मांगनी पड़ी

जनसंपर्क विभाग की दादागिरी कोई असमान्य बात नहीं है और यदि सचिव स्तर का अधिकारी बात बात पर अखबारों की जमीन नपवाने या फिर विज्ञापन बंद करने की धमकी दे तो गले तक गफलत में डूबे अखबार मालिकों का चूहा बनना स्वाभाविक है।
छत्तीसगढ़ में इन दिनों यही सब हो रहा है। पिछले दिनों दुनिया को नई बनाने के फेर में लगे एक अखबार ने मुख्यमंत्री के जनदर्शन कार्यक्रम को लेकर खबर छापी कि जनदर्शन में दलाल सक्रिय हो गए हैं जो पैसे लेकर कार्य करते हैं। खबर सच थी या झूठ यह तो वह अखबार ही जाने लेकिन कहा जाता है कि इस खबर ने मुख्यमंत्री निवास में हड़कम्प मचा दी और दलाल पर कार्रवाई की बजाय अखबार पर दबाव बनाया जाने लगा। खबर का खंडन दूसरी बात है लेकिन यहां तो अखबार को लिखित में माफीनामा देना पड़ा। कुल मिलाकर यह अच्छा संकेत कतई नहीं है लेकिन अखबार मालिक जिस तरह सरकारी विज्ञापन और जमीन के लिए लगे हैं उसकी वजह से ही उनके साथ इस तरह का सलूक होता है। अखबार की आड़ में अपने दूसरे धंधों का विस्तार करने की भूख ने इस पेशे को बदनामी के गर्त में ढकेल दिया है और जब संपादक ही दो-पांच के चक्कर में लगा हो तो माफीनामा लिखवाना कोई मुश्किल नहीं है। विज्ञापन बंद करने की धमकी या जमीन नपवाने की धमकी का चलन इन दिनों निष्पक्ष पत्रकारिता को कलंकित करने वाला है।
और अंत में...
अखबारों पर सिर्फ मंत्रियों की ही दादागिरी नहीं उसके विभाग के अधिकारी भी दादागिरी करने लगे हैं यही वजह है कि दमदार मंत्री के विभाग के अधिकारी दमदारी से लूट रहे हैं पत्रकारों को धमकाते हैं कि छाप लो हमारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा तुम्हारा विज्ञापन बंद हो जाएगा।

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